“हम तेज़ी से ध्रुवीकृत होते विश्व में रह रहे हैं। एक ऐसी दुनिया में, जहां लोगों ने एक दूसरे के परिपेक्ष्य को समझने की योग्यता खो दी है। मुझे विश्वास है कि इस चुनाव में न्यूजीलैंड ने दिखा दिया है कि हम ऐसे नहीं हैं। एक राष्ट्र के रूप में हमने सुनने और बहस करने की प्रवृत्ति को बचाया है। आख़िरकार, हम दूसरे के परिप्रेक्ष्यों को नकार देने के मामले में बहुत छोटे हैं।”
यह कथन न्यूज़ीलैंड की नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न के भाषण का एक भाग है, जो उन्होंने दोबारा चुनाव जीतने के बाद राष्ट्र को संबोधित करते हुए दिया था। जेसिंडा आर्डर्न न्यूज़ीलैंड की चालीसवीं प्रधानमंत्री हैं। वे अपने देश की तीसरी महिला प्रधानमंत्री भी हैं। इसके साथ ही, वैश्विक पटल पर जहां रूढ़िवादी और अतिवादी दक्षिणपंथ का उभार हो रहा है। वहीं, न्यूज़ीलैंड में जेसिंडा आर्डर्न प्रगतिशील और कल्याणकारी फैसलों के कारण एक वैकल्पिक राजनीति का प्रतीक बन चुकी हैं। सार्वजनिक स्तर पर विविधता को स्वीकारते हुए सभी नागरिकों की विभिन्न पहचानों को समान अवसर देने की बात करने वाली जेसिंडा आर्डर्न, निजी जीवन में महिलाओं को लेकर बनाए गए स्त्री-द्वेषी को तोड़ती नज़र आती हैं। वह 150 सालों के इतिहास में सबसे कम उम्र में सरकार प्रमुख बनने वाली पहली महिला हैं। साथ ही बिना विवाह के लिव-इन और प्रधानमंत्री पद पर रहते में रहते हुए उन्होंने एक बेटी को भी जन्म दिया। वे बेनज़ीर भुट्टो के बाद विश्व की दूसरी सरकार-प्रमुख हैं, जिसने कार्यकाल संभालते हुए बच्चे को जन्म दिया है। ऐसे राजनीतिक छवि की उम्मीद हम भारत में कर भी नहीं सकते हैं, जहां आज भी महिला नेताओं को सेक्सिस्ट टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है।
जेसिंडा आर्डर्न का शुरुआती जीवन
जेसिंडा आर्डर्न का पूरा नाम जेसिंडा केट लॉरेल अर्ड्र्न है। उनका जन्म 26 जुलाई 1980 को न्यूज़ीलैंड के हैमिल्टन में हुआ था। उनके बचपन के दिन मुरुपारा नाम के एक क़स्बे में गुज़रS, जो ‘माओरी’ समूह की गतिविधियों के लिए जाना जाता है। वहां भूखे बच्चे बिना जूतों के बदतर हालत में घूमते रहते थे। इन सभी दृश्यों और स्मृतियों ने उन्हें राजनीति में जाने के लिए प्रभावित किया। बाद में उनका परिवार दक्षिणी-पूर्व ऑकलैंड आ गया, जहां उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई की। साल 2001 तक कम्युनिकेशन स्टडी में स्नातक की डिग्री मिलने से पहले ही वह ‘लेबर पार्टी’ के संपर्क में आ चुकी थी। उन्होंने 19 साल की उम्र में ही साल 1999 में लेबर पार्टी जॉइन कर ली। स्नातक की डिग्री पूरी होने के बाद जेसिंडा एक अन्य ‘लेबर’ सांसद फिल जॉफ़ की शोधकर्ता (रिसर्चर) बन गई। इस प्रक्रिया में मिले अनुभवों ने जेसिंडा आर्डर्न को न्यूज़ीलैंड की दूसरी महिला प्रधानमंत्री हेलेन क्लार्क के