इंटरसेक्शनलजेंडर देश में लड़कों की तुलना में लड़कियों का राजनीति में दिलचस्पी कम क्यों है?

देश में लड़कों की तुलना में लड़कियों का राजनीति में दिलचस्पी कम क्यों है?

लड़कियां अपने परिवारों से असमर्थित महसूस कर सकती हैं और लैंगिक रूढ़िवाद और सामाजिक अपेक्षाओं के कारण, उनकी ‘राजनीतिक आकांक्षाएं’ सीमाओं में बंध जाती है। इसके उलट, लड़कों को बचपन से जोखिम लेने, नेतृत्व की भूमिका निभाने और सामाजिक तौर पर राजनीति में ज्यादा सक्रिय रूप से शामिल होने के लिए बढ़ावा दिया जाता है।

हाल ही में लॉस एंजिल्स के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के समाज कल्याण विभाग (यूसीएलए) और गैर-सरकारी संस्था कुलविरा के किए गए एक सर्वे में पाया गया कि देश में लड़कियां, लड़कों की तुलना में, राजनीति में कम रुचि रखती हैं और बताती हैं कि राजनीति में भाग लेने के अवसर भी कम मिलते हैं। इसके अलावा, हालांकि बड़े लड़कों यानि 18 से 22 के उम्र में राजनीतिक रुचि और जुड़ाव छोटे लड़कों यानि 14 से 17 साल की तुलना में अधिक थी। लेकिन, लड़कियों की राजनीतिक रुचि और जुड़ाव सभी उम्र के समूहों में एक जैसे ही थे। भारतीय राजनीति की बात करें, तो महिलाओं की भागीदारी बहुत खराब है। लोकसभा चुनाव में भी सभी पार्टियों के दावों के बावजूद, अबतक सिर्फ 9 फीसद हिस्सेदारी है। वहीं राजनीति में महिलाओं का अपनी इच्छा या दिलचस्पी से आना भी कम देखने को मिलता है।

एक समय था जब बूढ़े-बुजुर्ग बच्चों को खेल या राजनीति नहीं, पढ़ाई पर ध्यान देने को कहते थे। माना जाता था कि राजनीति एक ऐसा भ्रष्ट क्षेत्र है, जहां लोग सिर्फ भ्रष्ट होकर ही टिक सकते हैं। इसे खतरनाक और अनिश्चित क्षेत्र भी माना जाता है। लेकिन, जहां पुरुषों को राजनीति में आने के लिए, मूल रूप से किसी मेन्टर और पैसों की जरूरत होती है, उनके राजनीतिक रुझान तैयार करने में घरों में मिला साथ और शिक्षा भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वहीं महिलाओं का राजनीति में आना ही नहीं, रुझान तैयार होने में भी, उन्हें परिवार से मिल रहा सहयोग, उनकी शिक्षा, आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि, जाति, धर्म और वैवाहिक स्थिति मायने रखता है।  

महिलाओं और लड़कियों का राजनीतिक चेतना, रुचि और जागरूकता पहले के मुकाबले बढ़ी है। आज ऐसी भी लड़कियां हैं जो राजनीतिक टर्म्स जैसे नोटा तक का मतलब जानती हैं। हालांकि ये इस बात पर भी निर्भर करता है कि वे किस परिवार, समुदाय और क्षेत्र से हैं।

