बीते कुछ सालों से राजनीति का जिस तरह से व्यवसायीकरण हुआ है, लोकतांत्रिक कहे जाने वाले देश भारत को अब ‘चुनावी अखाड़ा’ बोला जाने लगा है। स्वीडन की एक स्वतंत्र रिसर्च संस्था वी-डेम (वेरायटीज ऑफ डेमोक्रेसी) इंस्टिट्यूट की साल 2020 की रिपोर्ट में बताया गया है कि बीजेपी की सरकार में मीडिया, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लग रहे अंकुश के कारण भारत एक लोकतांत्रिक देश से अब एक ‘चुनावी तानाशाही’ में तब्दील हो चुका है। वहीं, इस संस्था ने अपने पिछले साल की रिपोर्ट में कहा था कि भारत अपना लोकतंत्र का दर्जा खोने की कगार पर है। स्वीडन के ‘वी-डेम इंस्टीट्यूट’ की लोकतंत्र से संबंधित इस रिपोर्ट में भारत के ‘दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र’ से ‘चुनावी निरंकुशता’ में तब्दील हो जाने का दावा किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सेंसरशिप के मामले में भारत पाकिस्तान जितना ही निरंकुश है। इस मामले में वह अपने पड़ोसी देशों बांग्लादेश और नेपाल से भी बुरा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी की अगुआई वाली सरकार अपने आलोचकों को चुप कराने के लिए राजद्रोह, मानहानि और काउंटर टेररिज्म जैसे कानूनों का इस्तेमाल कर रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से अब तक सात हजार से ज्यादा लोगों के खिलाफ राजद्रोह का केस दर्ज किया गया है। इनमें ज्यादातर वे लोग शामिल हैं जो सत्ताधारी पार्टी के आलोचक हैं।
साल 2014 में स्थापित वी-डेम एक स्वतंत्र अनुसंधान संस्थान है, जो गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय में स्थित है। यह संस्थान स्वयं को लोकतंत्र पर दुनिया की सबसे बड़ी डेटा संग्रह परियोजना कहता है। इस रिपोर्ट के मुताबिस साल 2014 में नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी की जीत और हिंदू-राष्ट्रवादी एजेंडा आगे बढ़ाने के बाद से ही ज्यादातर गिरावट आई है। उस रिपोर्ट में भारत को मात्र 0.34 अंक दिए गए हैं यानी लोकतंत्र की दृष्टि से भारत का दर्जा दुनिया के देशों में बहुत नीचे है। उसी के आधार पर विपक्षी दल के नेता और प्रवक्ता साफ टिप्पणी कर रहे हैं कि भारत अब लोकतांत्रिक देश नहीं है। विदेशी संस्था ने भारत के लोकतांत्रिक न होने में राजद्रोह और मानहानि के बढ़ते मामलों को आधार बनाया है। उनके मुताबिक, भारत में मीडिया पर अंकुश है और पत्रकारों को जेल में डाला जा रहा है, मोदी सरकार के दौरान राजद्रोह या देशद्रोह के 7000 से अधिक केस दर्ज किए गए।
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वी-डेम रिपोर्ट के आने से कुछ दिनों पहले ही अमेरिकी संस्था ‘फ्रीडम हाउस’ की रिपोर्ट में भारत को ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र’ देश बताया गया था। अमेरिका की संस्था फ्रीडम हाउस ने ‘डेमोक्रेसी अंडर सीज’ शीर्षक से रिपोर्ट जारी की थी। इसमें दावा किया गया है कि एक स्वतंत्र देश के रूप से अब भारत का दर्जा घटकर आंशिक रूप से स्वतंत्र रह गया है। इस रिपोर्ट में भारत का स्कोर 71 से घटकर 67 हो गया है। साथ ही भारत की रैंकिंग 211 देशों में 83 से फिसलकर 88वें स्थान पर आ गई। रिपोर्ट में कहा है कि 2014 के बाद से ही भारत में राजनीतिक अधिकारों और लोगों की आज़ादी के मामले में स्थिति ख़राब हुई है। इसके पीछे मानवाधिकार संगठनों पर बढ़ता दबाव, पढ़े-लिखे लोगों और पत्रकारों को धमकियां मिलने और मुसलमानों पर धार्मिक कट्टरता वाले हमलों की बढ़ती घटनाओं को कारण बताया गया है। इसके अलावा नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों और आलोचना करने वाले पत्रकारों को निशाना बनाने को भी इसका कारण बताया गया है।
इसी के साथ ‘द इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट (ईआईयू)’ द्वारा साल 2020 के लिए लोकतंत्र सूचकांक की वैश्विक सूची में भारत 2 स्थान लुढ़ककर 53वें स्थान पर आ गया। सीएए, एनआरसी और जम्मू कश्मीर की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए द इकोनॉमिस्ट ने कहा था, “इस गिरावट की मुख्य वजह भारत में ‘अभिव्यक्ति स्वतंत्रता की कमी’ है।”
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बीते सात वर्षों से देश में जिस तरह की राजनीतिक उठापटक चल रही और केंद्र में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी जिस तरह से हर कीमत पर सिर्फ अपनी सरकार और अपनी जीत ही चाहती है, उससे राजनीति भारत में तेजी से नया कलेवर ले रही। बात सिर्फ सरकार बनाने या गिराने तक ही सीमित नहीं है लेकिन अलग-अलग मुद्दों पर हमारे नेताओं और राजनीतिक दलों का रवैया हैरान करने वाला है। क्या ज़रूरत है चुनाव कराने की, जब जुगाड़ से, जोड़-तोड़ से ही सरकार बनानी है? जनता द्वारा दिन-रात संघर्ष टैक्स के रूप में दी गई उनकी गाढ़ी कमाई का पैसा चुनाव कराने में लगता है और चुनाव के बाद लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाकर ऐसे राजनीतिक दल जनता के बहुमत का मखौल उड़ाकर सरकार बनाने में सफल हो जाते हैं।
देश गहरे आर्थिक संकट, बेरोज़गारी और भुखमरी के दौर से गुज़र रहा है। कोविड के कारण गहरे संकट का सामना करना पड़ रहा है। देश में जिस तरह से कानून और अभिव्यक्ति की आज़ादी का हनन हो रहा है, शायद वह दिन दूर नहीं जब कोई रिपोर्ट इसे तानाशाह देश घोषित कर देगी। विपक्ष में रहने पर भाजपा जिन नीतियों का विरोध करती रही अब खुद उनका ही अनुसरण कर रही है। लोकतंत्र के लिए एक मजबूत विपक्ष भी उतना ही जरूरी है जितना मजबूत सत्ता पक्ष का होना। कृषि के क्षेत्र में छाए संकट को लेकर या किसान विरोधी नीतियों के कारण कृषि क्षेत्र में अभूतपूर्व विपदा की स्थिति पैदा हो गई है। हमारे किसान सरकार से इंसाफ की गुहार लगा रहे हैं। ऐसे में भला लोकतंत्र बच भी कैसे सकेगा। जिसके रक्षक जब भक्षक हो गए हैं तो लोकतंत्र का ढांचा एक दिन चरमराकर टूटेगा ही।
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