समाजख़बर फंड की कमी में 47 फीसदी महिला संगठन हो सकते हैं बंद: यूएन रिपोर्ट

फंड की कमी में 47 फीसदी महिला संगठन हो सकते हैं बंद: यूएन रिपोर्ट

मई 2025 में ज़ारी की गई इस रिपोर्ट के मुताबिक 47 फीसद महिला संगठन अगले 6 महीने में बंद होने की कगार पर हैं। इसकी वजह इन संगठनों को मिलने वाली विदेशी सहायता में भारी कटौती है। 

दुनियाभर में चल रहे मानवीय संकटों, संघर्षों और आपदाओं के बीच महिलाओं और लड़कियों की ज़रूरतें अक्सर हाशिए पर रह जाती हैं। ऐसे में महिला संगठनों की भूमिका बेहद अहम हो जाती है, जो जमीनी स्तर पर लैंगिक हिंसा से सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, आर्थिक मदद और क़ानूनी सहायता जैसी ज़रूरी सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं। लेकिन हाल ही में यूएन वुमन के जारी एक रिपोर्ट ने वैश्विक समुदाय को एक बड़ी चेतावनी दी है। रिपोर्ट बताती है कि विदेशी सहायता में भारी कटौती की वजह से हजारों महिला संगठन बंद होने की कगार पर पहुंच गए हैं। यह संकट न केवल संगठनों की मौजूदगी पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि उन लाखों-करोड़ों महिलाओं के अधिकारों, सुरक्षा और जीवन पर भी सीधा असर डालता है, जो इन संगठनों पर निर्भर हैं। ‘एट ब्रेकिंग प्वाइंट: द इंपैक्ट ऑफ़ फॉरेन एड कट ऑन वीमेन्स ऑर्गेनाइजेशन इन ह्यूमैनिटेरियन क्राइसिस वर्ल्डवाइड’ नाम की इस रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि दुनिया भर में मानवीय संकट झेल रहे इलाकों में महिला संगठनों की हालत बेहद गंभीर हो गई है।

मई 2025 में ज़ारी की गई इस रिपोर्ट के मुताबिक 47 फीसद महिला संगठन अगले 6 महीने में बंद होने की कगार पर हैं। इसकी वजह इन संगठनों को मिलने वाली विदेशी सहायता में भारी कटौती है। पूरी दुनिया में तेजी से बदलते तापमान, जलवायु परिवर्तन, बीमारी, महामारी, प्राकृतिक आपदा, युद्ध, संघर्ष और तनावपूर्ण परिस्थितियों के बीच महिलाओं की स्थिति और भी चिंताजनक हो गई है। ये महिला संगठन संघर्ष, आपदा, विस्थापन और युद्ध से प्रभावित महिलाओं को लैंगिक हिंसा से बचाव, स्वास्थ्य सेवाएं, आर्थिक सशक्तीकरण और क़ानूनी सहायता जैसी ज़रूरी सेवाएं और मदद मुहैया कराते हैं। ऐसे में इन संगठनों का बंद होना करोड़ों महिलाओं की ज़िंदगियों को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। इससे ख़ासतौर पर युद्ध, आपदा, गरीबी और विस्थापन जैसी चुनौतियों से जूझ रहे देशों में महिलाओं के लिए समस्याएं और ज़्यादा बढ़ सकती हैं।

मई 2025 में ज़ारी की गई इस रिपोर्ट के मुताबिक 47 फीसद महिला संगठन अगले 6 महीने में बंद होने की कगार पर हैं। इसकी वजह इन संगठनों को मिलने वाली विदेशी सहायता में भारी कटौती है। 

क्या बताती है रिपोर्ट

यूएन वुमन की रिपोर्ट दुनिया भर के 44 आपदाग्रस्त क्षेत्रों के 411 महिला अधिकार संगठनों के बीच किए गए सर्वेक्षण पर आधारित है। इसमें पाया गया कि दुनिया भर के 73 देशों में 308 मिलियन यानी लगभग 30.8 करोड़ लोग मानवीय सहायता पर निर्भर हैं। लेकिन, इसके लिए जितना फंड चाहिए, उसका महज 7 फीसद ही इस समय उपलब्ध है। लगभग 90 फीसद ऐसे संगठन फंडिंग में कटौती से जूझ रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी आशंका जताई जा रही है कि अगर फंडिंग में इसी तरह कटौती बनी रही और दूसरी जगह से फंड का इंतज़ाम नहीं किया गया, तो 47 फीसद संगठनों को मजबूरन अगले 6 महीनों के भीतर बंद करना पड़ेगा।

