समाजविज्ञान और तकनीक कैसे टेक्नॉलजी का इस्तेमाल लैंगिक हिंसा को रोकने में मददगार साबित हो सकता है?

कैसे टेक्नॉलजी का इस्तेमाल लैंगिक हिंसा को रोकने में मददगार साबित हो सकता है?

टेक्नॉलजी और प्रौद्योगिकी के अंतर्गत हेल्पलाइन और परामर्श सेवाएं आज उभर कर सामने आ रही हैं। हाल ही में बिहार सरकार ने ‘सुरक्षित यात्रा’ नामक एक नई पहल शुरू की है, जिसका उद्देश्य वास्तविक समय पर निगरानी और सुरक्षा प्रदान करना है, जो सोलो महिला यात्रियों की सुरक्षा की दिशा में एक प्रयास है।

टेक्नॉलजी के माध्यम से महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा आज कोई नई बात नहीं। अलग-अलग माध्यम से; तौर-तरीकों से; टेक्नॉलजी के इस्तेमाल से, महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा हो रही है। इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू) के अनुसार वैश्विक स्तर पर जेन ज़ी और मिलेनियल महिलाओं में से लगभग आधी महिलाओं ने ऑनलाइन लैंगिक हिंसा का अनुभव किया है। सार्वजनिक जीवन में महिलाओं के लिए, ये संख्याएं और भी अधिक परेशान करने वाली हैं। उदाहरण के लिए, यूनेस्को और इंटरनेशनल सेंटर फॉर जर्नलिस्ट्स द्वारा किए गए सर्वेक्षण में जवाब देने वाली 73 फीसद महिला पत्रकारों ने कहा कि उन्होंने डिजिटल हिंसा का अनुभव किया है। ईआईयू की रिपोर्ट अनुसार 85 फीसद महिलाएं उनके नेटवर्क से बाहर की महिलाओं सहित अन्य महिलाओं के खिलाफ़ ऑनलाइन हिंसा देखने की सूचना दी। हालांकि डिजिटल तकनीक आज सिर्फ जरूरत ही नहीं, जीने का तरीका बन गई है और बड़े फायदे ला सकती है। लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि यह लैंगिक हिंसा को भी बढ़ावा दे रही है।

महिलाओं और लड़कियों का ऑनलाइन धमकियां, यौन उत्पीड़न, पीछा करना, सेक्स ट्रोलिंग, डीपफेक वीडियो, निजी तस्वीरों को बिना इजाज़त जारी कर देना और शोषण जैसी ऑनलाइन हिंसा का निशाना बनने की अधिक संभावना है। असल में इंटरनेट महिलाओं के लिए दोधारी तलवार है। एक ओर, यह अभिव्यक्ति और अवसर चाहने वाली महिलाओं को मजबूत और महत्वपूर्ण प्लेटफॉर्म देता है। दूसरी ओर, यह महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा करने और बढ़ावा देने वाले लोगों के लिए एक माध्यम बन रहा है। यूनिसेफ़ की रिपोर्ट अनुसार कोविड-19 महामारी के दौरान इंटरनेट के उपयोग में 50 फीसद से 70 फीसद की बढ़ोतरी हुई। लेकिन, इसके साथ ही महिलाओं और लड़कियों को धमकाने, शर्मिंदा करने और नियंत्रित करने के लिए डिज़ाइन की गई तस्वीरों के गैर-सहमतिपूर्ण शेयरिंग में वृद्धि हुई। वहीं बच्चों का ऑनलाइन यौन शोषण और दुर्व्यवहार संकट के स्तर पर पहुंच गया, जिसमें अधिकांश ऑनलाइन दुर्व्यवहार सामग्री में लड़कियां शामिल थीं।

भारत में कुछ एआई चैटबॉट्स ने महिलाओं की सुरक्षा में अहम भूमिका निभाई है। इनमें MySafetipin, Sheroes हेल्पलाइन कुछ प्रमुख नाम हैं। ऐसे चैटबॉट आज दुनिया भर में विकसित किए जा रहे हैं और ज्यादा से ज्यादा कारगर बनाने की कोशिश की जा रही है।

