जब हम भूख की बात करते हैं, तो अक्सर यह एक प्राकृतिक या आर्थिक समस्या की तरह लगती है। लेकिन इतिहास और वर्तमान दोनों गवाह हैं कि भूख कई बार जानबूझकर पैदा की गई स्थिति भी हो सकती है। यह एक ऐसा हथियार है, जो गोली या बम से भी ज़्यादा ख़तरनाक होता है। आज गाज़ा इसी भूख के घेरे में है, जहां दो साल से चल रहा युद्ध सिर्फ बमबारी और विस्थापन तक सीमित नहीं है। यह एक ऐसा संकट बन चुका है जिसने भोजन, पानी, स्वास्थ्य और जीवन की बुनियादी ज़रूरतों को वहां के हर एक इंसान के लिए सीमित बना दिया है या विल्कुल खत्म कर दिया है। इस संकट से वहां के सभी लोग प्रभावित हो रहे हैं, खासकर बच्चे और महिलाएं वे जो पहले ही सामाजिक रूप से हाशिये पर नज़र आते हैं इनको यह संकट और भी ज़्यादा प्रभावित कर रहा है।
भूख अब केवल एक मानवीय त्रासदी नहीं रही, बल्कि एक रणनीति और सजा का माध्यम बन चुकी है, जिस कारण बहुत से लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इतिहास बताता है कि भूख को कई बार जानबूझकर एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया है। इसका एक उदाहरण हिटलर का भी देखा जा सकता है, जब द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, हिटलर के नाज़ियों ने भूख को जानबूझकर एक रणनीति के रूप में अपनाया था। उन्होंने हंगर प्लान के तहत यहूदियों और स्लाविक लोगों को कंसंट्रेशन कैंप्स या ऐसी जगह में बंद कर दिया गया था, जहां भोजन इतनी कम मात्रा में दिया जाता था कि लोगों के लिए वहां जीवित रहना लगभग असंभव था, जिससे बहुत से लोगों की जान चली गई।
आज गाज़ा इसी भूख के घेरे में है, जहां दो साल से चल रहा युद्ध सिर्फ बमबारी और विस्थापन तक सीमित नहीं है। यह एक ऐसा संकट बन चुका है जिसने भोजन, पानी, स्वास्थ्य और जीवन की बुनियादी ज़रूरतों को वहां के हर एक इंसान के लिए सीमित बना दिया है।
गाज़ा की वर्तमान स्थिति

गाज़ा पट्टी, जो पहले से ही दुनिया के सबसे ज़्यादा आबादी वाले और सीमित संसाधनों वाले इलाकों में गिनी जाती थी, अब एक खुली जेल से भी बदतर रूप ले चुकी है। बीबीसी के मुताबिक, इजराइल का कहना है कि गाजा पर उसके हमले का उद्देश्य हमास को नष्ट करना है, जिसने 7 अक्टूबर, 2023 को इजराइल के इतिहास में सबसे बड़ा हमला किया था, जिसमें नागरिकों समेत लगभग 1,200 इजराइली मारे गए थे और लगभग 250 लोगों को बंधक बना लिया गया था। स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार, तब से गाजा में इजरायली बम और गोलीबारी से लगभग 60,000 लोग मारे गए हैं। हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, गाज़ा में पिछले 22 महीनों से इज़राइल और गाज़ा (हमास) के बीच युद्ध चल रहा है। एकीकृत खाद्य सुरक्षा चरण वर्गीकरण आईपीसी अलर्ट में कहा गया है, इस समय गाजा पट्टी में अकाल की सबसे बुरी स्थिति बनी हुई है। बढ़ते प्रमाण बताते हैं कि भुखमरी, कुपोषण और बीमारी के कारण भूख से होने वाली मौतों में बढ़ौतरी हो रही है।
