प्राइड मंथ एक ऐसा वैश्विक पर्व है जो केवल उत्सव नहीं, बल्कि इतिहास, पहचान और संघर्ष की स्मृति है। यह महीना क्वीयर समुदाय के आत्मसम्मान, अधिकारों और उपलब्धियों को सम्मान देने का समय है। यह हमें याद दिलाता है कि प्रेम किसी भी परिभाषा में सीमित नहीं है, और हर व्यक्ति को अपनी पहचान के साथ जीने का अधिकार है। आज प्राइड का स्वरूप केवल बड़े शहरों, रंग-बिरंगी परेड या कार्यक्रमों तक सीमित नहीं है। यह ग्रामीण इलाकों, आदिवासी समुदायों और तकनीकी दुनिया जैसे उन क्षेत्रों तक भी पहुंच चुका है जहां पहले क्वीयर पहचान को जगह नहीं मिलती थी। प्राइड मंथ अब वह स्पेस बन चुका है, जो विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले क्वीयर लोगों की आवाज़, संघर्ष और रचनात्मकता को सामने लाता है।
क्वीयर समुदाय के सदस्य—चाहे वे कलाकार हों, सामाजिक कार्यकर्ता, डॉक्टर, लेखक, ड्रैग परफॉर्मर या टेक्नोलॉजी से जुड़े इनोवेटर—हर क्षेत्र में अपनी मौजूदगी दर्ज करवा रहे हैं। आज कई कलाकार और एक्टिविस्ट कस्बों और गांवों से निकलकर अपने काम से न केवल दृश्यता बढ़ा रहे हैं, बल्कि अपने समुदायों में बदलाव की लहर भी ला रहे हैं। वे समावेशिता को सिर्फ सिद्धांत नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की जिंदगी में जी रहे हैं और दूसरों को भी इसका हिस्सा बना रहे हैं। यह बदलाव हमें यह सोचने के लिए प्रेरित करता है कि क्वीयर होना सिर्फ एक पहचान नहीं, बल्कि एक जीवंत सामाजिक आंदोलन है, जो प्रेम, अधिकार और बराबरी की नींव पर खड़ा है। हम इस लेख के जरिए ऐसे ही कुछ क्वीयर समुदाय से जुड़े लोगों की आज बात करने की कोशिश कर रहे हैं।
बिहार के बक्सर में जन्मीं 36 वर्षीय अवतारी देवी—जिनका पहले नाम सारांश सुगंध था, दिल्ली में रहने वाले एक स्वतंत्र फिल्म निर्माता, पत्रकार और क्वीयर कलाकार हैं। वह न केवल एक ड्रैग क्वीन के रूप में मंच पर अपनी पहचान गढ़ते हैं, बल्कि अपने प्रदर्शन के ज़रिए जेंडर, यौनिकता और सांस्कृतिक परंपराओं को भी नए नज़रिए से पेश करते हैं।
लौंडा नाच को जीवंत करने वाली अवतारी देवी
बिहार के बक्सर में जन्मीं 36 वर्षीय अवतारी देवी—जिनका पहले नाम सारांश सुगंध था, दिल्ली में रहने वाले एक स्वतंत्र फिल्म निर्माता, पत्रकार और क्वीयर कलाकार हैं। वह न केवल एक ड्रैग क्वीन के रूप में मंच पर अपनी पहचान गढ़ते हैं, बल्कि अपने प्रदर्शन के ज़रिए जेंडर, यौनिकता और सांस्कृतिक परंपराओं को भी नए नज़रिए से पेश करते हैं। उनके ड्रैग अवतार ‘अवतारी देवी’ की प्रेरणा बिहार की पारंपरिक लौंडा नाच परंपरा से आती है, जिसमें पुरुष कलाकार स्त्री किरदार निभाते हैं। उनका सबसे चर्चित परफॉर्मेंस ‘लीला’ एक 50 मिनट लंबा सोलो ड्रैग एक्ट है, जो हिंदी, अंग्रेज़ी और भोजपुरी भाषा में रचा गया है। इसमें पहचान, प्रेम, कृष्ण भक्ति और जेंडर पॉलिटिक्स जैसे कई स्तरों पर बात की गई है। ‘लीला’ की कथा में गोपियों की उपस्थिति, मिथकीय कथा और लौंडा नाच जैसी लोक परंपराएं एक साथ बुनी गई हैं, जिससे यह परफॉर्मेंस पारंपरिक संस्कृति और आधुनिक क्वीयर विमर्श के बीच एक पुल बन जाती है।

