स्वास्थ्यशारीरिक स्वास्थ्य कैसे कंगारू मदर केयर माँओं को प्रीमैच्योर बच्चों को बचाने और उनसे जुड़ने में मदद कर रही है

कैसे कंगारू मदर केयर माँओं को प्रीमैच्योर बच्चों को बचाने और उनसे जुड़ने में मदद कर रही है

मेडिकल पत्रिका लैंसेट के शोध में पाया गया कि साल 2020 में पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा प्रिमैच्योर शिशु भारत में जन्मे थे। ऐसे में भारत के लिए केएमसी की उपयोगिता और भी बढ़ जाती है।

आपने कंगारू और उसके बच्चे को असली में भले ही न देखा हो, लेकिन फ़ोटो में तो ज़रूर देखा होगा और कंगारू अपने नवज़ात बच्चे की देखभाल कैसे करते हैं इससे आप थोड़ा बहुत वाक़िफ़ होंगे। असल में कंगारू का बच्चा जन्म लेते ही अपनी माँ की थैली में चढ़ जाता है, निपल को पकड़ लेता है और तब तक वहीं रहता है जब तक पूरी तरह विकसित नहीं हो जाता। केवल कंगारुओं के बच्चों के लिए ही नहीं इंसानों के बच्चों के लिए भी देखभाल का यह तरीक़ा काफ़ी फ़ायदेमन्द होता है। इसे कंगारू मदर केयर या केएमसी कहते हैं। 

हाल ही में हुआ एक परीक्षण इंसानों के कम वज़न वाले और प्रिमैच्योर शिशुओं की मृत्यु दर में कमी लाने में इसकी उपयोगिता को दिखाता है। दिसम्बर 2017 से लेकर जनवरी 2020 तक पाँच देशों— घाना, भारत, मलावी, नाइज़ीरिया और तंजानिया में कंगारू मदर केयर पर एक अध्ययन किया गया। इस अध्ययन का उद्देश्य यह पता लगाना था कि क्या कंगारू मदर केयर शिशु के स्थिर न होने की स्थिति में भी उनमें मृत्यु दर कम करने में मददगार है। इसके लिए फंड बिल एवं मेलिंडा गेट्स फाउण्डेशन द्वारा दिया गया था। नवज़ात शिशुओं पर इस नैदानिक परीक्षण के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नवम्बर 2022 में नए दिशा-निर्देश जारी किए।

तस्वीर साभार: Unicef Facebook

इसमें सलाह दी गई कि समय से पहले जन्मे बच्चों और कम वज़न (चाहे उनका वज़न, उम्र या लिंग कुछ भी हो) वाले बच्चों का जन्म के तुरन्त बाद देखभाल करनेवाले के साथ त्वचा से त्वचा का संपर्क करवाया जाना चाहिए। बता दें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के इससे पहले के दिशा-निर्देश ऐसे बच्चों को इनक्यूबेटर में रखने की सलाह देते थे, जिसकी वजह से माँ और शिशु को अलग-अलग कमरों में रखा जाता था। अब इस नए दिशा-निर्देश के तहत उन्हें एक ही कमरे में रखा जाएगा। आइए जानें कैसे हुई कंगारू मदर केयर की शुरुआत और किस तरह इसके लिए दिशानिर्देश बने। 

मेरे बेटे के जन्म के पहले दो महीनों में मैंने इसका काफ़ी अभ्यास किया। कभी-कभी चिड़चिड़ा होने पर वो इससे आसानी से शांत हो जाता था। अगर मैं अपनी बात करूँ तो बच्चे से जुड़ाव बनाने में मुझे भी इससे बहुत मदद मिली।

कंगारू मदर केयर का इतिहास

आज से चार दशक पहले 1978 की बात है। कोलम्बिया की राजधानी बोगोटा में शिशु चिकित्सक एडगर रे सनाब्रिया और हेक्टर मार्टिनेज-गोमेज़ शिशुओं को गरम रखने और उन्हें उनकी माँओं के साथ रखने का तरीक़ा ढूंढ रहे थे क्योंकि उनके अस्पताल में कम वज़न वाले नवज़ात शिशुओं के लिए इनक्यूबेटर नहीं थे। उस समय उनके अस्पताल में ऐसे शिशुओं की मृत्यु दर 70 प्रतिशत थी। अपनी इसी खोज के तहत उन्होंने कंगारू मदर केयर विधि ईज़ाद की और उन्होंने पाया कि यह केवल इनक्यूबेटर का विकल्प नहीं है, बल्कि उससे कहीं बढ़कर है। 

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उनकी इस खोज के बाद इस विधि को लेकर और भी कई अध्ययन हुए और उन सभी अध्ययनों ने कम वज़न वाले और प्रिमैच्योर शिशुओं की मृत्यु दर को कम करने में इस विधि के फ़ायदों को स्वीकार किया। लेकिन कई सालों तक इसे ऐसे बच्चों के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा, जो या तो जन्म के समय ही स्थिर अवस्था में हों या एक स्थिर अवस्था में पहुंच गए हों। कई बार स्थिर अवस्था में पहुंचने में ऐसे बच्चों को कई दिनों या हफ़्तों का समय भी लग जाया करता था।  

