इंटरसेक्शनलजेंडर छोटी बच्चियों के मानवाधिकारों का हनन है नेपाल की कुमारी प्रथा!

छोटी बच्चियों के मानवाधिकारों का हनन है नेपाल की कुमारी प्रथा!

इस प्रथा के पीछे की कहानी क्या है? यह कैसे सुनिश्चित किया जाता है कि कौन सी बच्ची जीवित देवी बनाए जाने के योग्य है? जो कार्यकर्ता इस प्रथा का विरोध करते हैं, आख़िर क्यों करते हैं? यह प्रथा किन विभिन्न मायनों में दमनकारी है? क्या यह प्रथा लैंगिक हिंसा का एक अलग ही रूप है? कुमारी प्रथा के पीछे की मानक कहानी क्या है? 

भारत में नवरात्रों में, दुर्गा पूजा में, गृह प्रवेश में या अन्य पवित्र माने जाने पर्वों में हिन्दू घरों में कन्या पूजन किया जाता है। इनमें वे बच्चियां ही शामिल होती हैं जिनके पीरिसड्स शुरू नहीं हुए होते क्योंकि जिन लड़कियों के पीरियड्स शुरू हो जाते उन्हें हमारा समाज ‘पवित्र’ नहीं मानता। भारत में यह प्रथा अलग-अलग अवसरों पर की जाती है लेकिन भारत के पड़ोसी देश नेपाल में इस प्रथा का अलग ही स्वरूप देखने मिलता है जिसे लेकर कई सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता चिंतित हैं।

नेपाल की ‘कुमारी प्रथा’ कई वर्षों से चली आ रही है। कुमारी का अर्थ कुंवारी से है यानी जो मेंस्ट्रुएट नहीं कर रही हैं और शादीशुदा नहीं है। कुमारी प्रथा के अंतर्गत तीन-चार साल की बच्ची को जीवित देवी के रूप में पूजा जाता है। साथ ही यह माना जाता है कि चुनी गई जीवित देवी तलेजु का अवतार है। नेपाली भाषा में तलेजु देवी दुर्गा को कहा जाता है। इस प्रथा के पीछे की कहानी क्या है? यह कैसे सुनिश्चित किया जाता है कि कौन सी बच्ची जीवित देवी बनाए जाने के योग्य है? जो कार्यकर्ता इस प्रथा का विरोध करते हैं, आख़िर क्यों करते हैं? यह प्रथा किन विभिन्न मायनों में दमनकारी है? क्या यह प्रथा लैंगिक हिंसा का एक अलग ही रूप है? कुमारी प्रथा के पीछे की मानक कहानी क्या है? 

नेवारी (नेवारी, नेपाल का एक समुदाय है जिसके शाक्य कुल से ही कुमारी चुनी जाती है) कैलेंडर के अनुसार 1757 में इस प्रथा की शुरुआत हुई थी। इस स्थान पर मल्ला राजवंश राज कर रहा था। मान्यता के अनुसार वह देवी तलेजु से मिलता था लेकिन इस बारे में कभी किसी को पता नहीं चलने देना था। लेकिन एक रात राजा की पत्नी ने उसका पीछा किया, देवी इस बारे में जानती थी कि राजा की पत्नी छिपकर राजा की मुलाकात देख रही है, यह आभास होते ही देवी ने राजा से कभी न मिलने की बात कही। राजा ने बहुत प्रार्थना की कि नेपाल एक होने की कगार पर है ऐसे में देवी उनके साथ रहे ताकि लोगों की सुरक्षा की जा सके। इस पर देवी ने राजा से कहा कि वह नेवारी समुदाय के सबसे ऊंचे कुल, शाक्य कुल से एक पवित्र लड़की को खोजे उसी में देवी वास करेंगी। तभी से इस मान्यता के अनुसार यह प्रथा चली आ रही है।

