इंटरसेक्शनलजेंडर क्यों यौन और प्रजनन स्वास्थ्य में पुरुषों की भूमिका तय करने की है ज़रूरत?

क्यों यौन और प्रजनन स्वास्थ्य में पुरुषों की भूमिका तय करने की है ज़रूरत?

साल 2015-16 और 2019-21 के आंकड़ों की तुलना की जाए, तो महिला नसबंदी पिछले 5 सालों की अवधि में 36 फीसद से बढ़कर 37.9 फीसद हो गई है, वहीं इसी अवधि में पुरुष नसबंदी की दर 0.3 फीसद पर स्थिर बनी रही। हालांकि पुरुषों का नसबंदी वैसेक्टोमी महिलाओं की नसबंदी हिस्टेरेक्टॉमी की तुलना में आसान और कम जोख़िम भरा होता है।

भारत का बहुसंख्यक समाज आज भी पितृसत्तात्मक मानसिकता से संचालित होता है, जहां अधिकारों और ज़िम्मेदारियों का बंटवारा इस तरह से किया गया है कि पुरुषों के हिस्से में अधिकार और महिलाओं के हिस्से में ज़िम्मेदारियां डाल दी गई हैं। जहां संपत्ति, आर्थिक प्रबंधन और फ़ैसले लेने का काम ज़्यादातर पुरुषों का माना जाता है, वहीं घर-परिवार और बाल-बच्चों की ज़िम्मेदारी अपने आप महिला सदस्यों पर आ जाती है। इसी तरह प्रजनन स्वास्थ्य और परिवार नियोजन का पूरा बोझ आमतौर पर महिलाओं पर ही होता है। यह कितना विरोधाभासी है कि जो देश जनसंख्या के मामले में दुनिया में पहले स्थान पर पहुंच गया है, वहां परिवार नियोजन और प्रजनन जैसे मुद्दों पर बात करना शर्म-संकोच की बात मानी जाती है। इसके पीछे समाज में फैली पितृसत्ता और लैंगिक भेदभाव की ख़ास भूमिका है।

एक समावेशी समाज के लिए ज़रूरी है प्रजनन स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर सभी जेंडर्स ख़ास तौर पर पुरुषों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जाए, तभी एक स्वस्थ समाज बनाने की दिशा में आगे बढ़ सकेंगे। तेजी से बढ़ती आबादी को कम करने, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य और लैंगिक समानता के लिए प्रजनन स्वास्थ्य में पुरुषों की भागीदारी सुनिश्चित करना बेहद ज़रूरी है। उनकी भूमिका केवल गर्भधारण में ही नहीं बल्कि गर्भनिरोधक, प्रसव और प्रसव के बाद मां और बच्चे की देखभाल में भी होनी चाहिए। जब गर्भनिरोध, परिवार नियोजन, गर्भावस्था और मातृत्व के दौरान बच्चे की देखभाल जैसी सभी ज़िम्मेदारियों का बोझ महिलाओं पर डाल दिया जाता है। इससे न सिर्फ़ उनकी शारीरिक सेहत बल्कि मानसिक सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है। 

आज से पहले मैंने इस बारे में कभी कुछ सोचा ही नहीं था। घर-परिवार की ज़िम्मेदारी आमतौर पर महिलाओं की होती है क्योंकि अधिकांश महिलाएं नौकरी नहीं करतीं। प्राइवेट सेक्टर में हमारे पास ऑफिस के बाद समय भी बहुत कम ही बचता है। हालांकि मेरा यह मानना है कि कामकाजी महिलाओं के मामले में पुरुषों को भी सहयोग करना चाहिए।

प्रजनन स्वास्थ्य सिर्फ़ महिलाओं की ज़िम्मेदारी क्यों?