इस परफॉर्मेंस में अवतारी स्त्रीत्व की परंपरागत छवियों को चुनौती देती हैं, साथ ही ‘ड्रैग’ को एक पवित्र, भावनात्मक और राजनीतिक माध्यम के रूप में सामने लाती हैं। ‘लीला’ सिर्फ एक शो नहीं, बल्कि वह मंच है जहां दर्शक क्वीयर अस्तित्व की गहराई, उसकी पीड़ा और उसकी ताकत को महसूस कर सकते हैं। वह केवल एक कलाकार नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक आंदोलन का हिस्सा हैं। उनका ड्रैग अवतार नाच और नाटक के ज़रिए समाज की उस सोच को चुनौती देता है, जो स्त्रीत्व और मर्दानगी को तयशुदा खांचों में बांधना चाहता है। वह देसी ड्रैग को एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय की आत्म-अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम मानते हैं। उनकी परफॉर्मेंस और सार्वजनिक उपस्थिति यह दिखाती है कि देसी संदर्भों में भी ड्रैग केवल ‘मनोरंजन’ नहीं, बल्कि प्रतिरोध, चेतना और स्वीकृति की एक प्रक्रिया है।
रूमी ने साल 2014 में खुदको एक ट्रांस पुरुष के रूप में पहचाना और साल 2020 में उन्होंने अपना नाम और जेन्डर कानूनी रूप से बदल लिए। यह बदलाव केवल व्यक्तिगत नहीं था, बल्कि यह उन हज़ारों-लाखों लोगों के लिए उम्मीद की किरण बना, जो अपनी पहचान को लेकर असमंजस और संघर्ष में हैं।
रूमी हरीश: कला, साहित्य और सामाजिक बदलाव की मिसाल
साल 1973 में बैंगलोर में जन्मीं सुमति मूर्ति, जो आगे चलकर रूमी हरीश बनीं, एक ट्रांस पुरुष हैं और बेंगलुरु से ताल्लुक रखती हैं। मात्र आठ वर्ष की उम्र से ही उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेना शुरू किया। उनके गुरु पंडित रामाराव नाइक और पंडित येशकांत रहे। रूमी ने साल 2014 में खुदको एक ट्रांस पुरुष के रूप में पहचाना और साल 2020 में उन्होंने अपना नाम और जेन्डर कानूनी रूप से बदल लिए। यह बदलाव केवल व्यक्तिगत नहीं था, बल्कि यह उन हज़ारों-लाखों लोगों के लिए उम्मीद की किरण बना, जो अपनी पहचान को लेकर असमंजस और संघर्ष में हैं। इंडिया फाउंडेशन फॉर द आर्ट्स (आईएफए) के प्रोजेक्ट के तहत रूमी ने बेंगलुरु में रहने वाले ट्रांसजेंडर लोगों के अनुभवों पर आधारित एक थियेटर प्रस्तुति तैयार की। यह प्रस्तुति न सिर्फ मंच पर असल ज़िंदगियों के अनुभवों को लाती है, बल्कि संस्थागत हिंसा और पुलिस व्यवस्था में मौजूद भेदभाव को भी उजागर करती है।

यह काम समावेशी विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल था। साल 2023 में रूमी की आत्मकथा ‘जौनपुरी ख्याल’ कन्नड़ में प्रकाशित हुई, जिसे भारत में किसी ट्रांस पुरुष द्वारा लिखी गई पहली आत्मकथा मानी जाती है। यह किताब सिर्फ एक व्यक्तिगत कहानी नहीं है, बल्कि यह जेंडर, समाज, परिवार और अस्मिता से जुड़े कई जटिल और जरूरी सवालों को सामने लाती है। रूमी ने कला, साहित्य, शोध और सामाजिक मंचों के ज़रिए ट्रांस समुदाय की आवाज़ को मज़बूती दी है। उनका काम यह साबित करता है कि जब व्यक्तिगत अनुभवों को रचनात्मकता के साथ जोड़ा जाए, तो वे सामाजिक बदलाव की दिशा में एक गहरी और असरदार भूमिका निभा सकते हैं।
तेजल ने 2003–2004 में लरज़िश नाम से भारत का पहला इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ सेक्सुअलिटी एंड जेंडर प्लुरलिटी आयोजित किया था, जो एक ऐतिहासिक और साहसिक पहल मानी जाती है। उनका प्रसिद्ध प्रोजेक्ट हिजड़ा फैंटेसी सीरीज़ (2006) ट्रांस समुदाय को समर्पित था, जिसमें उन्होंने इन्हें राजा रवि वर्मा की प्रसिद्ध पेंटिंग्स की शैली में नए सिरे से प्रस्तुत किया।
कला के ज़रिए क्वीयर पहचान को आवाज़ देती तेजल शाह
भिलाई, छत्तीसगढ़ में 1979 में जन्मीं तेजल शाह एक प्रभावशाली क्वीयर कलाकार हैं। वे वीडियो आर्ट, फोटोग्राफी और इंस्टॉलेशन जैसे माध्यमों में सक्रिय हैं। तेजल ने 2003–2004 में लरज़िश नाम से भारत का पहला इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ सेक्सुअलिटी एंड जेंडर प्लुरलिटी आयोजित किया था, जो एक ऐतिहासिक और साहसिक पहल मानी जाती है। उनका प्रसिद्ध प्रोजेक्ट हिजड़ा फैंटेसी सीरीज़ (2006) ट्रांस समुदाय को समर्पित था, जिसमें उन्होंने इन्हें राजा रवि वर्मा की प्रसिद्ध पेंटिंग्स की शैली में नए सिरे से प्रस्तुत किया। यह काम क्वीयर इतिहास और सांस्कृतिक पुनर्पाठ का एक ज़रूरी उदाहरण बन गया।

