समाजख़बर पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा बलात्कार विरोधी विधेयक पारित, अपराधी को मौत की सजा का प्रावधान

पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा बलात्कार विरोधी विधेयक पारित, अपराधी को मौत की सजा का प्रावधान

प्रस्तावित विधेयक का मकसद बलात्कार और यौन अपराधों से संबंधित नए प्रावधानों के जरिए महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को अधिक मज़बूत बनाना है। विधेयक में कहा गया है कि, यदि बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के बाद सर्वाइवर की मृत्यु हो जाती है या वो अचेत अवस्था में चली जाती है, तो ऐसे अपराध की जांच दो महीने के बजाय एफआईआर दर्ज होने के 21 दिनों के भीतर पूरी की जानी चाहिए।

पश्चिम बंगाल विधानसभा में बीते मंगलवार को सर्वसम्मति से राज्य में बलात्कार विरोधी विधेयक पारित किया गया। इस विधेयक में बलात्कार के मामलों की जांच 21 दिन में पूरी करने का प्रावधान है और सर्वाइवर के कोमा में जाने या मौत होने की स्थिति में दोषी को फांसी की सजा देने जैसे सख़्त प्रावधान किये गए हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधेयक को “ऐतिहासिक” बताया है और इसे 31 वर्षीय महिला डॉक्टर की स्मृति को समर्पित किया।

इस बिल को अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक 2024 (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून एवं संशोधन) नाम दिया गया है। विधानसभा में अपराजिता विधेयक को पश्चिम बंगाल के कानून मंत्री मलय घटक द्वारा पेश किया। राज्य के मुख्य विपक्षी दल भाजपा के विधायकों ने भी इस विधेयक को पूर्ण समर्थन दिया। साथ ही विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस से विधेयक पर हस्ताक्षर कराने और इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजने को कहा। मंगलवार को पारित किये गए बिल को पहले राज्यपाल के पास भेजा जाएगा। जिसके बाद यह बिल राष्ट्रपति के पास जाएगा। राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर करने के बाद यह बिल कानून बन जाएगा। 

भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में बलात्कार के अपराध पर धारा 64 के तहत बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं। इसमें 10 वर्ष से आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। जबकि अपराजिता विधेयक में दोषी को उम्रकैद की सजा या अदालत जिंदगी भर जेल में रहने की सजा सुना सकती है। साथ ही जुर्माने का भी प्रावधान है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 254 (2) के अनुसार, आपराधिक कानून समवर्ती सूची में आता है, समवर्ती सूची के मामलों के संबंध में राज्य विधायिका द्वारा बनाया गया कानून तब शून्य हो जाता है, जब वह संसद द्वारा बनाए गए पहले के कानून का खंडन करता है, लेकिन राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त होने पर वह उस राज्य में लागू हो सकता है। इसलिए विधेयक को बंगाल के राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस और उसके बाद भारत के राष्ट्रपति की सहमति की आवश्यकता है।

इस प्रस्तावित विधेयक का मकसद बलात्कार और यौन अपराधों से संबंधित नए प्रावधानों के जरिए महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को अधिक मज़बूत बनाना है। विधेयक में कहा गया है यदि बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के बाद सर्वाइवर की मृत्यु हो जाती है या वो अचेत अवस्था में चली जाती है, तो ऐसे अपराध की जांच दो महीने के बजाय एफआईआर दर्ज होने के 21 दिनों के भीतर पूरी की जानी चाहिए और आरोप-पत्र दाखिल होने के 60 दिनों के बजाय 30 दिनों के भीतर सुनवाई पूरी हो जानी चाहिए। इसमें  बिल में दोषियों की सजा भी बढ़ा दी गई है। इसमें बलात्कार के अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा देने और साथ ही उसे पेरोल न देने की बात कही गई है। साथ ही दोषियों के परिवार पर आर्थिक जुर्माना का भी प्रावधान किया गया है। इतना ही नहीं अपराधी को शरण देने या सहायता देने वालों के लिए भी तीन से पांच साल की कठोर कैद की सजा का प्रावधान भी है।

kolkata rape case: Crime against women an unpardonable sin’, says PM Modi hindi
तस्वीर साभारः फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बनर्जी

विधेयक में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के लिए जांच और अभियोजन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बदलाव करने की भी बात कही गई है। जांच में तेजी लाने और सर्वाइवर के लिए त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए, पुलिस अधीक्षक (एसपी) के अधीन जिला स्तर पर “अपराजिता” विशेष कार्य बल स्थापित करने का प्रस्ताव किया गया है, जिसके जांच का नेतृत्व एक महिला पुलिस अधिकारी करेगी। केस डायरी में कारणों को लिखित रूप में दर्ज करने के बाद जांच की अवधि को एसपी से नीचे के रेंक के अधिकारी द्वारा 21 दिनों के बजाय 15 दिन किया जा सकता है।

