समाजख़बर के.के. शैलजा: केरल को कोरोना और निपाह के कहर से बचाने वाली ‘टीचर अम्मा’

के.के. शैलजा: केरल को कोरोना और निपाह के कहर से बचाने वाली ‘टीचर अम्मा’

केरल को निपाह और कोरोना जैसी भयानक महामारी की चपेट में से निकालना आसान नहीं है। लेकिन टीचर अम्मा की कोशिशें इसे मुमकिन कर रही हैं।

कोरोना वायरस डिजीज या COVID-19 का आतंक दुनियाभर में फैल चुका है। चीन के वुहान में पैदा हुआ ये नया वायरस यूरोप और अमेरिका को संक्रमित करने के बाद अब भारत में कदम रख चुका है। अब तक पूरे भारत में क़रीब 114 से ज़्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं और दिल्ली और कर्नाटक में दो मौतें हो चुकी हैं। स्थिति डरावनी है पर उम्मीद की एक किरण नज़र आती है केरल में, जहां एक महीने के अंदर इस वायरस को काफ़ी हद तक काबू में लाया गया है। जहां दूसरे राज्यों में इस बीमारी से जूझने के लिए संसाधन भी नहीं हैं, जहां एयरपोर्ट्स में ठीक तरह से स्क्रीनिंग भी नहीं हो रही, वहीं केरल की राज्य सरकार की ख़ास मेडिकल टीम नए केसेज़ की जांच और इलाज के लिए हर वक़्त तैयार है। और इसका श्रेय जाता है और किसी को नहीं बल्कि केरल की स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा उर्फ़ ‘शैलजा टीचर’ या उर्फ़ ‘टीचर अम्मा’ को।

कौन हैं ये शैलजा टीचर ?

शैलजा का जन्म 20 नवंबर 1956 में उत्तर केरल के कन्नूर में हुआ था। उन्होंने मट्टानूर के परसी राजा कॉलेज से बीएससी की पढ़ाई की और उसके बाद, साल 1980 में विश्वेश्वरय्या कॉलेज से बीएड किया। बीएससी के दिनों में ही उनका झुकाव मार्क्सवादी विचारधारा की तरफ़ होने लगा था और वे कम्युनिस्ट छात्र संगठन ‘स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया’ (एसएफ़आई) में शामिल हो गईं।

अपनी पढ़ाई ख़त्म होने तक वे एसएफ़आई की सक्रिय सदस्य रहीं। पढ़ाई के बाद वे शिवपुरम हाई स्कूल में विज्ञान की टीचर के तौर पर शामिल हुईं, जहां उन्होंने साल 2004 तक पढ़ाया। वे एक बेहद अच्छी टीचर साबित हुईं, जिनका हर छात्र उन्हें बहुत प्यार करता था। उनके स्टूडेंट्स उन्हें ‘शैलजा टीचर’ या प्यार से ‘टीचर अम्मा’ बुलाते थे, जिन नामों से वे आज भी जानी जाती हैं। अपने करियर के दौरान भी वे राजनीति की दुनिया से जुड़ी रहीं। वे ऑल इंडिया डेमोक्रैटिक विमेंस एसोसिएशन की राज्य सचिव थीं और ‘स्त्री शब्दम’ पत्रिका की मुख्य संपादक भी।

साल 2004 में राजनीति में अपना करियर बनाने के लिए उन्होंने टीचर की नौकरी छोड़ दी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सिस्ट) में शामिल हुईं। साल 2006 में वे पेरावुर क्षेत्र से केरला विधानसभा चुनाव लड़ीं और जीतीं। कुछ ही सालों में वे मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के कैबिनेट में स्वास्थ्य एवं सामाजिक न्याय मंत्री के तौर पर शामिल हुईं। इसी दौरान वे दो किताबें भी लिख चुकीं थीं।

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निपाह का कहर

मई 2018 में केरल के कोरिकोड में 18 लोग ‘निपाह’ नाम के वायरस से संक्रमित हुए थे। इनमें से 10 लोग पहले हफ्ते में मर गए। कोरिकोड से वायरस मलप्पुरम में फैल गया। रोज़ नए केस आ रहे थे और ऐसा लग रहा था स्थिति हाथ से बाहर जा रही है।

इसी दौरान टीचर अम्मा के नेतृत्व में ख़ास मेडिकल टीमें बनाईं गईं। कोरिकोड और मलप्पुरम, दोनों ज़िलों में लगभग दो हज़ार लोगों को क्वारंटाइन किया गया। क्वारंटाइन मतलब जो संक्रमित हैं या जिनकी संक्रमित होने की संभावना है, उन्हें जांच के लिए बाहर की दुनिया से अलग रखना। इसके बाद, ऑस्ट्रेलिया की लेबोरेटरीज़ में जिस ऐंटीबॉडी (इंसान के ख़ून में वो पदार्थ जो बीमारियों से लड़ता है।) पर शोध चल रहा था, एम 102.4 नाम की वो ऐंटीबॉडी मंगवाया गया और इंजेक्शन के माध्यम से मरीज़ों को दिया गया।

