2021 में कुछ रेहड़ी-पटरी वालों ने नेशनल हॉकर फेडरेशन (एनएचएफ) के दिल्ली प्रभारी मोहित वलेचा को बताया कि दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के अधिकारी सरस्वती कैंप, आरके पुरम में दुकानदारों को पीएम स्वनिधि योजना के तहत ऋण आवेदन पत्र दे रहे थे। एनएचएफ के अखिल भारतीय युवा अध्यक्ष मोहित कहते हैं, “जब तक हम वहां पहुंचे, अधिकारी वहां के 20 में से करीब 12 दुकानदारों को आवेदन बांट चुके थे। ये जूनियर अधिकारी थे। जब हमने उनसे पूछा, तो उन्होंने कहा कि उन्हें अपना टारगेट पूरा करना है” इसके बाद वे जल्दी ही चले गए।” मोहित वालेचा ने आगे बताया “मुझे नहीं पता कि दुकानदारों को आखिरकार ऋण मिला या नहीं, लेकिन एमसीडी आमतौर पर सभी आवेदनों को मंज़ूरी दे देती है।”
मोहित कहते हैं कि उन्हें स्वनिधि ऋण योजना के तहत अनुचित या धोखाधड़ी वाले आवेदनों के कई मामले मिले हैं। केंद्र सरकार ने जून 2020 में पीएम स्वनिधि (पीएम स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि) योजना शुरू की थी, जिसका उद्देश्य कोविड के कारण व्यापार में आई मंदी से उबरने के लिए स्ट्रीट वेंडर्स को बिना किसी जमानत के ऋण प्रदान करना था। लेकिन मोहित का आरोप है कि पार्षदों और एमसीडी के अधिकारियों ने अनियमित रूप से लोगों को आवेदन वितरित कर दिए हैं।
“जब तक हम वहां पहुंचे, अधिकारी वहां के 20 में से करीब 12 दुकानदारों को आवेदन बांट चुके थे। ये जूनियर अधिकारी थे। जब हमने उनसे पूछा, तो उन्होंने कहा कि उन्हें अपना टारगेट पूरा करना है” इसके बाद वे जल्दी ही चले गए।” मोहित वालेचा ने आगे बताया “मुझे नहीं पता कि दुकानदारों को आखिरकार ऋण मिला या नहीं, लेकिन एमसीडी आमतौर पर सभी आवेदनों को मंज़ूरी दे देती है।”
योजना की पूरी तरह जानकारी नहीं दी जा रही
2020 में एक अन्य घटना के बारे में वे कहते हैं, “एनएचएफ द्वारा आयोजित एक शिविर में कई रिक्शा चालक आए। उनके वार्ड पार्षद ने अपने कार्यालय में योजना के लिए एक शिविर लगाया था, और उनके आवेदन एमसीडी में ले गए थे। वे ऋण आवेदनों के अगले चरण को पूरा करने के लिए हमारे शिविर में आए थे। जब हमने उन्हें बताया, तभी उन्हें पता चला कि यह एक ऋण था, न कि केंद्र सरकार से मुफ़्त पैसा, जैसाकि उन्हें पार्षद के द्वारा बताया गया था। यह जानने के बाद वे चले गए।”
क्या वाकई स्ट्रीट वेंडर्स को मिल रहा है लाभ
केंद्र सरकार जहां इस योजना की सफलता का जश्न मना रही है, वहीं शहरों में स्ट्रीट वेंडर्स एसोसिएशन योजना के लाभार्थियों की वास्तविक संख्या पर सवाल उठा रहे हैं। योजना की वेबसाइट के अनुसार, 63 लाख से अधिक लोगों ने ऋण लिया है। वेंडर्स एसोसिएशन का कहना है कि लाभार्थियों में अक्सर निर्माण श्रमिक, ऑटो चालक और यहां तक कि गृहिणियां भी शामिल होती हैं। अगर नगरपालिकाएं योजना के दिशा-निर्देशों का पालन करती, तो शायद इससे बचा जा सकता था, जिसके तहत उन्हें संचालन समितियां गठित करनी होती, जिसमें विक्रेताओं के प्रतिनिधि शामिल होते। लेकिन अधिकांश नगरपालिकाओं ने इसकी अनदेखी की है।