मैं नॉर्मल डिलीवरी चाहती थी इसलिए मैं एक ऐसे बर्थ सेंटर में गई जहां मिडवाइफ़ नॉर्मल डिलीवरी करवाती है। वहां कंगारू मदर केयर पर बहुत ज़्यादा ज़ोर था। मेरे बेटे के जन्म लेते ही उसे मेरी छाती पर रख दिया गया था। मेरे लिए वह बहुत भावुक क्षण था।

कंगारू मदर केयर और इसके फ़ायदे 

कंगारू मदर केयर के अनेकों फ़ायदे होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की निर्देश-पुस्तिका के अनुसार दुनिया भर में हर साल करीब 20 मिलियन ऐसे शिशु जन्म लेते हैं, जिनका वज़न एक सामान्य शिशु के वज़न से कम होता है। ऐसे शिशुओं की संख्या अल्पविकसित देशों में अधिक है। ऐसे शिशुओं की देखभाल के लिए हर जगह पर इनक्यूबेटर जैसे उपकरणों की उपलब्धता नहीं होती। इसके अलावा इनक्यूबेटर के संचालन के लिए प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की ज़रूरत होती है, साथ ही बिजली की भी अबाधित आपूर्ति की ज़रूरत होती है। बिजली की ठीक आपूर्ति न होने पर इनक्यूबेटर ठीक से काम नहीं करता। यही वजह है कि कंगारू मदर केयर के फ़ायदों को देखते हुए डब्ल्यूएचओ ने इसे अपनाने की सलाह दी है। बच्चे के स्वास्थ्य और भलाई के लिए यह बहुत ही उपयोगी तरीक़ा है। इससे शिशु को गर्माहट मिलती है, संक्रमणों से उसका बचाव होता है, साथ ही स्तनपान, सुरक्षा और प्यार की उसकी जरूरतें पूरी होती हैं। महिलाओं के कंगारू केयर से जुड़े अनुभवों को समझने के लिए फेमिनिज़म ऑफ़ इंडिया ने कुछ महिलाओं से बात की।

कंगारू मदर केयर के फ़ायदों को देखते हुए डब्ल्यूएचओ ने इसे अपनाने की सलाह दी है। बच्चे के स्वास्थ्य और भलाई के लिए यह बहुत ही उपयोगी तरीक़ा है। इससे शिशु को गर्माहट मिलती है, संक्रमणों से उसका बचाव होता है, साथ ही स्तनपान, सुरक्षा और प्यार की उसकी जरूरतें पूरी होती हैं। 

महिलाओं का केएमसी का कैसा रहा अनुभव

केएमसी का अपना अनुभव साझा करते हुए हैदराबाद की डेवलपमेंट प्रोफेशनल हरिता दिनांगा बताती हैं, “मैं नॉर्मल डिलीवरी चाहती थी इसलिए मैं एक ऐसे बर्थ सेंटर में गई जहां मिडवाइफ़ नॉर्मल डिलीवरी करवाती है। वहां कंगारू मदर केयर पर बहुत ज़्यादा ज़ोर था। मेरे बेटे के जन्म लेते ही उसे मेरी छाती पर रख दिया गया था। मेरे लिए वह बहुत भावुक क्षण था। तब से लेकर इसके तीन महीने का होने तक मैंने इसका अभ्यास किया।” हरिता ने आगे बताया कि कई बार जब उन्हें अपने बेटे को चुप कराने में समस्या हुई तो उन्होंने यही तरीका अपनाया और वह शान्त हो गया।

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बच्चे को शान्त कराने में माँ और बच्चे के बीच लगाव को बढ़ाने में कंगारू मदर केयर की सकारात्मक भूमिका पर हैदराबाद की डेवेलपमेंटल प्रोफेशनल तथागता बसु बताती हैं, “मेरे बेटे के जन्म के पहले दो महीनों में मैंने इसका काफ़ी अभ्यास किया। कभी-कभी चिड़चिड़ा होने पर वो इससे आसानी से शांत हो जाता था। अगर मैं अपनी बात करूं तो बच्चे से जुड़ाव बनाने में मुझे भी इससे बहुत मदद मिली। मैं मातृत्व का महिमामंडन करने में यकीन नहीं रखतीं और शुरू में पोस्टपार्टम के दिनों में उन्हें अपने बच्चे से लगाव होने में बहुत दिक़्क़त हुई। उनके मन में यह ख़याल तक आता था कि बच्चे को जन्म देकर उन्होंने कोई ग़लती तो नहीं कर दी। ऐसे में कंगारू मदर केयर का अभ्यास करने से अपने बच्चे से जुड़ने में उन्हें काफ़ी मदद मिली।”

