कंचन चौधरी भट्टाचार्य का नाम उन महिलाओं में शीर्ष पर आता हैं , जिन्हें उनकी जाबाजी और बहादुरी के किस्सों के लिए जाना जाता हैं। देश की हर एक महिला के लिए वह आइकन बनीं। उन्होंने न सिर्फ अपराधिओं के मन में पुलिस का खौफ़ पैदा किया है बल्कि पुलिस सेवा में रहते हुए उन्होंने कई सराहनीय काम किए हैं। कंचन भारत की पहली महिला डीजीपी बनी। इनका जन्म हिमाचल प्रदेश में हुआ था और वह अमृतसर और दिल्ली में रहती थीं । कंचन अपने पिता मदन चौधरी की पहली संतान थी।
कचन चौधरी की शिक्षा
कंचन चौधरी ने महिला कॉलेज, अमृतसर से पढ़ाई की और दिल्ली विश्वविधालय के इन्द्रप्रस्थ कॉलेज में अंग्रेजी साहित्य में मास्टर ऑफ आर्ट्स की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने 1993 में आस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स के वोलोंगोंग विश्वविद्यालय से मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की डिग्री हासिल की। 1973 में उन्होंने पहली बार आईपीएस की परीक्षा दी और देश की दूसरी महिला आईपीएस महिला बनीं।
कंचन चौधरी के कार्यकाल का सफ़र
चौधरी को अपनी ईमानदारी और आम आदमी की समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता के लिए डीजीपी चयनित किया गया था। वह उत्तरप्रदेश में पहली महिला आईपीएस, पहली महिला डीआईजी और पहली महिला आईजी थीं। साल 1975 से 1978 तक कंचन लखनऊ की एसपी व एसएसपी भी रहीं। उन्होंने बरेली में डीआईजी और सीबीआई जैसे बड़े पदों पर भी काम किया है। उनके पास 33 वर्ष के कार्य का एक शानदार अनुभव है। वे किसी राज्य की डीजीपी बनने वाली पहली महिला थी और उन्होंने उत्तराखंड राज्य के डीजीपी के रूप में अपनी सेवाएं दी। किरण बेदी के बाद 1973 में वह आईपीएस में शामिल होने वाली दूसरी महिला अधिकारी है। उन्हें 2004 में कैनकन, मेक्सिको में आयोजित इंटरपोल की बैठक में भारत की ओर से प्रतिनिधित्व करने के लिए चयनित किया गया था।
उन्होंने 1980 के बाद कई विशेष प्रशिक्षण और पाठयक्रमों में भाग लिया। बॉम्बे में छह हफ्ते का मानव संसाधन प्रबंधन, ब्रिटेन के कॉमनवेल्थ सचिवालय द्वारा आयोजित कार्यक्रम सिंगापुर में एक सप्ताह आर्थिक अपराध जांच प्रबंधन, तीन सप्ताह हैदराबाद की राष्ट्रीय पुलिस अकादमी के उन्नत प्रबंधनक कार्यक्रम में उन्होंने भाग लिया। उत्तराखंड पुलिस की ओर से सर्व भारतीय महिला पुलिस के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने दूसरे महिला पुलिस सम्मेलन के मेजबानी की, जिसकी भारत के राष्ट्रपति द्वारा एक उत्क्रष्ट प्रदर्शन के रूप में प्रशंसा की गई। उन्होंने पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो की ओर से महिलाओं की पुलिस में भर्ती और प्रशिक्षण जारी रखने जैसे मुददों को भारत में पुलिस महानिदेशक के वार्षिक सम्मेलन में उठाया।
अपनी ईमानदारी और काम से मिला सम्मान
उन्हें 1990 में लम्बी और मेधावी सेवाओं के लिए राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया। 1997 में प्रतिष्ठत सेवाओं के लिए राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया। 2004 में हर क्षेत्र में उत्क्रष्ट प्रदर्शन और उत्क्रष्ट महिला प्राप्तकर्ता के लिए राजीव गाँधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- 2005 दूरदर्शन पुरस्कार