हमारा समाज एक पुरुष प्रधान समाज है, जहां पर ज़्यादातर फ़ैसले लेने का अधिकार पुरुषों के पास होता है। लेकिन, महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़े मामलों में भी उनकी भूमिका होने के बावजूद, वे इसे औरतों का मामला मानकर अक्सर किनारा कर लेते हैं। प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश के 38 वर्षीय मैकेनिकल इंजीनियर आकाश यदुवंशी ने अपने इस विषय पर विचार साझा करते हुए कहा, “आज से पहले मैंने इस बारे में कभी कुछ सोचा ही नहीं था। घर-परिवार की ज़िम्मेदारी आमतौर पर महिलाओं की होती है क्योंकि अधिकांश महिलाएं नौकरी नहीं करतीं। प्राइवेट सेक्टर में हमारे पास ऑफिस के बाद समय भी बहुत कम ही बचता है। हालांकि मेरा यह मानना है कि कामकाजी महिलाओं के मामले में पुरुषों को भी सहयोग करना चाहिए।” बीबीसी में प्रकाशित नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस 2019-21) की रिपोर्ट के अनुसार, 10 में से एक से भी कम पुरुष (9.5 फीसद) गर्भनिरोधक के रूप में कॉन्डोम का इस्तेमाल करते हैं।

तस्वीर साभार: Canva

साल 2015-16 और 2019-21 के आंकड़ों की तुलना की जाए, तो महिला नसबंदी पिछले 5 सालों की अवधि में 36 फीसद से बढ़कर 37.9 फीसद हो गई है, वहीं इसी अवधि में पुरुष नसबंदी की दर 0.3 फीसद पर स्थिर बनी रही। हालांकि पुरुषों का नसबंदी वैसेक्टोमी महिलाओं की नसबंदी हिस्टेरेक्टॉमी की तुलना में आसान और कम जोख़िम भरा होता है। चूंकि महिलाओं पर ही गर्भनिरोध और परिवार नियोजन की ज़िम्मेदारी डाल दी जाती है, तो उन्हें मजबूरन हॉर्मोनल गोलियां, इमरजेंसी पिल्स या दूसरे आईयूडी डिवाइसेज का इस्तेमाल करना पड़ता है जो उनकी सेहत पर बहुत सारे साइड इफेक्ट्स भी डालता है। इसमें अनियमित माहवारी, जी मिचलाना, माइग्रेन, मूड स्विंग, वजन बढ़ाना यहां तक कि लंबे समय तक इस्तेमाल करने से हृदय रोग और कैंसर जैसी ख़तरनाक बीमारियां होने तक का जोख़िम बढ़ जाता है। 

सच कहूं तो पहले मैं भी महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य और बच्चे की देखभाल को महिलाओं की ज़िम्मेदारी मानता था। पिछले दिनों सोशल मीडिया पर कुछ फेमिनिस्ट लोगों से जुड़ने और पढ़ने में रुचि लेने की वजह से मेरी सोच में कुछ हद तक बदलाव आया। लेकिन बचपन से अपने आसपास वैसे ही लोगों को देखते आ रहा हूं तो यह कंडीशनिंग भी धीरे-धीरे ही जाएगी।

गर्भनिरोध और परिवार नियोजन में पुरुषों की भूमिका

हालांकि बीते कुछ सालों में जागरुकता अभियानों की वजह से पुरुषों की सोच में कुछ हद तक बदलाव देखा जा रहा है। शहरों में पुरुष खुले तौर पर कॉन्डोम जैसे साधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं और कुछ हद तक गांवों में भी यह बदलाव दिख रहा है, लेकिन ये अब भी काफी नहीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) के हालिया आंकड़ों के अनुसार, साल 1990 के बाद से कॉन्डोम के इस्तेमाल में बढ़ोतरी होने से 117 मिलियन लोगों में एचआईवी को फैलने से रोकने में मदद मिली है। इसमें से 47 फ़ीसद लोग उप सहारा अफ्रीका और 37 फीसद एशिया- प्रशांत क्षेत्र से हैं। इसके बावजूद पुरुषों के नसबंदी को लेकर अभी भी भ्रम की स्थिति और झिझक बनी हुई है। इसके लिए पुरुषों को प्रजनन स्वास्थ्य और परिवार नियोजन से जुड़ी जानकारी देना बेहद ज़रूरी है।

