हाल ही में गोरखपुर स्थित पीएसी ट्रेनिंग कैम्प में महिला सिपाही प्रशिक्षुओं के साथ हुआ दुर्व्यवहार समाज में गहराई से मौजूद लैंगिक भेदभाव दिखाता है। जब एक पूरा वर्ग लगातार जेंडर आधारित भेदभाव का सामना कर रहा हो, तो व्यवस्था और समाज से उपेक्षा और अनदेखी का मिलना कोई नई बात नहीं रह जाती। गोरखपुर में महिला सिपाहियों का सड़क पर उतरकर विरोध दर्ज कराना शायद कुछ लोगों को सामान्य घटना लगे, लेकिन यह दृश्य उन महिलाएं की जमीनी लड़ाई का प्रतिबिंब है जो बराबरी के हक और गरिमा के लिए लगातार संघर्ष कर रही हैं। यह घटना 23 जुलाई 2025 की है, जब गोरखपुर के बिछिया स्थित पीएसी ट्रेनिंग कैम्प में प्रशिक्षण ले रही लगभग 600 महिला सिपाहियों ने अचानक सड़क पर उतर कर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। वे अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहार और कैम्प में मौजूद असुविधाओं के खिलाफ विरोध कर रही थीं। प्रशिक्षण के लिए आयी महिला सिपाहियों ने आरोप लगाया कि ट्रेनिंग कैम्प में उन्हें कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी, निजता और गरिमा के प्रति प्रशासन की संवेदनहीनता, बिजली की अनियमित आपूर्ति और खराब रहन-सहन की स्थिति ने उनके लिए हालात बेहद मुश्किल बना दिए थे। प्रशिक्षुओं का कहना था कि 600 से अधिक लड़कियों के लिए सिर्फ चार पंखे उपलब्ध थे, जिनमें कंडेंसर भी खराब थे। जब कुछ लड़कियों ने निजी खर्चे से पंखे की व्यवस्था करनी चाही, तो कैम्प के कर्मचारियों ने उन्हें पंखा लगाने से मना कर दिया। उनके अनुसार, कर्मचारियों ने यह कह कर रोक लगा दी कि इससे बिजली का बिल अधिक आएगा। सबसे बड़ी समस्या ओवरक्राउडिंग की थी। जिस ट्रेनिंग कैम्प में केवल 350 महिला सिपाहियों की क्षमता थी, वहां 650 से ज़्यादा लड़कियों को रखा गया। द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट मुताबिक पानी जैसी ज़रूरी सुविधा भी बेहद सीमित थी।
सबसे बड़ी समस्या ओवरक्राउडिंग की थी। जिस ट्रेनिंग कैम्प में केवल 350 महिला सिपाहियों की क्षमता थी, वहां 650 से ज़्यादा लड़कियों को रखा गया। द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट मुताबिक पानी जैसी ज़रूरी सुविधा भी बेहद सीमित थी।
बुनियादी सुविधाओं की कमी और पितृसत्तात्मक सोच
पूरे परिसर में केवल एक आरओ वेंडिंग मशीन थी, जिससे प्रति व्यक्ति दिन में सिर्फ आधा लीटर पानी उपलब्ध हो पा रहा था। महिला सिपाहियों ने यह भी आरोप लगाया कि नहाने और बाथरूम की पर्याप्त सुविधा न होने के कारण उन्हें खुले में नहाना पड़ रहा था, जहां आस-पास कैमरे लगे होने की बात भी सामने आई। हालांकि प्रशासन ने बाथरूम में कैमरे लगे होने के आरोपों को खारिज कर दिया, लेकिन स्पष्ट है कि यह निजता और सुरक्षा को लेकर गंभीर चूक थी। इसके अलावा उन्होंने खाने की गुणवत्ता को लेकर भी नाराज़गी जाहिर की। भोजन खराब था और पोषण की दृष्टि से भी अनुपयुक्त था। मीडिया से बातचीत में लड़कियों ने बताया कि उन्हें गंभीर उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है और कोई भी उनकी समस्याओं को गंभीरता से नहीं ले रहा है।

महिला सिपाही प्रशिक्षुओं को बिना सहमति प्रेगनेंसी टेस्ट के लिए बाध्य किया गया, जिससे कैंपस में भारी नाराज़गी फैल गई। शिकायत करने पर उन्हें बदतमीज़ी और मौखिक दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा। यह घटना पितृसत्तात्मक मानसिकता और पुलिस प्रशिक्षण संस्थानों की मर्दवादी नीतियों को उजागर करती है। आज भी कई नियम ऐसे हैं जो महिलाओं की मौजूदगी को नज़रअंदाज़ करते हैं। इन व्यवस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी और सम्मानजनक व्यवहार सुनिश्चित करना ज़रूरी है। ऐसे संस्थानों में जेंडर सेल का गठन और संवेदनशील प्रशिक्षण प्रणाली का विकास बेहद आवश्यक है ताकि महिला अधिकारों की रक्षा हो सके और वे सुरक्षित माहौल में प्रशिक्षण ले सकें।
