संस्कृतिकला राजस्थान के कालबेलिया कलाकारों का मौजूदा दौर में संघर्ष

राजस्थान के कालबेलिया कलाकारों का मौजूदा दौर में संघर्ष

इस नृत्य को जन्म देने वाली गुलाबो सपेरा हैं, जो अब नृत्य करती भी है और उसे जिंदा रखने के लिए लड़कियों को सिखाती भी हैं। हम ऐसा कह सकते हैं कि  कालबेलिया नृत्य के इतिहास और वर्तमान में सांसे ले रही हैं। रोजगार की चुनौतियों से जूझते हुए कलाकार इस कला से दूर जा रहें है। कलाकारों के लिए कोई ऐसी नौकरी नहीं है कि जिससे उसकी जिंदगी सुचारू रूप से चले।

एक ऐसी संस्कृति जिसमें लड़की का जन्म होते ही जमीन में दफन कर दिया जाता था उसी संस्कृति की एक लड़की ने कालबेलिया नृत्य को इजाद किया। हालांकि उनके जन्म पर भी दुख मनाया गया लेकिन उसकी माँ की जिंद ने उसे सारी बेड़ियों को तोड़ने का जज्बा बनाए रखा। कालबेलिया नृत्य, जिसका पांव अनेकों देशों तक पसरा है। इस कला को लोगों ने खूब सराहा है। कालबेलिया राजस्थान का एक लोकनृत्य है। इस नृत्य को जन्म देने वाली गुलाबो सपेरा हैं, जो अब नृत्य करती भी है और उसे जिंदा रखने के लिए लड़कियों को सिखाती भी हैं। हम ऐसा कह सकते हैं कि  कालबेलिया नृत्य के इतिहास और वर्तमान में सांसे ले रही हैं। रोजगार की चुनौतियों से जूझते हुए कलाकार इस कला से दूर जा रहें है। कलाकारों के लिए कोई ऐसी नौकरी नहीं है कि जिससे उसकी जिंदगी सुचारू रूप से चले। पेश है कालबेलिया कलाकारों के संघर्ष और वर्तमान में के दौर में कला के दम पर जीवन जीने की चुनौतियों पर एक रिपोर्ट।

कालबेलिया नृत्य का इतिहास 

कालबेलिया नृत्य जिससे राजस्थान की लोक संस्कृति को एक नया आयाम मिला है। इसकी शुरुआत लगभग 40 साल पहले से हुई थी। जब सपेरा जनजाति को सांप पकड़ने पर रोक लगा दी गई तब उन्होंने एक खास प्रकार के नृत्य को इजाद किया। कालबेलिया नृत्य को इजाद करके वाली गुलाबो सपेरा सांपों के साथ खेलते-खेलते यह नृत्य करना सीखी थी। वो बचपन में बीन के धुन पर नृत्य करती थी। बाद में, 1981 में पुष्कर मेले में गुलाबो सपेरा ने पहली बार कालबेलिया नृत्य किया था। दो दिन वहां नृत्य कर फिर जब घर आई तो पता चला की समाज के लोग इस बात से बहुत नाराज थे और उसके बाद उनके परिवार को समाज से बाहर कर दिया गया। कुछ समय बाद गुलाबो को जयपुर बुलाया गया एक सरकारी कार्यक्रम में नृत्य करने के लिए। वहां से धीरे धीरे ये नृत्य विकास की राह पर आ गया। 

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समय 2023 विधानसभा चुनाव से पहले 16 फरवरी को जो वित्तीय वर्ष बजट आया था उसमें कलाकारों के लिए राजस्थान लोक कलाकार प्रोत्साहन योजना लाई थी, जिसमें सभी कलाकारों को 100 दिन का रोजगार और 5000 रुपए वादन यंत्र खरीदने के लिए देने की बात की की गई थी।

कालबेलिया नृत्य करती महिलाओं कलाकारों की चुनौतियां 

तस्वीरे में कालबेलिया नृत्य कलाकार बाबुरी सपेरा।

कालबेलिया नृत्य करने वाली बबुरी सपेरा बताती हैं कि हमें एक प्रोग्राम के 500 रुपए मिलते है। लेकिन वहां बच्चे को ले जाने की अनुमति नहीं होती है। जिससे बहुत मुश्किल का सामना करना पड़ता है। बबुरी वर्तमान में एक होटल में शाम पांच बजे से लेकर दस बजे तक कालबेलिया नृत्य किया करती है। जिसके लिए उन्हें मात्र 8000 हजार रूपए मिलते है। जबकि वो बताती है, “उनके घर के पूरे महीने का खर्च चलने में 17 से 18 हजार रूपए लगते है। जहां ज्यादा पैसे मिलते है वहां बच्चों को ले जाने की अनुमति नहीं है और जहां बच्चों को ले जा सकते है वहां पैसे कम मिलते है। इस महंगाई के दौर में घर चलाना बहुत मुश्किल होता है।” और तो और इस काम के अलावा घर का सारा काम मैं ही करती हूं। हमारे समाज में पुरुषों को काम करने का चलन नहीं है। इसके कारण मेरे पति कभी घर के काम में हाथ नही बांटते है।” 