तस्वीर साभार: United Nations

इसमें यह भी पाया गया कि फंड की कमी की वजह से 72 फीसद यानी लगभग तीन चौथाई संगठनों में कर्मचारियों की छंटनी तक करनी पड़ी। इसके अलावा, 51 फीसद संगठनों को अपने ज़रूरी कार्यक्रम जैसे कि लैंगिक हिंसा की रोकथाम, स्वास्थ्य सेवाएं, रोज़गार से जुड़ी सहायता और आर्थिक मदद जैसे कार्यक्रम बंद करने पड़े हैं। यूनाइटेड नेशन के एक आंकड़े के अनुसार साल 2021-22 के बीच महिला अधिकार से जुड़े संगठनों को मानवीय सहायता कोष का 1 फीसद से भी कम फंड मिल पाया है।

संकटग्रस्त क्षेत्रों में महिला संगठनों की भूमिका

संयुक्त राष्ट्र एक ऐसी वैश्विक संस्था है, जिसका मकसद दुनिया के सभी इंसानों को बिना किसी भेदभाव के चाहे वो किसी भी जाति, धर्म, लिंग, क्षेत्रीयता, नस्ल या समुदाय से हों उनको स्वतंत्रता, समानता, सुरक्षा और गरिमापूर्ण जीवन जैसे मानवाधिकार सुनिश्चित करना और शांति की स्थापना करना है। इसके लिए समय-समय पर सतत विकास लक्ष्य (SDG-17) जैसी अनेक नीतियां और योजनाएं बनाई जाती हैं, जो दुनिया भर के देशों के लिए गाइडलाइन का काम करती हैं। इसमें गरीबी और भुखमरी ख़त्म करना, सभी के लिए अच्छा स्वास्थ्य, सुरक्षा और शिक्षा की व्यवस्था करना, साफ हवा, पानी और जलवायु, समानता, शांति, न्याय और आर्थिक विकास ख़ासतौर पर उल्लेखनीय हैं। इसके लिए यूएन वुमन, एमनेस्टी इंटरनेशनल, सेव द चिल्ड्रन, ह्यूमन राइट्स वॉच, एसोसिएशन फॉर वीमेन्स राइट्स ऐंड डेवेलपमेन्ट (AWID), वूमनकाइंड वर्ल्डवाइड, सेंटर फॉर रिप्रोडक्टिव राइट्स, वीमेन फॉर वीमेन इंटरनेशनल, इक्वलिटी नाउ, वीमेन्स एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (WEDO), ग्लोबल फंड फॉर वीमेन जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं ख़ासतौर पर उल्लेखनीय हैं। भारत में राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW), अखिल भारतीय महिला सम्मेलन (AICW), भारतीय राष्ट्रीय महिला परिषद (NCWI), और भारतीय महिला बैंक महिलाओं के अधिकार से जुड़े प्रमुख संगठन हैं।

दुनिया भर के 73 देशों में 308 मिलियन यानी लगभग 30.8 करोड़ लोग मानवीय सहायता पर निर्भर हैं। लेकिन, इसके लिए जितना फंड चाहिए, उसका महज 7 फीसद ही इस समय उपलब्ध है।

महिला संगठनों के बंद होने का असर

आपदाग्रस्त क्षेत्र की महिलाओं की स्थिति और भी ज़्यादा संवेदनशील होती है। इन्हें इनकी बुनियादी ज़रूरतों जैसे भोजन, आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं हासिल करने के लिए भी हर दिन लड़ाई लड़नी पड़ती है। तनावग्रस्त माहौल में इन्हें अक्सर हिंसा और उत्पीड़न जैसे ट्रॉमा से भी गुज़रना पड़ता है। ऐसे समय में इन्हें न सिर्फ़ सुरक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं बल्कि काउंसलिंग और क़ानूनी मदद की भी ज़रूरत पड़ जाती है। लैंगिक हिंसा की रोकथाम, सर्वाइवर को सुरक्षा, क़ानूनी सहायता और काउंसलिंग सेवाएं मुहैया करना उन तमाम संगठनों की बदौलत मुमकिन हो पाता है। गर्भवती और बच्चे को जन्म देने वाली मांओं के लिए माता और शिशु कल्याण संबंधी देखभाल सुनिश्चित करना भी इनकी सेवाओं में शामिल है। इसके साथ ही स्वरोजगार, कौशल विकास और नौकरी के अवसर प्रदान कर आर्थिक सशक्तीकरण कर आत्मनिर्भर बनाना भी महिला अधिकार से जुड़े संगठनों का लॉन्ग टर्म गोल होता है। महिलाओं के इन सभी अधिकारों को मानवाधिकार का दर्जा दिया गया है। जब तक सभी के लिए स्वतंत्रता, समानता, न्याय और गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित नहीं किया जाता तब तक कोई भी विकास अधूरा ही होता है।

