इंटरसेक्शनलमर्दानगी हिंसक मर्दानगी नहीं, पुरुषों को थामना चाहिए नारीवाद का हाथ

हिंसक मर्दानगी नहीं, पुरुषों को थामना चाहिए नारीवाद का हाथ

अगर हमें समाज में लैंगिक समानता लानी है तो पुरुषों को भी नारीवाद समझना होगा। उन्हें हिंसक मर्दानगी को त्याग कर एक नारीवादी पुरुष बनना होगा।

‘लड़के-लड़के होते हैं और लड़कियां-लड़कियां’, ‘लड़कों को ‘ये’ नहीं करना चाहिए, लड़कियों को ‘वो’ नहीं करना चाहिए’ ये समाज में लड़कों और लड़कियों की लिंग आधारित भूमिका को मज़बूत करने वाली बातें हैं। अधिकतर लड़के या मर्द लैंगिक असमानता और पितृसत्ता से जुड़े मुद्दों पर बात नहीं करते। वे ये मानते हैं कि लैंगिक असमानता और पितृसत्ता को बनाए रखने से उनका संसाधनों पर अधिकार, निर्णय लेने का अधिकार और शक्ति की अवधारणा कायम रहती है। जबकि सच यह है कि पितृसत्ता उन्हें समाज द्वारा निर्मित मर्दानगी की परिभाषा से बाहर सोचने की अनुमति ही नहीं देता। इसलिए अगर हमें समाज में लैंगिक समानता स्थापित करनी है तो पुरुषों को भी नारीवाद समझना होगा। उन्हें हिंसक मर्दानगी को त्याग कर एक नारीवादी पुरुष बनना होगा। नारीवाद को समझने के लिए पुरुषों को यह समझना और मानना होगा कि नारीवाद उनके खिलाफ नहीं है, नारीवाद मातृसत्ता की वकालत नहीं करता। नारीवादी मानते हैं कि पुरुष पितृसत्ता के कारण उतने ही शोषित हैं /विक्टिम हैं जितना महिलाएं। नारीवाद लैंगिक असमानता के खिलाफ है, और यह लोकतांत्रिक अधिकारों और न्याय के बारे में बात करता है।

कुछ पुरुष अभी यह समझने और मानने लगे हैं कि वे हिंसक मर्दानगी की अपनी छवियों और भूमिकाओं में इसलिए फंसे हुए हैं क्योंकि समाज उनसे उम्मीद करता है कि वे शक्तिशाली, प्रभावी, आक्रामक, निडर, और बहादुर ही बनें। इस तरह पुरुष समाज की बनाई ‘मस्क्युलिनिटी’ और ‘फेमिनिटी’ की संरचना को सवाल करने और तोड़ने के लिए आगे आने में असमर्थ हो जाते हैं।  इस  प्रतिकिया पर नारीवादी यह मानते हैं कि नारीवादी होने के लिए किसी उपयुक्त समय, स्थिति और व्यक्ति के साथ की ज़रूरत नहीं है, न ही इसके लिए किसी बड़े आंदोलन का हिस्सा बनना ज़रूरी है। आज हमारे समाज को महिलाओं के साथ ऐसे पुरुषों और पुरुषों के समूह की जरूरत है जो व्यक्तिगत स्तर पर और रोजमर्रा की जिंदगी में लैंगिक भेदभाव और पितृसत्ता को चुनौती दे सकें।

