इंटरसेक्शनलजाति भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में जाति, रंग और लैंगिक पहचान के बीच संबंध और संघर्ष

भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में जाति, रंग और लैंगिक पहचान के बीच संबंध और संघर्ष

रंग, जाति और लिंग का आपसी मेल महिलाओं के लिए और भी अधिक दमनकारी साबित होता है। एक ओर जहां महिलाएं समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करती हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हें निष्पक्ष और आकर्षक सौंदर्य मानकों के अनुसार ढलने का अतिरिक्त दबाव भी झेलना पड़ता है।

भारतीय समाज में रंग, जाति और लिंग के बीच एक गहरा और जटिल संबंध है, जो असमानता और भेदभाव की संरचना को मजबूत करता है। इन तीन कारकों का एक साथ मिलकर प्रभावी रूप से एक सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्था का निर्माण होता है, जो समुदायों और व्यक्तियों के बीच असमानता की खाई को और गहरी कर देता है। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से, गोरी त्वचा को तथाकथित उच्च जातियों, सत्ता और श्रेष्ठता से जोड़ा गया है, जबकि गहरे रंग की त्वचा को निचली जातियों और सामाजिक तिरस्कार के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। इस प्रकार, रंग और जाति के बीच का सम्बन्ध सीधे तौर पर भेदभाव की और ऊँच-नीच की मानसिकता को पुष्ट करता है, जो भारतीय समाज में जड़ें जमा चुका है।

रंग, जाति और लिंग का आपसी मेल महिलाओं के लिए और भी अधिक दमनकारी साबित होता है। एक ओर जहां महिलाएं समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करती हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हें निष्पक्ष और आकर्षक सौंदर्य मानकों के अनुसार ढलने का अतिरिक्त दबाव भी झेलना पड़ता है। गोरी त्वचा को एक बड़ी खूबसूरती और आकर्षण के रूप में देखा जाता है, जबकि सांवली या काली त्वचा को घटित और आकर्षणहीन समझा जाता है। यही नहीं, हाशिये की जाति की महिलाएं न केवल अपने रंग और लिंग के कारण भेदभाव का सामना करती हैं, बल्कि जाति आधारित पूर्वाग्रहों की वजह से उनका जीवन और भी कठिन हो जाता है। उन्हें समाज में निम्न समझा जाता है और उनकी मेहनत तथा समर्पण को नकारा जाता है।

रंगभेद के कारण सांवली त्वचा वाली महिलाओं को नौकरी, उच्च शिक्षा, या सामाजिक स्वीकृति प्राप्त करने में कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा, उनके लिए उनके रंग और जाति के कारण सामूहिक प्रतिनिधित्व में भी कमी होती है।

रंग और जाति के इस गठजोड़ ने एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था को जन्म दिया है, जिसमें गोरी त्वचा वाले तथाकथित उच्च जाति के पुरुष विशेषाधिकार प्राप्त करते हैं। ये उच्च जाति के पुरुष न केवल संसाधनों और सत्ता पर नियंत्रण बनाए रखते हैं, बल्कि उनका यह विशेषाधिकार समाज में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक असमानता की खाई को और गहरा करता है। इसके विपरीत, हाशिये की जाति की महिलाएं और लैंगिक अल्पसंख्यक, जो पहले से ही विभिन्न प्रकार के भेदभाव का सामना करते हैं, रंग और जाति के कारण अतिरिक्त भेदभाव और उत्पीड़न के शिकार होते हैं।

समाज में रंग, जाति और लिंग का यह त्रिकोणीय भेदभाव न केवल व्यक्तियों के लिए अपमानजनक है, बल्कि यह समाज में गहरी असमानता और अन्याय की नींव रखता है। यह असमानता सिर्फ शारीरिक या मानसिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संदर्भों में भी दिखाई देती है। उदाहरण स्वरूप, हाशिये की जाति की सांवली त्वचा वाली महिलाएं न केवल जातिवाद के शिकार होती हैं, बल्कि रंगभेद के कारण भी उन्हें हीनता का अहसास कराया जाता है। उनके लिए सामाजिक स्थान पर कदम रखना और सम्मान प्राप्त करना मुश्किल होता है, क्योंकि उनका रंग और जाति उनके पूरे अस्तित्व को नियंत्रित करता है।