स्वनिधि योजना के तहत, स्ट्रीट वेंडर बिना किसी जमानत के 10 हजार रुपये का ऋण ले सकते हैं। अगर वे समय पर किस्तें चुकाते हैं तो उन्हें 7 फीसद तक ब्याज सब्सिडी भी मिलेगी। अगर विक्रेता एक साल के भीतर वह ऋण चुका देता है, तो वह 20 हजार रुपये का एक और ऋण पाने के लिए पात्र होगा। इसके बाद इसके पुनर्भुगतान पर 50 हजार रुपये तक का ऋण मिल सकता है। वेंडर असोसिएशन की शिकायत है कि 2022 के आखिर में जब नगरपालिकाओं पर MoHUA के टारगेट को पूरा करने के लिए दबाव बढ़ा, तब से फर्ज़ी आवेदनों की संख्या में तेज़ी आई है।
शहरों में वेंडर्स के बारे में स्पष्ट आँकड़े नहीं हैं
2014 में पारित स्ट्रीट वेंडर्स (आजीविका का संरक्षण और स्ट्रीट वेंडिंग का विनियमन) अधिनियम के अनुसार, प्रत्येक नगरपालिका को हर पाँच साल में अपने स्ट्रीट वेंडर्स का सर्वेक्षण और पंजीकरण करना होता है, उन्हें पहचान पत्र देना होता है और उनके बीच चुनाव कराना होता है। इसके बाद चुने गए प्रतिनिधि नगर पालिका की टाउन वेंडिंग कमेटी (टीवीसी) के सदस्यों का 40 फीसद हिस्सा होंगे। प्रत्येक नगर पालिका को विक्रेताओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने और उन्हें व्यक्तिगत बिक्री स्थान आवंटित करने के लिए अनिवार्य रूप से एक टीवीसी रखना चाहिए।
लेकिन कानून पारित होने के एक दशक बाद भी, अधिकांश शहरों ने उचित सर्वेक्षण नहीं किए हैं। सिर्फ़ विक्रेताओं के केवल एक छोटे से हिस्से को पंजीकृत किया है, और टीवीसी काफ़ी हद तक निष्क्रिय हैं। स्ट्रीट वेंडर्स पर सटीक डेटा के अभाव में नगर पालिकाएँ ऋण आवेदकों को एक अनुशंसा पत्र (एलओआर) दे सकती हैं, जिसके बाद आवेदन स्वीकृति के लिए बैंक में चला जाता है। हालांकि वेंडर्स सीधे स्वनिधि पोर्टल पर आवेदन कर सकते हैं, राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (एनयूएलएम) के तहत सामुदायिक संसाधन व्यक्तियों (CRPs) को वेंडर्स को आवेदन करने में मदद करने का काम सौंपा गया है। ‘रांची फुटपाथ दुकानदार हॉकर्स संघ’ की महासचिव अनीता दास कहती हैं, “सीआरपी मनमाने ढंग से लोगों को नामांकित करते हैं ताकि टारगेट पूरा हो सके और साथ ही उन्हें इंसेंटिव्स भी मिले। रांची नगर पालिका ने भी योजना के टारगेट को पूरा करने के लिए मनमाने तरीके से एलओआर जारी किए।”
रांची नगर निगम के सहायक प्रशासक निकेश कुमार ने पुष्टि की कि सीआरपी को आवेदन दाखिल करने के लिए 100 रुपये और ऋण वितरण के बाद 100 रुपये की प्रोत्साहन राशि मिलती है। वर्तमान में शहर टीवीसी में संघ के 11 सदस्य हैं। अनीता कहती हैं कि रांची निगम ने 2017 के सर्वेक्षण के आधार पर केवल 6,000 वेंडर्स को पंजीकृत किया है। हालांकि, नगर निगम के अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने अब तक एलओआर के साथ बैंकों को लगभग 19,600 ऋण आवेदन भेजे हैं, जिनमें से लगभग 13,500 लोगों को ऋण मिल चुका है।
