समाजख़बर हर तीन में से एक भारतीय को अनचाहे गर्भावस्था का करना पड़ता है सामना: रिपोर्ट

हर तीन में से एक भारतीय को अनचाहे गर्भावस्था का करना पड़ता है सामना: रिपोर्ट

यूएनएफपीए की साल 2025 की रिपोर्ट के मुताबिक,हर तीन में से एक वयस्क भारतीय 36 फीसद अनचाहे गर्भधारण का सामना करता है।  जबकि 30 फीसद लोग या तो अधिक या कम बच्चे पैदा करने की इच्छा पूरी नहीं कर पाते और 23 फीसद लोगों को दोनों ही स्थितियों का सामना करना पड़ता है।

भारत देश को आजाद हुए कई साल बीत चुके हैं लेकिन भारत में रहने वाले लोग खासकर महिलाएं आज भी पूरी तरह से आजाद नहीं हैं। लाखों महिलाएं अपने ही शरीर पर नियंत्रण से वंचित हैं। प्रजनन स्वास्थ्य, जिसे एक मौलिक मानव अधिकार माना जाता है, भारत में अब भी सामाजिक बंदिशों, जानकारी की कमी और पितृसत्ता की जंजीरों में जकड़ा हुआ है। यह एक ऐसा संकट है जो दिखता कम है लेकिन असर गहरा छोड़ता है। हाल ही की संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट 2025 के मुताबिक, हर तीन में से एक वयस्क भारतीय को 36 फीसद अनचाहे गर्भधारण का सामना करता है। 

जबकि 30 फीसद लोग या तो अधिक या कम बच्चे पैदा करने की इच्छा पूरी नहीं कर पाते और 23 फीसद लोगों को दोनों ही स्थितियों का सामना करना पड़ता है। यह आंकड़ा सिर्फ स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा नहीं है, बल्कि इससे कहीं ज़्यादा गहरा और सामाजिक असर वाला संकट है। यह दिखाता है कि भारत में आज भी कई महिलाएं अपने शरीर, अपने फैसलों और प्रजनन अधिकारों पर पूरा नियंत्रण नहीं रख पातीं। स्वास्थ्य अभियानों और शहरी विकास के तमाम दावों के बावजूद, देश के ग्रामीण और हाशिये पर रह रहे समुदायों में गहरी पितृसत्तात्मक सोच, शिक्षा की कमी और सेवाओं की अनुपलब्धता महिलाओं की यौनिकता और मातृत्व पर अधिकार छीन रही है। 

तीन में से एक वयस्क भारतीय 36 फीसद अनचाहे गर्भधारण का सामना करता है। जबकि 30 फीसद लोग या तो अधिक या कम बच्चे पैदा करने की इच्छा पूरी नहीं कर पाते और 23 फीसद लोगों को दोनों ही स्थितियों का सामना करना पड़ता है।

अनचाही गर्भावस्था क्या होती है?

तस्वीर साभार : Business Standard

अनचाही गर्भावस्था वह स्थिति होती है जब कोई महिला या किशोरी गर्भधारण नहीं करना चाहती, लेकिन फिर भी वह गर्भवती हो जाती है। यह गर्भधारण उस समय भी हो सकता है जब वह मानसिक, शारीरिक या सामाजिक रूप से मां बनने के लिए तैयार नहीं होती, या फिर वह बच्चा नहीं चाहती। इसकी कई वजहें हो सकती हैं। सबसे आम कारण है गर्भनिरोधक साधनों की जानकारी का अभाव या उनका आसानी से उपलब्ध न होना। कई बार महिलाएं इन साधनों का इस्तेमाल करना चाहती हैं, लेकिन परिवार, पति की मनाही के कारण वे ऐसा नहीं कर पातीं। कई बार यौन संबंध जबरदस्ती या महिला की सहमति के बिना भी बनाए जाते हैं। ऐसी स्थिति में गर्भधारण न केवल अनचाहा होता है, बल्कि मानसिक और शारीरिक रूप से भी महिला के लिए बहुत तकलीफ दायक बन जाता है। 