जातिवाद और रंगभेद को लेकर अपमान

भारतीय समाज में इस रंग और जाति आधारित भेदभाव की जड़ें इतनी गहरी हैं कि यह केवल व्यक्तियों के जीवन को प्रभावित नहीं करतीं, बल्कि संपूर्ण समाज की सोच, मानसिकता और व्यवहार को भी प्रभावित करती हैं। उदाहरण के तौर पर, अक्सर हम अपने घरवालों, दोस्तों या पड़ोसियों से ऐसी बातें सुनते हैं, जैसे “भं# लग रही है,” “च## जैसी शक्ल है,” या “इतनी काली है, जैसे किसी भं# की बेटी।” ऐसे वाक्य न केवल जातिवादी घृणा को उजागर करते हैं, बल्कि रंगभेद की सोच को भी फैलाते हैं। ये शब्द और विचार सामाजिक ताने-बाने की उस विकृत मानसिकता को उजागर करते हैं, जो व्यक्ति की पहचान और गरिमा को केवल उसकी जाति और रंग के आधार पर आंकती है, मानो उसका इंसानियत से कोई संबंध न हो।

इस तरह के भेदभाव को न केवल व्यक्तिगत स्तर पर, बल्कि संस्थागत स्तर पर भी देखा जाता है। कार्यस्थल, शैक्षिक संस्थान, और अन्य सामाजिक क्षेत्र में रंग और जाति के आधार पर अवसरों का वितरण होता है। रंगभेद के कारण सांवली त्वचा वाली महिलाओं को नौकरी, उच्च शिक्षा, या सामाजिक स्वीकृति प्राप्त करने में कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा, उनके लिए उनके रंग और जाति के कारण सामूहिक प्रतिनिधित्व में भी कमी होती है। समाज में ऐसे भेदभाव को चुनौती देने के लिए जरूरी है कि हम अपनी सोच और मानसिकता को बदलें, ताकि हर व्यक्ति को समान अवसर और सम्मान मिल सके।

भारतीय समाज में इस रंग और जाति आधारित भेदभाव की जड़ें इतनी गहरी हैं कि यह केवल व्यक्तियों के जीवन को प्रभावित नहीं करतीं, बल्कि संपूर्ण समाज की सोच, मानसिकता और व्यवहार को भी प्रभावित करती हैं।

रंगभेद, जाति और लिंग के संबंधों को कैसे खत्म किया जा सकता है

समाज में रंग, जाति और लिंग के आपसी संबंध को तोड़ने के लिए, हमें सांवली त्वचा वाले लोगों, विशेष रूप से महिलाओं, को उनके संघर्ष, सामर्थ्य और महत्व को मान्यता देनी होगी। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि किसी भी व्यक्ति की पहचान या गरिमा का निर्धारण केवल उसकी त्वचा के रंग या जाति से नहीं किया जा सकता। यह समाज की जिम्मेदारी है कि वह इन भेदभावपूर्ण मानसिकताओं को चुनौती दे और हर व्यक्ति को समान अधिकार और अवसर देने की दिशा में कदम उठाए।

इस परिवर्तन के लिए हमें अपने व्यक्तिगत और सामूहिक दृष्टिकोण में बदलाव लाने की आवश्यकता है। हमें यह समझना होगा कि असमानता और भेदभाव का यह जाल समाज के हर स्तर पर फैला हुआ है, और इसे खत्म करने के लिए हमें साझा प्रयासों की आवश्यकता है। केवल इस तरह से हम एक समान और न्यायपूर्ण समाज की ओर अग्रसर हो सकते हैं, जहाँ रंग, जाति और लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो।


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