राजस्थान सरकार की योजनाएं 

राजस्थान राज्य में टूरिज्म और लोक संस्कृति को आगे बढ़ाने वाले कलाकार राज्य की आय का एक मुख्य स्रोत है। वहीं जब राज्य के लोक कलाकारों की स्थिति की बात आती है तो वह वर्तमान में हाशिये पर जीवन जीने को मजबूर हैं। कलाकारों की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समय 2023 विधानसभा चुनाव से पहले 16 फरवरी को जो वित्तीय वर्ष बजट आया था उसमें कलाकारों के लिए राजस्थान लोक कलाकार प्रोत्साहन योजना लाई थी, जिसमें सभी कलाकारों को 100 दिन का रोजगार और 5000 रुपए वादन यंत्र खरीदने के लिए देने की बात की की गई थी।

मौजूदा सरकार ने इसे बंद तो नहीं किया है लेकिन राज्य में कलाकारों के उत्थान को लेकर घोषित यह योजना धरातल पर कार्यरत भी नहीं है। जिसमें हर एक कलाकार को 5000 रुपए मिलने थे। और साथ में 100 दिन का सरकारी कार्यक्रम भी दिया जाना था। वर्तमान सरकार ने 10 जुलाई को को बजट पेश किया है उसमें कलाकारों के लिए कुछ घोषणाएं की गई है। युवाओं को कला सीखने की बात की गई है।  कला को शिक्षा देने वाली कॉलेज के उत्थान की बात की गई है। इस पूरे बजट में कलाकारों के लिए कोई नौकरी की बात नहीं की गई है और न ही आर्थिक स्थिति को बेहतर करने पर कोई बात की गई है जो सबसे जरूरी मुद्दा है।

गुलाबो सपेरा बताती है, “मेरा सपना है कि हर घर में गुलाबो हो इस सपने को पूरा करने के लिए मैं पुष्कर में एक स्कूल बना रही हूं। उसमें में मैं कालबेलिया नृत्य, हेंडीक्राफ्ट का काम और संस्कृति के बारे में बताऊंगी और सिखाऊंगी। मेरा सरकार से निवेदन है कि वो ये स्कूल बनाने में हमारी मदद करे, ताकि कालबेलिया नृत्य जीवित रह पाए।”

कलाकारों के सामने रोजगार की चुनौती 

कला के क्षेत्र में स्नातक की पढ़ाई कर चुकी और अब कालबेलिया नृत्य करने वाली रूपा सपेरा बताती है, “अगर हम प्रोपर कालबेलिया नृत्य करेंगे तो हमारा नाम भी होगा लेकिन क्या रोजगार भी मिलेगा। प्रोपर मैं इस लिए कह रही हूं क्योंकि वर्तमान में मैं देख रही हूं की इस नृत्य को लोग अपने ढंग से कर रहे है। इस नृत्य का को ड्रेस है उसका भी उपयोग नहीं कर रहे है। वर्तमान समय में कोई बीन बजाना नहीं सीखना चाहता उसका कारण है कि इसके सीखने से कोई नौकरी नहीं मिलती है। अगर नौकरी मिलती भी है तो उतने रुपए नहीं मिलते जितने की उनको जरूरत है। सरकार को एक कला बोर्ड बनना चाहिए। कलाकारों के रोजगार के मुद्दे की तरफ सोचना चाहिए। युवा कला से इसी लिए दूर हो रहे हैं क्योंकि उनको उनके कला के मुताबिक़ पैसे नहीं मिलते है।” 

कालबेलिया नृत्य का भविष्य 

तस्वीर में कालबेलिया नृतकी गुलाबो सपेरा।

कालबेलिया नृत्य को जन्म देने वाली गुलाबो सपेरा बताती है, “मेरा सपना है कि हर घर में गुलाबो हो इस सपने को पूरा करने के लिए मैं पुष्कर में एक स्कूल बना रही हूं। उसमें में मैं कालबेलिया नृत्य, हेंडीक्राफ्ट का काम और संस्कृति के बारे में बताऊंगी और सिखाऊंगी। मेरा सरकार से निवेदन है कि वो ये स्कूल बनाने में हमारी मदद करे, ताकि कालबेलिया नृत्य जीवित रह पाए। कालबेलिया नृत्य का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। मैं देख रही हूं कि भारत के बाहर भी बहुत लड़कियां ये नृत्य प्रस्तुत करती है, कहीं बेहतर ढंग से करती है। भविष्य की कुछ चुनौतियां भी है जैसे कि क्या हमारी अगली पीढ़ी हमारी तरह इस कला को बरकरार रख पाती है या नहीं। क्योंकि मुझे मालूम है कि इस कला में बहुत मेहनत है।” 


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