खासकर किशोरियों और ग्रामीण इलाकों की महिलाओं को यौन शिक्षा नहीं मिलती। दूसरी ओर अगर गर्भ ठहर भी जाए तो कई बार सुविधा या कानूनी जानकारी उनके पास नहीं होती, जिससे वे चाहकर भी किसी डॉक्टर की सलाह लेकर अबॉर्शन नहीं करवा पातीं। इससे यह भी पता चलता है कि भारत में आज भी इसको लेकर डर, शर्म और जानकारी की कमी जैसी समस्याएं बहुत आम हैं। अनचाही गर्भावस्था सिर्फ स्वास्थ्य से जुड़ी नहीं है, यह महिला की आजादी, उसकी इच्छाओं, शिक्षा, सामाजिक हालात और फैसले लेने की आज़ादी से भी जुड़ा एक गंभीर मुद्दा है।

अनचाही गर्भावस्था वह स्थिति होती है जब कोई महिला या किशोरी गर्भधारण नहीं करना चाहती, लेकिन फिर भी वह गर्भवती हो जाती है।

किशोरियां और ग्रामीण महिलाएं होती हैं अधिक प्रभावित

तस्वीर साभार : Pulitzer Center

यूएनएफपीए की रिपोर्ट 2025 के अनुसार, भारत में हर तीन में से एक व्यक्ति को अनचाही गर्भावस्था का सामना करना पड़ता है। किशोरियों और युवा महिलाओं में यह समस्या और भी गंभीर है, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां न तो यौन और प्रजनन स्वास्थ्य की पूरी तरह से जानकारी मिलती है और न ही जरूरी सेवाओं तक पहुंच होती है। भारत में यौन शिक्षा अब भी एक ऐसा विषय बना हुआ है। जिसे स्कूलों में ठीक से पढ़ाया नहीं जाता और परिवारों में भी इस पर खुलकर बात नहीं होती। नतीजा यह होता है कि किशोर और युवा अपनी ही ज़रूरतों और अधिकारों को नहीं समझ पाते। आज भी बहुत सी महिलाएं यह तय नहीं कर पातीं कि वे कब मां बनेंगी, कितने बच्चे पैदा करना चाहती हैं, गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करेंगी या नहीं। खासकर ग्रामीण इलाकों और कुछ राज्यों में हालात और भी खराब हैं

वहां न तो ज़रूरी सुविधाएं हैं, न सही जानकारी, और ऊपर से समाज का दबाव भी बहुत है। जब किसी  महिला को अबॉर्शन करवाना हो तो उसके लिए भी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। द मुकनायक में छपी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की रिपोर्ट बताती है कि भारत में जितने भी अबॉर्शन होते हैं, उनमें से करीब 27फीसद महिलाएं घर पर ही अबॉर्शन करती हैं, बिना किसी डॉक्टर की सलाह या निगरानी के। यह एक बहुत ही चिंताजनक स्थिति है, क्योंकि इससे महिलाओं की जान को खतरा हो सकता है।अगर शहरों की बात करें तो लगभग 22.1फीसद महिलाएं घर पर ही अबॉर्शन करवाती हैं। वहीं, गांवों में ये आंकड़ा और भी ज्यादा है करीब 28.7फीसद महिलाएं अबॉर्शन घर पर ही कर रही हैं। इससे यह साफ़ होता है कि गांवों में महिलाओं को सही मेडिकल सुविधा, जानकारी और सहयोग की कमी है, जिसकी वजह से उन्हें ये जोखिम भरा कदम उठाना पड़ता है। 

भारत में जितने भी अबॉर्शन होते हैं, उनमें से करीब 27फीसद महिलाएं घर पर ही अबॉर्शन करती हैं, बिना किसी डॉक्टर की सलाह या निगरानी के। यह एक बहुत ही चिंताजनक स्थिति है।

प्रजनन दर में क्षेत्रीय अंतर

तस्वीर साभार : Money Control

द इकोनॉमिक टाइम में छपी रिपोर्ट के मुताबिक भारत की जनसंख्या 2025 में 1.46 करोड़ तक पहुंच गई है, जो 1.9 की घटती प्रजनन दर के बावजूद दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में चीन को पीछे छोड़ देगी। यह रिपोर्ट क्षेत्रीय असमानताओं को उजागर कर रही है, कुछ राज्यों में गर्भनिरोधक और स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुंच के कारण उच्च प्रजनन दर का अनुभव होता है, जबकि कुछ में प्रतिस्थापन स्तर से नीचे अनुभव किया जा सकता है। देश के कुछ हिस्सों में महिलाएं अभी भी ज़्यादा बच्चे पैदा कर रही हैं, जबकि कुछ जगहों पर औसत से भी कम बच्चे हो रहे हैं। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में प्रजनन दर अब भी ज़्यादा है यानी वहां महिलाएं ज़्यादा बच्चे पैदा कर रही हैं। वहीं दूसरी ओर, दिल्ली, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में महिलाएं 2 से भी कम बच्चे पैदा कर रही हैं, जो कि जनसंख्या को संतुलित बनाए रखने से भी कम है। यह फर्क कई चीज़ों की ओर इशारा करता है। 

