इंटरसेक्शनलजेंडर आखिर कितना चुनौतीपूर्ण, मुश्किल और अलग है देश में सिंगल महिलाओं का जीवन  

आखिर कितना चुनौतीपूर्ण, मुश्किल और अलग है देश में सिंगल महिलाओं का जीवन  

सिंगल महिलाओं के लिए भारत में किराए पर घर लेना या अपनी संपत्ति खरीदना भी एक बड़ी चुनौती होती है। समाज में सिंगल महिलाओं को अक्सर 'अविश्वसनीय' समझा जाता है, और मकान मालिक उन्हें किराए पर घर देने में संकोच करते हैं।

गुजरात के नर्मदा जिले की 58 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता शोभा मालवारी कहती हैं, “मैं हमेशा से जानती थी कि मैं शादी के लिए नहीं बनी हूं। महिलाओं का जीवन शादी के बाद जिस कदर बदल जाता है, और उनसे जिस तरह की अवास्तविक उम्मीदें की जाती है, वो मैं करने के लिए तैयार नहीं थी। मैं नहीं चाहती कि अपनी आज़ादी, मूल्यों और जीवन के साथ कोई समझौता करूँ इसलिए शादी नहीं की।” समाज एक उम्र तक महिलाओं की शादी न होने पर, शादी की सलाह तो देते हैं पर उन्हें जज भी करते हैं। महिलाओं के लिए सिर्फ ये ही जरूरी नहीं कि वे शादी करें, बल्कि शादी के बाद, उम्मीद की जाती है कि एक निश्चित समय सीमा में बच्चे हों। असल में देश में महिलाओं का शादीशुदा होना, उनके लिए विशेषाधिकार की तरह काम करता है।  

पितृसत्तातमक समाज में किराए के लिए घर मिलने से लेकर किसी साथी के साथ रहने, सुरक्षित बाहर जाने, खुले आम अपनी इच्छानुसार कपड़े पहनने की आज़ादी से लेकर बालिग होने के बाद जीवन में माँ-पिता या भाई-बहन की दखलंदाज़ी से बचने तक शादी एक मददगार कारक की तरह काम करती है। अक्सर जो महिलाएं शादीशुदा नहीं हैं, उन्हें घमंडी और समस्याजनक होने का लेबल दे दिया जाता है, जो शादी के बाज़ार के लिए ‘अच्छी और घरेलू’ लड़की नहीं है। सिंगल महिला के तौर पर भारत जैसे देश में रहना आसान नहीं है। जनगणना के आंकड़ों के अनुसार विधवा, अविवाहित, तलाकशुदा और छोड़ दी गई एकल महिलाओं की संख्या में 39 फीसद की वृद्धि हुई है। 2001 में यह संख्या 51.2 मिलियन थी, जो 2011 में बढ़कर 71.4 मिलियन हो गई।

25 की उम्र तक तो घरवाले शादी को लेकर बहुत कहते थे। लेकिन, अब लोगों को लगता है कि उम्र निकल गई है। मैं अपने काम और जीवन से संतुष्ट और खुश हूं। जब मैं पहली बार काम करने दाँतेवाड़ा जाने वाली थी, तो घरवाले इस बात पर चिंता कर रहे थे कि अगर मैं बाहर चली गई तो अपने जाति में लड़का कैसे मिलेगा।

क्या सिंगल का मतलब अधूरी होना है

भारत में सिंगल महिलाओं को अक्सर ‘अधूरी’ और ‘असामान्य’ समझा जाता है और फेमिनिस्ट होने का तंज कसा जाता है। पारंपरिक समाज में शादी को जीवन का एक जरूरी हिस्सा माना जाता है। जो महिलाएं इससे बाहर रहती हैं, उन्हें संदेह और आलोचना का सामना करना पड़ता है। परिवार और समाज से बार-बार शादी करने का दबाव उनकी स्वतंत्रता में बाधा डालता है। उनके फैसलों को सम्मान से नहीं देखा जाता, बल्कि उन्हें सामान्य जीवन से भटकाव के रूप में देखा जाता है। एक ऐसे समाज में जहां शादी से सामाजिक जीवन चलती हो, वहां महज शादी न करने पर आम महिलाओं के लिए मुख्यधारा से कटाव महसूस होना सामान्य है। एक शोध के परिणामों से पता चला कि अविवाहित महिलाएं विवाहित महिलाओं की तुलना में अधिक खुश महसूस करती हैं। नैशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसन के एक शोध मुताबिक सिंगल महिलाएं सिंगल होने के फायदे और नुकसान दोनों जानती हैं।  

