इंटरसेक्शनलजेंडर आखिर पीरियड्स पर बात करने के लिए हमें ‘महिला डॉक्टर’ की जरूरत क्यों है?

आखिर पीरियड्स पर बात करने के लिए हमें ‘महिला डॉक्टर’ की जरूरत क्यों है?

आज मैं इस बात को सोचती हूं तो लगता है कि मुझसे किसी ने नहीं कहा था कि मुझे लेडी डॉक्टर के पास ही जाना चाहिए। फिर भी मैंने लेडी डॉक्टर के पास जाना ही चुना। इसके पीछे मुझे यही वजह समझ आती है कि उस उम्र तक कहीं न कहीं मेरे दिमाग में ये बात बैठ गई थी कि पीरियड्स तो औरतों का मसला है।

काफ़ी सालों पहले की बात है। मुझे पीरियड्स शुरू हुए सिर्फ़ कुछ महीने ही हुए थे। जो मेरे पास थोड़ी-बहुत जानकारी थी उससे मुझे लगता था कि मुझे हर महीने एक निश्चित तारीख को पीरियड्स आने चाहिए। चूंकि वे निश्चित तारीख पर नहीं आ रहे थे, तो मुझे लगा कि यह कोई दिक्कत वाली बात है। अच्छी बात यह थी कि अस्पताल मेरे घर के नज़दीक ही था और मैं बीच-बीच में वहां से दवाइयां भी लेती थी। वहां लेडी डॉक्टर गिनी-चुनी ही थी। मैंने सोचा कि मैं किसी लेडी डॉक्टर से इस बारे में बात करूंगी और मैं एक लेडी डॉक्टर के पास गई। मैंने सकुचाते हुए कहा, “मैम मेरे पीरियड्स इररेगुलर हैं।” डॉक्टर ने केवल इतना कहा, “क्या महीने में दो बार हो जाते हैं?” मैंने कहा, “नहीं।”

मैं उनके इस रवैये से बहुत निराश हुई कि उन्होंने मुझसे ठीक से बातचीत तक नहीं की और मुझे यह तक नहीं बताया कि पीरियड्स का थोड़ा आगे-पीछे होना सामान्य बात है और इसमें घबराने जैसी कोई बात नहीं। उस समय अखबार में हफ्ते में एक बार मुख्य अखबार के साथ सप्लीमेंट अखबार आता था, जिसमें महिलाओं से जुड़े कई मुद्दे आते थे। मुझे याद है एक बार ऐसे ही एक सप्लीमेंट में ‘पीरियड्स विशेषांक’ नाम से पीरियड्स के बारे में सभी जानकारियां दी गई थी। मुझे तब समझ आया कि पीरियड्स की डेट थोड़ी आगे-पीछे हो जाना सामान्य सी बात है। 

मैंने सोचा कि मैं किसी लेडी डॉक्टर से इस बारे में बात करूंगी और मैं एक लेडी डॉक्टर के पास गई। मैंने सकुचाते हुए कहा, “मैम मेरे पीरियड्स इररेगुलर हैं।” डॉक्टर ने केवल इतना कहा, “क्या महीने में दो बार हो जाते हैं?” मैंने कहा, “नहीं।”

महिला डॉक्टर को चुनने की मानसिकता

आज मैं इस बात को सोचती हूं तो लगता है कि मुझसे किसी ने नहीं कहा था कि मुझे लेडी डॉक्टर के पास ही जाना चाहिए। फिर भी मैंने लेडी डॉक्टर के पास जाना ही चुना। इसके पीछे मुझे यही वजह समझ आती है कि उस उम्र तक कहीं न कहीं मेरे दिमाग में ये बात बैठ गई थी कि पीरियड्स तो औरतों का मसला है। इसलिए किसी लेडी डॉक्टर के पास जाना ही बेहतर होगा। भले ही लेडी डॉक्टर के पास जाने से भी मुझे मेरे मसले का कोई हल नहीं मिला। लेकिन कम से कम मैं डॉक्टर के पास जा तो सकी। हर महिला मेरी तरह खुशकिस्मत नहीं होती। कई बार लेडी डॉक्टर न मिलने पर महिलाएं इन मसलों को नज़रअन्दाज कर देती हैं।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए श्रेया टिंगल

