ग्रामीण भारत के अनेक हिस्सों में सार्वजनिक परिवहन की कमी एक गंभीर समस्या है, जिसका सीधा असर महिलाओं के जीवन और उनके सशक्तिकरण पर पड़ता है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में यह समस्या बड़े स्तर पर मौजूदा है। यहां महिलाओं को सार्वजनिक परिवहन की कमी के कारण अपनी रोजमर्रा की ज़रूरतों के लिए पुरुषों पर निर्भर रहना पड़ता है। यह निर्भरता न केवल उनकी स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता में बाधा डालती है, बल्कि उनके सामाजिक और आर्थिक जीवन पर भी गहरा प्रभाव डालती है। उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं इसी तरह की चुनौतियों के साथ जीवन जी रही हैं। इन चुनौतियों पर हमने गाँव की कुछ महिलाओं से बात की और परिवहन की कमी के चलते उन्हें किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है, उनको जानने की कोशिश की।
ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं के लिए सार्वजनिक परिवहन का अभाव उनकी स्वतंत्रता और सामाजिक गतिशीलता को बाधित करता है। महिलाओं के लिए किसी स्थान पर आना-जाना न केवल एक दैनिक आवश्यकता है, बल्कि यह उनकी शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच भी है। इससे उनके सामाजिक जीवन पर भी गहरा असर पड़ता है। जब परिवहन के साधन उपलब्ध नहीं होते हैं, तो महिलाएं अपने परिवार के पुरुष सदस्यों पर निर्भर हो जाती हैं, जो उन्हें कहीं आने-जाने में सहायता करते हैं। यह निर्भरता महिलाओं की स्वतंत्रता और एजेंसी को सीमित करती है। उनकी आत्मनिर्भरता को भी कमजोर करती है।
बबिता कुमारी एक विधवा महिला है। गाँव में बेहतर यातायात साधनों के बारे में बात करते हुए कहती हैं, “सरकारी पेंशन के कागजात से जुड़े काम के लिए मुझे अक्सर जिला कार्यालय जाना पड़ता है, लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए कोई साधन नहीं मिलता। मुझे अपने बच्चों के ज़रूरी काम के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसमें बहुत परेशानी होती है।”
चंदौली जिले के एक गाँव की रहने वाली 36 वर्षीय नीलम का कहना है कि जब भी मुझे डॉक्टर के पास जाना हो या कोई ज़रूरी सामान खरीदना हो, मुझे अपने पति का इंतजार करना पड़ता है। अगर वे व्यस्त होते हैं, तो मैं कहीं नहीं जा पाती। यह मेरे लिए बहुत कठिन होता है। पति अकेले जाने से मना करते हैं मैं आज तक अकेले कहीं नहीं गई हूं इसलिए मुझे झिझक होती है और थोड़ा डर भी लगता है। यह स्थिति ग्रामीण महिलाओं के लिए एक आम समस्या है, जहां उन्हें घर से बाहर जाने के लिए कई स्तर पर सोचना पड़ता है। सार्वजनिक परिवहन सेवाओं की भी भारी कमी तो होती ही है। साथ ही कई बार महिलाएं इसलिए भी कहीं नहीं जातीं क्योंकि उन्हें अपने परिवार के पुरुष सदस्यों के साथ ही बाहर जाने की अनुमति मिलती हैं।
बस-रिक्शा की कमी से दूसरों पर निर्भरता
सार्वजनिक परिवहन की कमी का सबसे बड़ा प्रभाव महिलाओं की शिक्षा और रोजगार पर पड़ता है। ग्रामीण इलाकों में, जहां लड़कियों और महिलाओं के लिए शिक्षण संस्थान और रोजगार के अवसर अधिकतर दूर स्थित होते हैं, वहां तक पहुंचने के लिए परिवहन सुविधाओं का अभाव उन्हें उन अवसरों से वंचित कर देता है। वंदना, जो दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्ययन कर रही थीं, इस विषय पर कहती हैं, “जब मैं गाँव लौटती हूं, तो मेरे परिवार को 18 किलोमीटर दूर रेलवे स्टेशन से मुझे लेने आना पड़ता है। यह न केवल आर्थिक रूप से महंगा होता है, बल्कि सभी के लिए असुविधाजनक भी होता है। इस दूरी को तय करने के लिए बस या रिक्शा की बेहतर सुविधा नहीं है इस वजह से हमेशा किसी और पर निर्भर रहना पड़ता है।”
दूरी की वजह से कुछ सीखने से पहले सोचना पड़ता है
