जब इरादे मजबूत हो तब न तो अंधेरे रास्ता रोक सकते हैं और न ऊंचाई से डर लगता है। 29 वर्षीय छोंजिन आंगमो इस बात का जीता जागता उदाहरण है। छोंजिन हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले की रहने वाली हैं, जो एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला हैं जो देख नहीं पाती। इनका जीवन बचपन से ही बहुत संघर्षों से भरा हुआ रहा है। छोंजिन का जन्म भारत और तिब्बत की सीमा के नजदीक बसे चांगो गांव में हुआ था। जब वह आठ साल की थी तब उनकी आंखों की रोशनी चली गई। उसके बाद उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा लेकिन फिर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी विकलांगता या आंखों से न देख पाने को कभी अपनी कड़ी मेहनत और बुलंद इरादों के बीच नहीं आने दिया।
वह एक प्रभावशाली और सशक्त वक्ता, सामाजिक कार्यकर्ता और प्रेरणादायक व्यक्तित्व बन चुकी हैं। उन्होंने विशेष रूप से दृष्टिहीन या जो लोग देख नहीं पाते उन व्यक्तियों के हक और शिक्षा के क्षेत्र में कई काम किए हैं। उनकी कहानी न सिर्फ एक विकलांग महिला की सफलता की कहानी है, बल्कि यह इस बात का प्रतीक है कि अगर इरादे पक्के हों, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती। छोंजिन आज हजारों युवाओं, विशेष रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए एक प्रेरणा हैं, जो दिखाती हैं कि साहस, धैर्य और लगन से हर मुश्किल पड़ाव को पार किया जा सकता है।
29 वर्षीय छोंजिन आंगमो इस बात का जीता जागता उदाहरण है। छोंजिन हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले की रहने वाली हैं, जो एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला हैं जो देख नहीं पाती।
छोंजिन का मजबूत हौंसला

छोंजिन ने पर्वतारोहण के प्रति अपने जुनून को आगे बढ़ाया। साल 2016 में उन्होंने पर्वतारोहण का कोर्स पूरा किया और लद्दाख और सियाचिन ग्लेशियर की चोटियों पर चढ़ाई की। एक अन्य पर्वतारोही दांडू शेरपा और ओम गुरुंग और अभियान के नेता लेफ्टिनेंट कर्नल रोमिल बर्थवाल के साथ छोंजिन इस महीने की शुरुआत में एवरेस्ट की चोटी पर पहुंची। वह माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली भारत की पहली और दुनिया की पांचवी महिला बन गई हैं हैं जो देख नहीं पाती। उन्होंने सबसे ऊंचे पर्वत पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया। वह मशहूर समाजसेवी और लेखिका हेलेन केलर को अपना आदर्श मानती हैं। उन्हें हेलेन केलर की एक बात बहुत पसंद है कि विकलांग या दृष्टिहीन होना उतना बुरा नहीं, जितना कि आंखें होने के बावजूद कोई लक्ष्य या नजरिया न होना। उन्होंने अपनी आंखों की रोशनी खोने को अपनी कमजोरी नहीं, बल्कि अपनी ताकत बना लिया है। उनका मानना है कि उनका सफर अभी शुरू ही हुआ है।
एक अन्य पर्वतारोही दांडू शेरपा और ओम गुरुंग और अभियान के नेता लेफ्टिनेंट कर्नल रोमिल बर्थवाल के साथ छोंजिन इस महीने की शुरुआत में एवरेस्ट की चोटी पर पहुंची।
बचपन का सपना किया पूरा
उनकी आंखों की रोशनी जाने के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस से ग्रेजुएशन और मास्टर्स की डिग्री हासिल की। इस समय छोंजिन दिल्ली में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में ग्राहक सेवा सहयोगी के तौर पर काम कर रही हैं। उनका कहना है कि मेरी कहानी अभी शुरू हुई है। आंखों से न देख पाना मेरी कमजोरी नहीं, बल्कि मेरी ताकत है। वह बताती हैं कि पहाड़ों पर चढ़ना उनका बचपन का सपना था, लेकिन पैसे की कमी हमेशा एक बड़ी रुकावट रही। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। अब वे कहती हैं कि बाकी ऊंची चोटियों को भी फतह करना है और वे उसके लिए लगातार मेहनत कर रही हैं।
अक्टूबर 2024 में वह एवरेस्ट बेस कैंप (जो 5,364 मीटर की ऊंचाई पर है) तक ट्रेक करने वाली भारत की पहली दृष्टिहीन महिला बनीं। इससे पहले वे लद्दाख में स्थित माउंट कांग यात्से 2 (6,250 मीटर) पर भी सफल चढ़ाई कर चुकी हैं। इसके अलावा, आंगमो उस खास पर्वतारोहण टीम की सदस्य भी रही हैं, जिसे विकलांग अभियान दल कहा जाता है। इस टीम ने लद्दाख में लगभग 6,000 मीटर ऊंची एक अज्ञात चोटी पर चढ़ाई की थी।
अक्टूबर 2024 में वह एवरेस्ट बेस कैंप (जो 5,364 मीटर की ऊंचाई पर है) तक ट्रेक करने वाली भारत की पहली दृष्टिहीन महिला बनीं। इससे पहले वे लद्दाख में स्थित माउंट कांग यात्से 2 (6,250 मीटर) पर भी सफल चढ़ाई कर चुकी हैं।
सपनों के लिए करती रही संघर्ष
छोंजिन ने खेलों के क्षेत्र में भी अपना योगदान दिया है। उन्होंने तैराकी में राज्य स्तर पर गोल्ड मेडल जीता है। इसके अलावा, वे जूडो की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भी हिस्सा ले चुकी हैं। छोंजिन ने राष्ट्रीय स्तर की मैराथन दौड़ों में दो कांस्य पदक भी जीते हैं। वे अब तक तीन बार दिल्ली मैराथन में भाग ले चुकी हैं, और उन्होंने पिंक मैराथन और दिल्ली वेदांता मैराथन में भी दौड़ लगाई है। खेलों में सिर्फ दौड़ और तैराकी ही नहीं, उन्होंने ज़ोनल और नेशनल लेवल पर फुटबॉल भी खेला है। पहाड़ों पर चढ़ने का सपना पूरा करने के लिए, एंगमो ने साल 2016 में अटल बिहारी वाजपेयी पर्वतारोहण संस्थान से बेसिक माउंटेनियरिंग कोर्स किया और उन्हें सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षु चुना गया।