हाशिये पर रह रहे समुदाय के व्यक्तियों के पास आर्थिक अवसरों में अंतर,स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की कमी, शिक्षा के स्तर में अंतर, खासकर महिलाओं की शिक्षा और सबसे ज्यादा  लिंग और सामाजिक भेदभाव यानी कई जगहों पर महिलाएं अब भी अपने फैसले खुद नहीं ले पातीं। यूएनएफपीए-यूगोव सर्वेक्षण के मुताबिक भारत समेत 14 देशों में आयोजित ऑनलाइन सर्वेक्षण में 14,000 लोगों को शामिल किया गया। इसमे पाया गया कि  लगभग 10 में से 4 लोगों का कहना है कि पैसों की कमी उन्हें मनचाहा परिवार पाने से रोक रही हैं। नौकरी की असुरक्षा 21फीसद , आवास की कमी 22 फीसद, और विश्वसनीय चाइल्डकैअर की कमी 18 फीसदी  के कारण माता-पिता बनना पहुंच से बाहर लगता है। गर्भावस्था से संबंधित देखभाल तक सीमित पहुंच 14 फीसदी स्वास्थ्य बाधाएं और भी अधिक तनाव पैदा करती हैं।19 फीसदी व्यक्तियों को अपने जीवन-साथी या परिवार से यह दबाव झेलना पड़ता है ताकि वह अपनी व्यक्तिगत इच्छा से कम बच्चे पैदा करें। इसलिए भारत में प्रजनन दर की स्थिति एक जैसी नहीं है।

बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में प्रजनन दर अब भी ज़्यादा है। वहां महिलाएं ज़्यादा बच्चे पैदा कर रही हैं। वहीं दूसरी ओर, दिल्ली, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में महिलाएं 2 से भी कम बच्चे पैदा कर रही हैं, जो कि जनसंख्या को संतुलित बनाए रखने से भी कम है।

अनचाहे गर्भावस्था का प्रभाव 

तस्वीर साभार :IDiva

अनचाही गर्भावस्था विशेष रूप से किशोरावस्था में शरीर की पोषण ज़रूरतों और विकास पर गंभीर असर डालती है। ऐसी स्थिति में मां और बच्चा दोनों कुपोषित हो सकते हैं।  डबल्यूएचओ के अनुसार, किशोरावस्था में गर्भधारण करने वाली महिलाओं में मौत का ख़तरा अधिक होता है, खासकर जब स्वास्थ्य सेवाएं सीमित हों। जब कोई लड़की या महिला उस समय गर्भवती हो जाती है जब वह मानसिक, भावनात्मक या आर्थिक रूप से तैयार नहीं होती, तो यह स्थिति उसे भारी तनाव में डाल देती है। अनचाही गर्भावस्था अक्सर गहरे अवसाद और चिंता का कारण बनती है। किशोरावस्था में गर्भधारण करने वाली लड़कियों को अक्सर पढ़ाई छोडनी पड़ती है।

क्योंकि शिक्षण संस्थानों में उनके लिए न तो पर्याप्त समर्थन होता है और न ही सामाजिक स्वीकृति। इससे उनकी शिक्षा अधूरी रह जाती है। शिक्षा अधूरी रहने के कारण वे भविष्य में अच्छी नौकरी या रोज़गार के अवसरों से वंचित रह जाती हैं। इससे वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं बन पातीं। अनचाही गर्भावस्था महिलाओं के शरीर और जीवन पर पुरुषों और परिवार की सत्ता को और मज़बूत करती है। कई बार लड़कियों को जबरन शादी करने या अबॉर्शन के लिए मजबूर किया जाता है। कई राज्यों में सुरक्षित अबॉर्शन तक पहुंच कठिन है, खासकर अगर लड़की नाबालिग हो। इससे उसके जीवन पर खतरा और बढ़ जाता है।

अनचाही गर्भावस्था किशोरावस्था में शरीर की पोषण ज़रूरतों और विकास पर गंभीर असर डालती है। ऐसी स्थिति में मां और बच्चा दोनों कुपोषित हो सकते हैं।  डबल्यूएचओ के अनुसार, किशोरावस्था में गर्भधारण करने वाली महिलाओं में मौत का ख़तरा अधिक होता है,

