समाजख़बर 77वें कान्स फिल्म फेस्टिवल में भारतीय महिलाओं ने रचा इतिहास

77वें कान्स फिल्म फेस्टिवल में भारतीय महिलाओं ने रचा इतिहास

77 वें कान्स फिल्म फेस्टिवल में इस बार भारतीय महिलाओं ने लाइमलाइट बटोरी। चाहे बात बेस्ट एक्ट्रेस की हो या फिर बेहतरीन फिल्म अवॉर्ड की, ये दोनों भारतीय महिलाओं ने अपने नाम कर लिए हैं। भारतीय महिलाओं की यह जीत वैश्विक स्तर पर भारतीयों की क्षमता और प्रतिभा को दर्शाती है।

25 मई को ख़त्म हुए 77वें कान्स फिल्म फेस्टिवल में इस बार भारतीय महिलाओं ने लाइमलाइट बटोरी। चाहे बात बेस्ट एक्ट्रेस की हो या फिर बेहतरीन फिल्म अवॉर्ड की, ये दोनों भारतीय महिलाओं ने अपने नाम कर लिए हैं। भारतीय महिलाओं की यह जीत वैश्विक स्तर पर भारतीयों की क्षमता और प्रतिभा को दर्शाती है। यह वैश्विक सिनेमा में भारतीय प्रतिनिधित्व के लिए अनोखा और अहम पल है, जिसे हमेशा याद किया जाता रहेगा। फेस्टिवल में कुल 8 भारतीय फिल्म प्रदर्शित की गई। साथ ही, कई भारतीय फिल्मों का प्रीमियर भी हुआ। 

ऑल वी इमेजिन एज लाइट:  बेस्ट फिल्म

तसवीर साभार: CNN

फिल्म फेस्टिवल में 23 मई की रात फिल्म ऑल वी इमेजिन एज लाइट का वर्ल्ड प्रीमियर हुआ। अहम बात है कि फिल्म को करीब 8 मिनट तक स्टैंडिंग ओवेशन मिली। आलोचकों ने फिल्म की सराहना की और इस फिल्म को महोत्सव का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान ग्रैंड प्रिक्स अवॉर्ड मिला। 30 सालों के कॉम्पटीशन के बाद ‘ऑल वी इमेजिन एज लाइट’ अवॉर्ड जीतने वाली पहली भारतीय फिल्म बन गई है। कपाड़िया इस प्रतिष्ठित सम्मान को प्राप्त करने वाली पहली भारतीय फिल्म निर्माता बन गई हैं। फिल्म की कहानी दो नर्सों के इर्द-गिर्द बुनी गई है, जिसमें दोनों के अनुभवों की झलक है।

तस्वीर साभार: France 24

कुछ लोगों ने फिल्म में मुख्य पात्र प्रभा (कनी कुसरुति) और उसके मुस्लिम प्रेमी (हृदु हारून) के बीच रोमांस को साहसिक बताया है, क्योंकि देश में धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण तेजी से बढ़ रहा है। भारत विश्व में सबसे बड़ा फिल्म निर्माता देशों में से एक है। लेकिन दुर्भाग्य है कि अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करने वाली और अहम पुरस्कार जीतने वाली फिल्में बनाने के मामले में यह हॉलीवुड से काफ़ी दूर है। बता दें कि 77 साल के इतिहास में अबतक 32 भारतीय फिल्में नॉमिनेट हुईं हैं और अलग-अलग कैटेगरी में 20 बार अवॉर्ड जीते हैं। 1953 में राज कपूर की फिल्म आवारा को नॉमिनेट किया गया था। सत्यजीत रे कांस फिल्म फेस्टिवल के लिए कुल 4 बार नॉमिनेट किए गए हैं। इनमें उनकी फिल्म घरे बाइरे, पाथेर पांचाली और पारस पत्थर शामिल हैं। इसी के साथ वे सबसे ज्यादा बार नॉमिनेट होने वाले भारतीय निर्देशक रहे हैं। हिंदी फिल्म प्रिंटेड रेनबो अबतक सबसे ज्यादा कैटेगरी में नॉमिनेट हुई है।

फ़िल्म द शेमलेस की कहानी भारत की दो सेक्स वर्कर्स के जीवन पर आधारित है, जिनमें से एक के हाथों एक पुलिसवाले की हत्या हो जाती है। इनमें से एक दिल्ली में रहने वाली रेणुका के जीवन की कहानी है। वो सेक्स वर्कर्स के एक समुदाय में शरण लेती है।