अनीता कहती हैं, “शहर में आयोजित कई शिविरों में हमने नॉन वेंडर्स को ऋण के लिए आवेदन करते देखा। हम निर्माण श्रमिकों, झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों और यहां तक कि काफ़ी संपन्न लोगों को भी ऋण मिलने के केसेज जानते हैं। कुछ नगर पार्षदों ने भी अपने मतदाताओं को मनमाने ढंग से ऋण देने की पेशकश की जबकि इस योजना में पार्षदों को शामिल करने का कोई प्रावधान नहीं है।” अनीता कहती हैं कि टीवीसी सदस्यों ने टीवीसी की बैठक में अपात्र लाभार्थियों का मुद्दा उठाया था। लेकिन निगम अधिकारियों ने उन्हें केवल उच्च अधिकारियों से संपर्क करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि उनके अनुरोध के बावजूद नगरपालिका ने लाभार्थियों की सूची उनके साथ साझा नहीं की है।
सीआरपी मनमाने ढंग से लोगों को नामांकित करते हैं ताकि टारगेट पूरा हो सके और साथ ही उन्हें इंसेंटिव्स भी मिले। रांची नगर पालिका ने भी योजना के टारगेट को पूरा करने के लिए मनमाने तरीके से एलओआर जारी किए।
पीएम स्वनिधि योजना के तहत ऋण कैसे प्राप्त करें
- •आवेदन https://pmsvanidhi.mohua.gov.in/ पर ऑनलाइन स्वीकार किए जाते हैं। वेंडर का फ़ोन नंबर उनके आधार नंबर से जुड़ा होना चाहिए।
- कुछ वेंडर्स जिनके पास पहले से ही नगर पालिका के सर्वेक्षण के आधार पर विक्रय प्रमाणपत्र (सीओवी) हैं, वे इसे सीधे अपने ऋण आवेदन में अपलोड कर सकते हैं। चूंकि अधिकांश विक्रेताओं के पास सीओवी नहीं है, इसलिए उन्हें पहले अनुशंसा पत्र (एलओआर) के लिए स्वनिधि पोर्टल पर आवेदन करना होगा। यह आवेदन उस क्षेत्र के संबंधित नगर पालिका को जाता है।
- वेंडर अपने फ़ोन नंबर पर आने वाले ओटीपी के ज़रिए लॉग इन करके एलओआर आवेदन की स्थिति को ऑनलाइन ट्रैक कर सकता है।
- नगर पालिका द्वारा एलओआर जारी किए जाने के बाद, वेंडर 10,000 रुपये के ऋण के लिए पोर्टल पर आवेदन कर सकता है। ऋण आवेदन पेज पर वेंडर को एलओआर अपलोड करना होगा, जिसके आधार पर आवेदन फ़ॉर्म अपनेआप भर जाएगा। इसके अलावा, वेंडर को बैंक खाते का विवरण और पिछले ऋण विवरण जैसी अन्य जानकारी भरनी होगी। यह आवेदन बैंक को जाता है।
- हालांकि वेंडर पोर्टल पर ऋण आवेदन की स्थिति को ट्रैक कर सकते हैं। लेकिन वे आमतौर पर प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए सीधे बैंकों से संपर्क करते हैं। वेंडर्स का कहना है कि ऐसा न करने पर आवेदन अस्वीकृत या इसमें देरी हो सकती है। कुछ बैंक वेंडर्स से एक शपथपत्र पर हस्ताक्षर करने और उनके दौरे के दौरान दस्तावेजों की हार्ड कॉपी लाने को भी कहते हैं। हालांकि सभी बैंक योजना दिशानिर्देशों के अंतर्गत शामिल हैं। लेकिन निजी क्षेत्र के बैंकों ने बड़े पैमाने पर ऋण वितरण से दूरी बनाया हुई है।
- लोन स्वीकृत होने पर, राशि लाभार्थी के बैंक खाते में जमा हो जाती है।
- वेंडर्स एसोसिएशन का कहना है कि पूरी प्रक्रिया में आमतौर पर कुछ ही दिन लगते हैं या कुछ मामलों में 1-2 महीने तक लग जाते हैं।