साल 2021 में वे ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम नाम के मिशन के तहत सियाचिन ग्लेशियर पर चढ़ने वाली विकलांगों की टीम की एकमात्र महिला पर्वतारोही बनीं। सियाचिन दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र है। इस चढ़ाई के साथ उन्होंने एक नया विश्व रिकॉर्ड भी बनाया। हर जीत के पीछे उनका मेहनती स्वभाव, आत्मविश्वास और कभी न हार मानने वाला जज़्बा है। वे आज सिर्फ एक पर्वतारोही या एथलीट नहीं हैं, बल्कि उन लाखों लोगों के लिए एक मिसाल बन गई हैं जो किसी न किसी कारण से अपने सपनों को अधूरा छोड़ देते हैं।
उन्होंने तैराकी में राज्य स्तर पर गोल्ड मेडल जीता है। इसके अलावा, वे जूडो की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भी हिस्सा ले चुकी हैं। छोंजिन ने राष्ट्रीय स्तर की मैराथन दौड़ों में दो कांस्य पदक भी जीते हैं।
हौंसला और मेहनत से हर कठिन सपना संभव है
छोंजिन की मेहनत और कामयाबी की सराहना पूरे देश में की गई है। उनकी उपलब्धियों का ज़िक्र खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात रेडियो कार्यक्रम में भी किया था। उन्होंने छोंजिन और उनकी टीम की तारीफ करते हुए उन्हें खास बताया। पिछले साल, उन्हें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सर्वश्रेष्ठ विकलांग व्यक्ति राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया। यह पुरस्कार उन्हें विकलांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण या उनका हौंसला बढ़ाने के लिए दिया गया। इसके अलावा, उन्हें कई और सम्मान भी मिले हैं। उन्हें दिल्ली में नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड की तरफ से विकलांग व्यक्तियों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस पुरस्कार और कैविनकेयर एबिलिटी मास्टरी अवार्ड से भी नवाज़ा गया है। छोंजिन की ये उपलब्धियां दिखाती हैं कि अगर मेहनत और हौंसला हो, तो कोई भी सपना सच हो सकता है।

उनकी कहानी बताती है कि जब इरादे मजबूत और अडिग हो, तो कोई भी बाधा उन्हें रोक सकती। आंखों से न देख पाने के बावजूद, उन्होंने माउंट एवरेस्ट की चोटी पर भारत की पहली और दुनिया की पांचवीं दृष्टिहीन महिला के रूप में राष्ट्रीय ध्वज फहराकर अपने बचपन के सपने को साकार किया, और समाज की सोच को पूरी तरह बदल दिया। आज वह नई ऊंचाइयों को छूने के लिए आगे बढ़ रही हैं और साबित करती हैं कि विकलांगता का मतलब जीवन का रुक जाना नहीं है। उनके संघर्ष और सफलताओं से हम यह सीख सकते हैं कि मुश्किलें चाहे कितनी भी बड़ी हों, जब साहस और संकल्प साथ हो तो उन्हें पार किया जा सकता है।