इंटरसेक्शनलजेंडर शादी की वजह से महिलाओं का पलायन और उससे जुड़ी चुनौतियां

शादी की वजह से महिलाओं का पलायन और उससे जुड़ी चुनौतियां

महिलाओं के पलायन से उनकी शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और वैतनिक कार्य बल में उनकी भागीदारी प्रभावित होती है।

सदियों से हम सब ने महिलाओं को शादी के बाद ससुराल जाते, शहर या देश बदलते देखा है। यह तथ्य कि महिलाएं शादी के बाद दूसरी जगह जाती हैं, भारतीय समाज में इतना सामान्य है कि हम इसके अलावा और कुछ सोच नहीं पाते। वहीं, शादी के बाद, पुरुषों का अपने जीवनसाथी के साथ शहर या देश बदलना, ख़बरों की सुर्खियों में आ जाता है। यह रिवाज़ कि शादी के बाद महिलाओं को अपना शहर, देश या इलाका छोड़ना होता है, हमारे देश के भीतर महिलाओं के पलायन की सबसे बड़ी वजह है।

इंडियास्पेंड में साल 2011 के जनगणना के आंकड़ों पर आधारित एक खबर बताती है कि शादी के बाद पलायन करने वाले 224 मिलियन भारतीयों में से 97 फीसद महिलाएं हैं। शादी के लिए पलायन करने वालों की हिस्सेदारी 49 फीसद पाई गई, वहीं घर सहित पलायन करने वालों का प्रतिशत 15 फीसद और रोज़गार के लिए पलायन करने वालों की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत दर्ज हुई।

महिलाओं के पलायन से उनकी शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और वैतनिक कार्य बल में उनकी भागीदारी प्रभावित होती है। महिलाओं के साथ सिर्फ यह समस्या नहीं है कि पुरुषों के माध्यम से वे विस्थापन और पलायन का हिस्सा बनती हैं, बल्कि वे शहर जाकर भी मूल रूप से अकुशल श्रमिक की तरह ही काम कर पाती हैं। 

इंडियास्पेंड की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवासी महिलाओं की संख्या और भी ज्यादा है। जनगणना के आंकड़ों के अनुसार कुल महिला प्रवासियों में लगभग 78 फीसद ग्रामीण महिलाओं ने शादी के लिए पलायन करने की सूचना दी ,जबकि शहरी क्षेत्रों की महिलाओं के लिए यह आंकड़ा 46 फीसद था। पुरुषों द्वारा शादी के कारण घर या जगह बदलने को भारतीय समाज हीन नज़रों से देखता है। पुरुषों का शादी के बाद अपने जीवनसाथी के घर पर रहने को अक्सर पश्चिमी विचारधारा बताया जाता है, जिसे भारतीय संस्कृति स्वीकार नहीं करती।

यह तथ्य कि महिलाएं शादी के बाद दूसरी जगह जाती है, भारतीय समाज में यह इतना सामान्य है कि हम इसके अलावा और कुछ सोच नहीं पाते। वहीं, शादी के बाद, पुरुषों का अपने जीवनसाथी के साथ शहर या देश बदलना, ख़बरों की सुर्खियों में आ जाता है।

लेकिन यहां यह सवाल जरूरी है कि महिलाओं के लिए ऐसे अनिवार्य नियम किसने और क्यों बनाए। अगर हमारे सामाजिक नियमों और मानदंडों पर गौर करें, तो पाएंगे कि ऐसे हज़ारों नियम महिलाओं के लिए बनाए गए हैं, जो पुरुषों पर लागू होते ही नहीं हैं। गौरतलब हो कि भारतीय कानून के तहत ऐसी कोई धारा या नियम नहीं है जो महिलाओं को शादी से जुड़े पलायन के लिए बाध्य करती हो। जहां पुरुषों के अधिकार के नाम पर उनके वर्चस्व के लिए ऐसे नियम मौजूद हैं, वहीं कई संस्थान महिलाओं का शादी के बाद पलायन के कारण, एकल महिलाओं को नौकरी देने से परहेज करते हैं। आम तौर पर महिलाओं का शादी के लिए विस्थापन या पलायन इतना साधारण है कि पलायन की चर्चा महिलाओं के संदर्भ में होती ही नहीं है।

