समाजख़बर आखिर कब हम स्त्रियों के लिए सार्वजनिक जगहों पर सुरक्षा सुनिश्चित कर पाएंगे?

आखिर कब हम स्त्रियों के लिए सार्वजनिक जगहों पर सुरक्षा सुनिश्चित कर पाएंगे?

लखनऊ के गोमतीनगर की ये घटना जहां ये घटनाएं हुई है वो जगह मुख्यमंत्री आवास के पास ही है। लेकिन हुड़दंगाई एकदम बेखौफ होकर आते-जाते लोगों को परेशान कर रहे हैं। उन्हें कानून या पुलिस का कोई खौफ नहीं है। हालांकि बाद में इसपर कानूनी करवाई हुई और पूरी पुलिस चौकी को सस्पेंड किया गया लेकिन सवाल वही है कि आखिर ये भीड़ का आपराधिक व्यवहार लगातार कैसे बढ़ता जा रहा है।

आखिर ऐसा कैसे हो रहा है कि हमारे विकसित होते समाज को जहां समावेशी प्रवित्ति की ओर बढ़ना चाहिए था वहीं वो एक उन्मादी भीड़ में बदलता जा रहा है। ये भीड़ लगातार अल्पसंख्यकों और स्त्रियों को हूट करते हुए उन्हें नुकसान पहुंचा रही है। लखनऊ शहर का एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें तेज बारिश में एक बाइक सवार भाई-बहन सड़क पर भरे पानी में जा रहे हैं तभी कुछ लड़के उन्हें देखकर हुटिंग करने लगते हैं, फिर उनपर पानी फेंकनें लगते हैं, इससे भी उनका जी नही भरता है फिर वे खींचकर लड़की को पानी मे गिरा देते हैं। जब लड़की गिर जाती है तो उठाने के बहाने उसे गलत तरीके से छूते हैं। और लड़की से छेड़छाड़ करने लगते हैं। सोशल मीडिया पर इस घटना से जुड़े वीडियो वायरल हो रहे हैं।

लखनऊ के गोमतीनगर की इस घटना के वीडियो में साफ दिख रहा है कि लड़की के साथ का लड़का भीड़ से हाथ जोड़कर बत्तमीजी न करने की गुजारिश कर रहा है लेकिन भीड़ पर कोई असर नहीं है। इसी तरह एक और वायरल वीडियो में स्‍कूटी सवार शख्‍स को पानी में धकेलते रहे हैं, एक दूसरे वायरल वीडियो में चलती कार पर पहले पानी उछाल रहे थे और कार का गेट खोलकर अंदर गंदा पानी हाथ में लेकर उड़ेलते नजर आ रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट में बताया जा रहा है कि लखनऊ के गोमतीनगर की ये घटना जहां ये घटनाएं हुई है वो जगह मुख्यमंत्री आवास के पास ही है। लेकिन हुड़दंगाई एकदम बेखौफ होकर आते-जाते लोगों को परेशान कर रहे हैं। उन्हें कानून या पुलिस का कोई खौफ नहीं है। हालांकि बाद में इसपर कानूनी करवाई हुई और पूरी पुलिस चौकी को सस्पेंड किया गया लेकिन सवाल वही है कि आखिर ये भीड़ का आपराधिक व्यवहार लगातार कैसे बढ़ता जा रहा है।

लगभग हर रोज महिलाओं के साथ हो रहे अपराध महिलाओं की स्वतंत्रता के लिए घातक बनते जा रहे हैं। महिलाएं अकेली घर से नहीं निकलेगी तो उनकी आजादी के कितने विकल्प स्वयं ही बंद हो जाते हैं।

ये कोई एक-दो घटना का मसला नहीं है अभी कुछ महीने पहले की घटना है बनारस के मणिकर्णिका घाट पर होली के दिन ठीक इसी तरह युवती के साथ कुछ युवकों ने अभद्रता की। तब भी ऐसा नहीं था कि लड़की अकेली थी जिस समय युवती के साथ लोगों ने अभद्रता की, उस समय सर्वाइवर युवती के साथ एक शख्स भी मौजूद था। युवकों ने युवती पर पानी भी डाला इस दौरान युवती काफी असहज हो गई थी। बताया जा रहा था कि पूरी घटना वाराणसी के ललिता घाट से मणिकर्णिका घाट जाने वाले मार्ग पर हुई थी। चारों तरफ युवकों की भीड़ भी जमा हो गई थी और वे उस लड़की को ‘भौजी होली है’ कहकर चिल्ला रहे थे। जब दोनों ने इसका विरोध किया, तो वहां मौजूद युवकों ने उनके साथ अभद्रता भी की। इस घटना की तो बाद में कोई शिकायत भी नहीं दर्ज हुई थी और पता भी नहीं चला कि वो प्रताड़ित होने वाले वे लोग कौन थे।

