साल 2019 में देश की राजधानी दिल्ली में महिलाओं के लिए बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा शुरू की गई थी। इसे महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक सकारात्मक कदम के रूप में प्रस्तुत किया गया। लेकिन हाल के सालों में यह प्रवृत्ति देखी गई है कि ‘फ्री सेवा’ को महिलाओं के मोबिलिटी से भी जोड़ा गया है। चुनाव दर चुनाव राजनीतिक दल महिलाओं के लिए आर्थिक सहायता और मुफ्त सुविधाओं की योजनाएं लाती हैं। दिल्ली सरकार द्वारा डीटीसी बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा योजना को महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक प्रशंसनीय प्रयास माना गया था। यह योजना उन महिलाओं के लिए मददगार साबित हुई जो रोज़गार, शिक्षा या अन्य कामों के लिए रोजाना यात्रा करती हैं।
लेकिन, हाल ही में दिल्ली सरकार ने इस योजना में संशोधन करते हुए इसे सिर्फ दिल्ली की स्थायी निवासी महिलाओं तक सीमित करने का प्रस्ताव पारित किया है। इस नए बदलाव से कई अहम सवाल उठते हैं, खासकर प्रवासी महिलाओं के संदर्भ में। क्या प्रवासी महिलाओं की जरूरतें कम महत्वपूर्ण हैं? क्या यह नया बदलाव उनकी सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों को नजरअंदाज नहीं करता? महिला सशक्तिकरण की दिशा में कोई भी नीति तभी प्रभावी मानी जा सकती है जब वह समावेशी हो और सभी वर्गों की महिलाओं को बराबर लाभ पहुंचाए।
जैसे-तैसे गुज़ारा हो जाता है। इस बीच दिल्ली की बस सेवा को लेकर कुछ शिकायतें जरूर हैं जैसे लोगों को दोयम दर्जे से देखना, महिला सीट होते हुए भी न देना और यह ताना देना कि एक तो फ्री में चल रही हो, ऊपर से सीट भी चाहिए। हालांकि इन सबके बावजूद एक राहत यह थी कि कम से कम बस का किराया नहीं देना पड़ता था। अगर टिकट लेकर जाना पड़े तो हर दिन कम से कम पचास रुपये खर्च होंगे, जो मेरी जैसी कम आय वाली महिला के लिए नुकसानदायक है।
फ्री बस सेवा बंद होने से प्रवासी महिलाओं को नुकसान
इस विषय पर बिहार की रहने वाली 40 वर्षीय पुनम जो दिल्ली में रहकर काम करती हैं, कहती हैं, “दिल्ली में रहते हुए मुझे दो वर्ष हो चुके हैं। मैं यहां रोज़गार की तलाश में आई थी। लेकिन अब तक कोई स्थायी काम नहीं मिल पाया है। ग्रामीण इलाकों में काम के मौके बहुत सीमित होते हैं और वहां किसी भी तरह का काम करने पर लोक-लाज की चिंता भी रहती है। खासकर उन कामों को लेकर जिन्हें सामाजिक रूप से कमतर समझा जाता है। मेरी पढ़ाई-लिखाई अधिक नहीं हुई, इसलिए खुद को किसी दफ्तर की नौकरी के योग्य नहीं मानती। खाना बनाना और सिलाई-बुनाई का काम मुझे पसंद है। यहां रहते हुए मैं शादी-पार्टियों में खाना बनाने का काम कर लेती हूं। इससे कभी पांच सौ तो कभी आठ सौ रुपये तक मेहनताना मिल जाता है। यही मेरे लिए फिलहाल आय का मुख्य साधन है और इसी से गुजर-बसर कर रही हूं।”

आगे पुनम कहती हैं, “पूरा दिन मेहनत करने के बाद भी बहुत कम पैसा मिल पाता है। महंगाई इतनी बढ़ गई है कि खर्चों का हिसाब लगाते-लगाते सिर दर्द होने लगता है। जैसे-तैसे गुज़ारा हो जाता है। इस बीच दिल्ली की बस सेवा को लेकर कुछ शिकायतें जरूर हैं जैसे लोगों को दोयम दर्जे से देखना, महिला सीट होते हुए भी न देना और यह ताना देना कि एक तो फ्री में चल रही हो, ऊपर से सीट भी चाहिए। हालांकि इन सबके बावजूद एक राहत यह थी कि कम से कम बस का किराया नहीं देना पड़ता था। अगर टिकट लेकर जाना पड़े तो हर दिन कम से कम पचास रुपये खर्च होंगे, जो मेरी जैसी कम आय वाली महिला के लिए नुकसानदायक है।” आज भारत में पहले की तुलना में कहीं अधिक लोग पलायन कर रहे हैं। कोई बेहतर शिक्षा की तलाश में तो कोई बेहतर रोज़गार के लिए एक शहर से दूसरे शहर जा रहा है। कई बार तो प्राकृतिक आपदाओं या सामाजिक संकटों के चलते भी लोगों को पलायन करना पड़ता है। ऐसे में प्रवासी लोगों की ज़रूरतों और अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती।
विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, कुल प्रवासी कामगारों की संख्या लगभग 164 मिलियन होने का अनुमान है, जो साल 2017 में वैश्विक प्रवासियों का लगभग आधा हिस्सा था। इसके बावजूद अंतरराष्ट्रीय प्रवासन नीतियों में जेंडर को शामिल करने की दिशा में अबतक बहुत कम ठोस प्रयास किए गए हैं।
भारत में प्रवासियों की स्थिति
विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, कुल प्रवासी कामगारों की संख्या लगभग 164 मिलियन होने का अनुमान है, जो साल 2017 में वैश्विक प्रवासियों का लगभग आधा हिस्सा था। इसके बावजूद अंतरराष्ट्रीय प्रवासन नीतियों में जेंडर को शामिल करने की दिशा में अबतक बहुत कम ठोस प्रयास किए गए हैं। पहले बेहतर जीवन की तलाश में एक शहर से दूसरे शहर जाना मुख्य रूप से पुरुषों से जुड़ा माना जाता था। लेकिन बढ़ती महंगाई और आर्थिक दबाव के चलते अब महिलाएं भी पारिवारिक आय में योगदान देने लगी हैं। वर्तमान समय में यह प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है, जिसमें पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी बड़ी संख्या में पलायन कर रही हैं। यह बदलाव न केवल आर्थिक ज़रूरतों को दिखाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि महिलाएं अब सक्रिय रूप से कामकाजी भूमिका निभा रही हैं और श्रम बाजार का महत्वपूर्ण हिस्सा बन रही हैं।

साल 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में कुल 45.36 करोड़ आंतरिक प्रवासी हैं, जिनमें से लगभग 68 प्रतिशत महिलाएं हैं। ‘माइग्रेशन इन इंडिया 2020-21’ रिपोर्ट के अनुसार, 71 फीसद से अधिक प्रवासियों के प्रवास का कारण शादी रहा है। 86.8 फीसद महिलाएं और केवल 6.2 फीसद पुरुष शादी के चलते पलायन करते हैं। इसके अलावा, 9.2 फीसद प्रवासियों ने परिवार के कमाने वाले सदस्य के साथ जाने या माता-पिता के प्रवास को कारण बताया, जिनमें 17.5 फीसद पुरुष और 7.3 फीसद महिलाएं शामिल थीं। दिल्ली एक ऐसा शहर है जहां लाखों प्रवासी महिलाएं निवास करती हैं। चाहे वे अन्य राज्यों से रोज़गार की तलाश में आई हों, घरेलू कामगार हों, निर्माण स्थलों पर श्रमिक हों, या छोटे व्यापार से जुड़ी हों। लेकिन उनका जीवन अक्सर असुरक्षित, अनिश्चित और संघर्षपूर्ण होता है।
सबसे बड़ी चुनौती है महंगाई, जो अपने चरम पर है। यहां हर चीज़ का पैसा देना पड़ता है। खाने-पीने से लेकर आने-जाने तक सब कुछ महंगा है और आमदनी उतनी नहीं हो पाती। इसी वजह से मैं किराए पर कमरा लेकर नहीं रह सकती। मजबूरी में झुग्गी में रहना पड़ रहा है, जहां सुविधाएं सीमित हैं और असुरक्षा भी बनी रहती है। लेकिन हालात जैसे भी हों, काम तो करना ही है।
प्रवासी महिला श्रमिकों के लिए फ्री बस की अहमियत
दिल्ली में रहने वाली अनेक प्रवासी महिलाएं झुग्गियों, किराए के छोटे कमरों या अस्थायी ठिकानों में रहती हैं। उनके पास अक्सर स्थायी पता या वैध पहचान पत्र नहीं होते, जिसके चलते वे अनेक सरकारी योजनाओं के लाभ से भी वंचित रह जाती हैं। ये महिलाएं अमूमन निम्न आय वर्ग से आती हैं, और उनके लिए रोज़ाना बस का किराया भी एक आर्थिक बोझ बन जाता है। ऐसे में जब दिल्ली सरकार की मुफ्त बस यात्रा योजना को केवल स्थायी निवासी महिलाओं तक सीमित कर दिया जाता है, तो यह प्रवासी महिलाओं के साथ एक प्रकार का भेदभाव बन जाता है। यह निर्णय न केवल सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है, बल्कि महिला सशक्तिकरण की भावना पर भी गंभीर प्रश्न खड़े करता है।