तस्वीर साभार: UN News

महिला अधिकार से जुड़े संगठनों के फंड में कटौती का सबसे ज़्यादा असर लैंगिक हिंसा को रोकने और उससे जुड़ी सेवाओं पर पड़ता है। स्वास्थ्य और रोजगार इसके बाद आता है। यूनाइटेड नेशन की नवंबर 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग हर तीन में से एक महिला अपने जीवन में कम से कम एक बार शारीरिक या यौन हिंसा का सामना की हैं। साल 2023 में दुनिया भर में 51,100 महिलाओं और लड़कियों की हत्या उनके पार्टनर या परिवार के लोगों के ने की थी यानी औसतन हर दिन 140 महिलाओं की हत्या उनके ही परिवार के किसी सदस्य या करीबी ने की है। इस रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि महिलाओं की हत्या के 60 फीसद मामलों में उनका रोमांटिक पार्टनर या परिवार शामिल होता है।

साल 2023 में दुनिया भर में 51,100 महिलाओं और लड़कियों की हत्या उनके पार्टनर या परिवार के लोगों के ने की थी यानी औसतन हर दिन 140 महिलाओं की हत्या उनके ही परिवार के किसी सदस्य या करीबी ने की है। इस रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि महिलाओं की हत्या के 60 फीसद मामलों में उनका रोमांटिक पार्टनर या परिवार शामिल होता है।

वहीं जलवायु परिवर्तन की वजह से विस्थापित होने वाले लोगों में 80 फीसद महिलाएं हैं। कोर्ट में चल रहे हैं मामलों के विश्लेषण से यह बात भी सामने आई है कि पुरुषों की तुलना में महिला सर्वाइवर्स को मानव तस्करी के मद्देनजर तीन गुना अधिक हिंसा का सामना करना पड़ता है। लैंगिक समानता सतत विकास लक्ष्यों में से एक है। इसके बावजूद साल 2023 तक केवल 27 देशों के पास लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के लिए बजट और नीतियां मौजूद थीं। इससे स्पष्ट है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने, शिक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं मुहैया कराने और लैंगिक समानता के लिए महिला अधिकार से जुड़े संगठनों की कितनी ज़रूरत है।

क्या हो सकता है समाधान?

तस्वीर साभार: Eco Business

महिलाओं और उनसे जुड़े मुद्दों पर नीतियां बनाने के लिए राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और संस्थानों में महिलाओं को जगह दी जानी चाहिए, जिससे इन्हें अपनी बात रखने और समाधान खोजने में इनकी भागीदारी का मौका मिल सके। इसके अलावा महिला संगठनों की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए सीधे और लॉन्ग टर्म फंडिंग की व्यवस्था भी की जानी चाहिए जिससे योजनाओं के अमल में किसी तरह की कोई बाधा न आए। साथ ही फंड का इस्तेमाल कहां और किस तरीके से हो रहा है इसकी जवाबदेही और पारदर्शिता भी जरूरी है। फंडिंग के लिए दूसरे वैकल्पिक रास्ते भी अपनाए जा सकते हैं जिससे निर्भरता कम की जा सके। इसके लिए निजी कंपनियों की कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR), क्राउड फंडिंग, पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप जैसे तरीके भी अपनाए जा सकते हैं। यूनाइटेड नेशन की यह रिपोर्ट एक चेतावनी है जिसे अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। संस्थानों का बंद होना मानव विकास के रास्ते में हमारी नैतिक हार होगी। इसलिए, इन संगठनों को बचाना महिला अधिकारों की रक्षा के लिए ही नहीं बल्कि मानवाधिकार के लिए भी ज़रूरी है।

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