विधेयक में भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के प्रावधानों को और कड़ा किये जाने का भी प्रावधान है। इस विधेयक में महिलाओं, खास तौर पर स्वास्थ्य सेवा में कार्यरत महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने का प्रावधान भी शामिल हैं। इसमें अस्पतालों और नर्सों तथा महिला डॉक्टरों द्वारा अक्सर इस्तेमाल किए जाने वाले मार्गों पर सीसीटीवी कैमरे लगाने का प्रावधान है। राज्य सरकार ने इस पहल के लिए 120 करोड़ रूपये की राशि मंजूर की गई है। इसके अलावा, विधेयक में ‘रात्रि साथी’ की अवधारणा पेश की गई है, जो सुनिश्चित करती है कि रात की शिफ्ट में काम करने वाली महिलाओं को पूरी सुरक्षा और सहायता मिल सके।

9 अगस्त को कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना के बाद बीते सोमवार को विधानसभा का दो दिवसीय विशेष सत्र बुलाया गया था, जिसमें अपराजिता विधेयक को पारित किया गया। इस मामले में न्याय के लिए राज्य के डॉक्टर लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। हालांकि इससे पहले 2012 में दिल्ली गैंग रेप मामले के बाद तत्कालीन यूपीए सरकार ने भविष्य में कानून को और अधिक कठोर और प्रभावी बनाने के लिए न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा समिति का गठन किया। पैनल के सुझावों के आधार पर आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 को अधिनियमित किया गया, जिसने बलात्कार कानून के मुख्य क्षेत्रों में मूलभूत और प्रक्रियात्मक सुधार किये गए। सुधारों में से एक अपराध की गंभीरता के अनुरूप कठोर दंड का भी प्रावधान किया गया। जिसके बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और अरुणाचल प्रदेश सहित राज्यों ने यौन उत्पीड़न के लिए बढ़ी हुई सजा के लिए संशोधन की मांग की है। 

तस्वीर साभारः फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बनर्जी

अपराजिता विधेयक भारतीय न्याय संहिता औए भारतीय दंड संहिता में संबंधित धाराओं में संशोधन करके बलात्कार के लिए मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा का प्रवधान किया गया है। यह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में भी संशोधन करता है ताकि ऐसे अपराधों की समयबद्ध तरीके से सुनवाई के लिए विशेष अदालतें बनाई जा सकें। ममता बनर्जी सरकार के नए बलात्कार विरोधी विधेयक में वर्तमान में लागू भारतीय न्याय संहिता 2023 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 कानूनों में बलात्कार विरोधी प्रावधानों के बीच कुछ अंतर साफ़ हैं। 

जैसे मौजूदा भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में बलात्कार के अपराध पर धारा 64 के तहत बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं। इसमें 10 वर्ष से आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। जबकि अपराजिता विधेयक में दोषी को उम्रकैद की सजा या अदालत जिंदगी भर जेल में रहने की सजा सुना सकती है। साथ ही जुर्माने का भी प्रावधान है। जबकि बलात्कार के बाद हत्या के मामले में जिसमें सर्वाइवर की मृत्यु हो जाए या वह अचेत अवस्था में चली जाए तो ऐसे में बीएनएस की धारा 66 के तहत न्यूनतम 20 वर्ष का कठोर कारावास, जिसे आजीवन कारावास या मृत्युदंड तक बढ़ाया जा सकता है। वहीं अपराजिता विधेयक में मृत्युदंड और जुर्माना का प्रवधान है।

विधेयक में भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के प्रावधानों को और कड़ा किये जाने का भी प्रावधान है। इस विधेयक में महिलाओं, खास तौर पर स्वास्थ्य सेवा में कार्यरत महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने का प्रावधान भी शामिल हैं।

सामूहिक बलात्कार के लिए सजा के मामले में बीएनएस में जुर्माना और न्यूनतम 20 वर्ष का कठोर कारावास, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। अगर रेप सर्वाइवर नाबालिग है तो दोषियों को उम्रकैद या फांसी की सज़ा का प्रवधान है। वहीं अपराजिता विधेयक में जुर्माना और दोषी के प्राकृतिक जीवन का कारावास या मृत्युदंड और जुर्माना की सज़ा है। जांच के लिए समय सीमा की बात करें तो बीएनएसएस में एफआईआर की तारीख से दो महीने के भीतर जांच हो जानी चाहिए जबकि अपराजिता विधेयक में एफआईआर की तारीख से 21 दिनों के भीतर जांच की प्रक्रिया पूरा कर लेने का प्रवधान है। अपराजिता विधेयक का पारित होना लिंग आधारित यौन हिंसा से निपटने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार का प्रयास एक महत्वपूर्ण कदम है। यह विक्टिम को न्याय प्रदान करने और महिलाओं और बच्चों के लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने के लिए राज्य की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। विधेयक के प्रावधानों का उद्देश्य मौजूदा केंद्रीय कानून में खामियों को दूर करना और यौन अपराधों से निपटने के लिए एक मजबूत ढांचा प्रदान करना है।

विधेयक में प्रस्तावित कड़े उपाय एक मजबूत निवारक के रूप में कार्य करेंगे और ऐसे अपराधों की घटनाओं को कम करने में मदद करेंगे। चूंकि विधेयक राज्यपाल और राष्ट्रपति से आवश्यक मंजूरी का इंतजार कर रहा है। पश्चिम बंगाल के लोगों को उम्मीद है कि इसके कार्यान्वयन से यौन अपराधों से निपटने के लिए राज्य के दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण बदलाव आएगा। अपराजिता विधेयक महिलाओं के लिए न्याय सुनिश्चित करने और सभी के लिए एक सुरक्षित समाज बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।


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