स्वास्थ्यशारीरिक स्वास्थ्य यौन और प्रजनन स्वास्थ्य में ‘सेक्शुअल हेल्थ’ की अनदेखी

यौन और प्रजनन स्वास्थ्य में ‘सेक्शुअल हेल्थ’ की अनदेखी

यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सिर्फ़ शरीर से जुड़ा मामला नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और सामाजिक भलाई का मामला भी है। यह व्यक्ति के लिए अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी से जुड़े फैसले लेने की आज़ादी की बात करता है जो किसी इंसान की शारीरिक सेहत उसकी मानसिक सेहत, सामाजिक संबंधों और व्यक्तित्व पर असर डालता है।

भारत आज दुनिया का सबसे ज़्यादा आबादी वाला देश बन चुका है। इसके बावजूद आज भी यहां यौन और प्रजनन स्वास्थ्य (एसआरएचआर) जैसे ज़रूरी मुद्दे पर बात तक नहीं की जाती। हमारे समाज में इसे टैबू या वर्जित विषय माना जाता है। इस वजह से बहुत सारे ग़लत और अवैज्ञनिक मिथक बड़े पैमाने पर फैले हुए हैं। हालांकि सरकारी और गैर-सरकारी संगठन समय-समय पर इससे जुड़ी योजनाएं और मुहिम चलाते हैं । लेकिन इसमें भी यौन स्वास्थ्य, प्रजनन, गर्भनिरोधक और परिवार नियोजन जैसे मुद्दों को ही महत्त्व दिया जाता है। जबकि यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकार (एसआरएचआर) एक व्यापक विषय है, जिसमें व्यक्ति को अपने शरीर, यौनिकता और प्रजनन से जुड़ी जानकारियां और फ़ैसले लेने का अधिकार भी शामिल है।


यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकार (एसआरएचआर)

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ ) के अनुसार, यौन और प्रजनन स्वास्थ्य (एसआरएचआर) से तात्पर्य सेवाओं की एक व्यापक श्रेणी से है, जिसमें गर्भनिरोधक, प्रजनन और इंफर्टिलिटी देखभाल, मातृ और प्रसवकालीन स्वास्थ्य, यौन संचारित संक्रमणों (एसटीआई) की रोकथाम और उपचार, यौन और जेंडर आधारित हिंसा से सुरक्षा, सुरक्षित और स्वस्थ संबंधों पर जानकारी तक पहुंच शामिल है। यानी इसका मतलब उन सभी सेवाओं से है जो किसी व्यक्ति के शरीर, यौनिकता और प्रजनन से जुड़ी ज़रूरतों और समस्याओं से जुड़ी हुई हैं। इसमें यौन संचारित बीमारियों से रोकथाम, इलाज, गर्भनिरोधक साधन, गर्भधारण, गर्भावस्था, प्रसव और बच्चों के जन्म के बाद की देखभाल शामिल है। इसके साथ ही इसमें सुरक्षित और स्वस्थ यौन संबंधों, यौन ज़रुरतों के बारे में सही समझ, जानकारी और जागरूकता को भी शामिल किया जाता है। इसमें यौन स्वास्थ्य के साथ ही यौन अधिकारों की भी बात की जाती है। जिसके तहत कोई वयस्क व्यक्ति कब, किससे और किस तरह से यौन संबंध रखेगा यह उन दोनों पार्टनर्स की आपसी सहमति, समझ और चुनाव का मामला है।

यौन और प्रजनन स्वास्थ्य से तात्पर्य सेवाओं की एक व्यापक श्रेणी से है, जिसमें गर्भनिरोधक, प्रजनन और इंफर्टिलिटी देखभाल, मातृ और प्रसवकालीन स्वास्थ्य, यौन संचारित संक्रमणों की रोकथाम और उपचार, यौन और जेंडर आधारित हिंसा से सुरक्षा, सुरक्षित और स्वस्थ संबंधों पर जानकारी तक पहुंच शामिल है।