स्टाफ़ की पदवी तक पहुंचने में काफी मदद की। हेलेन क्लार्क जेसिंडा की राजनीतिक प्रेरणास्रोत और मेंटर हैं। एक सफल राजनेता होने के पीछे की वजह उनके पास विविध कार्यक्षेत्रों से प्राप्त अनुभव हैं। जेसिंडा साल 2005 में ब्रिटेन गई और उन्होंने ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर के कैबिनेट ऑफिस में ढाई सालों तक लघु उद्योगों में सरकारी हस्तक्षेप की भूमिका संबंधित मामले में एसोसिएट डायरेक्टर के पद पर काम किया।
और पढ़ें : भारतीय राजनीति के पितृसत्तात्मक ढांचे के बीच महिलाओं का संघर्ष
राजनीति की शुरुआत
साल 1999 से 2005 तक जेसिंडा राजनीतिक कार्यक्षेत्र में सक्रिय तो हो चुकी थी, लेकिन चुनावी प्रक्रिया में वह उतनी सक्रिय नहीं थी। साल 2007 में उन्हें इंटरनेशनल यूनियन ऑफ़ सोशलिस्ट यूथ (IUSY) का अध्यक्ष चुना गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने दुनिया की अलग-अलग सभ्यताओं वाले देशों जैसे अल्जीरिया, चीन, भारत, इजराइल, जॉर्डन और लेबनान का दौरा किया। इन सारे देशों के दौरे से उन्हें अंतरराष्ट्रीय राजनीति और समाज के बारे में जानने का मौका मिला। साल 2008 में उन्हें वायकाटो ज़िले से लेबर के सांसद के रूप में चुनाव लड़ने का अवसर मिला। यह ऐसी सीट थी, जहां लेबर पार्टी की पहुंच नहीं थी और नतीजतन उन्हें 13000 वोटों से हार का सामना करना पड़ा। हालांकि, वे ‘लिस्ट प्रत्याशी’ के तौर पर संसद में पहुंची। यह न्यूज़ीलैंड में ‘मिक्स्ड मेम्बर प्रोपोर्शनल (MMP) इलेक्शन सिस्टम के कारण संभव हुआ, जो उन प्रत्याशियों को भी संसद में पार्टी के लिस्ट उम्मीदवार के रूप में शामिल होने का अवसर देता है, जो ज़िलों से चुनाव लड़ते हैं। इसमें कुल 49 सांसद चुने जाते हैं, ये उम्मीदवार अपनी पार्टी से मिले वोट प्रतिशत के समानुपात में चुने जाते हैं।
28 साल की उम्र में जेसिंडा आर्डर्न ‘हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव’ के सबसे कम उम्र की सदस्य के रूप में प्रवेश करती हैं। अपने प्रारंभिक भाषण में उन्होंने सरकार से मांग की कि न्यूज़ीलैंड के स्कूलों में ‘माओरी भाषा’ में अनिवार्य रूप से निर्देश दिया जाना शुरू किया जाए। साथ ही, उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर सरकार के रवैये की आलोचना करते हुए उसे ‘शर्मनाक’ बताया। इस प्रकार, सबसे युवा सांसद के रूप में उन्होंने सरकार के सामने अलग-अलग मुद्दों पर खुलकर अपनी राय रखी, साथ ही देश की आदिवासी भाषा माओरी को संरक्षित करने के लिए भी आवाज़ उठाई।
