समाजख़बर लव मैरिज पर पंजाब पंचायत का बैन पितृसत्ता और जातिवाद की सोच उजागर करता है

लव मैरिज पर पंजाब पंचायत का बैन पितृसत्ता और जातिवाद की सोच उजागर करता है

पंजाब के मोहाली जिले के एक गांव मानकपुर शरीफ़ की ग्राम पंचायत में एक विवादित प्रस्ताव पास करते हुए गांव में लव मैरिज पर बैन लगा दिया।

हाल ही में पंजाब के मोहाली जिले के एक गांव मानकपुर शरीफ़ की ग्राम पंचायत में एक विवादित प्रस्ताव पास करते हुए गांव में लव मैरिज पर बैन लगा दिया। 31 जुलाई 2025 को पंचायत ने लिखित फ़रमान जारी करते हुए चेतावनी दी कि परिवार और समाज की इजाज़त के बिना अगर लड़के-लड़कियां लव मैरिज करेंगे तो उन्हें गांव में या उसके आस-पास भी रहने नहीं दिया जाएगा। यही नहीं पंचायत ने ऐसे जोड़ों को सहारा देने या उनकी मदद करने वाले लोगों पर भी कार्रवाई करने की चेतावनी दी। इस ख़बर के सामने आते ही प्रगतिशील संगठनों, राजनेताओं और क़ानून के जानकारों ने इसकी निंदा करते ही हुए इसे संविधान के ख़िलाफ़ बताया। यह घटना सिर्फ़ एक गांव या पंचायत का फ़ैसला भर नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में गहराई तक जमी उस सोच का आईना है जो व्यक्तिगत आज़ादी, ख़ासकर महिलाओं की आज़ादी, को परंपरा, इज़्ज़त और संस्कृति के नाम पर कुचलना चाहती है। संविधान और क़ानून साफ़ तौर पर हर वयस्क को अपनी पसंद से शादी करने का अधिकार देते हैं, फिर भी पंचायतों के ऐसे फ़रमान यह सवाल उठाते हैं कि क्या हमारे लोकतंत्र में व्यक्तिगत अधिकार वास्तव में सुरक्षित हैं?

क्या है हालिया मामला? 

पंजाब के मानकपुर शरीफ़ गांव में 26 साल के युवक ने अपनी 24 साल की भतीजी के साथ शादी कर ली। इसके बाद से ही गांव में हंगामा मचा हुआ था, इसी के बाद पंचायत ने गांव के भीतर लव मैरिज पर बैन लगाने का प्रस्ताव पास कर दिया। इस फ़ैसले का असर न सिर्फ़ गांव में रहने वाले 2000 लोगों की ज़िंदगियों पर होगा बल्कि आसपास के गांवों समेत पूरे राज्य पर पड़ने वाला है। इस मामले में इंडिया टुडे में छपी खबर के मुताबिक, गांव के सरपंच दलवीर सिंह का बयान है कि ये कोई सज़ा नहीं है, बल्कि हमारी परंपराओं और मूल्यों को बचाने के लिए उठाया गया कदम है। सिंह ने यह भी दावा किया कि हम लव मैरिज या क़ानून के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन हमारी पंचायत में यह नहीं चलेगा। गौरतलब है कि गांव के लोगों ने पंचायत के इस फ़ैसले को लेकर अपना समर्थन भी जाहिर किया है।

पंजाब के मानकपुर शरीफ़ गांव में 26 साल के युवक ने अपनी 24 साल की भतीजी के साथ शादी कर ली। इसके बाद से ही गांव में हंगामा मचा हुआ था, इसी के बाद पंचायत ने गांव के भीतर लव मैरिज पर बैन लगाने का प्रस्ताव पास कर दिया।

मोहाली की एडिशनल डिप्टी कमिश्नर सोनम चौधरी ने कहा कि अगर वे वयस्क हैं, तो वे क़ानूनी तौर पर अपनी पसंद से शादी करने के लिए आज़ाद हैं। भविष्य में किसी भी शिकायत का निपटारा क़ानून के अनुसार ही किया जाएगा। मोहाली के पुलिस अधीक्षक मोहित अग्रवाल ने भी क़ानून और संविधान के अनुसार ही कार्रवाई करने की बात कही। यह कोई पहली घटना नहीं है। इस तरह के मामले आए दिन सामने आते रहते हैं। इस तरह का एक मामला ये भी है जब पंजाब की गलवट्टी गांव की पंचायत ने तरनजीत सिंह और दिलप्रीत कौर के लव मैरिज करने पर दोनों परिवारों के सामाजिक बहिष्कार का ऐलान किया था। यही नहीं परिवारों ने धमकी और हिंसा का आरोप भी लगाया है।