 एसआरएचआर व्यक्ति की यौनिकता से जुड़ी ज़रूरतों के साथ ही इच्छाओं को भी शामिल करता है। यह यौन स्वास्थ्य के साथ ही संतुष्टि और सुख की भी बात करता है।यौन और प्रजनन स्वास्थ्य (एसआरएचआर) सिर्फ़ शरीर से जुड़ा मामला नहीं है बल्कि यह व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और सामाजिक भलाई का मामला भी है। यह व्यक्ति के लिए अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी से जुड़े फैसले लेने की आज़ादी की बात करता है जो किसी इंसान की शारीरिक सेहत उसकी मानसिक सेहत, सामाजिक संबंधों और व्यक्तित्व पर असर डालता है। इसका मतलब है कि लोग कितना स्वस्थ और सुरक्षित यौन जीवन जी पाते हैं। उन्हें यह तय करने का अधिकार हो कि उन्हें कब, किसके साथ और कितने बच्चे पैदा करने हैं या एक भी बच्चा नहीं करना है। आसान शब्दों में कहा जाए तो यौन और प्रजनन स्वास्थ्य में केवल यौन संचारित बीमारियों, गर्भधारण या परिवार नियोजन ही नहीं बल्कि इसमें उन सभी बातों को शामिल किया जाता है, जिसमें कोई व्यक्ति अपने शरीर, यौनिकता और परिवार से जुड़े फ़ैसले सुरक्षित, स्वस्थ और सम्मानजनक तरीके से ले सके।

गर्भनिरोधक साधनों के इस्तेमाल और यौन सुख के बीच संबंध

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और यूनाइटेड नेशन के ह्यूमन रिप्रोडक्शन प्रोग्राम (एचआरपी ) और द प्लेजर प्रोजेक्ट के हालिया रिसर्च में पाया गया कि 20 में से 1 व्यक्ति ज़रूरत रहने पर भी गर्भ निरोधक साधनों का इस्तेमाल इसलिए बंद कर देते हैं, क्योंकि इससे उन्हें यौन जीवन पर नकारात्मक असर महसूस होता है। 1,25,000 प्रतिभागियों पर किए गए 64 अध्ययनों में पाया गया कि गर्भनिरोधक साधनों का इस्तेमाल करने वाले लोगों ने इन के इस्तेमाल से यौन इच्छा में कमी, यौन संबंधों के दौरान असुविधा और अपने यौन साथी की चिंताओं के बारे में बात की।डब्ल्यूएचओ और एचआरपी में यौन, प्रजनन, मातृ, बाल और किशोर स्वास्थ्य एवं वृद्धावस्था निदेशक डॉ. पास्कल अलोटे ने कहा, ‘अनचाहे गर्भ के डर के बिना यौन संबंध का आनंद लेने की क्षमता ही लोगों के गर्भनिरोधक का उपयोग करने का एक प्रमुख कारण है। ये निष्कर्ष सफल गर्भनिरोधक इस्तेमाल में यौन संतुष्टि के महत्त्व को उजागर करते हैं और दुनिया भर में यौन स्वास्थ्य और परिवार नियोजन कार्यक्रमों को बेहतर बनाने की दिशा में एक स्पष्ट रूप से गैरहाजिर कड़ी को उजागर करते हैं।’ 

1,25,000 प्रतिभागियों पर किए गए 64 अध्ययनों में पाया गया कि गर्भनिरोधक साधनों का इस्तेमाल करने वाले लोगों ने इन के इस्तेमाल से यौन इच्छा में कमी, यौन संबंधों के दौरान असुविधा और अपने यौन साथी की चिंताओं के बारे में बात की।

गर्भनिरोधक साधनों का इस्तेमाल सिर्फ़ यौन संचारित बीमारियों और अनचाही प्रेग्नेंसी से बचने के लिए ही नहीं, बल्कि यौन जीवन की सहजता, आज़ादी और आत्मविश्वास से भी जुड़ा हुआ होता है। जब कपल प्रेग्नेंसी और यौन संबंधित बीमारियों की चिंता से आज़ाद होते हैं। तो वह और ज़्यादा खुलकर यौन संबंधों का आनंद ले सकते हैं। इससे आपस में भरोसा और नज़दीकी बढ़ती है, जिससे रिश्ता और मजबूत होता है। लेकिन बहुत सारे मिथक और ग़लत जानकारी की वजह से कई बार कपल गर्भनिरोधक साधनों का इस्तेमाल नहीं करते हैं जो उनकी ज़िंदगी पर बुरा असर डालता है।

