ग्राउंड ज़ीरो से कालबेलिया समुदाय की ये महिलाएं कैसे किचन गार्डन के ज़रिये ला रही हैं बदलाव

कालबेलिया समुदाय की ये महिलाएं कैसे किचन गार्डन के ज़रिये ला रही हैं बदलाव

सभी के सफल प्रयास से किचन गार्डन से पोषक सब्जियां प्राप्त होने से गर्भवती महिलाओं, किशोरियों में खून की कमी थी जो की समस्या धीरे-धीरे दूर हो रही है। बच्चों में कुपोषण दूर होकर उनका वजन सामान्य हुआ। इस्तेमाल किए हुए पानी को उपयोगी बनाकर कीचड़ मुक्त ज़मीन हुई। साथ ही मच्छर और अन्य बिमारियों का खतरा कम हुआ और आसपास पर्यावरण हरा-भरा हो रहा है।

‘‘मुझे किचन गार्डन का सेवाभाव से काम करना, हरा-भरा वातावरण, सब्जियां को उगाने से लेकर समुदाय में बांटना और लोगों को जागरूक करना, उनके स्वास्थ्य में बदलाव देखकर ही खुशी मिलती है।” यह कहना है इंद्रा कुमावत का जो एक आंगनबाडी कार्यकर्ता हैं और वह नचनबावड़ी किचन गार्डन से जुड़ी हुई हैं। गांव नाचनबावड़ी में कालबेलिया समुदाय के कुल 55 परिवार रहते हैं। वहीं, राजस्थान के ही अजमेर ज़िले के काजीपुरा में कालबेलिया समुदाय की एक छोटी सी बस्ती है। इस बस्ती में करीब 15 परिवार रहते हैं। यह बस्ती शहर और बाकी सभी सुविधाओं से दूर है और इसी परिवेश में रहकर अपना जीवन यापन करते हैं। इस लेख के ज़रिये हम जानेंगे कि कैसे इन दोनों ही क्षेत्रों की महिलाएं आज किचन गार्डन के ज़रिये अपने समुदाय के पोषण की कमी को दूर कर रही हैं।

राजस्थान में कालबेलिया समाज के लोग लोककला नृत्य, वाद्ययंत्र बजाना, करतब दिखाना आदि काम करते हैं। इसके साथ ही वे बुनाई, मोतियों से सामान बनाने आदि का काम भी करते हैं। समुदाय की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण और बाहर काम न मिलने के चले बड़ी संख्या में महिलाएं और पुरुष मजदूरी के काम में लगे हुए हैं। इसके अलावा कुछ महिलाएं और किशोरियां मांगने काम भी करती हैं जिससे उनके परिवार की रोज़ी-रोटी चलती है।

किचन गार्डन की क्यों पड़ी ज़रूरत

समुदाय के पुरुष और महिलाएं मज़दूरी का काम करने के लिए काफी दूर जाते हैं जहां उन्हें कभी काम मिलता है तो कभी नहीं मिल पाता है। ऐसे में परिवार का पेट भरना उनके लिए काफी मुश्किल काम होता है। इस कारण समुदाय की गर्भवती महिलाएं और किशोरियां आयरन की कमी, थकान, हिमोग्लोबिन की कमी, चक्कर आना, माहवारी अनियमितता जैसी परेशानियों का सामना करती हैं। समुदाय के अधिकतर बच्चे कुपोषित पाए जाते हैं।

आर्थिक स्थिति ठीक न होने से बुनियादी सुविधाएं जैसे साफ पानी, पोषक सब्जियां इन तक नहीं पहुंचती। पक्की सड़क न होने के कारण सब्जियां, फल विक्रेता भी यहां तक नहीं पहुंच पाते और न ही महिलाएं दूर जाकर उन सुविधाओं तक पहुंच पाती हैं। ऐसे में जो भी घर में मौजूद होता है उसी से इन परिवारों को काम चलाना पड़ता है।

