अक्सर जब हम नारीवाद की बात करते हैं तो हमारे ज़ेहन में नारों, रैलियों, आंदोलनों और गंभीर सैद्धांतिक विमर्शों की तस्वीरें उभरती हैं। लेकिन मेरे लिए नारीवाद केवल सार्वजनिक प्रदर्शन या विद्रोह नहीं है। वह मेरी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा है। घर के अंदर, रसोई में, कपड़े तह करने में, और सबसे ज़्यादा दूसरों को सुनने में। मेरा नारीवादी आनंद वहीं से शुरू होता है जहां से समाज स्त्रीवाद की कल्पना भी नहीं करता। घरेलू ज़िम्मेदारियों को निभाने और औरतों की आवाज़ों को गंभीरता से सुनने से। मैं एक ऐसे परिवार से आता हूं जहां महिलाओं को कमज़ोर या घरेलू कामों तक सीमित मानने की परंपरा नहीं थी।
मेरी माँ ने कभी घर के कामों को जेंडर के आधार पर बांटा ही नहीं। रोटियां बनाना, कपड़े धोना, झाड़ू-पोंछा करना ये सब हमें वैसे ही सिखाया गया जैसे स्कूल भेजा गया। माँ के लिए ये ‘लड़कों’ या ‘लड़कियों’ के काम नहीं थे, बल्कि जीवन के लिए ज़रूरी सर्वाइवल स्किल्स थे। उन्होंने हमें ये सब शायद इसीलिए भी सिखाया ताकि जब वो अपने काम पर गई हुई हो, तो हम अपने काम खुद कर सकें और इसी सोच ने मेरे भीतर समानता की जड़ें डालीं।
जब कोई पुरुष कहता है कि वह घर के काम में अपनी पत्नी की मदद करता है, तो यह भाषा ही पितृसत्ता का पोषण करती है। यह भाव इस सोच को मज़बूत करता है कि काम महिला का ही है, पुरुष बस हेल्पिंग हैंड है।
स्त्रीवादी चेतना की शुरुआती ज़मीन

बचपन में जब मैं अपनी माँ के साथ रसोई में रोटियां बेल रहा होता था या अपने भाई के साथ कपड़े धुलवाने की बारी तय करता था, तब ये समझ नहीं थी कि मैं किसी पितृसत्तात्मक ढांचे का विरोध कर रहा हूं। लेकिन, जब बड़ा हुआ, कॉलेज गया और लैंगिक असमानताओं पर पढ़ना शुरू किया, तब एहसास हुआ कि मेरा यह ‘सहभाग’ दरअसल एक चुपचाप क्रांति थी। सिमोन द बोउवार ने लिखा है, “कोई स्त्री पैदा नहीं होती, बल्कि स्त्री बन जाती है।” इस वाक्य में छिपा सच यही है कि समाज स्त्री और पुरुष की भूमिकाओं को पहले से तय करता है। अगर कोई माँ अपने बेटे को बर्तन मांजने से नहीं रोकती और बेटी को स्कूल भेजने में हिचकती नहीं, तो वह इसी व्यवस्था को चुनौती दे रही होती है। मेरी माँ ने मेरे लिए यही किया।
काम बांटना: मदद नहीं, बराबरी
जब कोई पुरुष कहता है कि वह घर के काम में अपनी पत्नी की मदद करता है, तो यह भाषा ही पितृसत्ता का पोषण करती है। यह भाव इस सोच को मज़बूत करता है कि काम महिला का ही है, पुरुष बस हेल्पिंग हैंड है। लेकिन जब मैं झाड़ू लगाता हूं या बर्तन धोता हूं, तो वह ‘मदद’ नहीं होती। वह मेरी हिस्सेदारी होती है, मेरे घर की ज़िम्मेदारी का निर्वहन होता है। नारीवादी लेखिका बेल हुक्स कहती हैं