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सरकार के सामुदायिक स्तर पर इसके लिए विशेष कार्यशालाएं और चर्चाएं आयोजित की जा सकती हैं, जिसमें विशेषज्ञों के द्वारा पुरुषों को रूढ़ियों से परे सोचने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। इसके साथ ही मुख्यधारा की मीडिया और सोशल मीडिया भी इसमें भूमिका निभा सकता है। भुवनेश्वर, उड़ीसा में रहने वाले अकाउंटेंट सत्यप्रकाश तिवारी इस विषय पर बताते हैं, “सच कहूं तो पहले मैं भी महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य और बच्चे की देखभाल को महिलाओं की ज़िम्मेदारी मानता था। पिछले दिनों सोशल मीडिया पर कुछ फेमिनिस्ट लोगों से जुड़ने और पढ़ने में रुचि लेने की वजह से मेरी सोच में कुछ हद तक बदलाव आया। लेकिन बचपन से अपने आसपास वैसे ही लोगों को देखते आ रहा हूं तो यह कंडीशनिंग भी धीरे-धीरे ही जाएगी।”

हमारे समाज में एक पुरुष के लिए संयुक्त परिवार के साथ रहने पर प्रसव और मातृत्व के दौरान पत्नी और बच्चे की देखभाल कर पाना थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि लोग इसे हीन भाव से देखते हैं। यहां तक कि दोस्त और सहकर्मी भी इस पर मजाक उड़ाते हैं। इस वजह से किसी के सामने यह सब काम करने में शर्म और झिझक होती है।

गर्भावस्था और मातृत्व के दौरान पुरुषों की ज़िम्मेदारी 

हमारे समाज में यह परंपरा बहुत लंबे समय से चली आ रही है कि गर्भावस्था के दौरान महिला या तो मायके भेज दी जाती है या फिर मायके से कोई महिला सदस्य जाकर उसकी देखभाल करती है। इस तरह गर्भधारण और प्रसव के दौरान देखभाल जैसे कामों से पुरुष अक्सर गायब रहते हैं। हालांकि गर्भावस्था और मातृत्व केवल महिला की ही ज़िम्मेदारी नहीं होनी चाहिए। पुरुषों को इसमें सक्रिय भागीदारी निभानी चाहिए क्योंकि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के सामने अलग-अलग प्रकार की शारीरिक और मानसिक समस्याएं सामने आती हैं। पुरुषों को इस दौरान महिलाओं की सेहत की देखभाल, जांच, संतुलित और पौष्टिक भोजन के साथ ही आराम का ख़ास ध्यान रखना चाहिए। इसके साथ ही गर्भवती महिलाओं को मानसिक तनाव से दूर रखने के लिए पुरुषों को संवेदनशीलता दिखानी होगी। एक बच्चे के पालन-पोषण में केवल माँ नहीं बल्कि पिता की भी बराबर की ज़िम्मेदारी होती है। पुरुषों को अपनी ज़िम्मेदारी सिर्फ़ भौतिक सुख सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने तक सीमित न रखकर माँ और बच्चे की देखभाल पर भी बराबर ध्यान देना चाहिए।