किचन गार्डन, तस्वीर साभार: कामिनी
किचन गार्डन, तस्वीर साभार: कामिनी

काजीपुरा बस्ती में किचन गार्डन की नींव कैसे रखी गई

गांवों और बस्तियों में महिलाओं, किशोरियों और बच्चों के स्वास्थ्य पर काम करनेवाली संस्था महिला जन अधिकार समिति ने जब काजीपुरा बस्ती का दौरा किया तब महिलाओं और किशोरियों को सामुदायिक किचन गार्डन का महत्व बताया। राजस्थान के इस क्षेत्र में पानी की काफी दिक्कत रहती है। पानी की एक-एक बूंद की अहमियत होती है। चूंकि बस्ती की ज़मीन कहीं पथरीली तो कहीं मिट्टी वाली है। घरों से निकलनेवाला पानी एक जगह जमा होकर कीचड़ का रूप ले रहा था। यह पर्यावरण को प्रदूषित करने के साथ-साथ कई बीमारियों का कारण भी बन रहा था। लेकिन यह पानी जो बेकार जा रहा था उसका अधिक से अधिक उपयोग भी किचन गार्डन को बनाने के लिए किया गया।

काजीपुरा में कालबेलिया समुदाय की एक महिला चरमू देवी ने अपने घर के पास सामूहिक किचन गार्डन लगाने और महिलाओं और किशोरियों के साथ मिलकर काम करने की पहल की। समुदाय के लोगों ने बताया कि काजीपुरा की ज़मीन काफी पथरीली थी। ऐसे में किचन गार्डन लगाना काफी मुश्किल था। तब समुदाय ने मिलकर थोड़ी दूर पर स्थित फॉयसागर झील के आसपास से काली मिट्टी लाकर ज़मीन को समतल कर डाला और किचन गार्डन बनाने का काम किया।

काजीपुरा बस्ती के लोगों ने एक सामूहिक किचन गार्डन बना लिया है। बस्ती के 15 परिवार की ज़रूरत के हिसाब से सभी बारी-बारी से सप्ताह के अनुसार सब्जियां लेते हैं। समुदाय के सभी लोग मिलकर किचन की देखरेख करते हैं। जब सब्जियां बड़ी होने लगती हैं तो बच्चों को उसमें ज्यादा रुचि आती है और वे उत्साहित होकर उनका ध्यान रखते हैं और जानवरों से बचाते हैं।

महिलाओं और किशोरियों के पोषण का स्रोत नाचनबावड़ी का किचन गार्डन

वहीं, नाचनबावड़ी में आंगनबाडी कार्यकर्ता इंद्रा कुमावत ने कालबेलिया महिलाओं और किशोरियों के लिए सामूहिक किचन गार्डन लगाने की पहल की। वह पिछले छह सालों से इस गांव में किचन गार्डन पर काम कर रही हैं। वह बताती हैं कि आंगनबाड़ी के पास की ही ज़मीन में जहां काली मिट्टी पहले से मौजूद थी, पंचायत में बात करके उस जगह को हमने साफ करवाया। उस संस्था ने जैसी ट्रेनिंग दी थी उसे ध्यान में रखते हुए क्यारियां और डोर बनाईं ताकि वेस्ट पानी में से झाग एक जगह हो और फिल्टर पानी गार्डन में पहुंचे।

वह आगे बताती हैं, “चूंकि इस क्षेत्र में पाई जानेवाली काली मिट्टी काफी उपजाऊ होती है और कम पानी में अच्छी पैदावार करती है। इसके साथ ही हम बिना किसी केमिकल के प्राकृतिक खाद गोबर, बकरी की मींगडी आदि को मिलाकर, प्राकृतिक तरीके से बने कीटनाशक का इस्तेमाल करते हैं। चूकिं गांवों में मोर और कुत्ते होते हैं तो वे सब्जियां खराब कर देते हैं। उनसे बचाव के लिए गार्डन के आस-पास बाड़ लगाया। किचन गार्डन के लिए बीज की ज़रूरत होती है तो पंचायत की तरफ से कभी बीज लेती हूं तो कभी खुशी परियोजना तो कभी महिला जन अधिकार समिति के ज़रिये बीज मिल जाते हैं। कभी-कभी तो मैं खुद ही बाहर से बीज खरीद कर लाती हूं और लगाती हूं।”