साल 2012 में जर्मनी के प्रतिष्ठित डॉक्यूमेन्टा 13 में तेजल ने अपना पांच-चैनल वीडियो इंस्टॉलेशन बिटवीन द वेव्स प्रस्तुत किया। इस कलाकृति में उन्होंने क्वीयर इकोलॉजी और इंटरस्पीशीज़ आइडेंटिटी जैसे जटिल और प्रगतिशील विचारों को सामने रखा। उनके काम क्वीयर-फेमिनिस्ट दृष्टिकोण, पर्यावरण-मनोविज्ञान और सामाजिक न्याय की अवधारणाओं से गहराई से जुड़े हुए हैं। उन्होंने कला को केवल सौंदर्य का नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव का भी माध्यम बनाया है, और हाशिये के समुदायों की आवाज़ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मंच प्रदान किया है।
दुर्गा गावड़े भारत के पहले ड्रैगकिंग माने जाते हैं। वे एक कलाकार, ट्रांसजेंडर अधिकार कार्यकर्ता, ड्रैग परफॉर्मर, अभिनेता और शिल्पकार हैं। दुर्गा अपनी लैंगिक पहचान को जेंडर-फ्लूइड, नॉन-बाइनरी और पैनसेक्शुअल के रूप में परिभाषित करते हैं।
दुर्गा गावड़े: ड्रैग के ज़रिए पहचान और प्रतिरोध की अभिव्यक्ति
दुर्गा गावड़े भारत के पहले ड्रैगकिंग माने जाते हैं। वे एक कलाकार, ट्रांसजेंडर अधिकार कार्यकर्ता, ड्रैग परफॉर्मर, अभिनेता और शिल्पकार हैं। दुर्गा अपनी लैंगिक पहचान को जेंडर-फ्लूइड, नॉन-बाइनरी और पैनसेक्शुअल के रूप में परिभाषित करते हैं। उनका मानना है कि कला सिर्फ़ सुंदरता नहीं, बल्कि प्रतिरोध का भी ज़रिया है। वे बॉडी आर्ट और परफॉर्मेंस आर्ट के ज़रिए अपने अनुभव, संघर्ष, प्रेम और राजनीति को मंच पर लाते हैं। दुर्गा ने अपने ड्रैग किरदार को ‘शक्ति’ नाम दिया है। इस किरदार के माध्यम से वे पितृसत्ता और लैंगिक दोहराव को चुनौती देते हैं।

उनकी प्रस्तुति पारंपरिक जेंडर नियमों की सीमाओं को तोड़ती है और क्वीयर अभिव्यक्ति को नई ऊंचाइयों पर ले जाती है। वे कहते हैं कि साल 2009 में वेनिस बिएनाले में मिले अनुभव ने उन्हें ड्रैग को एक राजनीतिक और कलात्मक प्रतिरोध के रूप में अपनाने के लिए प्रेरित किया। आज दुर्गा गावड़े न केवल कला की दुनिया में एक उल्लेखनीय नाम हैं, बल्कि क्वीयर दृश्यता और आत्म-अभिव्यक्ति की एक मज़बूत आवाज़ भी हैं।
तमिलनाडु के पोल्लाची में जन्मी कल्कि सुब्रमण्यम एक मेधावी छात्रा रही हैं। वे एक ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता, कलाकार, लेखिका और सामाजिक उद्यमी हैं। साल 2014 में भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को ‘थर्ड जेंडर’ की कानूनी मान्यता दिलाने की ऐतिहासिक लड़ाई में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई।
कल्कि सुब्रमण्यम: एक सशक्त ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता और कलाकार
तमिलनाडु के पोल्लाची में जन्मी कल्कि सुब्रमण्यम एक मेधावी छात्रा रही हैं। वे एक ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता, कलाकार, लेखिका और सामाजिक उद्यमी हैं। उन्होंने ट्रांसजेंडर समुदाय के सामाजिक, कानूनी और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए उल्लेखनीय काम किया है। साल 2014 में भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को ‘थर्ड जेंडर’ की कानूनी मान्यता दिलाने की ऐतिहासिक लड़ाई में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। उनके काम को एक और पहचान तब मिली जब साल 2015 में फेसबुक ने उन्हें दुनिया की 12 सबसे प्रेरणादायक महिलाओं में शामिल किया।