दरअसल, उनके इन फैसलों और बयानों से सीधे तौर पर समझ आता है कि किस तरह से वे देश को जोड़ते हुए वहां के स्थानीय मूल्यों और संस्कृति को पर्याप्त महत्व दे रही थी। विविधता को समेटने की कोशिश साफ़ तौर पर झलक रही थी, साथ ही वे पर्यावरण जैसे ज़रूरी मुद्दों के प्रति भी संवेदनशील थीं। कुछ ही समय बाद उन्हें लेबर पार्टी का प्रवक्ता (स्पोक्सपर्सन) बनाया गया, साथ ही उन्हें रेगुलेशन रिव्यू और इलेक्टोरल सेलेक्ट कमिटी में भी रखा गया। प्रधानमंत्री कार्यालयों में उनके अनुभव और लंबे समय तक राजनीति में सक्रियता के कारण निश्चित रूप से वे एक शक्तिशाली नेता के रूप में उभर रही थीं।
और पढ़ें : मिनीमाता : छत्तीसगढ़ की पहली महिला सांसद
साल 2011 व 2014 के आम चुनावों में ऑकलैंड सेंट्रल सीट पर बहुत कम वोटों से उन्हें हार का सामना करना पड़ा, हालांकि इससे उनके राजनीतिक करियर में कोई ख़ास अंतर नहीं आया। वे एक बुद्धिमान और व्यवहार कुशल नेता थीं, जो ज़रूरी मुद्दों पर खुलकर अपनी राय रखती आ रही थीं। साथ ही राजनीतिक क्षेत्र के महत्वपूर्ण निर्णयों में सशक्तता से अपना पक्ष रखती थीं। साल 2014 का चुनाव हारने के बावजूद भी उन्हें पार्टी की ओर से कला, संस्कृति, विरासत, बच्चों के मामले, न्याय और लघु व्यापार मामलों का स्पोक्सपर्सन बनाया गया।
जेसिंडा आर्डर्न राजनीतिक परिदृश्य में महिलाओं के लिए एक अंतरराष्ट्रीय प्रतीक बन चुकी हैं। उन्होंने निजी और सार्वजनिक कार्यक्षेत्र में रूढ़ियों को तोड़ते हुए अपने लिए अवसर तलाशे हैं।
अपने निजी जीवन और सार्वजनिक रूप से अलग-अलग मुद्दों पर राय रखकर वे चर्च और धार्मिक संस्थाओं के ख़िलाफ़ हो गई थीं। उन्होने ‘ चर्च ऑफ़ जीसस क्राइस्ट ऑफ लेटर डे सेंट्स’ द्वारा समलैंगिकता और समान-लिंग के विवाह पर रखे गए पक्ष की आलोचना की। एक ‘डिस्क जॉकी’ की तरह प्रदर्शन करने पर उन्हें आलोचना झेलनी पड़ी। वह टीवी के प्रसारण सेलिब्रिटी क्लार्क गेफोर्ड के साथ प्रेम संबंध में हैं। अक्सर ही उनसे सवाल पूछा जाता कि क्या वे बच्चे पैदा करने के बारे में सोच रही हैं। असल मे, किसी भी देश में एक महिला नेता के निजी जीवन को लेकर मीडिया द्वारा अक्सर उल-जलूल सवाल पूछे जाते हैं। हालांकि जेसिंडा इन सब से प्रभावित नहीं हुई और जीवन के प्रति सकारात्मक रही।
किसी रिपोर्टर द्वारा पूछे गए इस सवाल पर कि एक फर्म के नियोक्ता ( एम्प्लॉयर) को कोई महिलाकर्मी रखने से पूर्व यह पूछने का अधिकार होना चाहिए कि वह बच्चे करना चाहती है या नहीं। जेसिंडा का जवाब था , “साल 2017 में यह उम्मीद रखना कि महिलाएं कार्यस्थल पर इस बारे में जवाब दें, अस्वीकार्य है। यह पूरी तरह से महिला का फैसला है कि वे कब बच्चे पैदा करना चुनती हैं। बच्चे पैदा करने से जुड़ा सवाल किसी भी कीमत पर किसी महिला के लिए नौकरी और अवसरों की उपलब्धि के रास्ते में ज़रूरी कारण नहीं होना चाहिए।”
और पढ़ें : बिहार विधानसभा चुनाव 2020 का चर्चित चेहरा : रितु जायसवाल
प्रधानमंत्री के रूप में जेसिंडा आर्डर्न