पोषक सब्जियों का स्रोत

प्राकृतिक रूप से बिना किसी केमिकल और मिलावट के पोषक सब्जियां जैसे पालक, टमाटर, लौकी, मिर्ची, धनिया, चुकंदर, चौला फली, मूली, मेथी, बथुआ, जैसी हरी पत्तेदार सब्जियां इन किचन गाडर्न में लगाई जाती हैं। ताकि समुदाय के लोगों में आयरन की कमी दूर हो, स्वास्थ्य अच्छा हो, कुपोषण खत्म हो साथ ही आसपास पर्यावरण भी हरा-भरा हो। इंद्रा कुमावत बताती हैं, “मैंने अभी चुकंदर उगाए थे और 10 किलो के करीब चुकंदर गर्भवती महिलाओं और किशोरियों में बांटे थे ताकि उनमें खून की मात्रा बढ़े। जैसे ही सब्जियां बढ़ती हैं जैसे पालक, टमाटर, बथुआ, मेथी आदि मैं समुदाय की महिलाओं में बांट देती हूं।”

किचन गार्डन से तोड़ी गई सब्जियां, तस्वीर साभार: कामिनी
किचन गार्डन से तोड़ी गई सब्जियों के साथ इंद्रा कुमावत, तस्वीर साभार: कामिनी

इंद्रा कुमावत आगे बताती हैं, ‘”मैं महिलाओं को हरी सब्जियों और किचन गार्डन से मिलनेवाली सब्जियों के फायदा भी बताती हूं कि इस सब्जी से ये लाभ होगा जैसे पालक से आयरन मिलना, चुकंदर से खून बनना। साथ ही बच्चों को मिलने वाले पोषाहार में इन सब्जियों को मिलाकर खिलाने से कुपोषण दूर होगा। मैं पोषण मेला भी लगाती हूूं जिसमें किस सब्जी को किस प्रकार बनाया जाए और उसके फायदे सभी को बताती हूं। बच्चों के लिए मैंने आंगनबाड़ी में इससे जुड़े चार्ट भी लगाए हुए हैं।”

आगे वह बताती हैं, ‘‘जब मैं इस गांव में आई थी तो बहुत ही अलग गांव था। अधिकतर बच्चे, किशोरियां और महिलाएं कुपोषित थीं। धीरे-धीरे जब मैं गांववालों के साथ बात करने लगी और काम करने लगी तो लोगों को मुझ पर विश्वास हुआ। मैंने जब किचन गार्डन बनाया और लोगों को सब्जियां देने लगीं तो उनको भी अच्छा लगा और रोज सेंटर पर आने लगी।” 

किचन गार्डन महिलाओं और किशोरियों के लिए एक ऐसी जगह भी है जहां स्वास्थ्य से जुड़ी किसी भी तरह की दिक्क्त आने पर वे इंद्रा से जानकारी लेने आती हैं। वह उनकी समस्या सुनती हैं और उसके अनुसार उन्हें जानकारी दी जाती है। ज़रूरत पड़ने पर स्वास्थ्य कैंप भी लगाए जाते हैं। 

बदलाव और प्रभाव

कालबेलिया समुदाय के लोग बताते हैं कि जब सामूहिक किचन गार्डन लगा और पहले किचन गार्डन से सब्जियां लेने के बाद अब सभी समुदाय की महिलाएं आगे आकर उनके साथ मिलकर घर-घर तक किचन गार्डन और उसके महत्व को पहुंचा रही हैं और व्यक्तिगत किचन गार्डन भी लगा रही हैं। सामूहिक रूप से काम करने से उनमें एकजुटता और जिम्मेदारी की टीम भावना आई है।

सभी के सफल प्रयास से किचन गार्डन से पोषक सब्जियां प्राप्त होने से गर्भवती महिलाओं, किशोरियों में खून की कमी थी जो की समस्या धीरे-धीरे दूर हो रही है। बच्चों में कुपोषण दूर होकर उनका वजन सामान्य हुआ। इस्तेमाल किए हुए पानी को उपयोगी बनाकर कीचड़ मुक्त ज़मीन हुई। साथ ही मच्छर और अन्य बिमारियों का खतरा कम हुआ और आसपास पर्यावरण हरा-भरा हो रहा है। पहले जो बंजर और सूखी ज़मीन थी आज उसे हरा-भरा देखकर काफी खुशी मिलती है। अब न सिर्फ सब्जियां बल्की फूल, बेल आदि भी गार्डन में लगाए जाते हैं। इन 2 गांवों बस्तियों के बाद आसपास के अन्य गांव भी किचन गार्डन को बढ़ावा दे रहे हैं।


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