- जब लाभार्थी 10,000 रुपये का लोन चुका देता है, तो वह 20 हजार और 50 हजार रुपये के लोन के लिए पात्र हो जाता है। वह वेबसाइट पर इन लोन के लिए भी आवेदन कर सकता है, या कुछ मामलों में बैंक इन लोन को पहले ही स्वीकृत कर देती है।
योजना दिशा-निर्देशों में सुझाए गए संचालन समितियों का गायब होना
पीएम स्वनिधि योजना दिशा-निर्देशों के अनुसार, लाभार्थियों की पहचान करने में टीवीसी बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। स्वनिधि योजना के दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि प्रत्येक नगर पालिका को एक संचालन समिति का गठन करना होगा, जिसमें तीन टीवीसी सदस्य शामिल होंगे जो वेंडर्स के प्रतिनिधि हों। साथ ही नगर निगम और बैंकिंग अधिकारी भी होंगे। यदि शहर में कोई टीवीसी नहीं है, तो नगर आयुक्त को शहर में स्ट्रीट वेंडर्स एसोसिएशन से तीन सदस्यों को नामित करना चाहिए। इस समिति को ‘ऋण आवेदनों को प्रायोजित करना और योजना कार्यान्वयन की निगरानी करना’ है, और इसे महीने में एक बार बैठक करनी होगी।
लेकिन शायद ही किसी शहर ने ऐसी समिति गठित की हो। रांची नगर निगम के निकेश कुमार ने पुष्टि की कि शहर में ऐसी कोई समिति नहीं है। उन्होंने कहा कि टीवीसी की भूमिका वेंडर्स के बीच योजना के बारे में जागरूकता पैदा करने तक ही सीमित है। LoR को केवल नगर निगम के अधिकारी ही मंजूरी देते हैं। हमें व्यक्तिगत वेंडर्स, नगरपालिका के सामुदायिक अधिकारियों और एनयूएलएम के तहत सीआरपी से आवेदन मिलते हैं। मोहित वलेचा कहते हैं कि दिल्ली नगर पालिकाओं में भी इस योजना के लिए कोई अलग संचालन समिति नहीं है। मोहित और एनएचएफ के अन्य सदस्य दिल्ली में विभिन्न टीवीसी का हिस्सा हैं। इनके अनुसार “दिल्ली में ऋण पाने वाले 2.25 लाख लोगों में से केवल 60-70 फीसद ही असल में वेंडर्स होंगे।”
अफसरों के विवेक अनुसार ऋण वितरण
फेडरेशन ऑफ बेंगलुरु डिस्ट्रिक्ट स्ट्रीट वेंडर्स यूनियन के अध्यक्ष बाबू एस कहते हैं कि बेंगलुरु में, सीआरपी ने ऑटो चालकों, परिधान श्रमिकों, गृहणियों आदि से आवेदन लिए थे। “हालांकि बेंगलुरु में इस योजना के लिए कोई अलग समिति नहीं है। लेकिन जिले का प्रमुख बैंक मैनेजर क्षेत्रीय टीवीसी बैठकों में भाग लेता है। हमने बैठकों में इस मुद्दे को उठाया था। लेकिन लीड बैंक मैनेजर ने कहा कि नगर निगम ही आवेदनों को मंजूरी देता है और निगम अधिकारियों ने बदले में हमें एनयूएलएम से बात करने के लिए कहा। हमने एनयूएलएम अधिकारियों से बात की, लेकिन औपचारिक रूप से कोई शिकायत दर्ज़ नहीं की।”
बेंगलुरू नगर निगम में विशेष आयुक्त (वेलफेयर) विकास सुरालकर का कहना है कि उन्हें इस मुद्दे की जानकारी नहीं है और कार्रवाई तभी की जा सकती है जब वेंडर्स व्यक्तिगत मामलों के बारे में शिकायत दर्ज़ करें। “अन्यथा हमारे लिए अब तक स्वीकृत एक लाख से अधिक आवेदनों के हर विवरण पर ग़ौर करना संभव नहीं है। साथ ही, योजना की प्राथमिकता लोगों की मदद करना है, यह हमें दूसरों (नॉन वेंडर्स) की मदद करने से नहीं रोकता है।” उनका कहना है कि बेंगलुरु में टीवीसी का कार्यकाल समाप्त हो गया है। इसलिए उनके पास अब कोई अधिकार नहीं है। “विक्रेताओं का फिर से सर्वेक्षण 2022 में किया जाना था, हम इसे इस साल करवा लेंगे।” विकास को योजना के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए शहर-स्तरीय समिति के प्रावधान की जानकारी नहीं थी।