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नारीवाद समर्थक पुरुष कौन

नारीवादी पुरुष होने के लिए पुरुषों को यह स्वीकार करना होगा कि जेंडर बायोलॉजिकल नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से हमारे समाज ने ही बनाया है। नारीवाद यह मानते हैं कि पुरुषों को स्वयं अपने सेक्सिस्ट व्यवहार और रवैये को बदलने के लिए कदम उठाने चाहिए। साथ ही वे यह मानते हैं कि किसी को भी लैंगिक आधार पर सीमित नहीं किया जाना चाहिए। नारीवादी पुरुष को महिलाओं के अनुभवों, मुद्दों और उनकी चुनौतियों से अवगत होना चाहिए। उन्हें समाज में उपस्थित ‘मस्क्युलिनिटी’ और ‘फेमिनिटी’ पर सवाल उठाना चाहिए। नारीवाद समर्थक पुरुषों यह भी मानना चाहिए कि मानवीय गुण जैसे धैर्य, भावनात्मक, देखभाल, प्यार, आज्ञाकारिता, पोषण इत्यादि मैस्कुलिन या फेमिनिन नहीं हैं। स्वाभाविक रूप से मानव में देखभाल, प्यार, पोषण और आज्ञाकारी होने जैसे कई गुण हैं, यह गुण किसी के भी पास हो सकते हैं।

मर्द मर्दानगी की परिभाषा से निकल सकते हैं लेकिन इसके लिए मर्दों को खुद भी प्रयास करने होंगे। पुरुषों को खुद के मर्दानगी से जुड़े पहलुओं पर विचार करना होगा। पुरुषों को यह समझना होगा कि वो खुद घर में बच्चों और अन्य सदस्यों के साथ जाने-अनजाने लैंगिक असमानता को मज़बूत तो नहीं कर रहे।

नारीवादी पुरुष हमेशा समाज के उत्पीड़ित और वंचित तबके के साथ खड़े होते हैं। वे चाहते हैं कि दुनिया में समानता, सामाजिक न्याय, लोकतंत्र, सुख और शांति स्थापित हो। नारीवादी पुरुष पितृसत्ता को अस्वीकार करते हैं। वो बच्चों, महिलाओं, पुरुषों, ट्रांसजेंडर्स और सभी जाति और वर्ग के विरुद्ध होने वाले भेदभाव और हिंसा के लिए आवाज़ उठाते हैं। दुख की बात यह है कि हमारे समाज में आज भी जिस तरह महिलाओं, लड़कियों, ट्रांसजेंडर्स, दलितों, मुस्लिमों और बच्चों का दमन हो रहा है उससे पता चलता है कि अभी हमारा समाज नारीवाद और पितृसत्तात्मक संरचना की समझ में बहुत पीछे है।

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नारीवादी पुरुष बनने के लिए खुद से करें सवाल 

मर्द मर्दानगी की परिभाषा से निकल सकते हैं लेकिन इसके लिए मर्दों को खुद भी प्रयास करने होंगे। पुरुषों को खुद के मर्दानगी से जुड़े पहलुओं पर विचार करना होगा। पुरुषों को यह समझना होगा कि वे खुद घर में बच्चों और अन्य सदस्यों के साथ जाने-अनजाने लैंगिक असमानता को मज़बूत तो नहीं कर रहे। यह देखना बहुत ज़रूरी है कि पुरुष समाज में महिलाओं और पुरुषों की भूमिका के बारे में बच्चों और अपने परिवार से क्या संवाद करते है, कैसा व्यवहार और कैसे उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। 

कोई भी पुरुष नारीवाद समर्थक बन सकता है यदि वह अपने जीवन में कुछ सवालों के बारे में विचार करें। यह सवाल कुछ इस तरह के हो सकते हैं – जब वे परिवार के साथ बाहर जाते हैं, तो अज्ञात महिलाओं के बारे में किस तरह की टिप्पणी या बात करते हैं? मर्द हाशिए के समुदाय और वंचित वर्ग के लोगों के बारे में किस तरह की राय रखते हैं? वे मर्द होने के कारण किस तरह का संगीत सुनते हैं अथवा सुनना पसंद करते हैं? मर्द सेक्सिस्ट गानों, जोक्स या मीडिया की खबरों पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं? क्या मर्द घर पर रसोई और सफाई के काम में अपने साथी और अन्य महिलाओं की मदद करते हैं?