इसका नतीजा ये हुआ कि एक महीने के अंदर केरल से निपाह वायरस का नामोनिशान मिट गया। 10 जून 2018 को केरला पूरी तरह से निपाह-मुक्त हो चुका था। केरलवासी मानते हैं कि टीचर अम्मा के नेतृत्व और मार्गदर्शन के बगैर इस खतरनाक नई बीमारी का सामना करना नामुमकिन था।

टीचर अम्मा जैसे प्रतिभावान और बेमिसाल लोगों की कोशिशें हमें बताती हैं कि नामुमकिन कुछ भी नहीं है।

कोरोना के ख़िलाफ़ कदम

केरल में कोरोना वायरस के प्रकोप को कम करने के लिए शैलजा टीचर और उनकी मेडिकल टीम्स के प्रयास वाक़ई क़ाबिल-ए-तारीफ़ रहे हैं। सबसे पहले तो हर अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट में बाहर से आनेवालों के लिए स्क्रीनिंग अनिवार्य कर दी गई है। ऊपर से, राज्य की सीमाओं पर भी पेट्रोलिंग शुरू की गई है ताकि दूसरे राज्यों से आते लोगों की मेडिकल जांच की जा सके। ब्लड बैंकों में भी रक्तदान करनेवालों की स्क्रीनिंग चालू है ।

इसके अलावा हर शहर और गांव के हर स्कूल, ग्राम पंचायत और अस्पताल में ‘अवेयरनेस कैंपेन’ चालू हैं, जिनमें हर इंसान को कोरोना वायरस के बारे में सटीक जानकारी दी जाती है और इसका मुक़ाबला करने के तरीके बताए जाते हैं। सबसे अहम कदम जो उठाया गया है, वो है झूठ, अफवाह और डर फैलाने वालों के लिए कड़ी से कड़ी सज़ा। सोशल मीडिया पर अक्सर लोग ऐसी बीमारियों के बारे में गलत जानकारी फैलाकर डर का माहौल पैदा करते हैं। टीचर अम्मा इसका तीव्र विरोध करती हैं। उनका कहना है, ‘कोरोना जैसी महामारी का मुक़ाबला करने के लिए वैज्ञानिक सोच की ज़रुरत है। एक युक्तिवादी, मानवतावादी दृष्टिकोण की ज़रुरत है। डर और अंधविश्वास से हम इसका सामना नहीं कर पाएंगे। भावनाओं में बह जाने से ये समस्या हल तो नहीं होगी, बल्कि एक्सपर्ट्स और स्वास्थय कार्यकर्ता, जो सचमुच अच्छा काम कर रहे हैं, उनके रास्ते में बाधा उत्पन्न होगी। इसलिए हम उन लोगों पर सख्त से सख्त कार्रवाई करवाएंगे जो इस वायरस के बारे में बेवकूफ़ी भरी अफ़वाहें फैलाता हो।’

और ऐसा हुआ भी है। व्हाट्सएप्प पर कोरोना वायरस के बारे में झूठी और बेबुनियाद जानकारी फैलानेवाले तीन लोगों को गिरफ़्तार किया गया है। झूठी अफवाहों के झांसे में आने के बजाय केरल की आमजनता सरकार की तरफ से सटीक जानकारी प्राप्त कर पा रही है, जो उसे महामारी से मुक़ाबला करने के लिए थोड़ा और सशक्त बना रही है।

बाक़ी के देश के मुक़ाबले केरल इस वायरस का मुक़ाबला और बेहतर तरीके से कर रहा है। केस धीरे-धीरे कम हो रहे हैं और स्थिति एक महीने के अंदर काफी हद तक काबू में आ चुकी है। उम्मीद है कि आगे भी ऐसी ही रहेगी। एक पूरे प्रदेश को दो-दो बार भयानक महामारी की चपेट में से निकालना कोई आसान काम नहीं है। लेकिन टीचर अम्मा जैसे प्रतिभावान और बेमिसाल लोगों की कोशिशें हमें बताती हैं कि नामुमकिन कुछ भी नहीं है। हम हर तरह की मुश्किलों का सामना कर सकते हैं अगर हमारा दिमाग़ सही जगह हो और हमारे अंदर ताक़त हो। और टीचर अम्मा जैसी ताक़तवर औरत हम सबके लिए एक मिसाल है।

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तस्वीर साभार : navbharattimes

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