संस्कृतिकिताबें आपका बंटीः मन्नू भंडारी द्वारा रचित प्रसिद्ध उपन्यास

आपका बंटीः मन्नू भंडारी द्वारा रचित प्रसिद्ध उपन्यास

यह मन्नू भंडारी का पहला उपन्यास है। जो 1972 में पहली बार प्रकाशित हुआ था। ‘आपका बंटी’ उपन्यास से मन्नू भंडारी को बहुत लोकप्रियता मिली थीं। लेखिका मन्नू भंडारी को इस बात का बहुत खेद रहा कि लोग इस उपन्यास को बंटी के नज़रिए से देखें रहे थे और शकुन की नज़रिए से नहीं देख रहे थे।

मन्नू भंडारी द्वारा लिखा उपन्यास ‘आपका बंटी’ हिंदी साहित्य की एक कालजायी रचना है। यह उपन्यास हिंदी की सबसे लोकप्रिय कृतियों में से एक है। प्रकाशित होने के इतने समय बाद भी उपन्यास की आज भी बहुत चर्चा की जाती है। हिंदी साहित्य के स्त्री-विमर्श की जब बात की जाती है तो ‘आपका बंटी’ का नाम सदैव रहता है। लेखिका मन्नू भंडारी ने इस उपन्यास में बाल मन को गहराई से उतारा है। इस उपन्यास में हिंदी साहित्य में एक बच्चे की घायल होती संवेदनाओं, उसकी निगाहों से परिवार की दुनिया की कहानी और एक स्त्री के संघर्ष को सामने रखा है। यह आपको पढ़कर तय करना है कि यह कहानी बंटी की है या शकुन की है।

बंटी एक आठ साल का लड़का है। उसके माता-पिता का तलाक हो जाता है। उसके लिए ये सहन कर पाना मुश्किल था। तलाक के बाद वह अपनी माँ शकुन के पास रहना चुनता है। शुरुआत में सब ठीक लगता है लेकिन जब तक शकुन के जीवन में कोई पुरुष नहीं आता है। फिर इस कहानी में डॉक्टर जोशी का आगमन होता है। उनसे शकुन की अच्छी बातचीत होती है। सब अच्छा चलता है लेकिन यह बदलाव बंटी को पसंद नहीं आता है। उसे लगता है कि उसका प्यार किसी दूसरे इंसान के साथ बंट रहा है। उसकी माँ पर सिर्फ और सिर्फ उसका ही हक है। यहां से धीरे-धीरे स्थिति बदलनी शुरू हो जाती है। 

एक दिन बंटी के पिता फैसला लेते है कि कि वह उसे अब हॉस्टल में भेज देंगे। हालांकि वह हॉस्टल में नहीं जाना चाहता था लेकिन वो अपने पिता से यह बात नहीं कह पाया और अपनी माँ से उसकी बात नहीं हो पाती थी। अंत में उसे हॉस्टल में भेज दिया गया। 

अपनी माँ के जीवन में आगे बढ़ने के फैसले से बंटी के जीवन पर असर पड़ता है। बंटी को नही पसंद की उसकी माँ किसी और से मिले, बात करें। वह चाहता है कि उसकी माँ जितना भी प्यार करे सब उसी से ही करे और उसका ही ख्याल रखे। कुछ दिनों बाद शकुन यह फैसला करती है कि वह डॉक्टर जोशी से शादी करेगी। इस बात से बंटी बहुत नाराज़ होता है। कई दिनों तक वह उससे बात नहीं करता है। दरअसल डॉक्टर जोशी के दो बच्चे थे और बंटी को लग रहा था कि अगर उसकी माँ की शादी डॉक्टर जोशी से हो जायेगी तो वे दो बच्चे भी उसकी माँ पर अपना हक जमाएंगे उसे माँ कहेंगे। बंटी को यह सताता है कि उसकी माँ का प्यार बंट जाएगा। इस कारण वह बहुत डरा हुआ था। 