सुरक्षा ऐप्स और डिजिटल प्लेटफॉर्म का विकास

लेकिन तकनीक का इस्तेमाल कर, महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा से लड़ा जा सकता है। लैंगिक हिंसा के सर्वाइवर को सुरक्षा देने के लिए कई ऐप्स और डिजिटल प्लेटफार्मों का निर्माण किया गया है। ये ऐप्स महिलाओं को तत्काल सहायता, पुलिस को सूचित करने और अपने लोकेशन को प्रियजनों के साथ साझा करने में मदद करते हैं। कुछ ऐप्स में इमरजेंसी बटन होते हैं, जो तुरंत पुलिस और परिवार को सूचित कर सकते हैं। कई सुरक्षा ऐप्स जैसे स्मार्ट 24×7, सेफ्टीपिन और हिम्मत प्लस ने खासकर शहरी क्षेत्रों में अपनी उपयोगिता सिद्ध की है। ऐप्स में जीपीएस ट्रैकिंग, ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग और एक बटन पर एसओएस सिग्नल जैसी सुविधाएं दी जाती हैं, जो खतरे के समय मददगार साबित हो सकती हैं। इसके अलावा, इन ऐप्स का इस्तेमाल संभावित खतरनाक स्थानों के बारे में जानकारी देने के लिए भी किया जा सकता है, जिससे यूजर्स पहले से सतर्क रह सकें।

तस्वीर साभार: TechGropse

तकनीकी समाधान लोगों में जागरूकता बढ़ा सकते हैं और तकनीक उपयोगकर्ता की हिंसा के जोखिम को कम कर सकते हैं। जैसे, सेफटिपिन एक मोबाइल ऐप है जो सार्वजनिक सुरक्षा जानकारी प्रदान करने के लिए उपयोगकर्ताओं से वास्तविक समय के डेटा को क्राउडसोर्स और मैप करता है। ऐप उपयोगकर्ताओं; जिनमें मुख्य रूप से महिलाएं और लड़कियां हैं, को अपने मार्गों की योजना बनाने और रहने के लिए सुरक्षित स्थान ढूंढने में मदद करने के लिए ‘लोकैशन सैफ्टी स्कोर’ का इस्तेमाल करता है। अप्रैल 2016 में, भारत सरकार ने भी आदेश जारी किया था कि 2017 के बाद भारत में बेचे जाने वाले सभी मोबाइल फोन में महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक पैनिक बटन शामिल होना चाहिए।

सेफ्टीपिन ऐप का एकत्रित किया गया डेटा का इस्तेमाल सार्वजनिक स्थानों के सुधार के लिए भी किया जा रहा है ताकि उन्हें महिलाओं और लड़कियों के लिए सुरक्षित बनाया जा सके। ऐप के माध्यम से दिल्ली में एकत्र किए गए डेटा के कारण दिल्ली सरकार ने 5000 स्ट्रीट लाइटें लगाकर और पुलिस गश्त में सुधार करके खराब सुरक्षा स्कोर वाले क्षेत्रों को संबोधित किया था।

