हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महिला और संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग (यूएन डीईएसए) की ‘जेंडर स्नैपशॉट 2025‘ रिपोर्ट में ये सामने आया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के इस्तेमाल के कारण दुनिया भर में महिलाओं की नौकरियों पर ज्यादा खतरा मंडरा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में एआई के बढ़ते उपयोग से महिलाओं की लगभग 28 फीसद नौकरियां खतरे में है जबकि वही पुरुषों की केवल 21 फीसद नौकरियों को एआई से खतरा है। यूएन रिपोर्ट के यह आंकड़े डिजिटल दुनिया में मौजूद जेंडर डिजिटल डिवाइड यानी जेंडर असमानता की सच्चाई को उजागर करते हैं। इतना ही नहीं जेंडर स्नैप्शाट रिपोर्ट, तकनीकी कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी और लंबे समय से मौजूद जेंडर असमानता के आंकड़े भी सामने रखती है।
इसके अनुसार वैश्विक तकनीकी कार्यबल में महिलाओं की भागेदारी सिर्फ 29 फीसदी है। वहीं तकनीकी लीडरशिप में मात्र 14 फीसदी भूमिकाओं में महिलाएं मौजूद हैं। रिपोर्ट इस बात पर खास जोर देती है कि अगर हमने समय रहते इस जेंडर डिजिटल डिवाइड को खत्म नहीं किया तो साल 2030 तक दुनिया भर में लगभग 35.1 करोड़ महिलाएं और लड़कियां बहुत ही खराब आर्थिक स्थिति और गरीबी में होंगी। इसके चलते सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) खास करके सतत विकास लक्ष्य-5 के अंतर्गत लक्ष्य यानी लैंगिक समानता लाना और महिलाओं को सशक्त करने आदि सपने अधूरे रह जाएंगे।
जेंडर स्नैपशॉट 2025′ रिपोर्ट में ये सामने आया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के इस्तेमाल के कारण दुनिया भर में महिलाओं की नौकरियों पर ज्यादा खतरा मंडरा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में एआई के बढ़ते उपयोग से महिलाओं की लगभग 28 फीसदी नौकरियां खतरे में है जबकि वही पुरुषों की केवल 21 फीसदी नौकरियों को एआई से खतरा है।
जेंडर डिजिटल डिवाइड क्या है?
अगर आसान शब्दों में बात करें, तो जेंडर डिजिटल डिवाइड से मतलब महिलाओं और पुरुषों के बीच तकनीकी सुविधाओं जैसे स्मार्ट फोन, इंटरनेट और कंप्यूटर जैसे डिजिटल साधनों के उपयोग, जानकारी और जागरूकता को लेकर मौजूद असमानता है। मतलब महिलाओं और लड़कियों के बीच डिजिटल साधनों तक पुरुषों के मुकाबले कम पहुंच और जानकारी या जागरूकता का होना। यह डिजिटल असमानता केवल स्मार्टफोन या इंटरनेट की पहुंच तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें डिजिटल कौशल, महिलाओं और लड़कियों की ऑनलाइन भागीदारी, शिक्षा और रोज़गार के अवसरों का अंतर भी शामिल है। इस डिजिटल असमानता के लिए लैंगिक रूढ़िवादिता और पूर्वाग्रहों से लेकर सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाएं जिम्मेदार हैं। इसके कारण महिलाएं अक्सर डिजिटल दुनिया और कार्यबल में पुरुषों के मुकाबले काफी पीछे छूट जाती हैं। वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के मुताबिक वैश्विक स्तर पर, पुरुषों की डिजिटल दुनिया यानी इंटरनेट तक पहुंच महिलाओं की तुलना में 21 फीसदी ज़्यादा है।

ऑबजर्वर रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक भारतीय महिलाओं और लड़कियों के पास मोबाइल फ़ोन और स्मार्ट फोन होने की संभावना पुरुषों की तुलना में 15 फीसदी कम है। वहीं मोबाइल इंटरनेट सेवाओं का उपयोग करने की संभावना 33 फीसदी कम है। साल 2020 में, वयस्क महिलाओं में से 25 फीसदी के पास स्मार्टफोन था, जबकि वहीं युवा पुरुषों में यह संख्या 41 प्रतिशत थी। इसकी तुलना में, बांग्लादेश में मोबाइल होने का लैंगिक अंतर 24 फीसदी और मोबाइल उपयोग में 41 फीसदी था। पाकिस्तान में मोबाइल होने के मामले में लैंगिक अंतर और भी ज़्यादा 34 फीसदी और मोबाइल उपयोग के मामले में 43 फीसदी था। ऑबजर्वर रिसर्च फाउंडेशन का डेटा यह भी दिखाता है कि साउथ एशिया में वैश्विक स्तर पर तकनीकी साधन जैसे मोबाइल के उपयोग में सबसे अधिक लैंगिक असमानता मौजूद है, जिसका नतीजा हम दुनिया भर में हम बढ़ते जेंडर डिजिटल डिवाइड के रूप देख सकते हैं।
वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के मुताबिक वैश्विक स्तर पर, पुरुषों की डिजिटल दुनिया यानी इंटरनेट तक पहुंच महिलाओं की तुलना में 21 फीसदी ज़्यादा है। ऑबजर्वर रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक भारतीय महिलाओं और लड़कियों के पास मोबाइल फ़ोन और स्मार्ट फोन होने की संभावना पुरुषों की तुलना में 15 फीसदी कम है।
जेंडर डिजिटल डिवाइड और सतत विकास लक्ष्य
वर्ल्ड वाइड वेब फाउंडेशन की रिपोर्ट वुमनस् राइट्स ऑनलाइन के अनुसार विकासशील देशों में इंटरनेट पहुंच, डिजिटल कौशल और ऑनलाइन अधिकारों के मामले में जबरदस्त लैंगिक असमानताएं मौजूद हैं। वेब फाउंडेशन की सभी के लिए समान इंटरनेट तक पहुंच को लेकर की गई एक पहल, अलायंस फ़ॉर अफोर्डेबल इंटरनेट से सामने आता है कि आर्थिक कमजोरी और जेंडर आपस में मिलकर कुछ विकासशील देशों में 80 फीसद आबादी जिनमें ज़्यादातर महिलाओं को इंटरनेट की सुविधा और उपयोग से दूर करता है। जेंडर डिजिटल डिवाइड और असमानता के संदर्भ में अगर सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की ओर देखें तो एसडीजी के लक्ष्य दुनिया भर में बहुत कम लागत में इंटरनेट सुविधा पहुंचाने पर बात करता है और सभी महिलाओं और पुरुषों के लिए बुनियादी सेवाओं के साथ नई तकनीकी सुविधा तक एक समान पहुंच होने पर भी बल देता है। एसडीजी-5 तकनीकि शिक्षा के माध्यम से महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाने और समानता लाने को लेकर, सभी देशों में अहम नीतियों के लागू होने पर जोर देता है ताकि डिजिटल दुनिया में मौजूद लैंगिक असमानता को निर्धारित समय के अंदर खत्म किया जा सके।
क्या बताती है स्नैपशॉट रिपोर्ट

जेंडर स्नैपशॉट रिपोर्ट लगभग 100 से ज़्यादा डेटा स्रोतों से मिलकर तैयार की गई है। यूएन वुमन और डीईएसए की तैयार यह रिपोर्ट दुनिया भर में लैंगिक समानता और 2030 तक सतत विकास एजेंडा पर उपलब्ध डेटा का सबसे अहम स्रोत भी है। यह रिपोर्ट डिजिटल डिवाइड के चलते डिजिटल दुनिया में बढ़ती असमानता पर बात करते हुए बताती है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) कारण महिलाओं की नौकरियां पुरुषों की तुलना में ज़्यादा खतरा हैं। जहां दुनिया भर में महिलाओं की लगभग 28 फीसदी नौकरियों को खतरा है, वहीं पुरुषों की केवल 21 प्रतिशत नौकरियों को खतरा है। रिपोर्ट बताती है कि अगर समय रहते डिजिटल असमानता को खत्म नहीं किया गया तो साल 2030 तक दुनिया भर में 35.1 करोड़ महिलाएं और लड़कियाएं अत्याधिक आर्थिक कमजोरी और गरीबी में होंगी। इसके चलते एसडीजी-5 के लक्ष्यों को भी समय रहते हासिल नहीं किया जा सकेगा।
सतत विकास के लक्ष्यों को पूरा करने की जरूरत
यूएन रिपोर्ट बढ़ते डिजिटल डिवाइड और असमानता से होने वाले नुकसान की चेतावनी देने के साथ डिजिटल डिवाइड के लिए ठोस कदम उठाकर खत्म करने का सुझाव देती है। रिपोर्ट के मुताबिक अगर डिजिटल असमानता और सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए ठोस कदम उठाए जाए तो इससे दुनिया भर में 343 मिलियन महिलाओं और लड़कियों को सीधा फायदा मिल सकता है। इससे 30 मिलियन महिलाएं अत्यधिक गरीबी से बाहर आ सकती हैं और लैंगिक समानता के कारण लगभग 42 मिलियन महिलाओं और परिवारों को खाद्य सुरक्षा मिलेगी। इसके साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था को 1.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अतिरिक्त वृद्धि हो सकती है। डिजिटल दुनिया में मौजूद लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए जरूरी है कि वैश्विक स्तर पर महिलाओं और लड़कियों की स्टेम, तकनीकि शिक्षा और कौशल विकास को लेकर खास नीतियां लागू की जाए, जिससे एक ऐसा डिजिटल कार्यबल बने जहां किसी को भी अपने जेंडर के कारण असमानता और भेदभाव का सामना न करना पड़े।