तस्वीर साभारः Amazon.in

माँ के नये रिश्ते के बाद वह अपने पिता के पास जाने के बारे में सोचता है और इस बारे में शकुन से बात करता है। वह उसे कहती है कि पापा को खत लिख दो अगर तुम्हारी इच्छा है वहां जाने की तो वहां जा सकते हो। बंटी अपने पिता को खत लिखकर उनके पास आने की इच्छा जाहिर करता है और कुछ समय बाद वह उसे लेने आते हैं। बंटी उनके साथ खुशी-खुशी कोलकाता पहुंच गया। वहां उसके पिता की पत्नी मिली हालांकि शुरुआत में सब ठीक था लेकिर फिर बंटी का मन वहां से भी भागने को कहने लगता है। उसे लगने लगा कि कितना अच्छा था कि वह अपनी माँ के साथ ही रहता। दूसरी तरफ शकुन ने डॉक्टर जोशी से शादी कर ली थी। उसका जीवन ठीक चल रहा था। एक दिन बंटी के पिता फैसला लेते है कि कि वह उसे अब हॉस्टल में भेज देंगे। हालांकि वह हॉस्टल में नहीं जाना चाहता था लेकिन वो अपने पिता से यह बात नहीं कह पाया और अपनी माँ से उसकी बात नहीं हो पाती थी। अंत में उसे हॉस्टल में भेज दिया गया। 

इन सब परिस्थितियों का बंटी के बाल मन पर गहरा असर पड़ा। उसके व्यवहार में बदलाव आ जाता हैं। उसकी मनोदशा पूरी तरह बदल जाती है। एक बाल मनोविज्ञान को लेखिका ने बहुत संवेदनशीलता और गहराई से सामने रखा है। उपन्यास जैसे-जैसे आगे बढ़ता है वह पाठकों को बांध देता है। बहुत ही मर्मस्पर्शी तरीकें से हर बात को लिखा गया है। यह उपन्यास बंटी और उसके जीवन के अदृश्य प्रभाव को सामने रखता है कि माता-पिता के अलगाव का एक बच्चे की मनोदशा पर क्या असर पड़ता है। 

आम तौर पर समाज में इसकी जगह नहीं है। लोग समझने को तैयार नहीं होते है। सब माँ को ही दोषी मानते हैं लेकिन ऐसा नहीं है। जब बच्चा दोनों का है तो सिर्फ माँ की ही जिम्मेदारी क्यों बनती है? क्या उसके पिता को ये नहीं सोचना चाहिए? जबकि बंटी के पिता ही शकुन को छोड़ कर मीरा से शादी कर लेते है। तो सवाल सिर्फ शकुन पर ही क्यों उठता है? यहां हमें एक पितृसत्तात्मक सोच देखने को मिलती है। क्योंकि शकुन की उलझन भरी जिंदगी को हर कोई नज़रअंदाज कर देता है और सब उसे दोष देते है कि उसे दूसरी शादी नहीं करनी चाहिए थी। तो क्या बंटी के पिता ने जो किया उन्हें वो करना चाहिए था? क्या वो बंटी के बारे में नहीं सोच सकते थे? बंटी के पिता को ज़रूर सोचना चाहिए था और इस उपन्यास को इसी नज़रिए से पढ़ा जाना चाहिए। 

बंटी उनके साथ खुशी-खुशी कोलकाता पहुंच गया। वहां उसके पिता की पत्नी मिली हालांकि शुरुआत में सब ठीक था लेकिर फिर बंटी का मन वहां से भी भागने को कहने लगता है। उसे लगने लगा कि कितना अच्छा था कि वह अपनी माँ के साथ ही रहता।

यह मन्नू भंडारी द्वारा लिखित पहला उपन्यास है जो 1972 में पहली बार प्रकाशित हुआ था। ‘आपका बंटी’ उपन्यास से उन्हें बहुत लोकप्रियता मिली थीं। लेखिका मन्नू भंडारी को इस बात का बहुत खेद रहा है कि लोग इस उपन्यास को बंटी के नज़रिए से देखें रहे थे और शकुन की नज़रिए से नहीं देख रहे थे। मन्नू भंडारी ने इस किताब के शुरुआत में ही लिख छोड़ा है कि अगर बंटी के हालात पर पाठकों की आँखें नम हों, तो वो ये समझेगी कि ये ख़त ग़लत पते पर पहुंचा है। मन्नू भंडारी का लिखा हमेशा मन के उस अंधेरे कोने तक पहुंच जाता है, जहां कई अव्यवस्थित से ख़्याल बसते हैं। मन का वो कोना, जहां मन के भ्रम, भटकाव, अकेलापन, तनाव, चिंता और परेशानियां, कई अनकही बातों के साथ सुख-दुख में जी रहे होते हैं। इन कारणों से मन्नू भंडारी को पढ़ना आवश्यक हो जाता है।


Comments:

  1. Jay Saini says:

    I really got engaged in this article… Will surely read “Aapka Bunti”

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