इस विषय पर राजस्थान की रहने वाली 50 वर्षीय रानी जो दिल्ली में रहकर काम करती हैं कहती हैं, “अपने शहर को छोड़कर किसी अन्य शहर में काम करने का दुख दुःख अलग ही होता है, लेकिन जब जिम्मेदारियां होती हैं तो उन्हें निभाना ही पड़ता है। अपने शहर में रहकर सब्ज़ी बेचने से कोई ख़ास लाभ नहीं हो रहा था, इसलिए मैंने दिल्ली आने का निर्णय लिया। अब काफ़ी समय से यहीं रह रही हूं ताकि अपने और परिवार के गुज़र-बसर में कुछ मदद कर सकूं। दिल्ली में रहने के कुछ फायदे जरूर हैं, जैसे काम के अवसर मिल जाते हैं, लेकिन इसके साथ ही कई मुश्किलें भी हैं। सबसे बड़ी चुनौती है महंगाई, जो अपने चरम पर है। यहां हर चीज़ का पैसा देना पड़ता है। खाने-पीने से लेकर आने-जाने तक सब कुछ महंगा है और आमदनी उतनी नहीं हो पाती। इसी वजह से मैं किराए पर कमरा लेकर नहीं रह सकती। मजबूरी में झुग्गी में रहना पड़ रहा है, जहां सुविधाएं सीमित हैं और असुरक्षा भी बनी रहती है। लेकिन हालात जैसे भी हों, काम तो करना ही है।”
जब से दिल्ली में बसों को लेकर नई योजना का प्रस्ताव सुना है, मन थोड़ा उदास हो गया है। अगर यह प्रस्ताव लागू हो गया, तो ऐसा लगेगा कि अब बाहर निकलना खर्चीला हो गया है। तब मन करेगा कि क्यों बाहर जाएं, घर में ही रहें। पैसे तो बचेंगे। ऐसे में घूमना-फिरना और काम कम हो जाएगा या लगभग छूट ही जाएगा।
बाहर निकलने पर खर्च की पाबंदी
आगे रानी कहती हैं,“बढ़ती महंगाई से मैं खुश नहीं हूं। लेकिन अपने शहर लौटने का भी मन नहीं करता। यहां जब चाहें, जहां चाहें निकल सकते हैं वह भी बिना बस का किराया दिए। लेकिन जब से दिल्ली में बसों को लेकर नई योजना का प्रस्ताव सुना है, मन थोड़ा उदास हो गया है। अगर यह प्रस्ताव लागू हो गया, तो ऐसा लगेगा कि अब बाहर निकलना खर्चीला हो गया है। तब मन करेगा कि क्यों बाहर जाएं, घर में ही रहें। पैसे तो बचेंगे। ऐसे में घूमना-फिरना और काम कम हो जाएगा या लगभग छूट ही जाएगा।” दिल्ली जैसे महानगर में महिलाएं अनेक सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक चुनौतियों का सामना करती हैं। सार्वजनिक परिवहन उनके लिए केवल एक सुविधा नहीं, बल्कि स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता का भी माध्यम है। दिल्ली सरकार की महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा योजना ने कई महिलाओं की जिंदगी आसान बना दी थी।
इससे न केवल उनका मासिक खर्च कम होता है, बल्कि वे आत्मविश्वास के साथ नौकरी, पढ़ाई और अन्य आवश्यकताओं के लिए बाहर निकल पाती हैं। ऐसी योजनाएं महिलाओं को बराबरी का अवसर देने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था। एक शोध के अनुसार, साल 2001 और 2011 के बीच काम के लिए पलायन करने वाली महिलाओं की संख्या में 101 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई, जो पुरुषों के इसी अवधि में 48.7 फीसद वृद्धि दर से दोगुनी है। वहीं, व्यवसाय को प्रवास का कारण बताने वाली महिलाओं की संख्या में 153 फीसद की वृद्धि हुई है, जबकि पुरुषों के लिए यह वृद्धि केवल 35 फीसद रहा।

शिक्षा के उद्देश्य से प्रवास करने वाली महिलाओं की संख्या में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि महिलाएं अब पहले से अधिक संख्या में रोजगार, शिक्षा और व्यवसाय के लिए अपने घरों से बाहर निकल रही हैं। ऐसे में दिल्ली सरकार की महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा योजना एक सराहनीय पहल था। यह न केवल उनकी स्वतंत्रता और आत्मविश्वास को बढ़ावा दे रहा था बल्कि उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर अधिक सक्रिय और सुरक्षित भागीदारी का अवसर भी देता है। हालांकि, यदि यह योजना केवल स्थायी निवासी महिलाओं तक सीमित रहती है, तो इससे वे प्रवासी महिलाएं वंचित रह जाएंगी जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है। प्रवासी महिलाएं भी दिल्ली की आर्थिक और सामाजिक संरचना का अभिन्न हिस्सा हैं। इसलिए आवश्यक है कि इस योजना का विस्तार कर इसे सभी महिलाओं के लिए सुलभ बनाया जाए, ताकि समावेशिता और समानता के मूल्यों को सशक्त किया जा सके।