ख़ासकर गर्भ निरोध का सबसे आसान और कम जोख़िम वाला तरीका जैसे कि कॉन्डोम के बारे में लोगों में आम मिथक है कि इससे यौन सुख में कमी आती है।इसी तरह नसबंदी के बारे में भी यह माना जाता है कि इससे यौन इच्छा और सुख में कमी आती है। यौन और प्रजनन स्वास्थ्य एवं अधिकार की नीतियां ज़्यादातर गर्भ निरोध, यौन रोगों से बचाव और मातृ स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं। इसमें ‘प्लेज़र’ यानी यौन आनंद पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। डब्ल्यूएचओ और यूनाइटेड नेशन का हालिया अध्ययन यह साबित करता है कि गर्भनिरोध और यौन आनंद एक दूसरे से जुड़े हुए हैं इसलिए रिसर्च में इन बातों को भी शामिल किया जाना ज़रूरी है।

गर्भनिरोधक साधनों का इस्तेमाल सिर्फ़ यौन संचारित बीमारियों और अनचाही प्रेग्नेंसी से बचने के लिए ही नहीं, बल्कि यौन जीवन की सहजता, आज़ादी और आत्मविश्वास से भी जुड़ा हुआ होता है। जब कपल प्रेग्नेंसी और यौन संबंधित बीमारियों की चिंता से आज़ाद होते हैं। तो वह और ज़्यादा खुलकर यौन संबंधों का आनंद ले सकते हैं।

‘प्लेज़र’ की कमी का महिलाओं के सुख और सेहत पर असर

आमतौर पर पुरुष पार्टनर को खुश करने के साथ ही गर्भ निरोध की ज़िम्मेदारी भी महिलाओं पर डाल दी जाती है। ऐसे में गर्भनिरोधक साधनों का इस्तेमाल न करने से अनचाही प्रेग्नेंसी और यौन संबंधी बीमारियों का ख़तरा इन्हें यौन संबंध के दौरान एक तरीके के प्रेशर में रखता है। इसके अलावा इससे अनचाही गर्भावस्था और असुरक्षित अबॉर्शन का ख़तरा भी पैदा होता है। इसके साथ ही प्लेज़र में कमी से महिलाओं में दर्द, हार्मोनल बदलाव, वेजाइनल ड्राइनेस जैसी समस्याएं भी आ जाती हैं। इन वजहों से ये पूरा आनंद खुलकर महसूस नहीं कर पाती हैं। इससे न सिर्फ़ महिलाओं की सेहत पर असर पड़ता है बल्कि कपल के आपसी रिश्ते में भरोसे, संतुष्टि, आत्मविश्वास और सम्मान में भी कमी आती है।

हमीरपुर, उत्तर प्रदेश की आरती राजपूत ने इस पर बात करते हुए कहा, “ज़्यादातर महिलाओं को प्लेज़र के बारे में जानकारी ही नहीं होती। इनके पुरुष पार्टनर भी इस बारे में बात करना पसंद नहीं करते और अपनी संतुष्टि और सुख पर फ़ोकस रखते हैं। आमतौर पर पुरुषों के अंदर यह मिथ होता है कि प्रोटेक्शन यूज करने से प्लेज़र में कमी आती है, इस वजह से बहुत सी महिलाएं असुरक्षित यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर होती हैं। पार्टनर से सेक्स के बारे में बात करने पर जज किए जाने और कैरेक्टर पर शक करने का डर रहता है जिस वजह से महिलाएं कभी ख़ुद को एक्सप्लोर नहीं कर पाती हैं।  न ही इस बारे में किसी से खुलकर बात ही कर पाती हैं। इसके साथ ही हमारे समाज में शादी से पहले सेक्स को ग़लत माना जाता है और शादी के बाद भी सिर्फ़ बच्चे पैदा करने के लिए ही इसे ज़रूरी समझा जाता है। शादी के बाद तो कपल को अपनी मर्ज़ी से फैमिली प्लानिंग करने तक का हक़ नहीं मिलता है। परिवार, रिश्तेदारों और समाज के दबाव में आकर बच्चा उसमें भी लड़का पैदा करना पड़ता है।”