कि नारीवाद सभी के लिए है। यह बात मेरे लिए इस तरह सच होता है कि स्त्रीवाद का अभ्यास केवल महिलाओं के लिए नहीं, पुरुषों के लिए भी ज़रूरी है। घर के काम करना स्त्रीवादी होने का एक ठोस, भौतिक रूप है वह प्रतिरोध है उस अदृश्य प्रणाली के खिलाफ जो स्त्रियों से थकने का अधिकार भी छीन लेती है। जिन पुरुषों की मानसिकता यह है कि नारीवाद सांसारिक बोध है, वे यह भूल रहे होते हैं कि व्यक्तिगत बोध से ही बदलाव संभव है। इसीलिए, नारीवाद पर सिर्फ बातों से काम नहीं चल सकता। इसे व्यवहार में लाना आवश्यक है।
नारीवाद में ‘सुनना’ केवल सहानुभूति नहीं, एक राजनीतिक क्रिया है। जब मैं अपनी माँ को ध्यान से सुनता हूं, उनकी थकान, उनकी शिकायतें, उनके सपने, तब मैं उन्हें केवल एक माँ के रूप में नहीं, एक इंसान के रूप में स्वीकार करता हूं, कोई सेकेंडरी नागरिक की उपमा नहीं देता हूं।
सुनना एक राजनीतिक क्रिया है
नारीवाद में ‘सुनना’ केवल सहानुभूति नहीं, एक राजनीतिक क्रिया है। जब मैं अपनी माँ को ध्यान से सुनता हूं, उनकी थकान, उनकी शिकायतें, उनके सपने, तब मैं उन्हें केवल एक माँ के रूप में नहीं, एक इंसान के रूप में स्वीकार करता हूं, कोई सेकेंडरी नागरिक की उपमा नहीं देता हूं। यह सुनना बिना टोकने, बिना तर्क दिए, बिना ‘समाधान’ सुझाए होता है। हम पुरुष अक्सर ‘समझाने’ की आदत में पड़ जाते हैं, जिसे ‘मैन्सप्लेनिंग’ कहा जाता है। लेकिन स्त्रीवादी आनंद वहां खिलता है, जहां हम अपनी आवाज़ पीछे रखते हैं और महिलाओं की आवाज़ को सामने आने देते हैं। मेरी बहन जब गुस्से में कुछ साझा करती है या मेरी साथी अपने करियर की दुविधाओं के बारे में बोलती है, तब मैं केवल सुनता हूं क्योंकि सुनना भी प्रेम है, और बराबरी का सबसे पहला क़दम है। इतिहास से लेकर अबतक समाज की निंदा सह रही है कि औरतें बहुत बोलती हैं। लेकिन यह कभी नहीं स्वीकार किया गया कि उन्हें कोई सुनता भी तो नहीं है।
पर्सनल इस पॉलिटिकल

नारीवादी आंदोलन की दूसरी लहर में पर्सनल इज़ पॉलिटिकल यानी निजी ही राजनीतिक है, का नारा सामने आया। इसका मतलब यही है कि घर के भीतर के निजी अनुभव भी राजनीतिक महत्व रखते हैं। इसके अलावा महिलाएं अपने लिए क्या फैसले लेती हैं, उसमें मेरा हस्तक्षेप न ही हो इस बात का मैं ख्याल रखता हूं। मैं उनका सहयोगी हो सकता हूं। लेकिन मैं ही सर्वोपरि हो जाऊं ऐसी मानसिकता से दूर रहते हुए, मैं उनके फैसलों में खुशी ढूंढ ही लेता हूं। मसलन मेरी बहन का मास्टर्स करना हो या कभी-कभी कुछ भी न करते हुए खुद को आराम देना। मुझे खुशी है कि वो मेरे भाई होने को दबाव की तरह नहीं, दोस्त की तरह देखती है।