बीजापुर में बहुत से कम वज़न वाले बच्चे जन्म लेते थे। ऐसे में हम माता-पिता दोनों को ही कंगारू मदर केयर सिखाते थे। यह पिता के लिए भी काफ़ी फ़ायदेमंद है, क्योंकि इससे पिता और बच्चे के बीच जुड़ाव बढ़ता है।  

केएमसी से बच्चे से जुड़ाव में मिलती मदद

उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने कंगारू मदर केयर का अभ्यास अपने तरीक़े से किया, लेकिन उन्हें शुरू में अफ़सोस भी होता था कि काश उन्हें भी उस तरीक़े से बच्चे को बांधना आता जैसे भारत के कई समुदायों की महिलाएं बांध लेती हैं। उन्होंने बाज़ार में उपलब्ध बेबी कैरियर भी आज़माए और यह पाया कि वो शिशुओं और उनकी माँओं के लिए उतने आरामदायक नहीं होते। इसके फ़ायदों के बारे में पुणे की रहनेवाली डॉक्टर ऐश्वर्या छत्तीसगढ़ के बीजापुर में काम करने का अपना अनुभव साझा करते हुए बताती हैं, “बीजापुर में बहुत से कम वज़न वाले बच्चे जन्म लेते थे। ऐसे में हम माता-पिता दोनों को ही कंगारू मदर केयर सिखाते थे। यह पिता के लिए भी काफ़ी फ़ायदेमंद है, क्योंकि इससे पिता और बच्चे के बीच जुड़ाव बढ़ता है। हम नर्सों को इसके बारे में प्रशिक्षित करते थे कि माता-पिता को कंगारू मदर केयर की जानकारी कैसे दी जाए। जन्म के समय कम वज़न होने की वजह से एक आम समस्या यह होती है कि शिशु का तापमान तेज़ी से कम होने लगता है, जिसकी वजह से शिशु की मृत्यु होने की संभावना रहती है। ऐसे में कंगारू मदर केयर बच्चे की जान बचाने में काफ़ी उपयोगी साबित होता है।” 

मैं मातृत्व का महिमामंडन करने में यकीन नहीं रखतीं और शुरू में पोस्टपार्टम के दिनों में उन्हें अपने बच्चे से लगाव होने में बहुत दिक़्क़त हुई। उनके मन में यह ख़याल तक आता था कि बच्चे को जन्म देकर उन्होंने कोई ग़लती तो नहीं कर दी। ऐसे में कंगारू मदर केयर का अभ्यास करने से अपने बच्चे से जुड़ने में उन्हें काफ़ी मदद मिली।

भारत में प्रीमैच्योर शिशुओं के आंकड़े 

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार पिछले पांच सालों में जन्मे 18 प्रतिशत शिशु सामान्य से कम यानी 2.5 किलोग्राम से कम वज़न के थे। इसके अलावा मेडिकल पत्रिका लैंसेट के शोध में पाया गया कि साल 2020 में पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा प्रिमैच्योर शिशु भारत में जन्मे थे। ऐसे में भारत के लिए केएमसी की उपयोगिता और भी बढ़ जाती है। भारत में यूनिसेफ और भारत सरकार दोनों मिलकर कंगारू मदर केयर को प्रोत्साहित करने का प्रयास कर रहे हैं। साल 2014 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के बाल प्रभाग ने कंगारू मदर केयर और कम वज़न वाले शिशुओं के सबसे अच्छे आहार के संबंध में दिशानिर्देश जारी किए। यही नहीं भारत में कंगारू मदर केयर फाउंडेशन की भी स्थापना की गई है।  इसके अलावा भारत के नवज़ात शिशु सुरक्षा कार्यक्रम में भी कंगारू मदर केयर की उपयोगिता का उल्लेख किया गया है।

नवज़ात शिशुओं की मृत्यु दर को कम करने के लिए 2014 में न्यूबॉर्न एक्शन प्लान भी जारी किया गया, इसका लक्ष्य नवज़ात मृत्यु दर और मृत जन्मे शिशुओं कई संख्या में कमी लाने के लिए 2030 तक नवजात शिशु मृत्यु दर (एनएमआर) और मृत जन्म दर (एसबीआर) को 10 से कम करना। इसमें भी केएमसी और इसके फ़ायदों का उल्लेख मिलता है।  केएमसी के फ़ायदों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि ज़मीनी स्तर पर इसका सही से कार्यान्वयन हो सके इसके लिए यह ज़रूरी है कि लोगों को इसके बारे में जागरूक किया जाए। बेशक यह कम वज़न वाले और प्रिमैच्योर बच्चों के लिए फायदेमंद है, लेकिन सामान्य शिशु के लिए भी इसके अनेकों फ़ायदे होते हैं। ऐसा भी नहीं कि यह कोई ख़र्चीली विधि है, इसलिए हरेक माता-पिता को इसके बारे में और इसका अभ्यास कैसे करना है यह बताया जाना चाहिए। 

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