अनसूया सेनगुप्ता: बेस्ट एक्ट्रेस 

अनसूया सेनगुप्ता को अपनी फिल्म द शेमलेस के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड मिला है। इसी के साथ वह ये अवॉर्ड पाने वाली पहली भारतीय एक्ट्रेस बन गई हैं। यह फिल्म अभी रिलीज नहीं हुई है। इसका प्रीमियर 17 मई को कान फिल्म फेस्टिवल में दिखाया गया था। उन्हें यह अवॉर्ड अन सर्टन रिगार्ड सेगमेंट कैटेगरी में मिला है, जो दुनिया भर की मौलिक और अनूठी कहानियों को जगह देती है। 25 मई को फेस्टिवल के आखिरी दिन इसमें भारत देश का भी नाम जुड़ गया। इससे पहले भी कई बार इस अवॉर्ड के लिए भारतीय फिल्में और एक्टर एक्ट्रेस के नाम नॉमिनेट होते रहे हैं। लेकिन आज तक कोई एक्ट्रेस यह अवॉर्ड नहीं पाए थे। 

तस्वीर साभार: The Quint

बता दें कि फ़िल्म द शेमलेस की कहानी भारत की दो सेक्स वर्कर्स के जीवन पर आधारित है, जिनमें से एक के हाथों एक पुलिसवाले की हत्या हो जाती है। इनमें से एक दिल्ली में रहने वाली रेणुका के जीवन की कहानी है। वो सेक्स वर्कर्स के एक समुदाय में शरण लेती है। यहां उसकी मुलाकात एक कम उम्र की सेक्सवर्कर देविका से होती है। 17 वर्षीय देविका से उन्हें प्यार हो जाता है। दोनों इस दलदल से आजाद होना चाहती है। दोनों कानून से बचने के लिए एक खतरनाक रास्ते पर निकलती है। फिल्म में ओमारा शेट्टी भी मुख्य किरदार में है। इसकी शूटिंग भारत और नेपाल में की गई है। जब फिल्म फेस्टिवल के मंच से उनका नाम बेस्ट एक्ट्रेस के लिए लिया गया तो उन्हें एक बार के लिए तो यकीन ही नहीं हुआ। वो भावुक हो गईं।

मंच के माध्यम से ही उन्होंने यह अवॉर्ड क्वियर समुदाय को समर्पित कर दिया। उन्होंने कहा “बराबरी के लिए, लड़ने के लिए आपको क्वियर होना ज़रूरी नहीं है। ग़ुलामी दयनीय होती है, ये समझने के लिए आपको ग़ुलाम होना ज़रूरी नहीं है।

मंच के माध्यम से ही उन्होंने यह अवॉर्ड क्वियर समुदाय को समर्पित कर दिया। उन्होंने कहा “बराबरी के लिए, लड़ने के लिए आपको क्वियर होना ज़रूरी नहीं है। ग़ुलामी दयनीय होती है, ये समझने के लिए आपको ग़ुलाम होना ज़रूरी नहीं है। हमें सिर्फ और सिर्फ़ एक बहुत मर्यादित इंसान होना होता है। समाज में बराबरी का हक पाने के लिए उन्हें लड़ना पड़ रहा है।” बता दें कि अनसूया मूल रूप से कोलकाता की रहने वाली हैं। जादवपुर यूनिवर्सिटी से उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की डिग्री ली। हालांकि वो एक पत्रकार बनना चाहती थीं, लेकिन बाद में एक्टिंग के क्षेत्र में आ गई। इसके अलावा उनकी पहचान एक आर्ट डायरेक्टर के रूप में भी हैं।

सनफ्लावर वर द फर्स्ट वंस टू नो: ला सिनेफ में फर्स्ट पराइज मिला

तस्वीर साभार: NDTV

भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (FTII) के पूर्व छात्र चिनानंद एस नाइक के निर्देशन में बनी लघु फिल्म सनफ्लावर वर द फर्स्ट वंस टू नो को इसी 77वें फेस्टिवल में ला सिनेफ फर्स्ट पराइज मिला है। यह 15 मिनट की लघु फिल्म है। इसकी कहानी एक बुजुर्ग महिला पर आधारित है। फिल्म में कन्नड़ लोक कथाएं दिखाई गई हैं। एक बुजुर्ग महिला मुर्गियां चुराती रहती हैं। उसकी गलतियों की सजा उसके बेटे को मिलती है। चिनानद नाइक ने यह फिल्म टीवी इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के टीवी विंग में काम करने के एक साल बाद बनाई। एफटीआईआई के एक अन्य पूर्व छात्र मैसम अली की फिल्म ‘इन रिट्रीट’ एसीआईडी कान साइडबार कार्यक्रम में प्रदर्शित की गई थी।