वैसे तो इस तरह की हुड़दंगाई सामन्ती समाज की प्रकृति है और समाज में ये पितृसत्तात्मक समाज में कोई नयी आयी प्रवित्ति नहीं है। लेकिन कुछ सालों ये अपराध इतनी तेजी से बढ़े हैं कि सार्वजनिक जगहें असुरक्षित लगने लगीं हैं। दो साल पहले अयोध्या के सरयू नदी में पति-पत्नी नहा रहे थे। पति ने पत्नी को चूम लिया फिर तो भीड़ ने उस व्यक्ति को पीटना शुरू कर दिया। पत्नी रोती गिड़गिड़ाती रही भीड़ से कि उन्हें छोड़ दिया जाये लेकिन भीड़ के लोग नहीं माने और युवक को पीटते ही रहे।

तस्वीर साभारः फेमिनज़म इन इंडिया के लिए रितिका बनर्जी

लगभग हर रोज महिलाओं के साथ हो रहे अपराध महिलाओं की स्वतंत्रता के लिए घातक बनते जा रहे हैं। महिलाएं अकेली घर से नहीं निकलेगी तो उनकी आजादी के कितने विकल्प स्वयं ही बंद हो जाते हैं। लखनऊ में पानी भरी सड़क पर भीड़ द्वारा महिला के साथ यौन हिंसा हो या अभी बैंगलोर में मॉर्निंग वॉक के समय महिला के साथ जबरदस्ती पकड़ने (ग्रोपिंग) की घटना हो या बनारस के घाट पर महिला को भौजी कहकर भीड़ का हुटिंग करना सब महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गहरे सवाल खड़ा करती हैं।

उस दृश्य की कल्पना से भी भय लगता है जब हम ऐसी भीड़ से घिर जाते हैं जहाँ बस तात्कालिक मजे के लिए किसी महिला को गहरा शारीरिक और मानसिक नुकसान पहुँचा सकती है। लखनऊ के गोमती नगर की घटना की स्थिति का अध्ययन करने जो हालत सामने आये वो भयावह थे क्योंकि वो तीस-पैतीस अलग-अलग जगहों से आए हुए युवा थे। उनका आपस में कोई जुड़ाव नहीं था। वे लगभग एक-दूसरे को जानते भी नहीं थे। उन युवाओं में कोई अंडे का ठेला लगाता है तो कोई ठेकेदारी करता है। कोई कहीं दूर के इलाके में रहता है। कोई दूसरे ज़िले के किसी गाँव में रहता है तो कोई लखनऊ के सबसे महँगे इलाके हज़रतगंज में रहता है। इन युवाओं में कोई दोस्ती नहीं थी ज्यादातर सब अजनबी थे एक-दूसरे से। कुछ युवा गरीब परिवारों से थे तो कोई मध्यवर्गीय परिवार के लड़के थे। हैरान करने वाली बात है वे सब जीवन में पहली बार इकट्ठा थे। लेकिन कैसे वो एक भीड़ बनकर लड़की के साथ अपराध के लिए साथ खड़े हो गए थे। किसी सभ्य समाज के लिए ये भयावहता का संकेत है। उन्हें मौक़ा दिखा और ये सब राह चलती लड़कियों को परेशान करने लगे, उनके ऊपर पानी डालने लगे, ज़बरदस्ती लड़कियों ग्रोप करने की कोशिश करने लगे।

एक मर्दवादी समाज लगभग ऐसा ही होता है जहाँ स्त्रियों को महज समान की तरह बरता जाता है। लेकिन इन दिनों भीड़ का अपराध भयावह स्थिति में दिख रहा है। अब ऐसी घटनाएं बढ़ गई हैं जहां ऐसे ही कोई भी व्यक्ति दिन-दहाड़े महिलाओं के साथ यौन हिंसा करके बेखौफ चला जाता है। जाहिर सी बात है इसमें राज्य सरकारों की लापरवाही और  समाज में महिलाओं के खिलाफ इस यौन हिंसा की स्वीकृति की भावना जिम्मेदार है। ऐसे अपराधों के लिए यही सब कारण अदृश्य तौर पर अनुमति देते हैं, वरना इन घटनाओं में इतनी तेजी से बढ़ोतरी नहीं होती। राज्य और समाज की इस दृष्टि व लापरवाही से महिलाओं के विकास में हर तरह बाधा पहुंचती है। वे इसको लेकर एकदम से सजग नहीं हैं इसे महज गलती के दायरे में देखते हैं जबकि ये सारी घटनाएं गंभीर अपराध है। महिलाओं पर इस तरह का हमला ये किसी भी देश, समाज की आजादी, लोकतंत्र और संविधान पर हमला है। 