डिजिटल हेल्पलाइन और परामर्श सेवाएं कैसे कर सकते हैं मदद

टेक्नॉलजी और प्रौद्योगिकी के अंतर्गत हेल्पलाइन और परामर्श सेवाएं आज उभर कर सामने आ रही हैं। हाल ही में बिहार सरकार ने ‘सुरक्षित यात्रा’ नामक एक नई पहल शुरू की है, जिसका उद्देश्य वास्तविक समय पर निगरानी और सुरक्षा प्रदान करना है, जो सोलो महिला यात्रियों की सुरक्षा की दिशा में एक प्रयास है। ये सच है कि सुरक्षा की जिम्मेदारी महिलाओं की खुद की नहीं, बल्कि नागरिक समाज, सरकार और सिस्टम की है। लेकिन मौजूदा हालात में टेक्नॉलजी उन पहलुओं में मदद कर सकती है जहां आम जनता को खुदको पहल करना पड़ता है। इसके साथ ही, डिजिटल प्लेटफार्मों पर दी जाने वाली परामर्श सेवाएं भी सर्वाइवर को मानसिक और भावनात्मक समर्थन प्रदान करती हैं, जो उन्हें उस स्थिति या संकट से उबरने में सहायक बनते हैं। हालांकि आर्टफिशल इन्टेलिजन्स (एआई) का बहुत खतरनाक तरीके से महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन एआई और डेटा विश्लेषण के माध्यम से लैंगिक हिंसा के मामलों की पहचान और रोकथाम में सहायता की जा सकती है।

तस्वीर साभार: Safetypin

विभिन्न प्रकार के डेटा को एकत्र कर, उनकी समीक्षा और विश्लेषण करने के माध्यम से ऐसे पैटर्न खोजे जा सकते हैं, जो हिंसा के संभावित स्रोतों, जगहों और कारकों का पता लगाने में मदद कर सकते हैं। नीतिनिर्माण करने वाले इनके अनुसार सार्वजनिक जगहों को बनाने या बेहतर बनाने की प्लानिंग कर सकते हैं या नीतियों का निर्माण कर सकते हैं। यह डेटा उन क्षेत्रों को चिह्नित करने में सहायक हो सकता है, जहां हिंसा के मामले अधिक होते हैं और वहां के लिए विशेष सुरक्षा उपाय किए जा सकते हैं। जैसे, सेफ्टीपिन ऐप का एकत्रित किया गया डेटा का इस्तेमाल सार्वजनिक स्थानों के सुधार के लिए भी किया जा रहा है ताकि उन्हें महिलाओं और लड़कियों के लिए सुरक्षित बनाया जा सके। ऐप के माध्यम से दिल्ली में एकत्र किए गए डेटा के कारण दिल्ली सरकार ने 5000 स्ट्रीट लाइटें लगाकर और पुलिस गश्त में सुधार करके खराब सुरक्षा स्कोर वाले क्षेत्रों को संबोधित किया था।

ये सच है कि सुरक्षा की जिम्मेदारी महिलाओं की खुद की नहीं, बल्कि नागरिक समाज, सरकार और सिस्टम की है। लेकिन मौजूदा हालात में टेक्नॉलजी उन पहलुओं में मदद कर सकती है जहां आम जनता को खुदको पहल करना पड़ता है।

एआई चैटबॉट्स का इस्तेमाल और महत्व

लैंगिक हिंसा के मामलों में एआई आधारित चैटबॉट्स और वॉयस असिस्टेंट्स के माध्यम से सर्वाइवर को हालांकि सीमित पर तुरंत परामर्श और सहायता दी जा सकती है। एआई चैटबॉट्स 24×7 सहायता देने वाले डिजिटल टूल्स होते हैं, जो महिलाओं या किसी भी जेंडर को विभिन्न मुद्दों पर जानकारी, परामर्श और मदद करते हैं। ये चैटबॉट्स तकनीकी रूप से सक्षम होते हैं और विभिन्न भाषाओं में बात कर सकते हैं, जिससे हर तबके के लोगों के लिए इसे इस्तेमाल करना आसान हो जाता है। आज इनका उपयोग किसी भी स्मार्टफोन या कंप्यूटर से किया जा सकता है। अमूमन एआई चैटबॉट्स किसी भी महिला के व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा का ख्याल रखते हैं। कानूनी जानकारी की कमी, सामाजिक रूढ़िवाद और न्यायायिक प्रक्रिया में संस्थागत रुकावटों के कारण महिलाओं की अक्सर न्याय तक पहुंच नहीं होती या बहुत देर से होती है।