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क्या मर्द महिलाओं की पसंद का खाना खाते और बनाते हैं? मर्द घर पर रहने अथवा काम करने वाली महिलाओं के बारे में कैसे विचार रखते हैं? क्या मर्द बच्चों की देखभाल करते हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि मर्द अपने साथी की नौकरी और कम वेतन की वजह से उनको कमतर देखते हैं? साथी के अधिक वेतन पाने के कारण कहीं मर्द अपने साथी से नफरत तो नहीं करते? क्या मर्द अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त कर पाते हैं? क्या मर्द अपने साथी के साथ बाहर जाने पर अथवा दोस्तों के बीच उनको अभिव्यक्ति की आज़ादी देते हैं? क्या मर्द घर पर दोस्तों या रिश्तेदारों को बुलाने से पहले अपने साथी की राय लेते हैं? क्या मर्द घर के फैसले जैसे घर, गाड़ी और जमीन खरीदने या बेचने के विषय में साथी की राय ज़रूर लेते हैं?

नारीवाद यह मानता है कि हम सभी को सेक्सिस्म को पहचानने और लैंगिग भेदभाव को समाप्त करने के लिए कदम उठाने होंगे, पर इसके लिए जरूरी है कि पुरुष भी आगे आएं। भारत और अन्य देशों में कुछ नारीवाद समर्थक समूह पहले से उपस्थित हैं जो यह मानते हैं कि नारीवाद में पुरुषों की भी अहम भूमिका है। नेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर मेन अगेंस्ट सेक्सिज्म (NOMAS) एक अमेरिकी संगठन है जो 1970 के दशक में नारीवाद आंदोलन की दूसरी-लहर के साथ एक सहायक समूह के रूप में शुरू हुआ था। NOMAS,1975 से इंटेरसेक्शनल-नारीवाद समर्थक की वकालत कर रहा है। नेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर मेन अगेंस्ट सेक्सिज्म पुरुषों के लिए सकारात्मक बदलावों का समर्थन करने वाले पुरुषों और महिलाओं का एक सक्रिय संघटन है। NOMAS का दृष्टिकोण पुरुषों के जीवन को नारीवाद समर्थक, समलैंगिक, जातिगत असमानताओं को समझने के लिए समर्पित है।

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‘एक साथ’- भारत में चल रहा एक राष्ट्रीय अभियान है जो पुरुषों और लड़कों को लैंगिक- सामाजिक भेदभाव से अवगत कराने के साथ, पुरुषों और लड़कों को लैंगिक न्याय के लिए भागीदार मानता है। ‘एक साथ’ यह मानता है कि लैंगिक समानता पूरे समाज के लिए एक दृष्टिकोण है और पुरुषों को लैंगिक न्याय के लिए बराबर आगे आना चाहिए। वर्तमान में यह अभियान पूरे भारत में 10 से अधिक राज्यों – राजस्थान, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश और असम में चल रहा है। ‘एक साथ’ तीन राष्ट्रीय नेटवर्क का एक संयुक्त अभियान है जिसमें फोरम टू एंगेज मेन (एफईएम), इंडिया एलायंस फॉर जेंडर जस्टिस (IAGJ), और वन बिलियन राइजिंग (OBR) शामिल हैं।

नारीवादी लोकतंत्र, समानता, सामाजिक न्याय, पारस्परिक सम्मान और स्वतंत्रता का अभ्यास करके हिंसा मुक्त, समाज को स्थापित करना चाहते हैं। नारीवाद चाहता है कि हम सभी अपनी प्राथमिकताओं और रूचि के आधार पर कार्यों का चयन करें या उनको अस्वीकार कर दें। नारीवाद कहता है कि रूढ़िवादी तरीके से हमको जीवन जीने या अपनी प्राथमिकताओं का चयन करने के लिए बाध्य न किया जाए। नारीवादी मानते हैं कि अगर हमको बेहतर समाज बनाना है तो हम महिला हो या पुरुष हमें लैंगिक असमानता, धर्म, जातिगत हिंसा और रंगभेद की राजनीति के विरोध में खड़ा होना ही चाहिए।

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तस्वीर साभार : mashable

Comments:

  1. Anwesha Mahankudo says:

    A must read article for both men and women. Well written ma’am.👌👌

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