नेपाल की ‘कुमारी प्रथा’ कई वर्षों से चली आ रही है। कुमारी का अर्थ कुंवारी से है यानी जो मेंस्ट्रुएट नहीं कर रही हैं और शादीशुदा नहीं है। कुमारी प्रथा के अंतर्गत तीन-चार साल की बच्ची को जीवित देवी के रूप में पूजा जाता है। साथ ही यह माना जाता है कि चुनी गई जीवित देवी तलेजु का अवतार है।

कौन होती है जीवित देवी और कैसे चुना जाता है इन्हें? कुमारी देवी तीन-चार साल की, शाक्य कुल की बच्ची होती है जो तब तक कुमारी बनी रहती है जब तक उसकी माहवारी शुरू नहीं हो जाती। माहवारी शुरू होते ही उसे जीवित देवी के पद से हटा दिया जाता है और एक नयी कुमारी देवी तलाश की जाती है। इस देवी को नेपाल के हिंदू और बौद्ध दोनों पूजते हैं और यह विश्वास करते हैं कि देवी की पूजा करने से उनकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाएंगी। कुमारी तीन नगर, काठमांडू, पाटन और भक्तपुर का प्रतिनिधित्व करती है लेकिन काठमांडू के कुमारी घर में वह रखी जाती है जहां से साल में सिर्फ तेरह बार ही बाहर निकलने की अनुमति उन्हें होती है। उसमें भी उनके पैर ज़मीन को छूने नहीं चाहिए।

शाक्य कुल से वे बच्चियां जो स्वस्थ्य हैं, कोई बीमारी नहीं है, जिनका एक भी दांत टूटा हुआ नहीं है और जिनके परिवार सोने या चांदी का काम करते हैं, जो बच्चियां इन मूल मापदंडों पर खरी उतरती हैं वे आगे की परीक्षा देती हैं। दूसरी परीक्षा में उनके भीतर देवी होने के बत्तीस लक्षण परखे जाते हैं, वे लक्षण क्या हैं यह सिर्फ पुजारी ही जानते हैं। इन लक्षणों को जो पार कर लेती है, पुजारी उस बच्ची की और भी कठिन परीक्षा हिन्दू त्यौहार दशाईन की कालरात्रि के दिन लिया जाता है।

यूएन कन्वेंशन के अनुसार भेदभाव रहित, बच्चों का सर्वोत्तम हित, जीवन जीने और विकास का अधिकार और सुने जाने का अधिकार बच्चों के मानवाधिकारों में शामिल है। कुमारी प्रथा इन अधिकारों का सरासर हनन है। बच्ची को कुमारी जबरदस्ती बनाया जाता है, वे अपने अनुसार अपना बचपन जी भी नहीं पाती हैं।

इस दिन 108 भैंस, बकरा की बली दी जाती है इसके बाद बच्ची को मंदिर के आंगन में जहां बलि दिए गए जानवरों के सिर रखे जाते हैं वहां कुछ कुछ मोमबत्तियां जली होती हैं और मुखौटा पहने कुछ पुरुष नाचते हैं। इस सबसे अगर बच्ची डर जाती है तो उसे देवी बनाने से मना कर दिया जाता है और अगर नहीं डरती है तो आखिरी परीक्षा में उसे अंधेरे कमरे में कटे हुए जानवरों के सिरों के बीच छोड़ दिया जाता है जहां उसे उनके बीच से पुरानी कुमारी देवी की चीजें खोजनी पड़ती हैं, वह ऐसा बिना डरे अगर कर लेती है तो पुजारी उसे ‘कुमारी देवी’ यानी जीवित देवी घोषित कर देते हैं। नेपाल में इस समय 2017 में चुनी गई तृष्णा शाक्य कुमारी देवी बनाई गई है। मान्यताएं यह भी कहती हैं कि एक बार जो लड़की कुमारी देवी बन गई फिर उसे पूरा जीवन अकेले ही रहना होगा, अगर वह शादी करती है तो कम समय के अंदर उसके पति की मृत्यु हो जाएगी।