ज़्यादातर महिलाओं को प्लेज़र के बारे में जानकारी ही नहीं होती। इनके पुरुष पार्टनर भी इस बारे में बात करना पसंद नहीं करते और अपनी संतुष्टि और सुख पर फ़ोकस रखते हैं। आमतौर पर पुरुषों के अंदर यह मिथ होता है कि प्रोटेक्शन यूज करने से प्लेज़र में कमी आती है, इस वजह से बहुत सी महिलाएं असुरक्षित यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर होती हैं।

यौन स्वास्थ्य पर चुप्पी की सामाजिक वजहें 

हमारे समाज में जहां सेक्स एजुकेशन को आज भी वर्जित विषय माना जाता है। लोग इस बारे में आपस में खुलकर बात नहीं कर पाते हैं। प्रावधान होने के बावजूद स्कूलों में इस टॉपिक को अनदेखा कर दिया जाता है वहां महिलाओं के ‘प्लेज़र’ के बारे में बात करना और भी मुश्किल है। सोशल मीडिया पर बहुत सारी महिलाएं जो ऐसे विषयों पर अपनी बात रख रही हैं, लिख रही हैं उन्हें ‘अल्ट्रा मॉडर्न फ़ेमिनिस्ट’ कहकर चुप कराने की कोशिश की जाती है। पितृसत्तात्मक सामाजिक संरचना में महिलाओं को पुरुषों की सुख-सुविधा और सहूलियत के साधन के तौर पर देखा जाता है।

ऐसे में इनके ‘प्लेज़र को बुनियादी ज़रूरत के तौर पर नहीं बल्कि विलासिता के रूप में देखा जाता है। यहां तक कि इनके पुरुष पार्टनर भी इस मुद्दे पर बात नहीं करते हैं और अगर कोई महिला खुलकर अपनी बात रखती है तो उसे ग़लत समझा जाता है। इस वजह से महिलाओं की शारीरिक और मानसिक सेहत पर बुरा असर पड़ता है जो उनके करियर और सामाजिक रिश्तों भी असर डालता है। इन सबसे इनका आत्मविश्वास कम होता है जिसका असर ज़िंदगी के हर पहलू पर पड़ता है।

आगे का रास्ता 

यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकार (एसआरएचआर) को और बेहतर बनाने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जा सकते हैं। सबसे पहले तो ऐसे रिसर्च को बढ़ावा दिया जाना चाहिए जो यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के साथ ही प्लेज़र और संतुष्टि पर फोकस करते हों। इससे जुड़ी नीतियां और रिसर्च के दौरान जेंडर बाइनरी के परे एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय की ज़रूरतों और सुविधाओं पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। समाज में और स्वास्थ्य सेवाओं में खुली बातचीत को बढ़ावा देना चाहिए जिससे इस विषय पर चुप्पी टूटे और स्वस्थ विमर्श हो सके। यौन शिक्षा में क्वीयर समुदाय और महिलाओं की ज़रूरतों और इच्छाओं को भी शामिल किया जाना चाहिए। गर्भनिरोधक साधन सुरक्षित होने के साथ ही प्लेज़र को ध्यान में रखते हुए बनाना ज़रूरी है। इसके अलावा समाज में महिलाओं को पुरुषों के सुख और संतुष्टि का साधन न मानकर एक व्यक्ति के तौर पर देखा जाना चाहिए क्योंकि उनकी ज़रूरतें और इच्छाएं भी उतनी ही ज़रूरी हैं। यौन और प्रजनन स्वास्थ्य एक सार्वभौमिक मानवाधिकार है जो सभी को सुनिश्चित किया जाना बेहद ज़रूरी है। इससे न सिर्फ़ बेहतर स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलता है बल्कि लैंगिक समानता के साथ ही समावेशी विकास में भी मदद मिलती है।

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