इंटरसेक्शनल भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में बदलाव की नींव रखने में प्रेम की भूमिका

भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में बदलाव की नींव रखने में प्रेम की भूमिका

प्रेम पर घात करता हुआ समाज हमेशा से रहा है नाम बदल दो, जगह बदल दो चाहे वो लैला मजनू, शीरी फरहाद, रोमियो जूलियट या आज के प्रेमी। समाज में हमेशा से प्रेम को कुचलने की कवायद रही है इसका कारण है कि प्रेम समाज की जड़ परम्पराओं को तोड़ देता है जिसे समाज के कट्टरपंथी रिवाजों को बर्दाश्त नहीं है। 

प्रेम अपने आप में एक क्रांतिकारी प्रक्रिया है। समाज की बनायी हुई बहुत सी धारणाओं, वर्जनाओं, मिथकों और परम्पराओं को प्रेम स्वतः ही तोड़ देता है। इस तरह प्रेम एक बड़े सामाजिक बदलाव में बड़ी भूमिका निभाता है। क्योंकि जाति और जेंडर जैसे जटिल सामाजिक मूल्यों को प्रेम जितनी सहजता से सुगम बनाता है वो प्रेम की विद्रोही शक्ति को दर्शाता है। यह केवल कोई विचार नहीं है इसके प्रमाण हमें इसी समाज में दिखते रहे हैं। इस बात को हम आये दिन समाज में देखते हैं कि जाति और धर्म के जिस बन्धन को ज्ञान की चेतना भी आसानी से नहीं तोड़ पाती प्रेम उसे एक झटके में तोड़ देता है। दो धर्मो, दो समुदायों, जातियों और अलग-अलग देश या संस्कृति के लोग कैसे एक साथ आ खड़े होते हैं। हालांकि आये दिन प्रेम में ऑनर क्राइम जैसे अपराध होते रहते हैं क्योंकि जाति और वर्ग के ठेकेदार नहीं चाहते कि उनके बने बनाये पारम्परिक ढाँचे में कोई बदलाव हो वे प्रेम को नष्ट करने के लिए हत्या जैसे अपराध करने से भी नहीं चूकते। वे प्रेम पर तरह-तरह से पाबंदियां लगाते रहते हैं लेकिन प्रेम को वे रोक नहीं पाते। प्रेम तो जाति और वर्ग की खाइयों को नष्ट करके मनुष्य को उदार और निडर बनाता है।

भारत जैसे देशों के लिए प्रेम एक बने बनाये जड़ सामाजिक ढाँचे के लिए बहुत बड़ा विद्रोह है। जहाँ प्रेम को इतने तरह से प्रतिबंधित किया गया है और प्रेम करती स्त्री तो उनसे कत्तई सहन नहीं होती। स्त्री के प्रेम और चयन को लेकर समाज कभी भी सहज नहीं रहा है। स्त्री के प्रेम के लिए ही मीरा ने कहा था कि”सूली ऊपर सेज पिया की/किस विधि मिलना होई। ये बात मीरा ने समाज में प्रेम की कठिनाई और उसके संघर्षों के लिए कही है क्योंकि स्त्री के प्रेम को लेकर और उसके यौनिक चयन को लेकर समाज जिस तरह से कट्टर है कि सदियों से जाने कितने अपराध प्रेम को नष्ट करने के लिए किए जाते हैं।

मनीषा बताती हैं, “जब उन्होंने प्रेम विवाह करने की बात घर बतायी तो दोनों के घर वाले नाराज हो गए क्योंकि दोनों अलग-अलग जाति के थे। बाद में दोनों ने कोर्ट से विवाह कर लिया और एक साथ रहने लगे।”

प्रेम पर घात करता हुआ समाज हमेशा से रहा है नाम बदल दो, जगह बदल दो चाहे वो लैला मजनू, शीरी फरहाद, रोमियो जूलियट या आज के प्रेमी। समाज में हमेशा से प्रेम को कुचलने की कवायद रही है इसका कारण है कि प्रेम समाज की जड़ परम्पराओं को तोड़ देता है जिसे समाज के कट्टरपंथी रिवाजों को बर्दाश्त नहीं है। आज राष्‍ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्‍यूरो के दस्तावेजों का अध्ययन किया जाये तो पता चलता है कि समाज में कितने अपराध प्रेम को कुचलने के लिए किया जाता है जिसका सीधा संबंध होता है सामाजिक व्यवस्था में जाति वर्ग और जेंडर का प्रभुत्व। इसी अन्यायी व्यवस्था को आंबेडकर देखते और कोसते थे। आंबेडकर जाति उन्मूलन के लिए अंतरजातीय विवाहों की बात करते थे जो कि प्रेम के कारण ही सहज हो सकता है।

