संस्कृतिसिनेमा ‘सर-ए-राह’: रास्ते से सशक्तिकरण तक महिलाओं की कहानियां

‘सर-ए-राह’: रास्ते से सशक्तिकरण तक महिलाओं की कहानियां

‘सर-ए-राह’ एक ऐसा ही पाकिस्तानी ड्रामा है, जिसमें दिखाया गया है कि कैसे महिलाएं समाज की बंदिशों को तोड़कर अपनी मंज़िल की ओर बढ़ती हैं।

हम रोज़ टीवी पर कई तरह के शो देखते हैं,  जिनमें महिलाओं की ज़िंदगी के अलग- अलग पहलुओं को दिखाया जाता है। कुछ शो में महिलाएं सपनों को पूरा करती नज़र आती हैं, तो कुछ में सिर्फ सास – बहू की नोकझोंक को दिखाया गया होता है। ज्यादातर कहानियों में कोई न कोई हीरो या मददगार अचानक आकर सारी परेशानी दूर कर देता है। यह केबल टीवी सीरियल तक ही सीमित है। असल ज़िंदगी में ऐसा नहीं होता। असल जिंदगी में अगर कोई मुश्किल आती है, तो उसका सामना हमें खुद ही करना पड़ता है। कुछ टीवी सीरियल ऐसे भी हैं जिन्होंने सिर्फ कहानी नहीं दिखाई, बल्कि समाज में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव, आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों को सच्चाई से पेश किया है। इन कहानियों में महिलाएं किसी बाहरी मददगार की मोहताज नहीं रहीं, उन्होंने खुद ही अपनी तकलीफों का सामना किया, समाज की बनाई हुई बंदिशों को तोड़ा, और अपनी ज़िंदगी की नायिका खुद बनीं। ये किरदार हमें सिखाते हैं कि बदलाव की शुरुआत कहीं बाहर से नहीं, बल्कि हमारे अंदर से होती है। ‘सर-ए-राह’ एक ऐसा ही पाकिस्तानी ड्रामा है, जिसमें दिखाया गया है कि कैसे महिलाएं समाज की बंदिशों को तोड़कर अपनी मंज़िल की ओर बढ़ती हैं।


समाज की रूढ़िवादी सोच से लड़ती एक महिला

तस्वीर साभार : Reviewit

सर-ए-राह’ एक ऐसा शो है जो समाज की उन समस्याओं या रूढ़िवादी सोच को दिखाता है, जिस पर हम अक्सर बात करने से डरते हैं। यह एक पाकिस्तानी ड्रामा है, जिसका निर्देशन अदील रज्जाक ने किया है और अहमद भट्टी ने लिखा है। पाकिस्तान एक ऐसा देश है जहां लिंगानुपात कम है, महिलाओं की साक्षरता दर कम है और महिलाओं को पढ़ने लिखने के बहुत कम मौके मिलते हैं, ऐसे में यह दुनिया को दिखाता है कि महिलाएं अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कई बाधाओं को पार करने में सक्षम हैं। इसमें सबा कमर ने रानिया का किरदार निभाया है। पहले एपिसोड में दिखाया गया है कि एक टैक्सी ड्राइवर की बेटी रानिया, जिसकी शादी एक अमीर और पढ़े-लिखे लड़के से तय हो गई है, लेकिन लड़के की माँ हमेशा दहेज के लिए रानिया के परिवार को ताना मारती है।

यह एक पाकिस्तानी ड्रामा है, जिसका निर्देशन अदील रज्जाक ने किया है और अहमद भट्टी ने लिखा है। पाकिस्तान एक ऐसा देश है जहां लिंगानुपात कम है, महिलाओं की साक्षरता दर कम है और महिलाओं को पढ़ने लिखने के बहुत कम मौके मिलते हैं

जब रानिया के पिता बीमार हो गए और टैक्सी चलाने में असमर्थ हो गए, तो रानिया ने टैक्सी चलाने और परिवार का खर्च चलाने की ज़िम्मेदारी संभाली। लेकिन रानिया के लिए यह फैसला लेना मुश्किल था क्योंकि उसके अपने परिवार ने इसका विरोध किया था। उनके भाई ने उनको काम करने से रोका, उसे लगा कि अगर बहन टैक्सी चलाएगी तो समाज में इज़्ज़त खराव हो जाएगी। लेकिन उसने  हिम्मत नहीं हारी वह अपना काम करती रही। उन्होंने किसी का इंतज़ार नहीं किया कि कोई उनकी मदद करेगा। इस नाटक से यह भी पता चलता है कि अगर रानिया को अच्छी पढ़ाई करने का मौका मिला होता, तो वह कोई और नौकरी भी चुन सकती थी। लेकिन उसके माता-पिता ने उसे इसलिए आगे नहीं पढ़ाया क्योंकि वह एक लड़की थी। वहीं उसका भाई आराम से प्रोफेशनल कोर्स कर रहा था।