साल 2008 में उन्होंने सहोदरी फाउंडेशन नामक गैर सरकारी संस्थान की शुरुआत की, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को शिक्षा, रचनात्मक आजीविका, छात्रवृत्तियों और कानूनी सहायता के ज़रिए सशक्त बनाने का काम करता है। कल्कि की ‘रेड वॉल परियोजना’ वर्ष 2018 में शुरू की गई थी। यह एक सामुदायिक कला परियोजना है, जिसका उद्देश्य ट्रांसजेंडर और जेंडर-डायवर्स समुदाय की आवाज़ों को मुख्यधारा में लाना है।
ऐन्द्रिया बरुआ: क्वीयर, न्यूरोडायवर्जेंट कलाकार और एआई इंजीनियर
त्रिपुरा की आदिवासी समुदाय से आने वाली ऐन्द्रिया बरुआ एक क्वीयर, आदिवासी और न्यूरोडायवर्जेंट कलाकार और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) इंजीनियर हैं। वे खुद को नॉन-बाइनरी के रूप में पहचानती हैं और समुदाय-आधारित सक्रियता और रचनात्मक कार्यों से गहराई से जुड़ी हुई हैं। ऐन्द्रिया ने ‘शोर’ नामक एक ऐप का निर्माण किया है, जो एक एआई आधारित टूल है। यह टूल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर नफरत फैलाने वाले भाषणों की पहचान करता है। खासकर हिंग्लिश जैसी मिश्रित भाषाओं में लिखे गए कंटेंट को भी यह समझने में सक्षम है।

इस तकनीक को जस्ट एआई अवार्ड्स 2024 में विजेता के रूप में सम्मानित किया गया और इसे रेडिट पर एक मॉडरेशन बॉट के रूप में भी अपनाया गया है। ऐन्द्रिया ने यूएनएफपीए अंतरराष्ट्रीय हैकथॉन में तीसरा स्थान प्राप्त किया, जिससे उनकी तकनीकी और सामाजिक समझ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता मिली। वे कंप्यूटर इंजीनियरिंग, राजनीतिक कला और सामुदायिक समाजवाद को जोड़ते हुए ट्रांस, आदिवासी और न्यूरोडायवर्जेंट अनुभवों को सामने लाने का काम कर रही हैं।
ऐन्द्रिया ने ‘शोर’ नामक एक ऐप का निर्माण किया है, जो एक एआई आधारित टूल है। यह टूल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर नफरत फैलाने वाले भाषणों की पहचान करता है। खासकर हिंग्लिश जैसी मिश्रित भाषाओं में लिखे गए कंटेंट को भी यह समझने में सक्षम है।
त्रिनेत्रा – ट्रांस अधिकारों की एक मुखर आवाज़
त्रिनेत्रा का जन्म 17 जून 1997 को बेंगलुरु के पास एक गांव में हुआ था। उन्होंने ट्रांसजेंडर महिला के रूप में न सिर्फ अपने ट्रांज़िशन और सर्जरी की प्रक्रिया को डिजिटल रूप से साझा किया, बल्कि यूट्यूब और इंस्टाग्राम के ज़रिए इसे सार्वजनिक कर कई ट्रांस और क्वीयर युवाओं को रास्ता दिखाया। मेड इन हेवन-2 में मुख्य भूमिका निभाकर वे किसी बड़े ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अभिनय करने वाली पहली ट्रांसवुमन बनीं। फोर्ब्स इंडिया की अंडर 30 सूची और अन्य प्रतिष्ठित सूचियों और पत्रिकाओं में उन्हें शामिल किया गया है।

स्वास्थ्य सेवाओं में ट्रांस समुदाय की समस्याओं को देखते हुए त्रिनेत्रा ने ‘द रेनबो पिल लिस्ट’ की शुरुआत की, जिसमें 200 से अधिक LGBTQIA+ फ्रेंडली डॉक्टरों की जानकारी दी गई है। कॉलेज में हॉस्टल से जुड़ी असमानता के खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की थी। त्रिनेत्रा आज एक डॉक्टर, अभिनेत्री और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में क्वीयर समुदाय की समानता, गरिमा और अधिकारों की लड़ाई में एक मजबूत आवाज़ हैं।