मुंबई स्थित सुलभ स्वच्छता मिशन फाउंडेशन की रिपोर्ट ‘कोंबटींग साइलन्स ऑन मेनार्की टू मेनोपॉज’ से भी पता चलता है कि 91.7 प्रतिशत महिलाएं पीरियड्स से संबंधित समस्याओं के लिए डॉक्टर के पास नहीं जाती हैं, क्योंकि देश में महिला डॉक्टरों की संख्या कम है। यह अध्ययन देश के 14 जिलों में किया गया और इसमें यह भी पाया गया कि बहुत सी महिलाएं पीरियड्स से जुड़ी समस्याओं को समस्या मानती ही नहीं हैं। 

मुंबई स्थित सुलभ स्वच्छता मिशन फाउंडेशन की रिपोर्ट ‘कोंबटींग साइलन्स ऑन मेनार्की टू मेनोपॉज’ से भी पता चलता है कि 91.7 प्रतिशत महिलाएं पीरियड्स से संबंधित समस्याओं के लिए डॉक्टर के पास नहीं जाती हैं, क्योंकि देश में महिला डॉक्टरों की संख्या कम है।

क्यों ढूँढती हैं महिलाएं एक ‘महिला डॉक्टर’ 

महिलाएं पीरियड्स से जुड़ी समस्याओं पर बात करने के लिए किसी महिला डॉक्टर के पास ही क्यों जाना चाहती हैं, इस बारे में पुणे की डॉक्टर ऐश्वर्या कहती हैं, “एक वजह तो यह है कि कोई महिला संकोच की वजह से किसी पुरुष डॉक्टर के पास जाने से कतराती है। लेकिन इसके पीछे सामाजिक कारण भी है। उदाहरण के लिए समाज ही महिला को यह सिखाता है कि इन मुद्दों पर बात करने से सकुचाना चाहिए। कोई महिला लेडी डॉक्टर के पास जाएगी या पुरुष यह निर्णय भी अक्सर परिवार लेता है। महिलाओं के पास यह फैसला लेने की एजेंसी नहीं होती। इसकी दूसरी वजह यह भी है कि क्योंकि लेडी डॉक्टर को पीरियड्स का अनुभव होता है इसलिए भी महिलाएं उनके पास जाना चाहती हैं। उन्हें लगता है कि वह उनकी समस्या को ज़्यादा बेहतर समझ पाएंगी।” 

क्या महिला डॉक्टर बेहतर इलाज करती हैं?

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए श्रेया टिंगल

कोई महिला अगर किसी लेडी डॉक्टर के पास जाना चाहे, तो देश में उतनी लेडी डॉक्टर तो होनी चाहिए, जिन तक उनकी पहुंच हो। उसके बाद यह किसी महिला का निर्णय होना चाहिए कि वह पुरुष डॉक्टर के पास जाना चाहती है या महिला। इस मामले में बिना किसी ठोस साक्ष्य के हम ऐसा नहीं कह सकते कि महिला डॉक्टर ज़्यादा संवेदनशील होती हैं और पुरुष कम। इस बारे में बैंगलोर में रहनेवाली चित्रकार श्वेता कहती हैं, “मैं समझती हूं कि अगर केवल सलाह लेनी हो तो वो किसी भी डॉक्टर से ली जा सकती है, चाहे वह महिला हो या पुरुष। लेकिन अगर प्राइवेट पार्ट्स की जाँच की ज़रूरत है तो ऐसे में महिला डॉक्टर होनी चाहिए। दोनों ही गायनेकोलॉजिस्ट का रवैया असंवेदनशीलता भरा था। उन्होंने मुझसे बहुत से व्यक्तिगत सवाल पूछे और यह कहा कि शादी के दो साल बाद भी मुझे बच्चे क्यों नहीं हैं, मुझे बच्चा होना चाहिए। उनमें से एक ने वजाइना की जाँच के लिए एक उपकरण मेरी वजाइना में डाला और मैं दर्द से चीख पड़ी। उन्होंने सहानुभूति के दो शब्द तक नहीं बोले। मुझे दर्द होता रहा और उन्होंने अपनी जाँच जारी रखी। दवा लेने के बाद मुझे कुछ हफ्तों के बाद फिर से उनसे सलाह लेने जाना था लेकिन मैंने दवा भी नहीं ली और दोबारा उनके पास गई भी नहीं। मैं फिर से दर्द भरी जाँच से नहीं गुज़रना चाहती थी।” श्वेता ने हाल ही में पीरियड्स के दौरान बहुत ज़्यादा ब्लीडिंग और उनके इररेगुलर होने की समस्या के चलते बैंगलोर की दो लेडी डॉक्टर्स से बात की है। 