तस्वीर साभार: Freepik

हालांकि संस्थागत समस्याओं को चैटबॉट्स दूर नहीं कर सकते, लेकिन ये महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में जानकारी दे कर जागरूक बना सकते हैं। भारत में कुछ एआई चैटबॉट्स ने महिलाओं की सुरक्षा में अहम भूमिका निभाई है। इनमें MySafetipin, Sheroes हेल्पलाइन कुछ प्रमुख नाम हैं। ऐसे चैटबॉट आज दुनिया भर में विकसित किए जा रहे हैं और ज्यादा से ज्यादा कारगर बनाने की कोशिश की जा रही है। सेक्सटॉर्शन और ऑनलाइन उत्पीड़न के जोखिमों को संबोधित करने के लिए ब्राजील में कैरेटास ने एआई-संचालित चैटबॉट काल्पनिक चरित्र ‘फेबी’ विकसित किया है। फेसबुक और मैसेंजर चैटबॉट यूज़र को ‘फेबी’ के साथ बातचीत करने, उसकी कहानी सुनने और उसके अनुभवों से सीखने की अनुमति देता है।

लड़कियों और महिलाओं द्वारा सामना किए जा रहे हिंसा और उत्पीड़न के मामलों को ध्यान में रखकर इन उपायों को बनाना जरूरी है, जहां हिंसा का सामना कर चुके लोगों के अधिकार, ज़रूरतें और इच्छाओं को विशेष रूप से डिज़ाइन के केंद्र में रखी जानी चाहिए।

लैंगिक हिंसा के खिलाफ़ उपयोगी मोबाइल ऐप्स

तस्वीर साभार: LinkedIn

भारत सरकार और गैर-सरकारी संगठनों ने विभिन्न मोबाइल ऐप्स विकसित किए हैं, जो महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं। ये ऐप्स संकट के समय में मदद प्राप्त करने और हिंसा की रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दिल्ली पुलिस द्वारा विकसित हिम्मत ऐप, सार्वजनिक तौर पर बनाया गया वूमेन सेफ्टी और बचाओ ऐप महिलाओं को संकट की स्थिति में सहायता प्रदान करता है। इसमें SOS बटन है, जिसे दबाने पर महिला की लोकेशन पुलिस और नजदीकी संपर्कों को भेजी जाती है।

चुनौतियां और सुधार की संभावनाएं

भारत में सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की सुरक्षा एक चिंता का विषय है। लैंगिक हिंसा से निपटने के लिए सुरक्षित तकनीक के विकास के लिए उपायों में, महिलाओं और लड़कियों के नेतृत्व और साझेदारी की जरूरत है। ये जरूरी है कि हम समझें कि टेक का इस्तेमाल महज उन्हें ट्रैक करने तक सीमित नहीं होना चाहिए। लड़कियों और महिलाओं द्वारा सामना किए जा रहे हिंसा और उत्पीड़न के मामलों को ध्यान में रखकर इन उपायों को बनाना जरूरी है, जहां हिंसा का सामना कर चुके लोगों के अधिकार, ज़रूरतें और इच्छाओं को विशेष रूप से डिज़ाइन के केंद्र में रखी जानी चाहिए। टेक का इस्तेमाल महिलाओं और लड़कियों को और अधिक नुकसान या उनकी एजेंसी पर सिर्फ नियंत्रण करने के लिए नहीं होना चाहिए।

हालांकि इन ऐप्स और डिजिटल समाधानों ने महिलाओं को विशेषकर शहरी महिलाओं को काफी हद तक सशक्त बनाया है।लेकिन ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट की कम पहुंच, शिक्षा की कमी, और टेक्नोलॉजी के उपयोग की जानकारी का अभाव उन महिलाओं के लिए बाधा बन सकता है, जो इन ऐप्स का उपयोग कर सकती हैं। इसके अलावा, सुरक्षा ऐप्स की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि संकट के समय सहायता कितनी जल्दी और प्रभावी रूप से पहुंचाई जाती है। इस दिशा में सुधार की जरूरत है ताकि तकनीकी समाधान अधिक प्रभावी हो सकें। सरकार और गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि सभी महिलाएं इन संसाधनों का लाभ उठा सकें।

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