रितिका बनर्जी फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए

साथ ही, ये बताया गया है कि सिंगल महिलाएं सिंगल होने के कारणों के बारे में दुविधा में हैं। हालांकि सिंगल होने से वे संतुष्ट हैं पर कई महिलाएं नुकसान और दुख की भावनाओं का अनुभव करती हैं। महाराष्ट्र के सोलापूर की 33 वर्षीय ज्योति पटाले पिछले कई सालों से अलग-अलग राज्यों में गैर सरकारी संगठनों में काम कर रही हैं। शादी के विषय पर वह कहती हैं, “25 की उम्र तक तो घरवाले शादी को लेकर बहुत कहते थे। लेकिन, अब लोगों को लगता है कि उम्र निकल गई है। मैं अपने काम और जीवन से संतुष्ट और खुश हूं। जब मैं पहली बार काम करने दाँतेवाड़ा जाने वाली थी, तो घरवाले इस बात पर चिंता कर रहे थे कि अगर मैं बाहर चली गई तो अपने जाति में लड़का कैसे मिलेगा।”


मैं हमेशा से जानती थी कि मैं शादी के लिए नहीं बनी हूं। महिलाओं का जीवन शादी के बाद जिस कदर बदल जाता है, और उनसे जिस तरह की अवास्तविक उम्मीदें की जाती है, वो मैं करने के लिए तैयार नहीं थी। मैं नहीं चाहती कि अपनी आज़ादी, मूल्यों और जीवन के साथ कोई समझौता करूँ इसलिए शादी नहीं की।

किराए पर घर लेना है मुश्किल  

सिंगल महिलाओं के लिए भारत में किराए पर घर लेना या अपनी संपत्ति खरीदना भी एक बड़ी चुनौती होती है। समाज में सिंगल महिलाओं को अक्सर ‘अविश्वसनीय’ समझा जाता है, और मकान मालिक उन्हें किराए पर घर देने में संकोच करते हैं। यह समस्या खासतौर पर महानगरों में अधिक देखने को मिलती है, जहां सिंगल महिलाओं को अपनी आजादी के लिए कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। कई घरों में सिंगल महिलाओं को एक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर व्यक्ति के रूप में देखने के बजाय, उन्हें संदिग्ध नजरों से देखा जाता है। इस विषय पर ज्योति कहती हैं, “घर मिलने में काफी मुश्किल आती है। मेरी नौकरी ऐसी है कि मुझे रात में भी वापस लौटना होता है। मैं अपने बाइक से फील्ड पर काम के सिलसिले में घूमती हूं। अगर कोई मकान देने के लिए राज़ी हुआ तो भी हजारों नियम बताते हैं, जिसमें सबसे अहम है लड़के अलाउड नहीं है। वे समझते हैं कि सिंगल है तो घर पर लड़के आते ही होंगे और जबतक शादी नहीं होती तबतक लड़की सिक्योर नहीं है।”

रितिका बनर्जी फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए

वह आगे कहती हैं, “वे ये भी कहते हैं कि मुस्लिम हूं तो घर नहीं देंगे। ऐसे में मैं वह घर लेती ही नहीं हूं। चूंकि अपने अनुसार घर मिलना मुश्किल है, तो जैसे देर रात कहीं से आने का प्लान रहता है, तो टाल देती हूं। कभी अगर ऐसा हो कि रात में आना ही है, तो मैं अपने घर नहीं जाती। मैं रातभर के लिए किसी और परिचित के घर रुक जाती हूं और सुबह घर लौटती हूं।” धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं के चलते भी सिंगल महिलाओं के प्रति भेदभाव किया जाता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 में समानता और भेदभाव न करने का अधिकार दिया गया है। इसके तहत किसी भी महिला के साथ उसके लिंग, धर्म, जाति या वैवाहिक स्थिति के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। लेकिन असलियत में कानून सिंगल महिलाओं को शायद ही ऐसी स्थिति में मदद करते हैं। राजस्थान के उदयपुर की मूल निवासी 34 वर्षीय खुर्शीदा परवीन अंसारी पिछले 10 साल से अलवर में विभिन्न सामाजिक संस्थानों में काम कर रही हैं। वह अपना अनुभव साझा करते हुए बताती हैं, “बतौर मुस्लिम सिंगल महिला घर मिलना बहुत मुश्किल है। ऐसा भी हुआ है कि मुस्लिम सुनते ही भगा देते हैं। ऐसा भी हुआ है कि मुस्लिम हूं ये जानने के बाद, जिस जगह मैं खड़ी थी, वे उस हिस्से को धोने लगे।”