समाज में अनचाही गर्भावस्था को गलती या पाप के रूप में देखा जाता है,जिससे गर्भवती किशोरी को तानों, आलोचना और भेदभाव का सामना करना पड़ता है। किशोर यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के लिए वैज्ञानिक डॉक्टर शेरी बैस्टियन का कहना है, “कम आयु में लड़कियों की शादी होने से, लड़कियों से उनका बचपन छिन जाता है और उनके स्वास्थ्य पर गम्भीर प्रभाव पड़ते हैं।” बैस्टियन ने, लड़कियों के भविष्य को बदलने में, शिक्षा की शक्ति पर ज़ोर दिया। साथ ही कहा कि लड़के और लड़कियों दोनों को, यौन सम्बन्ध बनाने में सहमति की अवधारणा को समझने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा, ” लैंगिक असमानताओं को चुनौती देने की ज़रूरत है जो दुनिया के कई हिस्सों में, बाल विवाह और समय से पहले गर्भधारण की उच्च दरों को बढ़ावा देती हैं।”

अनचाहे गर्भावस्था से कैसे बच सकते हैं  

तस्वीर साभार : I Stock

हर व्यक्ति तक गर्भनिरोधक, सुरक्षित अबॉर्शन और मां बनने के दौरान की देखभाल जैसी जरूरी सेवाएं पहुंचाना बहुत जरूरी है। यौन और प्रजनन स्वास्थ्य को बेहतर बनाना एक अहम तरीका है। इसके लिए इन सेवाओं को हर जगह और सभी के लिए सुलभ बनाना ज़रूरी है। अगर बच्चों की देखभाल, अच्छी शिक्षा, रहने के लिए घर और काम की जगहों पर लचीलापन होगा तो हम उन बड़ी रुकावटों को दूर कर सकते हैं जो लोगों को परिवार बसाने और जीवन में आगे बढ़ने से रोकती हैं। ऐसी नीतियों को बढ़ावा देना ज़रूरी है जो अविवाहित लोगों, एलजीबीटी या क्वीयर,ट्रांस समुदाय के व्यक्तियों और हाशिये पर रहने वाले लोगों को भी बराबरी से स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाएं ताकि कोई भी पीछे न छूटे। इन छोटे-छोटे प्रयासों से बड़े बदलाव आ सकते हैं जैसे कि लोगों को सही जानकारी देना, गलत धारणाओं को तोड़ना और प्रजनन स्वास्थ्य पर खुलकर बात करना आदि। लैंगिक असमानताओं को चुनौती देने की ज़रूरत है जो दुनिया के कई हिस्सों में, बाल विवाह और समय से पहले गर्भधारण की उच्च दरों को बढ़ावा देती हैं।

यूएनएफपीए की रिपोर्ट साफ तौर पर दिखाती है कि भारत में अनचाही गर्भावस्था एक व्यापक लेकिन अदृश्य संकट बन चुका है। यह केवल स्वास्थ्य का नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और लैंगिक न्याय का भी मुद्दा है। इससे जुड़ी समस्याएं जैसे यौन शिक्षा की कमी, गर्भनिरोधक सेवाओं तक पहुंच न होना, पितृसत्तात्मक नियंत्रण, किशोरावस्था में विवाह और यौन हिंसा  जैसे कारण इस समस्या को और गहराई देते हैं। खासकर किशोरियों, ग्रामीण और हाशिये पर जी रहे समुदायों की महिलाएं सबसे ज़्यादा प्रभावित होती हैं। अनचाही गर्भावस्था महिलाओं की आत्मनिर्भरता, पढ़ाई और भविष्य के सपनों पर असर डालती है। कई बार उन्हें समाज की आलोचना और शर्मिंदगी का सामना भी करना पड़ता है। अनचाही गर्भावस्था एक गंभीर सामाजिक और स्वास्थ्य समस्या है जो महिलाओं की आज़ादी, शिक्षा और भविष्य को प्रभावित करता है। इससे निपटने के लिए यौन और प्रजनन स्वास्थ्य को अधिकार मानते हुए सभी के लिए जानकारी और सेवाएं सुलभ बनाना ज़रूरी है। जब तक हर एक व्यक्ति चाहे वो किसी भी समुदाय या शारीरिक पहचान का हो अपने शरीर और फैसलों पर पूरा अधिकार नहीं पा लेता, तब तक प्रजनन स्वतंत्रता अधूरी रहेगी।

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