ड्राइविंग में जेंडर नहीं, जिम्मेदारी मायने रखती है

तस्वीर साभार : IMDB

आज महिलाएं कई तरह के काम कर रही हैं,  लेकिन अभी भी सड़क और सार्वजनिक परिवहन जैसे क्षेत्रों में उनकी संख्या बहुत कम है। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि महिलाएं वाहन चलाने में पुरुषों जितनी अच्छी नहीं होतीं। जब रानिया पहली बार टैक्सी लेकर सड़क पर निकली, तो उसने देखा कि वह अकेली महिला ड्राइवर थी। चारों तरफ पुरुष ही पुरुष थे। कई लोगों ने हैरानी से उसे देखा और कुछ ने उसका मजाक भी उड़ाया। कुछ लोग तो उनकी टैक्सी में नहीं बैठते ये कहकर कि महिला  है पता नहीं कैसे चलाएगी? और वो ये भी बात करते हैं कि हमें सुरक्षित घर पहुंचना है। 

इस नाटक से यह भी पता चलता है कि अगर रानिया को अच्छी पढ़ाई करने का मौका मिला होता, तो वह कोई और नौकरी भी चुन सकती थी। लेकिन उसके माता-पिता ने उसे इसलिए आगे नहीं पढ़ाया क्योंकि वह एक लड़की थी। वहीं उसका भाई आराम से प्रोफेशनल कोर्स कर रहा था।

इससे साफ़ पता चलता है कि हमारे समाज में अब भी लोग महिला ड्राइवर्स पर भरोसा नहीं किया जाता या जेंडर के आधार पर भेदभाव किया जाता है। भारत सरकार की साल 2021 की सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार,  पुरुषों की तुलना में महिलाएं सड़क हादसों के लिए कम जिम्मेदार होती हैं,  84 फीसदी शराब पीकर गाड़ी चलाने के मामले पुरुषों के थे और 78 फीसदी तेज रफ्तार के मामलों में भी पुरुष शामिल थे। इन आंकड़ों से साफ़ पता चलता है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में अच्छी ड्राइविंग करती हैं। ‘सर-ए-राह’ जैसी कहानियां न सिर्फ हमें यह आईना दिखाती हैं कि हम कितने पीछे हैं, बल्कि यह भी दिखाती हैं कि बदलाव संभव है।


शादी और मातृत्व का सामाजिक दबाव

तस्वीर साभार : DND

शादी के कुछ समय बाद ही महिलाओं से बच्चा पैदा करने की उम्मीद शुरू हो जाती है। अगर शादी के कुछ साल तक महिला मां नहीं बन पाती है तो उसमे सिर्फ उसे ही जिम्मेदार ठहराया जाता है। इस शो का हर एक एपिसोड महिलाओं के जीवन के एक अलग पहलू को दिखता है जिसमें यह भी शामिल है कि कैसे मां बनना सभी महिलाओं के लिए एक ज़रूरत बन गया है। डॉ. मुज़ना की कहानी एक ऐसे ही अनुभव को बताती है जिसमें एक महिला डॉक्टर को बच्चे न होने के कारण परिवार और समाज की बातों का सामना करना पड़ा। जिस कारण वो बच्चा गोद लेने के बारे में सोचने लगी और उसने एक बच्ची को अस्पताल से कानूनी तौर से गोद लिया, उसके लिए यह सब करना आसान नहीं था पर उसने किया। लेकिन परिवार की तरफ से उस बच्चे को नहीं अपनाया गया।  

इस एपिसोड में मरियम नाम की एक पढ़ी-लिखी कॉर्पोरेट में काम करने वाली महिला की कहानी भी  है, जिसे अपने ऑफिस में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव और ताने झेलने पड़े। 

लेकिन जब लोगों की बातें और पति का बर्ताव उसके प्रति सही नहीं था, तो वह मजबूर होकर उस बच्चे को  छोड़ने के बारे में सोचने लगी। हालांकि , कहानी हमें यह सिखाती है कि एक पति-पत्नी बिना बच्चे के भी खुशी और संतोष के साथ अपना जीवन जी सकते हैं। मातृत्व एक निजी फैसला है, न कि कोई सामाजिक ज़िम्मेदारी। राष्ट्रीय चिकित्सा पुस्तकालय  के  अध्ययन  के अनुसार, भारत में मां न बन पाने वाली महिलाओं को सामाजिक और पारिवारिक दबाव के कारण तनाव, अवसाद और आत्म-संदेह जैसी मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस रिसर्च में यह भी बताया गया कि माँ न बनने से से जुड़ी मानसिक परेशानी महिलाओं के आत्म-सम्मान और रिश्तों पर गहरा असर डालती है।