क्या महिलाएं राजनीति को लेकर जागरूक हैं

कुलविरा सर्वेक्षण के अनुसार यह पाया गया कि उम्र के साथ लड़कियों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं स्थिर हो जाती हैं। वहीं लड़कों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं बढ़ती हैं। महिलाओं के राजनीतिक रुचि और रुझान पर एमिटी स्कूल ऑफ कम्युनिकेशन, एमिटी यूनिवर्सिटी झारखंड की सहायक प्रोफेसर सुमेधा चौधरी कहती हैं, “महिलाओं और लड़कियों का राजनीतिक चेतना, रुचि और जागरूकता पहले के मुकाबले बढ़ी है। आज ऐसी भी लड़कियां हैं जो राजनीतिक टर्म्स जैसे नोटा तक का मतलब जानती हैं। हालांकि ये इस बात पर भी निर्भर करता है कि वे किस परिवार, समुदाय और क्षेत्र से हैं। दिल्ली में रह रही किसी लड़की की राजनीतिक जागरूकता झारखंड के पलामू के लड़की से अलग होगी। इसमें परिवार से उन्हें कितना और किस तरह सपोर्ट मिल रहा है, ये भी मायने रखता है। कई बार समाज की सोच भी महिलाओं में राजनीतिक रुचि और रुझान  को पनपने नहीं देती।” भारत में महिलाएं राजनीतिक जीवन में पुरुषों के समान भाग नहीं लेती हैं।

तस्वीर साभार: World Vision Advocacy

हालांकि आज बड़ी संख्या में महिलाएं वोट कर रही हैं। लेकिन राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर चुनावों में उनका प्रतिनिधित्व बहुत मामूली है। कुलविरा के सर्वे में शामिल प्रतिभागियों में, आधे से अधिक यानि 51 फीसद लड़के खुद को राजनीतिक रूप से सक्रिय मानते हैं। वहीं सिर्फ 29 फीसद लड़कियां खुद को राजनीतिक रूप से सक्रिय मानती हैं। यहां पांच व्यवहारों के आधार पर सर्वेक्षण प्रतिभागियों के राजनीतिक जुड़ाव के स्तर को भी मापा गया, जिसमें राजनीतिक पोस्ट ऑनलाइन साझा करना, रैलियों में भाग लेना और सरकारी अधिकारियों से संपर्क करना शामिल था। राजनीति में सक्रियता या रुचि का मतलब ये भी है कि आगे चलकर इसमें शामिल होना।

मैं खबरें पढ़ती हूं लेकिन राजनीति में दिलचस्पी नहीं है। हालांकि एक मुस्लिम हिजाबी लड़की होने के कारण राजनीति पर राय रखना मेरे लिए मुश्किल है। स्कूल में रहते भी राजनीतिक रुझान बयान करने पर मेरी अक्सर दूसरों के साथ लड़ाई हो जाती थी।

चूंकि लोगों को राजनीति बहुत गंभीरता से समझ न भी आए, तो भी ये समझ आता है कि राजनीति में  जागरूकता का मतलब है कि खबरों, अपने अधिकारों और देश-दुनिया की जानकारी रखना। संभव है कि जो महिला राजनीति में दिलचस्पी रखती हो, वो आगे चलकर राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाना चाहे।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

राजनीति में रुझान के विषय पर दिल्ली में इग्नोउ से अंग्रेज़ी में स्नातक की पढ़ाई कर रही इल्मा खान कहती हैं, “मैं खबरें पढ़ती हूं लेकिन राजनीति में दिलचस्पी नहीं है। हालांकि एक मुस्लिम हिजाबी लड़की होने के कारण राजनीति पर राय रखना मेरे लिए मुश्किल है। स्कूल में रहते भी राजनीतिक रुझान बयान करने पर मेरी अक्सर दूसरों के साथ लड़ाई हो जाती थी।”

घरों में हमें सिखाया जाता है कि हमें एक दिन दूसरे घर ही जाना है। इसलिए, वहां भी हमें ये नहीं पता कि हमारा राजनीति में रुझान या रुचि या अगर हम आगे चलकर राजनीति में जाना चाहे, तो कितना समर्थन मिलेगा। राजनीति एक ऐसा क्षेत्र है जहां वाद-विवाद चलते रहता है। महिलाएं कितनी भी मजबूत और सशक्त क्यों न हो, उन्हें अपनी सुरक्षा की चिंता भी होती है।