महिलाओं पर कैसे असर करता है पलायन 

हालांकि, पलायन का हिस्सा बनी महिला सामाजिक और सांस्कृतिक तौर पर अपना योगदान देती है। लेकिन आम तौर पर शादी की वजह से पलायन में शामिल महिलाओं की गिनती प्रवासियों की तरह नहीं की जाती। इसलिए, प्रवासियों के लिए बनाई गई नीतियां महिलाओं के पहलुओं के मद्देनजर नहीं बनाई जाती। अपने योगदान के बावजूद, महिलाओं को पलायन के सभी चरणों में व्यापक भेदभाव और समस्याओं का सामना करना पड़ता है। साथ ही, यह उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा को प्रभावित करता है। पलायन एक जेंडर्ड प्रक्रिया है और यह महिलाओं और पुरुषों को अलग तरह से प्रभावित करती है। यह मूल रूप से वैश्विक स्तर पर श्रम बल के जेंडर्ड विभाजन को बढ़ावा देती है।

पलायन घरेलू और देखभाल के काम या अकुशल श्रमिकों के तौर पर चुनिंदा क्षेत्रों में प्रवासी महिला श्रमिकों की मांग करती है। सामाजिक मानदंडों के कारण शादी के बाद पलायन में महिला अपने घर और क्षेत्र को छोड़ने पर मजबूर हो जाती है। साथ ही, लैंगिक रूढ़िवाद सोच महिलाओं की निर्णय लेने की प्रक्रियाओं को प्रभावित करती है, जिससे वे लगातार मानवाधिकार के उल्लंघन का सामना करती हैं।

महिलाओं के पलायन के संदर्भ में समस्या यह भी है कि यह शादी के कारण हुए विस्थापन से जुड़ा है। चूंकि यह प्रक्रिया भारतीय संस्कृति से जुड़ी है, इस पर सवाल करना या इसे समस्या के तौर पर देख पाना ही एक चुनौती है। पलायन के प्रकार और कारणों के विश्लेषण में लैंगिक पूर्वाग्रह को भारत के संस्थागत, सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंडों से जोड़कर समझा जा सकता है। भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाओं को आर्थिक भागीदारी निभाने में महत्वपूर्ण नहीं समझा जाता। वैतनिक श्रम बल में सिर्फ पुरुषों को महत्व दिए जाने के कारण महिलाओं के पलायन से जुड़ी आर्थिक या अन्य समस्याएं अस्पष्ट ही रही हैं। भारत में हमेशा ही महिलाओं की श्रम बल में भागीदारी कम रही है।

गौरतलब हो कि भारतीय कानून के तहत ऐसी कोई धारा या नियम नहीं है जो महिलाओं को शादी से जुड़े पलायन के लिए बाध्य करती हो। जहां पुरुषों के अधिकार के नाम पर उनके वर्चस्व के लिए ऐसे नियम मौजूद हैं, वहीं कई संस्थान महिलाओं का शादी के बाद पलायन के कारण, एकल महिलाओं को नौकरी देने से परहेज करते हैं।

मिंट में छपी साल 2018 के आर्थिक सर्वेक्षण पर आधारित एक खबर के मुताबिक महिलाओं की उनके स्वास्थ्य से संबंधित निर्णयों में उनकी भागीदारी में सुधार देखा गया। लेकिन रिपोर्ट बताती है कि भारत श्रम बल में महिलाओं की संख्या में भारी गिरावट से जूझ रहा है। महिलाओं के पलायन पर विचार न होने के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं। इनमें मुख्य रूप से यह धारणा काम करती है कि पलायन आर्थिक अवसरों की खोज में होता है। यहां महिलाओं को पुरुषों का साथ देने वाली के रूप में देखा जाता है। इसलिए अक्सर उनके आर्थिक महत्व को भी हमारा समाज अनदेखा कर देता है।