समाज में लैंगिक भेदभाव को खत्म करने में भी प्रेम अहम भूमिका निभा सकता है और काफी हद तक देखा भी जाता है। हालांकि इसमें भी कई सारे अंतर्विरोध हैं क्योंकि लैंगिक भेदभाव का मसला समाज में बहुत गहरा है और जिस संस्कृति की संरचना में स्त्री को नियंत्रित करने नियति को प्रमुखता से निर्धारित किया गया है वहाँ स्त्री के साथ प्रेम को लेकर तमाम तरह की दुश्वारियां हैं क्योंकि स्त्री के चयन को लेकर समाज कभी सहज नहीं हो पाता। समाज में ऑनर क्राइम जैसे तमाम तरह के अपराध प्रेम को खत्म करने के लिए ही नहीं  किया जाता है स्त्री की यौनिकता को नियंत्रित करने के लिए भी किया जाता है। ऐसे रूढ़िवादी कट्टरपंथी समाज की जड़ता को तोड़ने के लिए भी प्रेम बेहद आवश्यक क्रिया है। प्रेम इस भेदभाव और अन्याय से बने समाजिक ढाँचे को सहजता से बदल देता है।

कुरीतियों को खत्म करने में भूमिका

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ती छात्रा रोशनी से जब हमने समाजिक बदलाव में प्रेम की भूमिका को लेकर सवाल किया तो उन्होंने कहा कि प्रेम को अगर समाज में स्वस्थ तरीके से पनपने दिया जाये तो बहुत सी कुरीतियों को खत्म किया जा सकता है क्योंकि प्रेम जाति धर्म की दीवार को ढहा देता है, बहुत से व्यर्थ के रीति-रिवाजों को नष्ट भी करता है जिससे सामाजिक समता और न्याय का समाज बनता है। वह आगे कहती है कि आज तो प्रेम करने वालों की हत्याओं का सिलसिला बढ़ गया है। आये दिन ऑनर क्राइम की घटनाएं हो रही हैं इसलिए प्रेम की मुश्किलें बढ़ गयी हैं। 

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए श्रिया टिंगल।

समाज में प्रगतिशीलता के ज़रूरी है प्रेम

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मध्यकालीन इतिहास विषय से परास्नातक में अध्ययन करती साक्षी से हमने समाज में बदलाव के लिए प्रेम की भूमिका पर बातचीत की। हमने उनसे जानना चाहा कि वो अंतरजातीय प्रेम-विवाह को कैसे देखती हैं। साक्षी कहती है, “मैं अंतरजातीय प्रेमविवाह को बहुत बड़े सामाजिक बदलाव के रूप में देखती हूं और मानती हूं कि ये समाज प्रेम के फलने-फूलने पर ही सहज और सुंदर रूप से विकसित हो सकता है।” वह आगे कहती है कि प्रेम से ही जाति व्यवस्था को खत्म किया जा सकता है। प्रेम एक ऐसी प्रक्रिया है जहां जाति और धर्म कोई मायने नही रखता है बस प्रेम होना अनिवार्य है यदि प्रेम प्रक्रिया को सहज बनाया जाए तो यह एक बड़ा बदलाव ला सकती है। इस देश की सबसे बड़ी विडंबना जाति व्यवस्था प्रेम के कारण झटके से टूट सकती है। जाति व्यवस्था जितनी सहजता से प्रेम के कारण टूटी है उतनी शिक्षा और किसी जागरूक की चेतना के कारण नहीं टूट पायी है।

जाति व्यवस्था को खत्म करने में प्रेम की भूमिका

प्रेम किस तरह जाति व्यवस्था में बदलाव लाता है इसे समाज मे प्रेम में घटित प्रक्रिया का अवलोकन करना चाहिए। उत्तरप्रदेश के आगरा शहर में रहने वाली मनीषा और अनुज ने अंतरजातीय प्रेम विवाह किया है। मनीषा बताती हैं, “जब उन्होंने प्रेम विवाह करने की बात घर बतायी तो दोनों के घर वाले नाराज हो गए क्योंकि दोनों अलग-अलग जाति के थे। बाद में दोनों ने कोर्ट से विवाह कर लिया और एक साथ रहने लगे।” वह आगे बताती हैं कि अनुज के घरवाले जल्दी नाराजगी भुलाकर आने जाने लगे थे लेकिन मेरे माता-पिता ने स्वीकार करने में बहुत समय लगाया और अन्ततः स्वीकार कर लिये। हमदोनों के विवाह से दो अलग-अलग जाति के लोगों के परिवार भी साथ आये और इसके बाद उनके परिवार में और भी अंतरजातीय विवाह हुए।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए श्रिया टिंगल।