राजनीतिक जागरूकता में कौन से कारक काम करते हैं

सेज जर्नल में छपे एक शोध के अनुसार विधायी निकायों में महिलाओं की सीमित उपस्थिति इस तथ्य को साबित करता है कि कई महिलाएं अभी भी घर तक ही सीमित हैं। इस सर्वे में उत्तरी भारत के एक राज्य में यह आकलन किया गया था कि कौन सी महिलाएं, स्थानीय निकायों में शामिल होने का अवसर लेने में सक्षम हैं, जहां सभी सीटों में से एक तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। विश्लेषण से पता चला कि जनसांख्यिकीय कारकों पर नियंत्रण यानि आरक्षण के बावजूद, सिर्फ वे महिलाएं स्थानीय निकायों के लिए चुनाव लड़ने के अवसर का लाभ रही हैं, जिनकी पहचान घर से स्वतंत्र है। देखा जाए तो महिलाओं का राजनीति में रुझान और जागरूकता के साथ रूढ़िवादी धारणा जुड़ी है, जो इस क्षेत्र को महिलाओं के लिए उपयुक्त नहीं मानता।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

जब बचपन से किशोरियों को इस आधार पर बड़ा किया जाता है, कि उनका काम मूल रूप से परिवार की जिम्मेदारी है, तो वे राजनीतिक दिशा में सोचने के लिए प्रेरित नहीं होती। राजनीतिक रुचि और रुझान में शिक्षा भी एक अहम भूमिका निभाती है। इस विषय पर भोपाल मध्यप्रदेश की वीएनएस कॉलेज फार्मेसी में बैचलर ऑफ फार्मेसी कर रही गौरी शर्मा कहती हैं, “मैं खबरें मूल रूप से अपने परिवार और पिता के साथ बैठकर देखती हूँ। मुझे ऐसा लगता है कि राजनीति सामान्य ज्ञान का एक स्त्रोत है। कुछ नया होता है, जैसा कि अगर कोई बिल पास होता है, उसकी जानकारी मुझे राजनीतिक खबरों से ही मिलती है। पर आगे विषय पर मेरे पिता ही मुझे बताते हैं। मैं अक्सर जो भी देखती हूँ, अपने पिता के साथ बात करती हूँ। लेकिन, घरों में हमें सिखाया जाता है कि हमें एक दिन दूसरे घर ही जाना है। इसलिए, वहां भी हमें ये नहीं पता कि हमारा राजनीति में रुझान या रुचि या अगर हम आगे चलकर राजनीति में जाना चाहे, तो कितना समर्थन मिलेगा। राजनीति एक ऐसा क्षेत्र है जहां वाद-विवाद चलते रहता है। महिलाएं कितनी भी मजबूत और सशक्त क्यों न हो, उन्हें अपनी सुरक्षा की चिंता भी होती है।”

कुछ नया होता है, जैसा कि अगर कोई बिल पास होता है, उसकी जानकारी मुझे राजनीतिक खबरों से ही मिलती है। पर आगे विषय पर मेरे पिता ही मुझे बताते हैं। मैं अक्सर जो भी देखती हूँ, अपने पिता के साथ बात करती हूँ।

समय और मोबिलिटी की मांग करता है राजनीति

राजनीति समय की मांग करता है। ये मोबिलिटी, निष्ठा और लोगों के बीच जाकर काम करने की मांग करता है, जहां पुरुषों का वर्चस्व है। चूंकि देश में महिलाओं के मोबिलिटी पर आज भी सामाजिक, आर्थिक और पारिवारिक नियंत्रण होता है, इसलिए राजनीति खुद ही अनेकों मांग करने वाला एक मुश्किल और चुनौतीपूर्ण क्षेत्र बन जाता है। कॉर्पोरेट जैसे कई क्षेत्रों में पुरुषों का वर्चस्व होने के बावजूद, ये एक संस्थान के रूप में चलते हैं, जहां एक निश्चित ढांचे में काम करना होता है। राजनीति की तरह ये एकदम अनिश्चित नहीं होते। इसलिए, महिलाओं का राजनीति में टिके रहना मुश्किल होता है। राजनीति को आम तौर पर शक्ति के प्रयोग के रूप में समझा जाता है।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