रोजगार के मामले में भी यही स्थिति देखने को मिलती है। 27 वर्षीय सुमन, जो एकल माँ हैं और घरेलू हिंसा की सर्वाइवर है। वह अब अपने मायके में रह रही हैं, इस समस्या पर कहती हैं, “मैंने ब्यूटीशियन का कोर्स करने की योजना बनाई थी ताकि मैं अपने बच्चे के लिए कुछ कमा सकूं। इसके लिए मुझे रोजाना शहर जाना पड़ता है लेकिन गाँव में परिवहन की कोई सुविधा नहीं है। एक बस आती है, लेकिन वह भी गाँव से छह किलोमीटर दूर से गुजरती है। बस कब आती है कब चली जाती है, कुछ पता नहीं है और इतने दूर चलने की मेरे पास शक्ति नहीं है।”
यह स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों की हजारों महिलाओं के लिए एक गंभीर समस्या है, जहां शिक्षा और रोजगार के अवसर होने के बावजूद, महिलाओं को परिवहन की कमी के कारण उन तक पहुंचने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। यह उन्हें आत्मनिर्भर बनने और अपनी जीवन स्थितियों को सुधारने से रोकता है। सार्वजनिक परिवहन की सुगम व्यवस्था न होने की वजह से स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच भी ग्रामीण महिलाओं के लिए एक बड़ी चुनौती है। विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं, बीमार बुजुर्गों, और बच्चों के लिए चिकित्सा सेवाओं तक पहुंचने में भारी समस्याएं आती हैं। कई बार आपातकालीन स्थितियों में समय पर परिवहन उपलब्ध न होने के कारण महिलाओं की स्थिति और गंभीर हो जाती है।
साधनों का अभाव से बढ़ती स्वास्थ्य सुविधाओं की दूरी
पूनम कुमार एक मजदूर हैं। वह बताती हैं, “जब मेरी बेटी बीमार पड़ी, तो मुझे उसे गोद में लेकर पैदल डॉक्टर के पास जाना पड़ा। यह हमारे लिए बेहद कठिन था, क्योंकि हमारे पास कोई निजी परिवहन का साधन नहीं था। इसके अलावा भी हमें कहीं भी आना जाना होता है तो ज्यादातर पैदल ही जाते हैं क्योंकि घर में सिर्फ एक साईकिल है और उसपर एक साथ ज्यादा लोग नहीं जा सकते हैं।”
बुजुर्ग महिलाओं के लिए भी यह एक गंभीर समस्या है। 67 वर्षीय प्रेमलता एक विधवा हैं और गाँव में अकेली रहती है। वह कहती हैं, “अगर मैं बीमार पड़ जाऊं, तो मुझे डॉक्टर के पास ले जाने के लिए कोई नहीं है। मेरे बेटे शहर में रहते हैं और यहां गाँव में फोन करने पर एक डॉक्टर आ सकते हैं लेकिन मुझे खुद किसी ज़रूरी चिकित्सा से जुड़ी चेकअप करना हो तो मैं खुद से नहीं जा सकती कोई ले जाने के लिए नहीं है और न ही कोई साधन की कोई सुविधा है। इससे अलग भी कभी बाहर जाना हो तो साधनों के न होने की वजह से उस बारे में सोचते नहीं है। “
स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में इस कमी के कारण कई बार महिलाएं या तो समय पर इलाज नहीं करवा पातीं या फिर उन्हें गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आपातकालीन चिकित्सा स्थितियों में यह समस्या और भी अधिक गंभीर हो जाती है, जहां समय पर इलाज न मिलने के कारण स्थिति बिगड़ सकती है। ग्रामीण इलाकों में रहने वाली बुजुर्ग और विधवा महिलाओं के लिए सार्वजनिक परिवहन की कमी एक अलग ही प्रकार की समस्या है।
बाजार जाने के लिए कोई साधन नहीं
इंद्रसानी देवी एक सेवानिवृत्त आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं। वह कहती हैं, “रिटायरमेंट के बाद, मुझे घर में ही रहना पड़ता है। पहले मैं नौकरी की वजह से बनारस, बाबतपुर जैसे शहर में रह कर अपना काम करती थी। शहर में रहते हुए मैं हमेशा कहीं न कहीं आती जाती रहती थी, लेकिन अब मुझे अपने ज़रूरी सामान के लिए भी बाजार तक जाने के लिए कोई साधन आसानी से नहीं मिल पाता। सब लोग सोचते हैं बुजुर्ग लोगों को घर में ही रहना चाहिए लेकिन हमारी ज़रूरतों को कोई नहीं समझता है। छोटे से छोटे समान भी मंगाने में दिक्कत होती है। गाँव में वाहनों की सुगम व्यवस्था न होने की वजह से हम औरतों की हर चीज पर दूसरों पर निर्भरता बढ़ जाती हैं।”
