समाजख़बर मर्दों की भीड़ द्वारा सरेआम की गई यौन हिंसा को सामान्य मानकर ‘चुप्पी’ साधे एक देश

मर्दों की भीड़ द्वारा सरेआम की गई यौन हिंसा को सामान्य मानकर ‘चुप्पी’ साधे एक देश

अगर कोई भी संवेदनशील मन बिना किसी पूर्वाग्रह और पक्षपात के इस पूरे प्रकरण को देखेगा तो राज्य पुलिस, केंद्र राष्ट्रीय महिला आयोग व्यवस्था की इकाइयां इस जघन्य अपराध में अपनी भूमिका के साथ लिप्त मिलगें।

भारत में जिस तरह यौन हिंसा का अपराध होता आ रहा है उनमें से अधिकतर अपराध अंधेरे और एकांत का सहारा लेकर किए जाते रहे हैं। लेकिन हाल ही में पिछले दो महीनों से अधिक हिंसा से जूझ रहे मणिपुर से एक वीडियो सामने आता है जिसमें लगभग एक हज़ार से अधिक पुरुषों की भीड़ दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर, उनके शरीर को दबाचती नज़र आई। उस पूरे दृश्य का वीडियो देखने से साफ लग रहा है कि पुरुषों की उस उन्मादी भीड़ को पुलिस व्यवस्था, समाज आदि किसी का कोई भय नहीं है। साफ दिख रहा है वे चीखते हुए बेहद घमंड के साथ अपनी घिनौनी क्रूरता का जश्न मना रहे हैं।

आखिर ये ताकत कहां से और कैसे आई उस भीड़ में। कौन सी ताकत थी वह जिस पर उन्हें विश्वास था कि इस तरह के अपराध को करके भी वे बच जाएंगे। यह भी हो सकता है कि उनका चहेता कोई धार्मिक समुदाय उन्हें इस जघन्य अपराध के लिए पुरस्कृत भी कर दे। सीधी सी बात है यह ताकत उन्हें राज्य से मिल रही है। वे गुजरात की बिलकिस बानो के अपराधियों का छूट जाना और उनका महिमांडन देख रहे हैं। वे देख रहे हैं कि कैसे इस देश में महिलाओं के बलात्कारियों को सजा नहीं मिलती वे कितना भी भयावह यौन अपराध करके बच जाते हैं।

वे बृजभूषण शरण सिंह की सत्ता में हनक देख रहे हैं। वे हाथरस और उन्नाव में हुई लड़कियों के साथ बर्बर यौन हिंसा के अपराधियों का सरकार कैसे बचाव कर रही है उसे देख रहे हैं। वे कठुआ रेप के आरोपी के समर्थन में उतरी तिरंगा यात्रा को याद रखते हैं। वे जानते हैं कि वे बच जाएंगे। यहां अपराध करने से सज़ा तय नहीं होती बल्कि सत्ता में आपकी कितनी भागीदारी है इससे आपके अपराध तय होते हैं।

कोई राज्य जब किसी हिंसा को रोकने की कोशिश नहीं करता बल्कि चुप्पी साध कर बैठ जाता है तो ज़ाहिर सी बात है कि उस हिंसा से राज्य अपने लिए कोई बहुत बड़ा लाभ देख रहा है। आज कई महीने से मणिपुर में हिंसा की घटनाएं लगातार हो रही हैं लेकिन वहां की राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों ने मणिपुर की हिंसा को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए। 

एक समाज हर दिन हिंसा के रास्ते पर बढ़ रहा है जिसमें महिलाओं, हाशिये और अल्पसंख्यक समुदाय को लगातार प्रताड़ित किया जा रहा है लेकिन राज्य और समाज इस भीड़ में बदलती हिंसा को रोकने का कोई प्रयास नहीं करता। यहां महिलाओं और अल्पसंख्यकों के साथ हो रही हिंसा का आलम यह है कि एक घटना की खबर आती है और आप उसे भूल नहीं पाते कि उससे भी जघन्य घटना की खबर आ जाती है।