महिला या पुरुष डॉक्टर में पीरियड्स से जुड़े मसलों को कौन बेहतर समझ सकता है इस सवाल पर डॉक्टर ऐश्वर्या कहती हैं, “मुझे नहीं लगता कि इसकी सलाह के मामले में फ़ीमेल डॉक्टर बेहतर हैं। पूरी मेडिकल फील्ड ही पितृसत्तात्मक सोच वाली है, तो महिला हो या पुरुष सभी उसी सोच और उसी समाज की उपज हैं। अक्सर महिला डॉक्टर भी काफी असंवेदनशील होती हैं, पूरा सिस्टम और समाज उन्हें ऐसा बना देता है। ऐसे में ज़रूरत इस बात की है कि मेडिकल फील्ड में संवेदनशील होना सिखाया जाए।”  

एक वजह तो यह है कि कोई महिला संकोच की वजह से किसी पुरुष डॉक्टर के पास जाने से कतराती है। लेकिन इसके पीछे सामाजिक कारण भी है। उदाहरण के लिए समाज ही महिला को यह सिखाता है कि इन मुद्दों पर बात करने से सकुचाना चाहिए। कोई महिला लेडी डॉक्टर के पास जाएगी या पुरुष यह निर्णय भी अक्सर परिवार लेता है।

महिला डॉक्टर्स के कम होने की क्या हैं वजहें 

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए श्रेया टिंगल

देश में महिला डॉक्टर्स के कम होने की एक वजह तो यह है कि पुरुषों की तुलना में कम महिलाएं मेडिकल कॉलेजों में दाखिला लेती हैं। दूसरी वजह यह भी है कि उनमें से जो पढ़ाई करके डॉक्टर बन भी रही हैं, वे भी आगे चलकर यह फील्ड छोड़ दे रही हैं। इस बारे में डॉक्टर ऐश्वर्या कहती हैं, “महिला डॉक्टरों के करियर को कम और पुरुष डॉक्टरों के करियर को अधिक प्राथमिकता देना, पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से महिला डॉक्टरों का वर्क-लाइफ बैलेंस बिगड़ जाना इसकी कुछ वजहें हैं।” किसी महिला के पीरियड्स शुरू होने से लेकर मेनोपॉज़ तक उसके इस चक्र में कई बदलाव होते हैं। इसमें बहुत ज़्यादा दर्द होना, बहुत ब्लीडिंग होना, आदि कई तरह की समस्याएं किसी महिला को हो सकती हैं।

मैं समझती हूं कि अगर केवल सलाह लेनी हो तो वो किसी भी डॉक्टर से ली जा सकती है, चाहे वह महिला हो या पुरुष। लेकिन अगर प्राइवेट पार्ट्स की जाँच की ज़रूरत है तो ऐसे में महिला डॉक्टर होनी चाहिए।

यह महिला की ज़िन्दगी का एक ऐसा हिस्सा है, जिससे उसे हर महीने (गर्भावस्था को छोड़कर) गुज़रना होता है। इसका किसी महिला की ज़िन्दगी पर कम या ज्यादा हो सकता है, लेकिन इसके लिए इससे जुड़ी कठिनाइयों के बारे में जागरूकता फैलाना ज़रूरी है। जब हम देख रहे हैं कि महिला डॉक्टर कम हैं, तो हमें ऐसा माहौल बनाना होगा, जिसमें कोई महिला किसी पुरुष डॉक्टर से भी इसके बारे में खुलकर बता सके। ठीक वैसे ही जैसे वह सर्दी-खांसी के बारे में पुरुष डॉक्टर से बात करते नहीं सकुचाती। इसके साथ ही यह भी कोशिश करनी चाहिए कि मेडिकल फील्ड में ज़्यादा से ज़्यादा महिलाएं शामिल हों और वे नर्स के साथ-साथ डॉक्टर बनें या बनने के बाद अपनी फील्ड छोड़ें नहीं। तभी हम एक ऐसे बेहतर समाज की कल्पना कर सकते हैं, जिसमें कोई मुद्दा टैबू न बनकर रह जाए। 

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