बाहर जाने के लिए दूसरों पर निर्भर
बबिता कुमारी एक विधवा महिला है। गाँव में बेहतर यातायात साधनों के बारे में बात करते हुए कहती हैं, “सरकारी पेंशन के कागजात से जुड़े काम के लिए मुझे अक्सर जिला कार्यालय जाना पड़ता है, लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए कोई साधन नहीं मिलता। मुझे अपने बच्चों के ज़रूरी काम के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसमें बहुत परेशानी होती है। ऑटो रिक्शा भी गाँव में जल्दी मिलना मुश्किल है और मिलता भी है तो काफी पैसे लग जाते हैं। अगर कोई अच्छा यातायात का साधन होता बस आदि जो सुबह-दोपहर या शाम को भी चलता तो बहुत आसानी होती।”
यह स्थिति ग्रामीण इलाकों की बुजुर्ग और विधवा महिलाओं के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है, जहां उन्हें अपनी दैनिक जरूरतों के लिए भी परिवहन सुविधाओं की कमी के कारण कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ग्रामीण महिलाओं की इस गंभीर समस्या को हल करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले सार्वजनिक परिवहन का विस्तार करना बहुत ज़रूरी है। ग्रामीण क्षेत्रों में नियमित और सस्ती बस सेवाएं शुरू की जानी चाहिए, ताकि महिलाएं शिक्षा, रोजगार, और स्वास्थ्य सेवाओं तक आसानी से पहुंच सकें। इसके साथ ही, छोटे गांवों और दूर-दराज के क्षेत्रों को शहरों से जोड़ने वाली परिवहन सेवाएं भी उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
सार्वजनिक वाहनों की सुगम व्यवस्था के साथ-साथ सुरक्षित परिवहन सुविधाएं का होना भी ज़रूरी है। महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए विशेष महिला बसें, महिला चालकों द्वारा संचालित वाहन और सुरक्षित यात्रा विकल्प सुनिश्चित किए जाने चाहिए। इसके साथ ही, गाँवों में महिला यात्रियों के लिए विशेष रूप से सुरक्षित बस स्टॉप और अन्य यात्रा सुविधाएं होनी चाहिए। साथ ही स्थानीय परिवहन सेवाओं को शुरू करना चाहिए। स्थानीय प्रशासन को छोटी और सस्ती परिवहन सेवाओं जैसे ई-रिक्शा, साझा टैक्सी सेवाओं या ग्रामीण परिवहन नेटवर्क का विस्तार करना चाहिए। यह सेवाएं विशेष रूप से महिलाओं को ध्यान में रखकर विकसित की जा सकती हैं, ताकि उन्हें आवागमन में सुविधा हो।
राज्य सरकारों को महिलाओं के लिए सब्सिडी वाली परिवहन योजनाएं लागू करनी चाहिए, ताकि वे कम खर्च में सुरक्षित और सुविधाजनक यात्रा कर सकें। इसके साथ ही, सरकारी परिवहन सेवाओं में महिलाओं के लिए विशेष छूट और प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सार्वजनिक परिवहन की कमी ग्रामीण महिलाओं के स्वतंत्रता, आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण में एक बड़ी बाधा है। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां परिवहन सुविधाओं की भारी कमी है, महिलाओं को शिक्षा, रोजगार, और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस समस्या का समाधान केवल बेहतर और सुरक्षित परिवहन सेवाओं के विस्तार से ही संभव है।
अगर हम वास्तव में ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाना चाहते हैं, तो सार्वजनिक परिवहन की समस्या का समाधान करना अनिवार्य है। बेहतर परिवहन सेवाओं के माध्यम से न केवल महिलाएं शिक्षा और रोजगार के अवसरों तक पहुंच सकेंगी, बल्कि वे अपने सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में भी अधिक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर हो सकेंगी। इससे एक देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होती है। जब हम यातायात की सुविधा देंगे तभी तो महिलाएं कहीं आने जाने का विचार अपने मन में ला पाएंगी।