लखनऊ में जिस तरह से लड़की को पानी में गिरा दिया गया किसी भी समाज के लिए ये चिंताजनक बात है एक तो जिस अव्यवस्था और भ्र्ष्टाचार के लिए नागरिकों को राज्य के प्रति रोष प्रकट करना था स्थानीय नेताओं को घेरना चाहिए था लेकिन वे उस अव्यवस्था को इंजॉय कर रहे हैं और यौन उत्पीड़न का जश्न मना रहे हैं। यह एक सामाजिक मूल्यों की क्षति के साथ स्त्रियों को मजे की वस्तु समझने सामाजिक मर्दवादी नजरिया है। यहां अपराध से ज्यादा यह देखने की बात है कि एक समाज के रूप में हमारे बीच एक बड़ी जनसंख्या की भीड़ खड़ी है जो इस बात को जायज़ मानती है कि मौक़ा मिले तो शारीरिक उत्पीड़न ही नहीं बलात्कार जैसा जघन्य अपराध भी जायज़ होता है।

तस्वीर साभारः फेमिनज़म इन इंडिया के लिए रितिका बनर्जी

इसकी जड़ पितृसत्तात्मक परिवेश में है इस जमीन के व्यवहार में लगातार लड़को को सामन्तीपन की ट्रेनिंग दी जाती है। लैंगिक भेदभाव की नींव पर टिके समाज को होश नहीं रहता कि मर्दवादी मूल्यों में वे लड़कों को अपराध की ट्रेनिंग दे रहे हैं। इसी मानसिकता के समाज में कितने लोग हैं जो कहते हैं कि लड़कियों को रात को बाहर नहीं निकलना चाहिए। बहुत बार तो  वे लड़कियों के कपड़ों को बलात्कार जैसे अपराध का जिम्मेदार बता देते हैं। लड़कों से उनकी दोस्ती तक को गलत कहते है। वे तमाम यौनिक अपराध को लड़कियों की आजादी से जोड़ देते हैं जबकि इस तरह के सारे अपराधों के लिए सिर्फ बलात्कारी मानसिकता दोषी होती है।

ऐसे ही समाज में इस मानसिकता को पाला जाता है जहाँ लड़कियों को सहने और दबने की नसीहत दी जाती रहती है। उन्हें घर में रहने और चुप रहने की और लड़कों को सामन्ती व्यवहार की सहने को कहा जाता है। वे इस बात को स्वीकार ही नहीं कर पा रहे हैं कि शारीरिक संबंध बग़ैर कंसेंट किन्ही भी परिस्थिति में रेप ही कहलाता है। अगर पितृसत्तात्मक समाज स्त्री की सहमति-असहमति जैसी चीजों को तरजीह नहीं देता है तो ऐसे लोगों की भीड़ रहेगी और स्त्रियों के साथ ऐसे अपराध होते रहेंगे। ये भीड़ के लोग कहीं आसमान से उतर कर नहीं आते हमारे अपने घरों में ही रहते हैं ये और हम तब तक इन्हें नहीं पहचान पाते जबतक कोई अपराध चर्चा में नहीं आता।

समाज के लिए ये चिंताजनक बात है एक तो जिस अव्यवस्था और भ्र्ष्टाचार के लिए नागरिकों को राज्य के प्रति रोष प्रकट करना था स्थानीय नेताओं को घेरना चाहिए था लेकिन वे उस अव्यवस्था को इंजॉय कर रहे हैं और यौन उत्पीड़न का जश्न मना रहे हैं।

घरों से लेकर सार्वजनिक जगहों पर लड़कियों मोलेस्ट करने वाले लोग ही ये भीड़ हैं जो सामूहिक अपराधों में खुलकर आते हैं। आखिर ये उन्मादी भीड़ सड़क पर कहाँ से आती है आज जिस तरह से भीड़ की हिंसा को समाज के बड़े हिस्से में एंजॉय किया जा रहा है उसी का प्रतिफलन है। इस भीड़ का मनोविज्ञान इसी से समझा जा सकता है कि वे संगठित न होकर भी स्त्रियों के लिए या हाशिये के मनुष्यों पर कैसे हिंसात्मक होते हैं । और इसके मूल में कहीं न कहीं परपीड़ा से आंनद की प्रवित्ति धंसी हुई है एक समाज जब लम्बे समय तक पीड़ित रहता है तो वो पीड़ाओं को इस तरह भी इंजॉय करने लगता है। 


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