अगर कोई मकान देने के लिए राज़ी हुआ तो भी हजारों नियम बताते हैं, जिसमें सबसे अहम है लड़के अलाउड नहीं है। वे समझते हैं कि सिंगल है तो घर पर लड़के आते ही होंगे और जबतक शादी नहीं होती तबतक लड़की सिक्योर नहीं है।

क्या सिंगल महिला सम्पूर्ण नहीं है

रोजमर्रा के जीवन में सिंगल महिला कई बार रूढ़िवादी नियमों से लड़ना पसंद नहीं करती क्योंकि ये मानसिक और भावनात्मक तौर पर थका देती है। समाज में अक्सर ये महिलाएं अपनी लड़ाइयों को बारीकी से चुन रही हैं कि कौन ये मूल्यों को दरकिनार कर के भी जिया जा सकता है। इस कारण कई महिलाएं जो कम उम्र में शादी की थीं, तलाक के बाद अकेली रहना चाहती हैं। कोलकाता के एमएनसी में काम कर रही इंस्ट्रक्शनल डिज़ाइनर इंद्राणी मुखर्जी कहती हैं, “मैंने 23 साल की उम्र में शादी कर ली थी। 13 साल बाद हमारा तलाक हो गया। अब मैं 40 साल की हूं। डेट कर रही हूं लेकिन दोबारा शादी नहीं करूंगी। शादी का मतलब लोग ‘कम्पैनियनशिप’ नहीं समझते। एक समय के बाद वे बच्चे के लिए ज़ोर देते हैं और मुझे कभी भी बच्चे नहीं चाहिए थे।”

रितिका बनर्जी फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए

शादी के बाद यदि बच्चे की योजना में देरी होती है, तो समाज और परिवार तरह-तरह के सवाल उठाते हैं। भारतीय शादी में बच्चों की चाह भी एक कारक की तरह काम करती है जहां महिलाओं से उम्मीद की जाती है कि वे प्राकृतिक तौर पर बच्चे चाहेंगी या मातृत्व की भावना दिखाएंगी। इस विषय पर ज्योति कहती हैं, “मैं 23 साल की उम्र में परिवार में बता चुकी थी कि मैं बायोलॉजीकल बच्चे नहीं करना चाहती। आज रिश्तेदार और परिवार कहते हैं कि ये एक प्रमुख कारण है कि मुझे लड़का नहीं मिलेगा। इसलिए, सलाह दी जाती है कि मैं अपनी इस सोच के साथ समझौता करूँ।”

अब अकेले रहने में मुश्किल होती है क्योंकि सब कुछ खुद करना है और जीवन में भावनात्मक तौर पर साथी की जरूरत महसूस होती है। लेकिन ये डर जरूर है कि जिस तरीके से जिस आज़ादी से मैं जीवन जी हूं और जिस तरह का काम करती हूं, क्या वो शादी के बाद करने दिया जाएगा। हमारा समाज आज भी इतना आगे नहीं बढ़ पाया है कि वह एक सशक्त आत्मनिर्भर महिला को बिल्कुल वैसे ही अपनाए।