कुमारी प्रथा, बच्चों के मानवाधिकारों का है हनन है

यूएन कन्वेंशन के अनुसार भेदभाव रहित, बच्चों का सर्वोत्तम हित, जीवन जीने और विकास का अधिकार और सुने जाने का अधिकार बच्चों के मानवाधिकारों में शामिल है। कुमारी प्रथा इन अधिकारों का सरासर हनन है। बच्ची को कुमारी जबरदस्ती बनाया जाता है, वे अपने अनुसार अपना बचपन जी भी नहीं पाती हैं। पहले कुमारी देवी रह चुकी प्रीति शाक्य कहती हैं कि उन्हें छह से सात घंटे बैठे रहना पड़ता था और ऐसा करने का उनमें धैर्य था। कुमारी का आशीर्वाद लेने, उनसे प्रार्थना करने बहुत लोगों की भीड़ कुमारी घर के बाहर लगती है। इतने धैर्य की अपेक्षा एक छोटी उम्र की बच्ची से?

कुमारी बनाई गई बच्ची को समाज से इतना काट दिया जाता है कि उन्हें फिर से घुलने-मिलने में बहुत वक्त लग जाता है। प्रीति शाक्य की मां रीना कहती हैं, “वह अकेले बाहर जाने से डरती थी क्योंकि उसकी आदत नहीं थी… मुझे उसे स्कूल ले जाना पड़ता था और वापस भी ले जाना पड़ता था।”

2008 में नेपाल हिंदू राष्ट्र से एक लोकतंत्र बना लेकिन लोकतंत्र बनने के बावजूद ये प्रथा ख़त्म नहीं की जा सकी है। हालांकि कोर्ट ने कुमारी की शिक्षा पर ज़ोर दिया है जो कुमारी घर में रहते हुए कराई जाती है। लेकिन सरकारें यह प्रथा क्यों नहीं हटा रही हैं? वजह है लोगों का विश्वास या कहिए अंधविश्वास। वह अगर डगमगा जाता है, उनकी प्रथाओं से छेड़छाड़ की जाती हैय़ तब वे सरकार के खिलाफ़ हो सकते हैं और कौन सी सरकार अपनी सत्ता को जाने देना चाहती है? वह बहुसंख्यक लोगों के हित में फैसले लेती है। नेपाल के हिंदू और बौद्ध इस प्रथा से खुश हैं। ऐसे में वहां की सरकारें इस प्रथा के खिलाफ बमुश्किल ही कोई कदम उठाएंगी।

पितृसत्ता और धर्मांधता की भेंट चढ़ती बच्चियां

सिमोन डी बेवॉयर (1953) ने पारंपरिक मार्क्सवादियों के समान ही दृष्टिकोण अपनाया। केवल धर्म को श्रमिकों की अधीनता में सहायता के रूप में देखने के बजाय, उन्होंने इसे महिलाओं के शोषण और उत्पीड़न के रूप में देखा। देवी बनने से बच्चियां डरती भी होंगी क्योंकि देवी घोषित करने के बाद उन्हें उनके घर, माता पिता, दोस्त सबसे दूर कर दिया जाता है और वह देखभाल करने वाले लोगों के बीच कुमारी घर में रखी जाती हैं। इस प्रथा में अंधविश्वास है यह ज़ाहिर है लेकिन इसे वहां की पितृसत्ता पोषित कर रही है। भारत में देवदासी प्रथा के बारे में हम जानते हैं और कैसे उनका यौनिक शोषण होता है यह भी जानते हैं। 

कुमारी बनाई गई बच्ची को समाज से इतना काट दिया जाता है कि उन्हें फिर से घुलने-मिलने में बहुत वक्त लग जाता है। प्रीति शाक्य की मां रीना कहती हैं, “वह अकेले बाहर जाने से डरती थी क्योंकि उसकी आदत नहीं थी… मुझे उसे स्कूल ले जाना पड़ता था और वापस भी ले जाना पड़ता था।” इसके बाद यह मान्यता कि जो कुमारी बने उसे जीवन भर अकेला रहना पड़ता है। कुमारी बनने, बने रहने और बाद की चीजें यह सब मानसिक रूप से भी परेशान करने के कारण हैं। यह प्रथा लोकतंत्र के मूल तत्व स्वतंत्रता, समानता का भी हनन है।


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