युद्धग्रस्त फिलिस्तीनी क्षेत्र के ज़्यादातर हिस्सों में खाद्य उपभोग के लिए अकाल की सीमा पार हो गई है जहां लगभग 2.1 मिलियन लोग रहते हैं। हिन्दुस्तान टाइम्स के अनुसार, गाजा पर 12 मई को जारी अंतिम आईपीसी विश्लेषण में पूर्वानुमान लगाया गया था कि सितंबर के अंत तक गाज़ा की पूरी आबादी को भारी भूख और खाने की कमी का सामना करना पड़ेगा। इसमें यह भी अनुमान लगाया गया है कि लगभग 469,500 लोग ऐसी हालत में पहुंच जाएंगे, जिन्हें खाने के लिए कुछ भी नहीं मिलेगा, और भुखमरी से जान का खतरा होगा। आईपीसी के मुताबिक, गाज़ा की पूरी आबादी को ज़िंदा रहने के लिए हर महीने कम से कम 62,000 मीट्रिक टन अनाज और ज़रूरी खाना चाहिए। लेकिन इज़राइली सैन्य सहायता समन्वय एजेंसी, सीओजीएटी के अनुसार, मई में केवल 19,900 मीट्रिक टन और जून में 37,800 मीट्रिक टन ही अनाज या खाने का सामान गाजा पहुंचा यानि गाज़ा को जितना खाना चाहिए, उसका आधा से भी कम मिल रहा है।
इजराइल का कहना है कि गाजा पर उसके हमले का उद्देश्य हमास को नष्ट करना है, जिसने 7 अक्टूबर, 2023 को इजराइल के इतिहास में सबसे बड़ा हमला किया था, जिसमें नागरिकों समेत लगभग 1,200 इजराइली मारे गए थे और लगभग 250 लोगों को बंधक बना लिया गया था।
महिलाओं पर मातृत्व, हिंसा और असुरक्षा की दोहरी मार
गाज़ा में चल रहे संघर्ष ने लाखों जिंदगियों को संकट में डाल दिया है। इस समय महिलाएं अपने बच्चों, बुजुर्गों और पूरे परिवार के लिए तो लड़ रही हैं साथ ही भूख, डर और असुरक्षा के बीच खत्म न होने वाली जंग का भी सामना कर रही हैं। वीमन्स रिफ्यूजी कमीशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक गाज़ा में ह्यूमैनिटेरियन फाउंडेशन (जीएचएफ) के चलाए जा रहे केंद्रों पर हो रही हिंसा के कारण महिलाओं और लड़कियों को ज़रूरी मदद तक सुरक्षित पहुंच नहीं मिल पा रही है। मई से जुलाई 2025 के बीच, गाज़ा में सीमित राहत केंद्रों पर खाने की मदद लेने पहुंचे 1,000 से ज़्यादा लोगों को इज़राइली सेना ने कथित तौर पर मार डाला।

हाल ही में जीएचएफ के महिला वितरण दिवस पर, जब महिलाएं खाना लेने आईं, तो उन पर मिर्च स्प्रे किया गया, गोलियां चलाई गईं और उन्हें कथित तौर मार दिया गया। गाजा के अल-अवदा अस्पताल के एक डॉक्टर ने कहा, इस घेराबंदी के दौरान, भोजन और ज़रूरी दवाओं की भारी कमी है। यहां करीब 55,000 गर्भवती महिलाएं हैं। जब उन्हें खाना नहीं मिल पाता, तो इससे अबॉर्शन और कुपोषित बच्चों के पैदा होने का खतरा बहुत बढ़ जाता है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के मुताबिक गाज़ा में ज़रूरी सेवाएं बुरी तरह बंद हो गई हैं। सुरक्षित डिलीवरी और नवजात बच्चों की देखभाल के लिए ज़रूरी सामान बॉर्डर पर फंसा हुआ है।
अल-अवदा अस्पताल के एक डॉक्टर ने कहा, इस घेराबंदी के दौरान, भोजन और ज़रूरी दवाओं की भारी कमी है। यहां करीब 55,000 गर्भवती महिलाएं हैं। जब उन्हें खाना नहीं मिल पाता, तो इससे अबॉर्शन और कुपोषित बच्चों के पैदा होने का खतरा बहुत बढ़ जाता है।
