समाजख़बर रूप कंवर सती प्रथा मामले के आठ आरोपियों को जयपुर कोर्ट ने किया बरी

रूप कंवर सती प्रथा मामले के आठ आरोपियों को जयपुर कोर्ट ने किया बरी

वर्तमान मामला 1988 का है, जब रूप कंवर की मृत्यु की पहली वर्षगांठ के आसपास 45 लोगों ने कथित तौर पर सती का महिमामंडन करने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया। अदालत ने 45 में से आठ आरोपियों को इस मामले से अब बरी कर दिया है।

बीते नौ अक्टूबर को जयपुर की एक स्पेशल कोर्ट ने रूप कंवर की मृत्यु का महिमामंडन करने वाले आठ आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है। रूप कंवर भारत में दर्ज रूढ़िवादी सती प्रथा की आखिरी सर्वाइवर थी। साल 1829 में सती प्रथा पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया था। इसमें शामिल महिलाओं को उनके पति की मृत्यु के समय उन्हें उसी चिंता में जिंदा जलाया जाता था। 4 सितंबर 1987 में राजस्थान के सीकर जिले के दिवराला गाँव में रूप कंवर को उनके पति के मृत्यु होने जाने पर सती किया गया था। 

वर्तमान मामला 1988 का है, जब रूप कंवर की मृत्यु की पहली वर्षगांठ के आसपास 45 लोगों ने कथित तौर पर सती का महिमामंडन करने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया। अदालत ने 45 में से आठ आरोपियों को इस मामले से अब बरी कर दिया है। इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित जानकारी के मुताबिक़ सती निवारण अदालत के विशेष जज अक्षी कंसल ने महेंद्र सिंह, श्रवण सिंह, निहाल सिंह, जितेंद्र सिंह, उदय सिंह, दर्शन सिंह, लक्षण सिंह और भंवर सिंह को बरी कर दिया है। ये आठों जमानत पर जेल से बाहर थे। आरोपियों के वकील अमन चैन सिंह शेखावत का कहना है, हमें अभी अदालत का विस्तृत आदेश नहीं मिला है लेकिन अदालत ने आज आठ आरोपियों को बरी करने का फैसला दिया है। अदालत ने कहा है कि अभियोजन पक्ष संदेह से परे अपना पक्ष साबित नहीं कर सका है इसलिए सभी आठ लोगों को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया जा रहा है। 

छह भाई-बहनों में सबसे छोटी रूप कंवर की शादी जनवरी 1987 में माल सिंह से हुई थी। शादी के आठ महीने बाद ही सीकर के अस्पताल में माल सिंह की मौत हो गई थी। 4 सितंबर 1987 में कथित तौर पर रूप कंवर अपने पति की चिंता में बैठ गई और सती हो गई।

कौन थीं रूप कंवर

छह भाई-बहनों में सबसे छोटी रूप कंवर की शादी जनवरी 1987 में माल सिंह से हुई थी। शादी के आठ महीने बाद ही सीकर के अस्पताल में माल सिंह की मौत हो गई थी। 4 सितंबर 1987 में कथित तौर पर रूप कंवर अपने पति की चिंता में बैठ गई और सती हो गई। इस घटना के एक साल बाद 45 लोगों ने रूप कंवर सती होने के महिमामंडन और प्रचार के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया। यह सती प्रथा अधिनियम, 1987 की धारा 5 का उल्लंघन है, जो सती प्रथा के महिमामंडन और प्रचार के लिए सजा का प्रावधान करता है। रूप कंवर की मौत के बाद सती प्रथा को रोकने के लिए यह कानून लागू किया गया था। इस कानून के उल्लंघन के लिए सात साल की सजा और तीस हजार से ऊपर का जुर्माना हो सकता है। 

मामले को लेकर राजनीति 

तस्वीर साभारः The Indian Express

फ्रंटलाइन में छपी जानकारी के अनुसार इस घटना के बाद कई सभाओं, समारोहों और त्योहारों का आयोजन किया गया। घटना स्थल पर एक मंदिर बनाने के लिए धन जुटाने तक के प्रयास किए गए। 28 अक्टूबर 1987 को जयपुर में धर्म रक्षा समिति के तहत आयोजित एक रैली में रूप कंवर को सराहा गया और सती के पक्ष में नारे लगाए गए। दिवराला ने भी बड़े पैमाने पर भीड़ इकट्ठा हई जहां रूप कंवर की स्मृति में एक मंदिर बनाने की भी मांग की गई। 15 सितंबर को हाई कोर्ट द्वारा प्रस्तावित चुनरी समारोह पर प्रतिबंध लगाया गया था। फिर भी, 16 सितंबर को, प्रशासन द्वारा उठाए गए कदमों और आदेश का साफ उल्लंघन करते हुए चुनरी समारोह आयोजित किया गया।

रोक के बाद भी चुनरी महोत्सव

इस घटना को लेकर राज्य में राजनीतिक माहौल भी बहुत गर्म हो गया था। राजनीति से दूसरी तरफ धार्मिक और सांस्कृतिक रूढ़िवाद को लेकर महिला अधिकारों के लिए आवाज़ तेजी से उठ रही थी। राजस्थान राज्य के विशेष तौर पर राजपूत समाज ने इस घटना के पक्ष में था क्योंकि उनका मानना था कि यह उनका धार्मिक, सांस्कृतिक मामला है। वे नहीं चाहते थे कि सरकार इसमें हस्तक्षेप करे। कई महिला अधिकार संगठनों ने चुनरी महोत्सव को सती प्रथा का महिमांडन बताया और वे उसके विरोध में उतरे। बीबीसी में प्रकाशित जानकारी के अनुसार रोक के बावजूद दिवराला गाँव में 15 सिंतबर की रात से ही लोग जमा होने लगे थे। गाँव से बाहर से भी हजारों की संख्या में लोग चुनरी महोत्सव के लिए इकट्ठा हुए थे। 