नारीवादी आंदोलन की दूसरी लहर में पर्सनल इज़ पॉलिटिकल यानी निजी ही राजनीतिक है, का नारा सामने आया। इसका मतलब यही है कि घर के भीतर के निजी अनुभव भी राजनीतिक महत्व रखते हैं। इसके अलावा महिलाएं अपने लिए क्या फैसले लेती हैं, उसमें मेरा हस्तक्षेप न ही हो इस बात का मैं ख्याल रखता हूं।
यह लेख मेरे लिए ऐसे पलों का दस्तावेज़ है जो बाहर से छोटे लगते हैं, लेकिन अंदर से मुझे पितृसत्तात्मक पुरुष होने के खांचे से बाहर निकालते हैं। मेरी माँ का यह कहना कि आज तुम कपड़े सुखा दो, मैं थकी हूं और मेरा बिना सवाल किए वह काम करना, इस बात का आभास कराता है कि मेरी मां जानती हैं, समझती हैं कि आराम करना उनका अधिकार है। हर वक्त मशीन की तरह काम में लगे न रहकर खुद को आराम देना और अपने बारे में सोचना भी जरूरी है।
नारीवादी बनने में मेरी माँ की भूमिका

मैं यह भी मानता हूं कि अगर मैं स्त्रीवादी व्यवहार दिखा रहा हूँ, तो यह मेरी माँ की विरासत है। उन्होंने ही सिखाया कि घर का काम करना किसी की इज्ज़त कम नहीं करता, बल्कि कहीं न कहीं एक संवेदनशील इंसान बनाता है। अगर आज मैं गर्व से कहता हूं कि मुझे बर्तन धोने, खाना बनाने, कपड़े धोने और सफाई करने का हुनर आता है, तो यह इसलिए कि मेरी माँ ने इसे ‘काम’ की तरह नहीं, ‘कला’ की तरह सिखाया है। साथ ही, यह नारीवादी विरासत मुझे उस सामाजिक मानदंड के विरुद्ध खड़ा करता है जहां पुरुष को ‘घर के काम से दूर रहना चाहिए’—यह कहकर उसे ‘मर्द’ माना जाता है। मैं ऐसे मर्दानगी को नकारता हूं, जो संवेदनशीलता को कमजोरी समझती है और श्रम को ‘स्त्रैण’।
एक विकल्प की पेशकश
नारीवाद केवल विरोध नहीं, विकल्प भी है। जब हम घर के कामों को लिंग के आधार पर बांटना बंद करते हैं और सुनने को प्रेम का हिस्सा मानते हैं, तो हम एक नया संसार गढ़ रहे होते हैं। यह संसार औरतों को थकने, रोने, ज़ोर से बोलने, और सबसे ज़रूरी, निराश होने का भी अधिकार देता है। मेरा स्त्रीवादी आनंद वो हर काम है जहां प्रेम और समानता एक-दूसरे के पूरक हो जाते हैं। घर की दीवारों के भीतर वह ज़मीन तैयार होती है जहां स्त्रियां इंसान बनती हैं, और पुरुष भी। मेरा स्त्रीवादी आनंद मेरे व्यवहार में है। मैं जब काम बांटता हूं, जब ध्यान से सुनता हूं, तब मैं सिर्फ एक बेटा, भाई या साथी नहीं होता—मैं एक सहभागी होता हूं। मैंने अपने आस-पास, दोस्तों में गौर किया है कि नारीवाद को वह एक नकारात्मक रूप में देखा जाता है क्योंकि यह उनके पुरुष होने के विशेषाधिकार को ताक पर रख देता है। मैं उन्हें समझाता हूं कि कैसे यह पुरुषों के हक़ भी सामने रखता है और महिलाओं को संघर्ष और अधिकार से जोड़ता है। वे कितना समझते हैं, यह तो वे ही जानते होंगे। लेकिन यह सब समझकर मैं एक बेहतर व्यक्ति बनने की कोशिश में रहता हूं, यही मेरा फेमिनिस्ट जॉय है।