गोरखपुर पीएससी कैंप में जो घटनाएं सामने आईं, वे सिर्फ अव्यवस्था का नतीजा नहीं थीं, बल्कि उनमें गहराई से जुड़ा हुआ एक लैंगिक पक्ष भी था। महिला सिपाहियों को जिस हालात में रखा गया—जैसे कि पीने के लिए सिर्फ आधा लीटर पानी दिया जाना, पूरी रात बिजली न होना, खराब और बासी खाना मिलना, ये सब अमानवीय व्यवहार थे।
गोरखपुर पीएससी कैंप में जो घटनाएं सामने आईं, वे सिर्फ अव्यवस्था का नतीजा नहीं थीं, बल्कि उनमें गहराई से जुड़ा हुआ एक लैंगिक पक्ष भी था। महिला सिपाहियों को जिस हालात में रखा गया—जैसे कि पीने के लिए सिर्फ आधा लीटर पानी दिया जाना, पूरी रात बिजली न होना, खराब और बासी खाना मिलना, ये सब अमानवीय व्यवहार थे। इसके अलावा बाथरूम में छुपे हुए कैमरे लगाए जाने के आरोप और महिला सिपाहियों की शिकायतों को नज़रअंदाज़ करना या उन्हें चुप कराने की कोशिशें दिखाती हैं कि यह सिर्फ अव्यवस्था नहीं, बल्कि एक गहरी लैंगिक असंवेदनशीलता का मामला था। अगर कार्यस्थलों पर जेंडर सेल जैसी सुविधाएं हों, जहां महिलाएं खुलकर अपनी समस्याएं बता सकें, और जहां उन्हें सुनने और समाधान देने की व्यवस्था हो, तो महिलाएं न सिर्फ सुरक्षित महसूस करेंगी, बल्कि बेहतर तरीके से काम भी कर पाएंगी। ऐसे कदम कार्यस्थल को महिलाओं के लिए अधिक समान और संवेदनशील बना सकते हैं।
महिलाएं पर कार्यबल में भागीदारी के लिए सुरक्षा है जरूरी
आज महिलाएं हर क्षेत्र में भागीदारी कर रही हैं। इससे समाज में महिलाओं के लिए सुरक्षित जगहें बढ़ सकती हैं। लेकिन यह तभी संभव है जब व्यवस्था में भी महिलाओं को बराबर की जगह मिले। अगर ट्रेनिंग कैंप में महिला अधिकारियों और कर्मचारियों की भूमिका होती, तो शायद ऐसी स्थिति नहीं बनती। महिला प्रशिक्षुओं का आरोप है कि उन्हें खुले में नहाना पड़ रहा था, जहां से पुरुष गुजरते हैं और आस-पास कैमरे भी लगे हैं। यह साफ दिखाता है कि वहां महिला स्टाफ की मौजूदगी नहीं थी। पुरुषों की तरह महिलाओं से भी खुले में नहाने की उम्मीद करना असंवेदनशीलता है। हमारे समाज की तरह व्यवस्था में भी वर्गभेद है। महिला सिपाही प्रशिक्षु तृतीय श्रेणी की कर्मचारी हैं, और उनके साथ जो दुर्व्यवहार हुआ, वह इसी भेदभाव का हिस्सा है। इसलिए महिला प्रशिक्षुओं की सुरक्षा के लिए महिला ट्रेनर्स और महिला पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति जरूरी है।
अगर ट्रेनिंग कैंप में महिला अधिकारियों और कर्मचारियों की भूमिका होती, तो शायद ऐसी स्थिति नहीं बनती। महिला प्रशिक्षुओं का आरोप है कि उन्हें खुले में नहाना पड़ रहा था, जहां से पुरुष गुजरते हैं और आस-पास कैमरे भी लगे हैं। यह साफ दिखाता है कि वहां महिला स्टाफ की मौजूदगी नहीं थी।
समाज की व्यवस्था पितृसत्ता और पूंजीवाद पर टिकी है, जहां सबसे ज़्यादा शोषण महिलाओं का होता है। गोरखपुर पीएससी कैंप का मामला इसी लैंगिक भेदभाव की गवाही देता है। यह घटना दिखाती है कि जो महिलाएं कानून व्यवस्था का हिस्सा बनने आईं हैं, उन्हें भी अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ रहा है। चाहे वह काम करने का अधिकार हो, सुरक्षा या निजता का हक। अपने काम में अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद, उन्हें लगातार भेदभाव और परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस पूरे मामले से साफ है कि महिलाओं को सिस्टम के भीतर भी बराबरी के लिए संघर्ष करना पड़ता है। जिन युवतियों ने हाल ही में ट्रेनिंग शुरू की है, शायद उन्होंने अभी भेदभाव की गहराई को पूरी तरह समझा नहीं है, लेकिन उन्होंने अन्याय के ख़िलाफ आवाज़ उठाई, जो साहसिक है। मगर यही शुरुआत उनके लंबे संघर्ष की राह बनती है। पितृसत्तात्मक समाज में उन्हें हर कदम पर लड़ना होगा।