तेलंगाना और गुवाहाटी के विक्रेताओं का भी कहना है कि उन्हें इस प्रक्रिया से बाहर रखा गया है। नेशनल एसोसिएशन ऑफ स्ट्रीट वेंडर्स ऑफ इंडिया (NASVI) के तेलंगाना राज्य अध्यक्ष शालिवन रांगा का कहना है कि उन्होंने एक फ़ोन सर्वेक्षण के माध्यम से ग्रेटर हैदराबाद के गजुलारामरम सर्कल से कई अपात्र लाभार्थियों की पहचान की। शालिवन जोकि सर्कल के एक टीवीसी सदस्य भी हैं, कहते हैं कि सर्कल से चिन्हित किये गए 6,000 लाभार्थियों में से कई वहां बिल्कुल भी काम नहीं करते हैं। वह आगे कहते हैं “लाभार्थियों का डेटा ऑनलाइन उपलब्ध है। जब मैंने उनमें से कुछ को फोन किया, तो पाया कि कई दर्जी थे जो स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) के सदस्य हैं और घर से बाहर काम करते हैं और कई मामलों में नाम या फोन नंबर ग़लत था।” गुवाहाटी में, टीवीसी सदस्य दिलीप हजारिका का कहना है कि उन्होंने योजना के तहत एसएचजी सदस्यों को ऋण के प्रावधान पर सवाल उठाया था। वह कहते हैं, “हमने कहा कि वे स्ट्रीट वेंडर नहीं हैं। 2014 के सर्वेक्षण में केवल 7,185 विक्रेताओं की पहचान की गई थी, लेकिन गुवाहाटी में लगभग 27,000 लोगों को ऋण दिया गया है।”
दिल्ली नगर पालिकाओं में भी इस योजना के लिए कोई अलग संचालन समिति नहीं है। मोहित और एनएचएफ के अन्य सदस्य दिल्ली में विभिन्न टीवीसी का हिस्सा हैं। इनके अनुसार “दिल्ली में ऋण पाने वाले 2.25 लाख लोगों में से केवल 60-70 फीसद ही असल में वेंडर्स होंगे।
लक्ष्य पूरा हो गया है MoHUA संयुक्त सचिव
आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय में संयुक्त सचिव और पीएम स्वनिधि योजना के प्रभारी राहुल कपूर कहते हैं कि उनके पास इस बारे में कोई डेटा नहीं है कि किन शहरों ने संचालन समिति का गठन किया है। इनके शब्दों में, “हमारा लक्ष्य यह जांचना नहीं है कि ये समितियां नियमित बैठकें कर रही हैं या नहीं। ये संचालन और निगरानी समितियां होनी चाहिए थीं जो ऋण की सुविधा प्रदान करती हैं। जबतक स्थानीय निकाय LoR जारी कर रहे हैं और ऋण स्वीकृत किए जा रहे हैं, तब तक यह उद्देश्य पहले ही पूरा हो रहा है।”
हालांकि, NASVI के प्रमुख अरबिंद सिंह कहते हैं कि योजना दिशानिर्देशों में दिए गए शहर-स्तरीय समितियां भी अपर्याप्त हैं। “सिर्फ़ तीन टीवीसी सदस्य पूरे टीवीसी का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते। जब मंत्रालय योजना दिशानिर्देश बना रहा था, तो हमने सुझाव दिया था कि ऋण स्वीकृतियां टीवीसी द्वारा ही की जानी चाहिए, क्योंकि टीवीसी में पहले से ही वेंडर्स और नगर निगम के अधिकारियों का प्रतिनिधित्व है, बैंकरों का प्रतिनिधित्व भी उनमें शामिल किया जा सकता है।”