2017 के चुनावों के ठीक पहले लेबर पार्टी के प्रमुख ने इस्तीफ़ा दे दिया था, जेसिंडा कुछ ही महीनों पहले पार्टी प्रमुख बनी थीं। लेबर पार्टी के ख़िलाफ़ सत्ताधारी नेशनल पार्टी, जो कि लगातार 9 सालों से चुनाव जीत रही थी, अभी भी जनता के बीच उसकी एक सशक्त पकड़ बनी हुई थी। जुलाई में हुए मतदान में लेबर का वोट प्रतिशत 25 प्रतिशत से भी कम था। हालांकि जेसिंडा आर्डर्न का की जनता तक पहुंच और सकारात्मक व्यवहार ने वोटरों का ध्यान खींचा। उनके चुनावी वादों में मुक्त विश्वविद्यालय शिक्षा, गर्भपात को अपराध मुक्त करना और गरीबी मिटाना जैसी चीज़ें शामिल थी। चुनावों में लेबर को क़रीब 36 प्रतिशत वोट मिले। हालांकि उन्हें दो अन्य पार्टियों का सहयोग मिला, जिसमें एक पार्टी विचारधारा के मामले में लेबर से अलग थी। फिर भी जेसिंडा ने सबको मिलाकर चलते हुए गठबंधन की सरकार बनाई। उनके क्रियान्वयन और कुशल नेतृत्व ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई और समकालीन समय के सबसे प्रतिभाशाली नेताओं में एक बनी। प्रधानमंत्री रहने के दौरान ही उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया।
पिछले साल ही न्यूज़ीलैंड में दो मस्जिदों पर हमला हुआ जिसमें लगभग 100 से अधिक लोग घायल हुए और दहशत फैल गई। इस दौरान उन्होंने देश की विविधता को बनाए रखने हुए देशवासियों से अपील की इसके बाद ही उन्होंने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए न्यूज़ीलैंड के ‘गन्स लॉज’ यानी बंदूक कानून में बदलाव करने का प्रस्ताव रखा। इसके बाद साल 2020 में फैली वैश्विक कोरोना महामारी में न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री के रूप में उनके त्वरित प्रतिक्रिया ने देश में कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोक दिया। न्यूज़ीलैंड में कुल कोरोन केस 2000 थे, जिसमें से केवल 25 लोगों की मौत हुई। इस दौरान उनकी जीडीपी में कमी आई लेकिन न्यूज़ीलैंड कोरोना पर नियंत्रण कर पाने वाले देशों में लगभग सबसे आगे था। साल 2020 के चुनावों में न्यूजीलैंड की जनता ने अपनी नेता जेसिंडा को उनके कल्याणकारी फैसलों के लिए बहुमत से जिताया है। यह लेबर पार्टी का 50 सालों में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है और साल 1993 में समानुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली लागू होने के बाद लेबर की यह पहली सरकार है जो पूर्ण बहुमत से बनी है।
जेसिंडा आर्डर्न राजनीतिक परिदृश्य में महिलाओं के लिए एक अंतरराष्ट्रीय प्रतीक बन चुकी हैं। उन्होंने निजी और सार्वजनिक कार्यक्षेत्र में रूढ़ियों को तोड़ते हुए अपने लिए अवसर तलाशे हैं। दुनियाभर में कट्टरपंथी राजनीति और बढ़ते रूढ़िवाद के बीच वे अपने देश में विविधता को संरक्षित करने और मनुष्य को मनुष्य बने रहने को प्रेरित करती हुई स्त्रीद्वेष को धता बता रही हैं।
और पढ़ें : बिहार विधानसभा चुनाव 2020 : जब टिकट ही नहीं मिलता तो सदन तक कैसे पहुंचेंगी महिलाएं
तस्वीर साभार : AP