मणिपुर महिलाओं के साथ हुई हिंसा का यह वीडियो सोशल मीडिया पर देखकर सभी की रूह कांप गयी। बताया जा रहा है कि वीडियो 4 मई का है। तीन मई को वहां हिंसा भड़की और चार मई को वहां कुकी समुदाय की महिलाओं के साथ यह विद्रूप हिंसा हुई। लेकिन मणिपुर में इंटरनेट बंद था इसलिए उस यौन क्रूरता का वीडियो सोशल मीडिया पर उन्नीस जुलाई को दिखा। मणिपुर हिंसा का यह वीडियो किसी आम हिंसा का वीडियो नहीं है पूरी मानवता को शर्मशार करने वाला वीडियो है।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की इतनी दुर्दशा होगी शायद ही किसी ने सोचा होगा। अल्पसंख्यक समुदाय के साथ होती हर हिंसा पर लीपा-पोती करती सरकार और रोपी गई घृणा के उन्माद से भरा यह समाज नहीं लगता कि किसी लोकतंत्र और न्याय नाम की व्यवस्था में विश्वास रखता है। मणिपुर से वीडियो के सामने आने के बाद इंटरनेट वहां बंद कर दिया गया। लेकिन तब तक यह वीडियो बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंच चुका था। मणिपुर की हिंसा पूर्णत रोपी गई हिंसा है और राज्य का बर्ताव ऐसा है कि जैसे मणिपुर देश का हिस्सा ही नहीं है। मणिपुर हमारे देश का अभिन्न हिस्सा है। वहां की महिलाओं का यौन उत्पीड़न हमें  उतनी ही तकलीफ़ देता है जितना देश के अन्य हिस्सों की हिंसा से तकलीफ़ होती है। एक मनुष्य होने के नाते हमें दुनिया के हर हिस्से में हो रही हिंसा से तकलीफ़ होती है। 

मणिपुर में हो रही लगातार हो रही हिंसा को रोका नहीं गया और जब एक जघन्य यौन हिंसा की घटना का वीडियो आया तो सरकार अनाप-शनाप बयान दे रही है। वह भीड़ की यौन हिंसा और किसी अन्य जगह की सामान्य यौन हिंसा को एक जैसी बताने की कोशिश कर रही है। प्रधानमंत्री ने जिस तरह मणिपुर की क्रूरतम यौन हिंसा को सामान्य करने की कोशिश की वह स्त्री-अस्मिता से लेकर अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा के लिए एक बहुत बड़ा भय है। मणिपुर की हिंसा मनुष्यता के ख़िलाफ़ दर्ज जघन्यतम अपराधों में से एक है इस हिंसा की भयावहता अगर सरकार को नहीं दिख रही है तो इसे सरकार की सरकार की शह पर और सरकार के सहयोग से हो रही हिंसा क्यों नहीं माना जाए।

देश का राष्ट्रीय महिला आयोग कभी महिलाओं के साथ हुई यौन हिंसा की घटनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करता था। किसी ने सपने में भी यह बात नहीं सोची होगी कि इस तरह की जघन्य यौन हिंसा पर इस पूरे प्रकरण में राष्ट्रीय महिला आयोग इतना कायराना और शर्मनाक व्यवहार करेगा। इस मामले पर उनकी चुप्पी उनकी भूमिका पर बहुत बड़ा सवाल उठाता है।

कोई राज्य जब किसी हिंसा को रोकने की कोशिश नहीं करता बल्कि चुप्पी साध कर बैठ जाता है तो ज़ाहिर सी बात है कि उस हिंसा से राज्य अपने लिए कोई बहुत बड़ा लाभ देख रहा है। आज कई महीने से मणिपुर में हिंसा की घटनाएं लगातार हो रही हैं लेकिन वहां की राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों ने मणिपुर की हिंसा को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए। 