- 2006 उत्तराखंड गौरव पुरस्कार
- 2006 स्त्री -शक्ति पुरस्कार
- 2008 अमर उजाला पुरस्कार
- 2010 उत्तराखंड गौरव पुरस्कार
पुलिस बनने के लिए कैसे हुई प्रेरित
3 फरवरी 1967 को पुलिस ने कंचन चौधरी के पिता को एक प्रोपटी के मामले में जेल जाना पड़ा था। हालांकि उनके खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई थी। अपने पिता के साथ इस जुल्म को उनकी दोनों बेटियों ने बहुत करीब से होते हुए देखा था। इस घटना के बाद दोनों बेटियों के अंदर जिज्ञासा आई कि वह कुछ बड़ा करेंगी और किसी निर्दोष के साथ अन्याय नहीं होने देगी। इस घटना के मदन चौधरी की छोटी बेटी कविता चौधरी ने अपने पिता के साथ हुए इस घटना को अपने 90 के दशक में नैशनल चैनल पर आने वाले सीरियल ‘उड़ान’ के माध्यम से पुरे देश को दिखाया है, जोकि कंचन चौधरी के महिला पुलिस बनने के जीवन पर आधारित है। इस नाटक को जनता ने बहुत पसंद किया था।
कंचन के बहादुरी के किस्से
कंचन अपने बहादुरी और दलेरी के किस्सों की वजह से हमेशा चर्चा में रहती थीं। उन्होंने अपने कार्यालय में बेडमिंटन खिलाड़ी सईद मोदी और रिलांयस- बांबे डाईंग जैसे कई संवेदनशील केस हैंडल की हैं। 26 जून, 2004 को बतौर डीजीपी पहली समीक्षा बैठक में उन्होंने कहा था कि सुधर जाओ या घर जाओ। इसके बाद तो रातोंरात वहां की पुलिस का रवैया आम जनता के लिए दोस्ताना बन गया था।
राजनीति में दिलचस्पी
31 अक्टूबर 2007 में वह रिटार्यड हुईं। साल 2014 में जब आम आदमी पार्टी उभर कर आई, तो वह 2014 में लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के तरफ से चुनाव लड़ी थीं। पुलिस सेवा में बुलंदियों को छूने के बाद वह राजनीतिक गलियारों में भी कुछ कर दिखाने की तमन्ना रखती थीं। लोकसभा चुनाव में प्रत्याक्षी बनकर आने वक़्त उनका कहना था कि उनका राजनीती में आने का मकसद देश में फैले भ्रष्टाचार को खत्म करना है। उनका कहना था कि अगर पुलिस वालों को उनकी पॉवर दे दी जाए तो वो समाज में कई तरह के बेहतर काम कर सकती हैं। लेकिन सफेदपोश नेता उन्हें ऐसा करने में रोकते आए हैं। ऐसे में वह राजनीतिक व्यवसथा में आकर अपने अधूरे सामाजिक कार्यों को पूरा सकती हैं। वह हरिद्वार में बीजेपी प्रत्याक्षी रमेश पोखरियाल निशंक के खिलाफ चुनाव लड़ी थी लेकिन उन्हें राजनीतिक सफ़र में सफलता नहीं मिली और उन्हें चुनाव में ह़ार का सामना करना पड़ा। उन्हें इस चुनाव में लगभग 18, हजार वोट मिले थे ।
कंचन चौधरी का निधन
कंचन का निधन 26 अगस्त 2019 को मुम्बई के अस्पताल में हुआ था। बताया जाता है कि वह लम्बे समय से बीमार चल रही थी। उनके परिवार में उनके पति और 2 बेटियां हैं। पुलिस महानिदेशक कानून व्यवस्था अशोक कुमार ने कंचन चौधरी को श्रदांजली देते हुए कहा था कि उत्तराखंड पुलिस उनके निधन पर शोक वयक्त करती हैं और उनके अभूतपूर्व योगदान को याद करती है। कंचन चौधरी को आज भी उनके बहादुरी के किस्सों के लिए याद किया जाता है। आज भी उन्हें देश के बहादुर पुलिस अफसरों में गिना जाता है। उन्हें याद करने के लिए किसी परिचय की जरूरत नहीं है। वह महिलाओं के लिए प्रेरणा का बिन्दु रही हैं। हमारे देश को कंचन चौधरी भट्टाचार्य जैसे ईमानदार और बहादुर पुलिस अफसर की जरूरत है।