28 अक्टूबर 1987 को जयपुर में धर्म रक्षा समिति के तहत आयोजित एक रैली में रूप कंवर को सराहा गया और सती के पक्ष में नारे लगाए गए। दिवराला ने भी बड़े पैमाने पर भीड़ इकट्ठा हई जहां रूप कंवर की स्मृति में एक मंदिर बनाने की भी मांग की गई।

सती निवारण अध्यादेश, 1987 लागू

घटना के बाद महिला संगठनों, सांसदों और आम जनता ने रूप कंवर को जलाने की घटना को हत्या करार दिया और सती को रोकने के लिए एक मजबूत केंद्रीय कानून की मांग की। यह कानून सती प्रथा के महिमामंडन को भी रोक सके। सती के समर्थकों और सरकार के बीच भी संघर्ष चलता रहा। 1 अक्टूबर 1987 को राज्य सरकार ने राजस्थान सती (निवारण) अध्यादेश, 1987 कानून बनाया। साथ ही एक मजबूत और प्रभावी केंद्रीय अधिनियम की मांग के बाद, सती (निवारण) आयोग विधेयक, 1987 प्रस्तुत किया गया। इस कानून के अनुसार सती करने का प्रयास, इसका समर्थन और महिमामंडन को दंडनीय अपराध बनाया गया। इसे संसद के दोनों सदनों में पेश किया गया और पारित किया गया। इसे 3 जनवरी 1988 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई और 21 मार्च 1988 को यह प्रभाव में आया।

रूप कंवर की हत्या के आरोप में सभी 45 व्यक्तियों को कुछ साल पहले बरी कर दिया गया। घटना के समय सती से संबंधित किसी विशेष कानून के अभाव में, आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (हत्या) के तहत मामला दर्ज किया गया था। बाद में, राजस्थान अध्यादेश के प्रावधानों के तहत, सती के महिमामंडन से संबंधित विभिन्न पुलिस स्टेशनों में 22 मामले दर्ज किए गए। राजस्थान अध्यादेश सती के महिमामंडन को एक अलग अपराध मानता हैं। केंद्रीय अधिनियम के अनुसार जो कोई भी सती के महिमामंडन का कोई काम करेगा, उसे कम से कम एक साल की सजा के साथ दंडित किया जाएगा, जो सात साल तक बढ़ सकती है। साथ ही पाँच हजार से कम जुर्माना नहीं होगा, जो तीस हजार रुपये तक बढ़ सकता है।

रूप कंवर की हत्या के आरोप में सभी 45 व्यक्तियों को कुछ साल पहले बरी कर दिया गया। घटना के समय सती से संबंधित किसी विशेष कानून के अभाव में, आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (हत्या) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

रूप कंवर की हत्या या स्वैच्छिक फैसला?

रूढ़िवादी समाज में महिलाओं की अपनी कोई स्वायत्ता नहीं है। रूप कंवर के मामले में यह भी कहा गया है कि उन्होंने यह अपनी इच्छा से किया था। लेकिन हमें यहां पितृसत्ता के उन नियमों को नहीं भूलना चाहिए जो लड़कियों और महिलाओं पर बचपन से लाद दिये जाते हैं। यहां उन्हें एक तय कंडीशनिंग के तहत सिखाया जाता है कि उन्हें किस तरह का व्यवहार करना है और क्या उनके परम कर्तव्य है। रूप कंवर को भी महिला की आदर्शता निभाने के तौर पर प्रस्तुत किया गया। उस ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक संस्कृति को बचाने वाली के तौर पर दिखाया गया है जिसमें महिला को नियंत्रित और संरक्षित किया जाता है। 

साथ ही सती की घटनाओं के लिए जो इच्छा के कार्य के रूप में बताया जाता है उसको इस तरह से भी समझना ज़रूरी है कि कुछ महिलाएं इस कठिनाई से क्यों गुजरती हैं। यह इच्छा से ज्यादा ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के उन नियमों का भी परिणाम जिसके तहत विधवा महिलाओं को अनेक तरह की शारीरिक और मानसिक बर्बरताओं का सामना करना पड़ता है। रूढ़िवादी समाज में विधवा महिलाओं को अनेक तरह की प्रताड़नाओं का सामना करना पड़ता है। विधवा महिलाओं को निर्वासित कर दिया जाता है। बचे जीवन में उन्हें भीख मांगने और तमाम बंधनों के तहत जीवन जीने के लिए मजबूर किया जाता है। अक्सर महिलाओं को यौन हिंसा का भी सामना करना पड़ता है। हर तरह से यह पितृसत्ता समाज में महिलाओं के शोषण का परिणाम है। जो सांस्कृतिक मान्यताओं के तहत महिलाओं की स्थिति और उसके सामने विकल्प को दिखाता है, जो हर स्तर पर उनकी आजादी और आत्म-सम्मान के लिए खतरनाक है। 


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