कैसे रूढ़िवाद पुरुषों को अपनी भागीदारी से कर रहा है दूर

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सबसे पहले तो पितृसत्तात्मक सामाजिक संरचना इसके लिए ज़िम्मेदार है, जिसमें पुरुषों द्वारा प्रजनन और बच्चों की देखभाल को हीन भावना से देखा जाता है। इसके अलावा प्रजनन और मातृत्व से जुड़ी ज़्यादातर स्वास्थ्य सुविधाएं महिलाओं और बच्चों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है जिससे पुरुषों को वहां असहज महसूस होता है। इसके साथ ही जागरुकता की कमी होने से तमाम तरीके के भ्रम और ग़लत धारणाएं भी समाज में फैली हुई हैं, जैसेकि पुरुष नसबंदी से कमज़ोरी आना या फिर कॉन्डोम को इस्तेमाल करने से आनंद में कमी आना। साथ ही इन्हें वर्जित मानकर नज़रअंदाज करने से समस्या और ज़्यादा बढ़ जाती है। इसके अलावा व्यवस्थित रूप से सटीक और वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध न होने से भी इस तरह की ग़लत धारणाएं और तेजी से फैलती हैं। इस विषय पर लखनऊ के अमरेंद्र कुमार बताते हैं, “हमारे समाज में एक पुरुष के लिए संयुक्त परिवार के साथ रहने पर प्रसव और मातृत्व के दौरान पत्नी और बच्चे की देखभाल कर पाना थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि लोग इसे हीन भाव से देखते हैं। यहां तक कि दोस्त और सहकर्मी भी इस पर मजाक उड़ाते हैं। इस वजह से किसी के सामने यह सब काम करने में शर्म और झिझक होती है।”

बीबीसी में प्रकाशित नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस 2019-21) की रिपोर्ट के अनुसार, 10 में से एक से भी कम पुरुष (9.5 फीसद) गर्भनिरोधक के रूप में कॉन्डोम का इस्तेमाल करते हैं।

प्रजनन स्वास्थ्य में पुरुषों की भागीदारी कैसे सुनिश्चित हो

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार प्रजनन में पुरुषों की भागीदारी सुनिश्चित करने से महिलाओं की सेहत में सुधार देखा गया है। आंकड़ों से पता चला है कि गर्भावस्था और प्रसव के बाद पुरुषों की भागीदारी बढ़ाने से महिलाओं में होने वाले पोस्टपार्टम डिप्रेशन की दरों में भी कमी पाई गई। प्रजनन स्वास्थ्य में पुरुषों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए बड़े पैमाने पर काम किए जाने की ज़रूरत है। सरकार और सामाजिक संस्थाओं को इसके लिए विशेष जागरुकता अभियान चलाना चाहिए, जिससे पुरुष प्रजनन स्वास्थ्य को लेकर अपनी ज़िम्मेदारी महसूस करें और इस दिशा में काम करें। इसके लिए समाज में पहले से ही चली आ रही रूढ़ियों, पूर्वाग्रहों, मान्यताओं और परंपरा में भी बदलाव करना भी ज़रूरी है, जिसमें प्रजनन स्वास्थ्य और मातृत्व का पूरा बोझ महिलाओं पर डाल दिया जाता है। 

स्कूल और कॉलेजों में यौन शिक्षा को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए, जिससे किशोर और युवा इन विषयों के प्रति जागरुक हो सकें और आगे चलकर एक ज़िम्मेदार नागरिक बन सकें। अनेक देशों के अनुरूप भारत में भी पितृत्व अवकाश दिया जाता है, लेकिन ये सुनिश्चित होना चाहिए कि पुरुष इसे लेने से पीछे नहीं हटें और समाज इसे हीन नजरों से न देखे। आजकल जोड़ों में ‘वी आर प्रेगनेंट’ जैसे टर्म का प्रचलन बढ़ रहा है। हालांकि ये भी अतिउपभोगतवाद और अभिजात्य वर्ग में ही ज्यादा संभव है। लेकिन, इसके मूल से हम सीख सकते हैं। प्रजनन और मातृत्व दंपति की सामूहिक ज़िम्मेदारी है। जोड़ों के बीच परिवार नियोजन जैसे विषय पर आपसी बातचीत को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और ज़रूरत पड़ने पर परामर्श केंन्द्रों और प्रोफेशनल काउंसलर्स की मदद भी उपलब्ध करना चाहिए। प्रजनन स्वास्थ्य में पुरुषों की समान भागीदारी से न सिर्फ़ महिलाओं के स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है बल्कि बच्चे के लिए भी फ़ायदेमंद है। सरकार, परिवार और समाज सबको मिलकर इस विषय पर भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी, तभी एक स्वस्थ और समावेशी समाज का सपना साकार हो सकेगा।

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