MoHUA के राहुल कपूर मानते हैं कि विक्रेताओं के संघ अपात्र लाभार्थियों का मुद्दा उठाते रहे हैं। “लेकिन उन्होंने विशिष्ट व्यक्तियों के ख़िलाफ़ औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं की है। इसके बिना, कार्रवाई करना मुश्किल है क्योंकि कई गरीब लोग अन्य नौकरियों के साथ-साथ वेंडिंग भी करते हैं। कुछ लोग कुछ खास मौसमों में वेंडर्स भी हो सकते हैं।” कपूर यह भी कहते हैं कि योजना में ज़रूरी है कि राज्यों को स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट को लागू करने के लिए उसी तरह दबाव डाला जाए जैसे कि टीवीसी की स्थापना के मामले में था। “लेकिन अभी भी यह सवाल है कि टीवीसी कितनी अच्छी तरह काम कर रहे हैं। आख़िरकार यह राज्य का विषय है।”
“हमारा लक्ष्य यह जांचना नहीं है कि ये समितियां नियमित बैठकें कर रही हैं या नहीं। ये संचालन और निगरानी समितियां होनी चाहिए थीं जो ऋण की सुविधा प्रदान करती हैं। जबतक स्थानीय निकाय LoR जारी कर रहे हैं और ऋण स्वीकृत किए जा रहे हैं, तब तक यह उद्देश्य पहले ही पूरा हो रहा है।”
वेंडर्स एसोसिएशंस का कहना है कि अपात्र लाभार्थी ऋण नहीं चुका सकते हैं, जिससे भविष्य की योजनाओं के लिए स्ट्रीट वेंडर्स की छवि पर असर पड़ेगा। स्वनिधि पोर्टल के अनुसार, केवल 40 फीसद लाभार्थियों (63.6 लाख में से 25.7 लाख) ने 10,000 रुपये का ऋण पूरी तरह से चुकाया है। कपूर कहते हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि पिछले साल ही बड़ी संख्या में ऋण जारी किए गए थे। साथ ही, कुछ ऐसे लोग थे जो कोविड के दौरान ऋण नहीं चुका पाए थे, इसलिए नियत तिथि बढ़ा दी गई थी।
बेदखली ज़ारी है
वास्तविक वेंडर्स के लिए, पहले कुछ वर्षों में ऋण स्वीकृति प्रक्रिया कठिन थी लेकिन अब आसान हो गई है। हालांकि, इस योजना के तहत नामांकन करने के बाद भी वे अधिकारियों द्वारा बेदखली या उत्पीड़न से नहीं बच सकते हैं। शहरों में स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट के किसी भी प्रावधान का पालन किए बिना नियमित रूप से वेंडर्स को अक्सर बेरहमी से बेदखल किया जाता है। अरबिंद सिंह कहते हैं कि इस योजना ने वेंडर्स को मुख्यधारा की बैंकिंग प्रणाली का हिस्सा बनने और साहूकारों पर अपनी निर्भरता कम करने में मदद की है। लेकिन यह आजीविका की असुरक्षा की समस्या का समाधान नहीं करती है। “अगर ऋण प्राप्त करने वाले वेंडर को लगातार बेदखल किया जाता है और उसका माल नष्ट कर दिया जाता है, तो वह ऋण नहीं चुका पाएगा। लेकिन सरकार में स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट लागू नहीं होने के बारे में कोई सुनना नहीं चाहता।”
नोट: यह लेख पहली बार सिटीजन मैटर्स पर प्रकाशित हुआ था, जो एक स्वतंत्र नागरिक मीडिया मंच है, जो ऊरवानी फाउंडेशन द्वारा समर्थित है। यह लेख नव्या पी ने लिखी है। इसका अनुवाद प्रीति खरवार ने किया है।