तस्वीर साभार : India Today

इस वजह से इस जोड़े को अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा था। यही नहीं मोगा जिले के घाल कलां गांव और बठिंडा जिले के कोट शमीर गांव भारत की पंचायत में राज्य सरकार से यह मांग तक कर डाली कि गांव के भीतर पुरुष और महिला के बीच होने वाली शादियों पर रोक लगाए। ऐसे मामलों में पंचायतों में परंपरा, अनुशासन और संस्कृति के नाम पर धमकी, हिंसा, शारीरिक और मानसिक हिंसा के साथ ही सामाजिक बहिष्कार तक किया जाता है। द न्यू इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक ख़बर के मुताबिक, पंजाब महिला आयोग की अध्यक्ष राज लाली गिल ने कहा कि जहां तक ग्राम पंचायतों के इस तरह के प्रस्ताव पारित करने का सवाल है, यह सरकार को देखना है कि क्या किया जा सकता है। लेकिन जहां तक महिलाओं को परेशान करने, मारपीट करने और गांव से बाहर निकालने की बात है, यह हिंसा अस्वीकार्य है और ऐसे अपराधियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी।

जब पंजाब की गलवट्टी गांव की पंचायत ने तरनजीत सिंह और दिलप्रीत कौर के लव मैरिज करने पर दोनों परिवारों के सामाजिक बहिष्कार का ऐलान किया था। यही नहीं परिवारों ने धमकी और हिंसा का आरोप भी लगाया है। इस वजह से इस जोड़े को अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा था।

परंपरा के नाम पर पितृसत्तात्मक नियंत्रण

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

लव मैरिज पर बैन लगाना समाज की रूढ़िवादी पितृसत्तात्मक सोच को दिखाता है जो महिलाओं की आज़ादी के ख़िलाफ़ है। ऐसे फैसलों के पीछे जाति और धर्म की कथित ‘शुद्धता’ बनाए रखने की सोच भी शामिल होती है क्योंकि लव मैरिज जाति और धर्म के बंधन को तोड़ने का भी काम करती है। यही नहीं लव मैरिज में दहेज प्रथा और कन्या विदाई जैसी कुप्रथाएं भी न के बराबर होती हैं। इस वजह से भी उन लोगों को आपत्ति होती है जो बेटे को एक इन्वेस्टमेंट के तौर पर बड़ा करते हैं, जिसके नाम पर अरेंज मैरिज में दहेज लिया जा सके। दहेज और कन्या विदाई जैसी कुप्रथाएं लैंगिक भेदभाव को बढ़ाने का काम करते हैं, जिसका नतीजा कन्या भ्रूण-हत्या जैसे अपराध के रूप में देखने को मिलता है। भारत जैसे देशों में शादी निजी पसंद-नापसंद या चुनाव का मामला नहीं बल्कि परिवार और समाज की परंपरा का मसला बना हुआ है।

 बीबीसी के मुताबिक, साल 2018 में 1,60,000 से ज्यादा घरों में हुए एक सर्वे में पता चला कि 93 फीसद विवाहित भारतीयों की शादी अरेंज मैरिज थी। सिर्फ़ 3फीसद ने लव मैरिज की थी और 2 फीसद ने बताया कि उनकी शादी लव-कम-अरेंज थी, यानी पहले परिवारों ने रिश्ता तय किया और बाद में जोड़े ने हामी भरी। प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश की अफ़साना और रोहित (बदले हुए नाम) जिन्होंने परिवार की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ जाकर शादी की इस वजह से इन्हें अपना घर तक छोड़ना पड़ा। बातचीत के दौरान अफ़साना ने बताया, “ पंचायत का इस तरह का फ़रमान पूरी तरह से ग़लत है, हमें अपनी मर्ज़ी से जीने का हक़ होना चाहिए। एक फ़ैसले की वजह से हमेशा के लिए घर-परिवार छूट जाना तकलीफदेह होता है।” रोहित ने इस पर अपनी राय कुछ इस तरह जाहिर की, “किसी अंजान के साथ समझौते की ज़िंदगी जीने से बेहतर है अपनी पसंद के शख़्स के साथ खुशी-खुशी ज़िन्दगी बिताना। बहुत बार परिवार समझ भी जाता है पर समाज का डर उसे मजबूर कर देता है। लव मैरिज करने वाले जोड़ों को क़ानूनी मदद मिलनी चाहिए।”

किसी अंजान के साथ समझौते की ज़िंदगी जीने से बेहतर है अपनी पसंद के शख़्स के साथ खुशी-खुशी ज़िन्दगी बिताना। बहुत बार परिवार समझ भी जाता है पर समाज का डर उसे मजबूर कर देता है। लव मैरिज करने वाले जोड़ों को क़ानूनी मदद मिलनी चाहिए।