सिंगल महिलाओं का अकेले रहने की चुनौतियां

अक्सर सिंगल महिलाओं की कामकाजी स्थिति, पहनावे और जीवनशैली पर सवाल उठाए जाते हैं। उनके जीवन में परिवार और मित्रों का समर्थन कम होने से वे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं, जैसे अवसाद और चिंता, का सामना कर सकती हैं। खुर्शीदा कहती हैं, “अब अकेले रहने में मुश्किल होती है क्योंकि सब कुछ खुद करना है और जीवन में भावनात्मक तौर पर साथी की जरूरत महसूस होती है। लेकिन ये डर जरूर है कि जिस तरीके से जिस आज़ादी से मैं जीवन जी हूं और जिस तरह का काम करती हूं, क्या वो शादी के बाद करने दिया जाएगा। हमारा समाज आज भी इतना आगे नहीं बढ़ पाया है कि वह एक सशक्त आत्मनिर्भर महिला को बिल्कुल वैसे ही अपनाए। मैं घर के कार्यक्रमों में जाना बंद कर दी हूं क्योंकि वहां भी अलगाव महसूस होता है।”

रितिका बनर्जी फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए

वह आगे कहती हैं, “शादी न होने के कारण लोग मज़ाक करते हैं या सवाल पूछते हैं। लोगों के बीच एक्सेप्ट न होने का डर अब ज्यादा है इसलिए खुदको सीमित कर लेती हूं।” सिंगल महिलाओं के लिए आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना महत्वपूर्ण है। लेकिन वे अक्सर असमान वेतन, नौकरी के अवसरों की कमी और करियर में लैंगिक भेदभाव का सामना करती हैं। शादी न करने के कारण उन्हें पारिवारिक संपत्ति में बराबरी का हक मिलने में भी कठिनाइयां होती हैं। आर्थिक मामलों पर अनुभव साझा करते हुए ज्योति कहती हैं, “हालांकि मैं अपना फाइनैन्स खुद मैनेज करती हूं लेकिन आज भी घर पर किसी प्रकार के आर्थिक फैसले में मुझे शामिल नहीं किया जाता।”

अब अकेले रहने में मुश्किल होती है क्योंकि सब कुछ खुद करना है और जीवन में भावनात्मक तौर पर साथी की जरूरत महसूस होती है। लेकिन ये डर जरूर है कि जिस तरीके से, जिस आज़ादी से मैं जीवन जी हूं और जिस तरह का काम करती हूं, क्या वो शादी के बाद करने दिया जाएगा। हमारा समाज आज भी इतना आगे नहीं बढ़ पाया है कि वह एक सशक्त आत्मनिर्भर महिला को बिल्कुल वैसे ही अपनाए।

सिंगल महिलाओं के लिए सुरक्षा का पहलू और क्या है रास्ता

सिंगल महिलाओं को सुरक्षा के मुद्दों का भी सामना करना पड़ता है। इस पर शोभा बताती हैं कि गांव में उनका मुखर होकर कई सामाजिक समस्याओं का प्रतिरोध करना गांववालों को पसंद नहीं आ रहा था। वह बताती हैं, “मेरे गैरमौजूदगी में घर में 14 बार चोरी हुई है और पुलिस में शिकायत के बाद में कोई फायदा नहीं हुआ।” कभी भी शादी न करना या लॉन्ग टर्म साथी बनाना एक वैध विकल्प है। बहुत सी महिलाएं जो अपनी इच्छा से अकेली हैं, वे शादी की धारणा को अस्वीकार करती हैं क्योंकि शादी अपनेआप में एक पितृसत्तात्मक संस्था है।

पिछले दशक में, कुछ राज्यों ने सिंगल महिलाओं के लिए पेंशन और अन्य योजनाओं की घोषणा करके उनकी बेहतरी के लिए कदम उठाए हैं। जैसे, राजस्थान ने एकल नारी सम्मान पेंशन योजना शुरू की है, जबकि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ने एकल महिला पेंशन योजनाएं लागू की हैं। तमिलनाडु ने विधवाओं, निराश्रित, छोड़ दी गई, कमज़ोर और अविवाहित महिलाओं को उनकी अनूठी चुनौतियों को पहचानते हुए अनुकूलित सेवाएं प्रदान करने के लिए विधवा और निराश्रित महिला कल्याण बोर्ड की स्थापना की है। लेकिन सिंगल महिला होना आज भी समाज में टैबू है और सभी लोगों के गरिमापूर्ण जीवन जीने के तरीके मौजूद हो, इसके लिए नीतियों में बदलाव से पहले मानसिकता में बदलाव जरूरी है।

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