इन मुश्किल हालात में करीब 11,000 गर्भवती महिलाओं को भूख से मरने का खतरा है, और लगभग 17,000 गर्भवती और दूध पिलाने वाली महिलाओं को जल्द ही तेज़ कुपोषण का इलाज चाहिए होगा। अगर उन्हें मदद नहीं मिली, तो इसका अंजाम बेहद दुखद हो सकता है। अल-अवदा अस्पताल के डॉक्टर ने आगे कहा, उन्होंने एक महिला का इलाज किया जो लगभग सात साल से इनफर्टिलिटी से जूझ रही थी। युद्ध के दौरान वह आखिरकार गर्भवती हो गई, लेकिन पोषण की कमी और बमबारी के कारण जब उसे भागने पर मजबूर होना पड़ा, तो उसे समय से पहले प्रसव पीड़ा शुरू हो गयी और उसने अपना बच्चा खो दिया।
भूख से बिलखते बच्चों पर संकट की मार

गाज़ा की यह त्रासदी बच्चों को भी बहुत ज़्यादा प्रभावित कर है जब एक बच्चे की खेल – कूद की उम्र होती है, यहां छोटी ही उम्र में बच्चे, भूख परिवार का बिछड़ना और दुखों का सामना कर रहे हैं। वर्ल्ड फ़ूड प्रोग्राम यूएसए की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ जुलाई 2025 तक गाज़ा में पांच साल से कम उम्र के लगभग 3,20,000 से ज़्यादा बच्चे भुखमरी और गंभीर कुपोषण के खतरे में हैं। सिर्फ दो महीनों में यह चार गुना बढ़कर 16.5 फीसदी तक पहुंच गया है। जून में, 6,500 बच्चों को कुपोषण के इलाज के लिए भर्ती कराया गया, जो संघर्ष शुरू होने के बाद से सबसे ज़्यादा संख्या है। जुलाई के पहले दो हफ्तों में ही गाज़ा में 5,000 से ज़्यादा बच्चों को कुपोषण के कारण इलाज के लिए भर्ती किया गया। लेकिन अभी ज़रूरी पोषण सेवाओं में से केवल 15 फीसदी ही काम कर रही हैं।
जून में, 6,500 बच्चों को कुपोषण के इलाज के लिए भर्ती कराया गया, जो संघर्ष शुरू होने के बाद से सबसे ज़्यादा संख्या है। जुलाई के पहले दो हफ्तों में ही गाज़ा में 5,000 से ज़्यादा बच्चों को कुपोषण के कारण इलाज के लिए भर्ती किया गया।
इसी वजह से छोटे बच्चों में भूख और कुपोषण से मरने का खतरा पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ गया है। यूनिसेफ की साल 2024 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ग़ाज़ा में हालात इतने बुरे हो चुके हैं कि कम से कम 14,000 बच्चों की कथित तौर पर मौत हो चुकी है। हजारों बच्चे घायल हैं, और बहुत से अभी भी मलबे के नीचे दबे होने की आशंका है, लगभग 17,000 बच्चे अपने माता-पिता या देखभाल करने वालों से अलग हो चुके हैं। यहां 86 फीसद से ज़्यादा इलाकों को खाली करने के आदेश दिए गए हैं, जिससे परिवार बार-बार विस्थापित हो रहे हैं। इससे बच्चों की ज़िंदगी और भी मुश्किल हो गई है उन्होंने अस्पताल, स्कूल और ज़रूरी सेवाएं खो दी हैं। इन हालात में हर बच्चे को मानसिक और भावनात्मक मदद की ज़रूरत है, लेकिन उनकी सबसे बुनियादी ज़रूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं। वहां हमलों के कारण लाखों बच्चों की शिक्षा बुरी तरह प्रभावित हुई है। करीब 6,58,760 स्कूली बच्चे अब नियमित रूप से स्कूल नहीं जा पा रहे हैं।