ये बात तो तय है कि अगर समाज को सहज रूप में बदलाव की दरकार है तो प्रेम उसके लिए बहुत जरूरी शय है क्योंकि वो प्रेम ही होता है जो समाज में जाने कितनी कंडिशनिंग को तोड़ देता है और प्रेम की प्रक्रिया में मनुष्य बहुत सामान्य और सहज रूप में एक बड़ा विद्रोही बनता है जो जड़ सामाजिक परम्पराओं को नष्ट कर देता है। इस तरह समाज में जो लोक-लाज या पुरातनपंथी धारणाएँ जड़ हैं वह सब प्रेम में टूट जाती हैं। बताया जाता है कि महात्मा गांधी किसी भी सजातीय विवाह में शामिल नहीं होते थे। इसका सीधा अर्थ है कि वे प्रेम विवाह को समाजिक बदलाव के लिए आवश्यक मानते थे।

हमारी सांस्कृतिक भिन्नताएं प्रेम को बहुत तरह से बाधित करती हैं। वहाँ हमारा मन समाज के बने-बनाये संस्कारों के जकड़न में बंधा होता है। इसी जकड़न से कई ऐसी विशुद्धियां पैदा होती हैं जो काफी खतरनाक साबित होती जाती हैं। महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन अपने प्रसिद्ध लेख “समाजवाद क्यों? में एक आपबीती के हवाले से आधुनिक समय में मनुष्य का अन्य संस्कृति और समाज से अलगावग्रस्त होकर धीरे-धीरे बर्बर अवचेतन जानवर में तब्दील हो जाने की प्रक्रिया पर गहरी चिंता व्यक्त करते हैं ।

बदलाव में क्या है प्रेम की भूमिका

“प्रेम समाज में बदलाव कैसे लाता है, इस विषय पर हमने कुछ लोगों से बातचीत की। समीक्षा लखनऊ में रहती हैं और एक निजी संस्थान में नौकरी करती हैं। वग कहती है कि प्रेम समाज में बड़ा बदलाव तो ला सकता है लेकिन प्रेम को समाज जमीन पर उगने ही नहीं देता। समीक्षा कहती है कि यहाँ फरवरी के महीने में बजरंग दल जैसे संगठन बहुत उग्र हो जाते हैं और लोगों को पार्क या सार्वजनिक जगहों पर बैठे देख यूँ ही परेशान करते हैं। वे प्रेमी-जोड़ों को देखकर उन पर हमलावर होते हैं। वे समूह बनाकर घूमते और प्रेमी जोड़ों को जलील करते हैं उनसे मार-पिटाई भी करते हैं। एंटी-रोमियो स्कवाड महिलाओं की सुरक्षा करने के लिए बनाया गया था लेकिन पता चला कि वो समाज में प्रेमियों पर शिकंजा कसने के लिए बनाया गया था।

साक्षी कहती है, “मैं अंतरजातीय प्रेमविवाह को बहुत बड़े सामाजिक बदलाव के रूप में देखती हूं और मानती हूं कि ये समाज प्रेम के फलने-फूलने पर ही सहज और सुंदर रूप से विकसित हो सकता है।”

मनुष्य के जीवन में प्रेम ऐसी प्रक्रिया है, उसकी सांस्कृतिक चेतना है जो उसे महज नर-मादा के यौनिक सम्बन्धों से ऊपर की ओर ले जाता है उसे एक विशेष मनुष्य से इस तरह का अनुराग महसूस होता है कि जीवन में उसके साथ चलने के लिए, रहने के लिए बेचैन होता है। लेकिन जाति, धर्म और वर्ग इस देश का ऐसा सच है, जिसे पितृसत्तात्मक व्यवस्था खत्म नहीं होने देना चाहती। प्रेम हमेशा समाज के लिए एक बहुत बड़ा प्रतिरोध होता है। वो सहजीविता के जीवन का स्रोत और एक विस्तार भी होता है।  प्रेम जब आता है मनुष्य के जीवन में तो जाति से लेकर लैंगिक भेदभाव और वर्गीय ढाँचे को भी धता बता देता है।  समाज में प्रेम ही वो प्रक्रिया है जो मनुष्य के स्वतंत्रता और सहकारिता के जीवन जीने की चेतना को विकसित करता है। साथ ही जाति, नस्ल और जेंडर जैसे जटिल भेदभाव को खत्म करता है। प्रेम हमें प्रकृति से प्रेम करना भी सिखाया है जिससे जुड़कर हम प्रकृति की बनायी हर शय से प्रेम करते हैं उसमें खूबसूरती देखते हैं और तमाम तरह की सामाजिक धारणाओं, कुंठाओं और पूर्वाग्रहों से मुक्ति मिलती है।


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