देश का राष्ट्रीय महिला आयोग कभी महिलाओं के साथ हुई यौन हिंसा की घटनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करता था। किसी ने सपने में भी यह बात नहीं सोची होगी कि इस तरह की जघन्य यौन हिंसा पर इस पूरे प्रकरण में राष्ट्रीय महिला आयोग इतना कायराना और शर्मनाक व्यवहार करेगा। इस मामले पर उनकी चुप्पी उनकी भूमिका पर बहुत बड़ा सवाल उठाता है। बताया जा रहा है कि उनके पास इस घटना की लिखित शिकायत जब यौन हिंसा की घटना हुई तभी भेज दिया गया था। लेकिन राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस पर चुप्पी साध रखी थी।

इस पूरे प्रकरण में मणिपुर पुलिस की भूमिका भी बेहद संदिग्ध है। बताया जा रहा है कि पुलिस कस्टडी से पुरुषों की भीड़ महिलाओं को लेकर गई थी। लगभग दो हजार पुरुषों की भीड़ में दो निर्वस्त्र महिलाओं के साथ हिंसा का वह दृश्य महज कुछ पल का नहीं था, एक लंबे समय की घटना थी लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की।

आज इतने दिन बाद जब ये वीडियो आया और सुप्रीम कोर्ट ने इसमें दखल दिया और पहली बार प्रधानमंत्री का बयान आया तब राष्ट्रीय महिला आयोग इस मामले को स्वत: संज्ञान में लेने का दावा कर रहा है।  ये बात भी अब संज्ञान में आ गई है कि उनके पास इस घटना की लिखित शिकायत ये वीडियो सामने आने के 38 दिन पहले यानी 12 जून को ही कर दी गई थी। लेकिन इन 38 दिनों में राष्ट्रीय महिला आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की, न ही कोई प्रतिक्रिया दी। इस तरह तो ये बात साबित हो गई कि राज्य के साथ राष्ट्रीय महिला आयोग भी इसपर कुछ नहीं करना चाहता। यह शिकायत आयोग को दो मणिपुरी महिलाओं और मणिपुर आदिवासी संघ द्वारा दी गई थी। शिकायतकर्ताओं ने दोनों सर्वाइवर्स से बात की थी और फिर आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा को ईमेल भेजा था।

इस पूरे प्रकरण में मणिपुर पुलिस की भूमिका भी बेहद संदिग्ध है। बताया जा रहा है कि पुलिस कस्टडी से पुरुषों की भीड़ महिलाओं को लेकर गई थी। लगभग दो हजार पुरुषों की भीड़ में दो निर्वस्त्र महिलाओं के साथ हिंसा का वह दृश्य महज कुछ पल का नहीं था, एक लंबे समय की घटना थी लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। पुलिस पर सवाल ये है कि उन दोनों महिलाओं को पुलिस आखिर कैसे ले जाने देती है भीड़ को और जब ले भी गई तो पुलिस वहां पहुंचती क्यों नहीं। भीड़ को नियंत्रित क्यों नहीं किया पुलिस ने।

इन सब सवालों से मणिपुर पुलिस नहीं बच सकती। पुलिस चाहती तो इस जघन्यतम अपराध को रोक सकती थी। शांति से हो रहे जनहित के आंदोलनों में तो पुलिस को कितनी बार बर्बरता करते देखा गया है। सड़क पर गरीब रिक्शेवाले , ठेलेवाले तमाम सामान्य जनों के साथ पुलिस की हिंसा आये दिन दिखती रहती है लेकिन एक भीड़ ने बाकायदा दो महिलाओं की परेड निकाली और पुलिस चुप होकर बैठी रही। कैसे मान लिया जाए कि इस जघन्य अपराध में पुलिस की कोई भूमिका नहीं है। अगर कोई भी संवेदनशील मन बिना किसी पूर्वाग्रह और पक्षपात के इस पूरे प्रकरण को देखेगा तो राज्य पुलिस, केंद्र राष्ट्रीय महिला आयोग व्यवस्था की इकाइयां इस जघन्य अपराध में अपनी भूमिका के साथ लिप्त मिलगें।


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