स्वच्छता और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव

ग़ाज़ा में जारी संघर्ष ने वहां की स्वास्थ्य सेवाओं को लगभग पूरी तरह तबाह कर दिया है। बमबारी, घेराबंदी और दवाइयों की भारी कमी के कारण लोगों की बुनियादी स्वास्थ्य ज़रूरतें भी पूरी नहीं हो पा रही हैं। मेडिसिन्स सेन्स फ्रंटियर्स( एमएसएफ) की रिपोर्ट्स के अनुसार, 36 अस्पतालों में से सिर्फ 17 अस्पताल ही सीमित रूप से चले, बाकी सब बंद या क्षतिग्रस्त हो गए थे। द गार्डियन की रिपोर्ट के मुताबिक,डॉक्टरों पर चल रहे हमलों, इलाज के संसाधनों की कमी और चिकित्सा कर्मियों का खुद भूखा रहना सब मिलकर इलाज की गुणवत्ता को पूरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। बिजली और ईंधन की कमी के कारण पानी की सुविधा तक नहीं हैं, जिससे पीने योग्य पानी भी नहीं मिल पा रहा है।
हज़ारों लड़कियां पहली बार पीरियड्स का अनुभव कर रही हैं उन्हें कपड़े बदलने या खुद के लिए एकांत पाने की कोई जगह नहीं है। गाज़ा में हर महीने एक करोड़ से ज़्यादा सैनिटरी पैड की ज़रूरत होती है, फिर भी इस संख्या का एक-चौथाई से भी कम ही उपलब्ध है।
खुले में शौच, टूटे हुए नालियां और गंदा पानी स्वास्थ्य समस्याओं को और बढ़ा रहा है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की रिपोर्ट के मुताबिक,गाज़ा में लगभग 7 लाख महिलाएं और लड़कियां हैं, जो पीरियड्स की उम्र में हैं। इनमें से हज़ारों लड़कियां पहली बार पीरियड्स का अनुभव कर रही हैं उन्हें कपड़े बदलने या खुद के लिए एकांत पाने की कोई जगह नहीं है। गाज़ा में हर महीने एक करोड़ से ज़्यादा सैनिटरी पैड की ज़रूरत होती है, फिर भी इस संख्या का एक-चौथाई से भी कम ही उपलब्ध है। कई महिलाओं और लड़कियों को पुराने कपड़े, फटे कपड़े या स्पंज इस्तेमाल करने के लिए मजबूर होना पड़ता है, और अक्सर उन्हें बिना अच्छी तरह धोए ही दोबारा इस्तेमाल करना पड़ता है।
गाज़ा में जारी युद्ध और उसके परिणामस्वरूप फैली भुखमरी, मानवीय संकट से कहीं आगे बढ़कर अब एक राजनीतिक या रणनीतिक दमन का रूप ले चुकी है। महिलाओं और बच्चों पर इसका प्रभाव सबसे गहरा है जहां महिलाएं मातृत्व, हिंसा और बुनियादी ज़रूरतों के लिए संघर्ष कर रही हैं, वहीं बच्चे भूख, विस्थापन और मानसिक समस्याओं से गुजर रहे हैं। स्वास्थ्य सेवाओं का ढह जाना, साफ पानी और स्वच्छता की कमी, और पीरियड्स जैसे बुनियादी अनुभवों को भी अपमानजनक और असुरक्षित बना देना, इस संकट की गहराई को दिखाते हैं। भुखमरी यहां केवल पेट भरने की लड़ाई नहीं रही, यह सम्मान और अस्तित्व की लड़ाई बन गई है। इतिहास की तरह आज भी भूख को एक राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे यह साफ़ होता है कि यह सिर्फ मानवीय विफलता नहीं बल्कि नैतिक पतन का भी प्रमाण है।