 कार्यस्थल और यात्रा की दोहरी लड़ाई

तस्वीर साभार : Fuchsia Magazine

समाज में आज भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, चाहे वो पैदल सफर कर रही हों, फिर मेट्रो या कैब में। आए दिन कैब ड्राइवर्स से जुड़े कई केस सामने आते हैं। इस सर-ए-राह के एपिसोड में भी एक महिला को अपनी नौकरी पर जाने के लिए कैब करनी होती है। लेकिन कैब ड्राइवर के अलग व्यवहार और देखने के तरीके से ही वह समझ जाती है कि कुछ ठीक नहीं है और जब वह इसका विरोध करती है, तो उसे इसके लिए भी कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। रोज़ नए-नए नंबरों से उसे अश्लील मैसेज और कॉल आने लगते हैं। जब इस बीच उसकी मुलाकात एक महिला ड्राइवर यानी रानिया से होती है, तो वह खुद कहती है, तुम्हें नहीं पता, आज कितने दिनों बाद मुझे अच्छा लग रहा है, क्योंकि मैं आज एक महिला ड्राइवर के साथ सफर कर रही हूं । 

रमीं एक कपड़ों के ब्रांड के लिए मॉडलिंग करती है, लेकिन एक पारिवारिक प्रोग्राम में उसका डांस करते हुए वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो जाता है क्योंकि उनसे लड़कों के साथ डांस किया था,  इसके बाद लोगों ने उनके चरित्र पर सवाल उठाने शुरू कर दिए।

इस एपिसोड में मरियम नाम की एक पढ़ी-लिखी कॉर्पोरेट में काम करने वाली महिला की कहानी भी है, जिसे अपने ऑफिस में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव और ताने झेलने पड़े।  जब उसे एक बड़ा प्रोजेक्ट मिला, तो  मेहनत करने के बावजूद लोग उसकी सफलता को उसके चरित्र से जोड़ते हैं या उंगली उठाते हैं। लेकिन मरियम ने हार नहीं मानी और ऐसे सोच रखने वालों का डटकर सामना किया। उसने साबित किया कि महिलाएं अपनी मेहनत और काबिलियत से ही आगे बढ़ती हैं। भास्कर इंग्लिश की एक रिपोर्ट (2024) के अनुसार, भारत में 46 फीसदी महिलाएं कार्यस्थल पर यौन हिंसा का शिकार होती हैं, लेकिन इनमें से बहुत कम महिलाएं इसकी शिकायत कर पाती हैं। ये आंकड़ा इस बात का प्रमाण है कि आज भी महिलाओं को घर से लेकर ऑफिस तक हर जगह खुद को साबित करना पड़ता है। 


सोशल मीडिया और महिलाओं की छवि

तस्वीर साभार : Reviewit

समाज ने लड़कियों को एक “अच्छी लड़की” होने का टैग दे रखा है,  जो घर में रहे, कम बोले, समाज के बनाये गए नियमों के अनुसार चले और अपनी मर्जी से कुछ न करे। इसी सोच को सर-ए-राह के एक एपिसोड में बहुत संवेदनशील तरीके से दिखाया गया है, जहां एक मॉडल रमीं की कहानी सामने आती है। रमीं एक कपड़ों के ब्रांड के लिए मॉडलिंग करती है, लेकिन एक पारिवारिक प्रोग्राम में उसका डांस करते हुए वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो जाता है क्योंकि उनसे लड़कों के साथ डांस किया था,  इसके बाद लोगों ने उनके चरित्र पर सवाल उठाने शुरू कर दिए। परिवार और आस-पड़ोस के लोगों का कहना था कि उसने पूरे घर की इज़्ज़त मिट्टी में मिला दी। यहां तक कि उसके पिता और भाई भी, उसके बार-बार समझाने पर भी यह मानने को तैयार नहीं होते कि उसने कुछ भी ऐसा नहीं किया जिससे उनकी इज़्ज़त खराब हो। कोई उसकी बातों पर विश्वास नहीं करता है , सिवाय उसके पार्टनर के। रमीं का पार्टनर शुरू से आख़िर तक उसके साथ खड़ा रहता है और वह रमीं को अपने  सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित करता है। 

‘सर-ए-राह’ जैसे शो हमें यह सिखाते हैं कि असली ज़िंदगी की चुनौतियों का सामना करने के लिए किसी सुपरहीरो की ज़रूरत नहीं होती – हिम्मत, हौसला और खुद पर विश्वास ही सबसे बड़े हथियार होते हैं। इस ड्रामे की कहानियां हमें याद दिलाती हैं कि महिलाएं सिर्फ जिम्मेदारियां उठाने के लिए नहीं, बल्कि अपने फैसले लेने और ज़िंदगी को अपनी शर्तों पर जीने के लिए भी होती हैं। चाहे टैक्सी चलाने वाली रानिया हो, मां बनने के दबाव से जूझती मुज़ना, कार्यस्थल पर संघर्ष करती मरियम, या सोशल मीडिया ट्रोलिंग का शिकार रमीं हर किरदार हमें यही दिखाता है कि बदलाव हमारे अंदर से शुरू होता है। ये कहानियां सिर्फ टीवी की नहीं, हमारे आसपास की हर उस महिला की हैं जो रोज़ समाज की सोच से लड़ रही है और अपने रास्ते खुद बना रही है। ऐसे शो न सिर्फ समाज को आईना दिखाते हैं बल्कि नई पीढ़ी को सोचने और सवाल करने की ताकत भी देते हैं।

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