राजनीतिक भागीदारी का मतलब है सत्ता का प्रयोग करने की प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी। इसलिए, राजनीतिक सशक्तिकरण का मतलब शक्ति, विशेष रूप से कानूनी शक्ति या अफिशल अधिकार के साथ निवेश करना है। इन सभी पहलुओं में समाज के पितृसत्तात्मक नियम महिलाओं को विफल करते हैं। इस विषय पर गौरी कहती हैं, “परिवार के साथ नौकरी या सभी जिम्मेदारियों के बीच, महिलाओं का राजनीति में आना मुश्किल है। महिलाएं हर तरह के प्रेशर में काम कर सकती हैं। लेकिन दोनों पक्षों को संभालना बेहद मुश्किल है। साथ में, स्कूल और कॉलेज भी हमें जागरूक नहीं बनाती। हमें किताबी ज्ञान ज्यादा सिखाया जाता है जिस कारण भी रुचि या रुझान नहीं होती।”

सर्वे में शामिल प्रतिभागियों में, आधे से अधिक यानि 51 फीसद लड़के खुद को राजनीतिक रूप से सक्रिय मानते हैं। वहीं सिर्फ 29 फीसद लड़कियां खुद को राजनीतिक रूप से सक्रिय मानती हैं। उम्र के साथ लड़कियों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं स्थिर हो जाती हैं। वहीं लड़कों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं बढ़ती हैं।

लिंग आधारित राजनीतिक समाजीकरण परिवार, सोशल मीडिया और समाचार जैसे विभिन्न कारकों से प्रभावित होता है। ये लड़कों और लड़कियों की जेंडर और राजनीति की धारणाओं को प्रभावित करता है। लड़कियां अपने परिवारों से असमर्थित महसूस कर सकती हैं और लैंगिक रूढ़िवाद और सामाजिक अपेक्षाओं के कारण, उनकी ‘राजनीतिक आकांक्षाएं’ सीमाओं में बंध जाती है। इसके उलट, लड़कों को बचपन से जोखिम लेने, नेतृत्व की भूमिका निभाने और सामाजिक तौर पर राजनीति में ज्यादा सक्रिय रूप से शामिल होने के लिए बढ़ावा दिया जाता है। महिलाओं में राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं तैयार न होने से बाद के उम्र में वे वोट देने के लिए भी अपने घरवालों विशेषकर जीवनसाथी का सहारा लेती हैं।

लैंगिक असमानताओं को दूर करने, और कम उम्र से ही समावेशी राजनीतिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए, इन कारकों और रूढ़ियों को पहचानना जरूरी है। एक समस्या ये भी है कि राजनीति में बहुत गिनी-चुनी महिला रोल मॉडल हैं, जिन्हें देखकर किशोरियां प्रेरित हो सकती हैं। वहीं महिलाओं को अपने विचार साझा करने पर भी, उन्हें समाज में आम तौर पर गंभीरता से नहीं लिया जाता है या उन्हें पुरुषों के बराबर नहीं माना जाता। स्कूल और कॉलेज भी लड़कियों के राजनीतिक विकास और जागरूकता के लिए उनका समर्थन कर सकते हैं। महिलाओं में राजनीतिक जागरूकता, ज्ञान, आत्मविश्वास और गतिशीलता का निर्माण, राजनीति में महिलाओं की रुझान और भागीदारी बढ़ा सकता है। राजनीतिक परिदृश्य में युवा महिलाओं को शामिल करने की तत्काल जरूरत है। इसके लिए परिवार,शैक्षिक संस्थान और नागरिक समाज को भी भूमिका निभानी होगी।

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