फिल्म फेस्टिवल में 23 मई की रात फिल्म ऑल वी इमेजिन एज लाइट का वर्ल्ड प्रीमियर हुआ। अहम बात है कि फिल्म को करीब 8 मिनट तक स्टैंडिंग ओवेशन मिली। आलोचकों ने फिल्म की सराहना की और इस फिल्म को महोत्सव का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान ग्रैंड प्रिक्स अवॉर्ड मिला।

मानसी माहेश्वरी की बन्नीहुड

शॉर्ट फिल्म बन्नीहुड को ला सिनेफ कैटेगरी में तीसरा स्थान मिला है, जिनका डायरेक्‍शन मानसी माहेश्वरी ने किया है। वह यूपी के मेरठ की रहने वाली हैं और ब्रिटेन से ग्रेजुएशन कर रही हैं। शॉर्ट फिल्म में मानसी माहेश्वरी ने अपनी मां की सर्जरी की कहानी बताई। इस व्यथा कथा ने सभी का दिल जीत लिया है। एक इंटरव्यू में मानसी माहेश्वरी कहती हैं कि उनकी मां की सर्जरी का बात उन्हें नहीं बताई गई थी। उसी से प्रेरणा लेकर उन्होंने ‘बनीहुड’ बनाई, जिसमें जिंदगी की सच्चाई दिखाई गई है। उनकी फिल्म इस विषय पर है कि इंसान को कौन से हालात झूठ बोलने पर मजबूर करते हैं और वह कब और क्यों झूठ बोलता है।

सिस्टर मिडनाइट 

करन कंधारी की फिल्म ‘सिस्टर मिडनाइट’ में राधिका आप्टे और अशोक पाठक की जोड़ी ने एक अनोखी कहानी को दिखाया है। यह कहानी मुंबई के स्लम में रहने वाले एक कपल के जीवन के बारे में है। ‘सिस्टर मिडनाइट’ को कान्स फिल्म फेस्टिवल के साथ-साथ डायरेक्टर्स फोर्टनाइट सेक्शन में भी प्रदर्शित किया गया था, जहां पूरे विश्व से अलग अलग फिल्में प्रदर्शित होती हैं। फिल्म में राधिका आप्टे ने उमा के रूप में शानदार भूमिका निभाई है। वह एक नई नवेली दुल्हन है जिसे उसका पति एक ऐसे शहर में छोड़ देता है जिसे वह ठीक से जानती तक नहीं है। मुंबई की झुग्गी में बने एक छोटे से टूटे फूटे घर में रहते हुए अक्सर उमा वहां से भाग निकलने के तरीके तलाशती रहती हैं। हिंदी सिनेमा में यह बेहद अनोखी और रोमांचक फिल्म है। 

तस्वीर साभार: Mint

इसके अलावा श्याम बेनेगल की फिल्म मंथन की रिलीज के 48 साल बाद स्पेशल स्क्रीनिंग की गई। मैसम अली की डेब्यू फिल्म ‘इन रिट्रीट’, पालौमी बसु और सीजे क्लर्क की ‘माया- द बर्थ ऑफ सुपरहीरो’ का भी कांस फिल्म फेस्टिवल में जलवा देखने को मिला। अवॉर्ड पाने वाली भारतीय फिल्मों और कलाकारों को खूब बधाई मिल रही है। इसके साथ ही पहली बार भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री से कोई स्टार फेस्टिवल में शामिल हुआ। प्रदीप पांडे चिंटू ने भी रेड कार्पेट पर कदम रखा और सुर्खियां बटोरीं।  शॉर्ट फिल्मों ने एक प्रतिष्ठित फिल्म फेस्टिवल में जगह बनाई और कई अवॉर्ड अपने नाम किए हैं। इस तरह की शॉर्ट फिल्में बनती रहनी चाहिए, जो सिर्फ एंटरटेनमेंट के लिए ही नहीं बनाई जाती बल्कि उनमें एक सामाजिक संदेश भी छिपा होता है। भारत की फिल्मों और एक्ट्रेस के नाम ये अवॉर्ड अन्य फिल्म बनाने वालों को अच्छी और बेहतरीन फिल्में बनाने के लिए भी प्रेरित करते रहेंगे।

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