कैसे महिला प्रवासियों की स्थिति है ज्यादा चुनौतीपूर्ण 

भारत में शादी के बाद यह महिलाओं की एक तरह से नैतिक ज़िम्मेदारी मानी जाती है कि वे अपने जीवनसाथी के साथ ही रहेंगी। इसलिए अगर पलायन के बाद, वे नौकरी करने में समर्थ हो तो भी वे पलायन का हिस्सा बनने से नहीं बच पाती। मेडिकल पत्रिका द लैंसेट के इक्लिनिकल मेडिसिन में जारी किए गए एक शोध के अनुसार भारत में महिला प्रवासियों का कोरोना महामारी के बाद पुरुषों की तुलना में आर्थिक तौर पर हालात सुधार होने में कहीं अधिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इस शोध में यह पाया गया गया कि जबकि कोरोना महामारी में लॉकडाउन के बाद लगभग एक साल वर्ष से भी अधिक समय तक दोनों लिंगों के विस्थापित प्रवासियों ने कठिनाइयों का सामना किया। लेकिन इसमें महिलाओं की स्थिति बदतर होती गई क्योंकि उनके लिए श्रम बाजार में दोबारा प्रवेश करने की उम्मीद बहुत कम पाई गई। पलायन की वजह से कुछ महिलाएं पूरी तरह से श्रम बल से बाहर हो जाती हैं। लेकिन अधिकांश बेरोज़गार महिलाएं काम के लिए खुद को या तो उपलब्ध बताती हैं या नौकरी की तलाश करती रहती हैं।

महिलाओं के पलायन पर विचार न होने के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं। इनमें मुख्य रूप से यह धारणा काम करती है कि पलायन आर्थिक अवसरों की खोज में होता है। यहां महिलाओं को पुरुषों का साथ देने वाली के रूप में देखा जाता है। इसलिए अक्सर उनके आर्थिक महत्व को भी हमारा समाज अनदेखा कर देता है।

इसके अलावा, महिलाओं की तकनीकी माध्यमों और उपकरणों तक आज भी पहुंच सुनिश्चित नहीं हुई है। जैसे, एक स्मार्ट फोन विभिन्न प्रकार के कौशल प्राप्त करने, नौकरी की खोज, अन्य अवसरों की खोज करने या खुद को समसामयिक बनाए रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन महिलाओं के लिए स्मार्ट फोन और इंटरनेट का उपयोग आज भी उनकी पहुंच से दूर है। इससे महिलओं का पलायन के बाद की स्थिति से उबरना और ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो जाता है। जहां पुरुषों के पलायन में मूल रूप से आर्थिक कारण जिम्मेदार होते हैं, वहीं महिलाओं के लिए यह कारण सामाजिक और पारिवारिक होते हैं।

शिक्षा या नौकरी के लिए पलायन करनेवाली महिलाओं का निर्णय जहां उनका खुद का होता है, वहीं शादी के कारण हुए विस्थापन और पलायन में उनकी कोई भूमिका नहीं होती। यह सीधे तौर पर महिलाओं के विभिन्न निर्णयों में अदृश्यता से भी जुड़ा है। बात महिला प्रवासियों की करें, तो यह समस्या और भी बड़ी है और वे कहीं ज्यादा असुरक्षित हैं। महिलाओं के पलायन से जुड़े कानून और नीतियों को न तो लैंगिक दृष्टिकोण से बनाया गया है और न ही महिलाओं से संबंधित उनके विशेष अनुभवों को इसमें दर्जा दिया गया है। अलग-अलग लिंग के लिए पलायन से संबंधित आंकड़े एकत्रित करने से, समस्याओं का विश्लेषण करना आसान हो सकता है। यह लैंगिक रूप से संवेदनशील और प्रभावी नीतियों, कानूनों और कार्यक्रमों को विकसित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।


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