पंचायती फ़रमान के क़ानूनी और संवैधानिक पहलू

तस्वीर साभार : India Today

बहुत सारे नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पंचायत के इस फ़ैसले को असंवैधानिक बताते हुए अपना विरोध दर्ज़ कराया है। इंडिया टुडे के मुताबिक, कांग्रेस सांसद धर्मवीर गांधी ने इसे ‘तालिबानी फ़रमान’ कहा और याद दिलाया कि भारत का संविधान हर वयस्क को अपनी पसंद से शादी करने का अधिकार देता है। भारतीय संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक मौलिक अधिकारों के बारे में लिखा गया है। इस के अंतर्गत अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार देता है। जबकि 15 जाति, धर्म, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को रोकता है। इसी तरह अनुच्छेद 21 में प्रत्येक व्यक्ति को व्यक्तिगत आजादी और जीवन जीने का अधिकार दिया गया है। ऐसे में इस तरह से लव मैरिज पर बैन लगाना या गांव से निकालना और सा माजिक बहिष्कार करना मौलिक अधिकारों का हनन है जो कि संविधान के ख़िलाफ़ है। 

सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में  एक सामाजिक संस्था शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ के मामले में भी यह स्पष्ट किया था कि किसी भी तरह की पंचायत या सामुदायिक दबाव का वयस्कों की सहमति से होने वाली शादी को रोकना संविधान के ख़िलाफ़ है और ऐसे फ़ैसले व्यक्ति की निजी आजादी पर हमला हैं जो कि दंडनीय भी हो सकते हैं। दिल्ली के मुखर्जी नगर में रहकर सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वाले संतोष (बदला हुआ नाम) अपनी पार्टनर के साथ लिव-इन में रहते हैं और शादी भी करना चाहते हैं। पंचायत के लव मैरिज पर बैन वाले फ़ैसले पर अपनी राय देते हुए संतोष ने कहा, “मुझे समझ में नहीं आता कि सरकार संविधान और क़ानून का उल्लंघन करने वाली खाप पंचायतों के ख़िलाफ़ कोई कठोर क़ानूनी कार्रवाई क्यों नहीं करती? क्या संविधान में मौलिक अधिकार सिर्फ़ कागजों तक सीमित रहने के लिए दिए गए हैं?”

मुझे समझ में नहीं आता कि सरकार संविधान और क़ानून का उल्लंघन करने वाली खाप पंचायतों के ख़िलाफ़ कोई कठोर क़ानूनी कार्रवाई क्यों नहीं करती? क्या संविधान में मौलिक अधिकार सिर्फ़ कागजों तक सीमित रहने के लिए दिए गए हैं?

क्या हो सकता है आगे का रास्ता 

तस्वीर साभार: फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

यह केवल एक गांव या राज्य की समस्या नहीं है, बल्कि जाति, धर्म और पितृसत्ता के ख़िलाफ़ होने वाली लड़ाई का एक हिस्सा है। समाज को चलाने के लिए पारंपरिक रूढ़िवादी परंपराओं के बजाय प्रगतिशील संवैधानिक सिद्धांतों को आगे लाना होगा जिसमें सभी व्यक्तियों को आजादी, समानता और गरिमापूर्ण जीवन जीने का मौका मिल पाएगा। सरकार को संविधान और क़ानून को व्यावहारिक रूप से लागू करना होगा। ताकि जो लोग परिवार और समाज के ख़िलाफ़ जाकर दूसरी जाति या धर्म में शादी करते हैं या एक साथ रहते हैं उन्हें किसी भी हिंसा का सामना न करना पड़े । इसके अलावा समाज में बड़े पैमाने पर जागरूकता फैलाना भी ज़रूरी है इसके लिए सोशल मीडिया एक बेहतरीन मंच बन सकता है। परंपरा और संस्कृति के नाम पर क़ानून का उल्लंघन किसी भी तरह से बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि अगर पंचायतें अदालत बन बैठेंगी, तो संविधान और न्याय दोनों ख़तरे में पड़ जाएंगे।

यह घटना साफ़ दिखाती है कि संविधान और क़ानून में दिए गए अधिकार ज़मीनी स्तर पर कितने असुरक्षित हैं। सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों और मौलिक अधिकारों के बावजूद पंचायतें अपनी मनमानी कर रही हैं, और अक्सर समाज का एक बड़ा हिस्सा उनके साथ खड़ा हो जाता है। ऐसे फ़रमान न सिर्फ़ व्यक्तिगत आज़ादी पर हमला हैं, बल्कि यह लोकतंत्र की उस बुनियाद को भी कमजोर करते हैं, जो समानता, आज़ादी और न्याय पर टिकी है। समाधान के लिए केवल क़ानूनी कार्रवाई ही नहीं, बल्कि सामाजिक मानसिकता में बदलाव ज़रूरी है। जब तक समाज में यह स्वीकार्यता नहीं आएगी कि हर वयस्क को अपनी पसंद से साथी चुनने का अधिकार है, तब तक पंचायतों के ऐसे आदेश आते रहेंगे। 

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