प्रोफेसर मार्केल कौर्थियदे के अनुसार, ‘रोमा भारत का एक अटूट अंग है। भारतीय और रोमा समुदाय एक-दूसरे से सांस्कृतिक, आनुवंशिक, भाषायी, शारीरिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक रूप से काफी करीब हैं। यह यूरोप का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है।’ रोमा समुदाय की संस्कृति भारतीय संस्कृति से मिलती-जुलती है। रोमानी सामाजिक व्यवहार भारतीय सामाजिक रीति-रिवाजों से मिलता-जुलता है। पारंपरिक तौर पर रोमा सम्मिलित परिवार में विश्वास रखते हैं। रोमा समाज भी पितृसत्तात्मक विचारधारा पर चलता है। इसलिए रोमा घराने में सबसे बुजु़र्ग पुरुष को ही मुखिया बनाया जाता है, जिसका कर्तव्य पूरे परिवार को साथ लेकर चलना तथा उनका नेतृत्व करना होता है। आमतौर पर महिलाएं घर और बच्चों की देखभाल करती हैं और पुरुष की ज़िम्मेदारी घर की आजीविका संभालना और परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित करना होता है।
भारत से करीब 1000 वर्ष पूर्व पलायन रोमा समुदाय में आज भी महिलाएं उच्च शिक्षा से वंचित हैं। उनका व्यवहारिक जीवन आज भी रीति-रिवाज और प्रथाओं तक ही सीमित है। पोर्टा रोम पोर इंटेग्रिटी, अल्बानिया की निदेशक फातमीरा दजलानी ने 20 जून, 2020 को सेंटर फॉर रोमा स्टडीज एंड कल्चरल रिलेशन द्वारा आयोजित वर्चुअल इंटरनेशनल रोमा सम्मेलन में बातचीत के दौरान बताया कि 50 फ़ीसद रोमानी महिलाएं आज तक स्कूल नहीं गई। शिक्षा का अभाव रोमानी पुरुष और स्त्रियों दोनों में देखने को मिलता है लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति पुरुषों से ज्यादा दयनीय है। शिक्षा के अभाव के कारण महिलाओं के खिलाफ उत्पीड़न के कई मामले सामने आते हैं। परिवार में रोमा पुरुषों और महिलाओं की भूमिकाएं ज़्यादातर पारंपरिक और रूढ़िवादी होती हैं। यह तथ्य स्पष्ट रूप से भारतीय विशेषताओं को प्रकट करता है।
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रोमा समुदाय पर रिसर्च कर चुके भारतीय रिसर्च ज़मीर अनवर बताते हैं कि रोमा और भारत साझा संस्कृति से बंधे हैं और उनकी जीवनशैली भारतीय मूल्यों, रीति-रिवाजों, आस्था और आदतों का समृद्ध समावेश है। कुछ रोमा विद्वानों का मानना है कि रोमा संस्कृति को जो एकजुट करता है, वह उनकी सदियों पुरानी भारतीय विरासत का तत्व है। संयुक्त परिवार की परंपरा भारतीय अवधारणा को दर्शाती है। परिवार में रिश्ते को महत्व देना, शादी विवाह का बड़ों द्वारा तय किए जाना और लड़कियों को बड़े-बुज़ुर्गों की इच्छा का सम्मान करना सिखाना ये भारतीय समाज की अवधारणा जैसा है। हालांकि, भारतीय समाज में समय के साथ परिवर्तन और विकास हो रहे हैं लेकिन रोमानी आज भी लड़कियों की शादी छोटी उम्र में कर देते हैं जिससे उनकी शिक्षा पर काफी प्रभाव पड़ता है।
शिक्षा का अभाव रोमानी पुरुष और स्त्रियों दोनों में देखने को मिलता है लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति पुरुषों से ज्यादा दयनीय है। शिक्षा के अभाव के कारण महिलाओं के खिलाफ उत्पीड़न के कई मामले सामने आते हैं।
शादी के रिश्ते परिवार के बड़े सदस्यों द्वारा तय किया जाता है। किसी को अपने जीवनसाथी का चुनाव करने की स्वतंत्रता नहीं होती हैं। भारतीय पौराणिक काल की परंपरा की तरह रोमानी शादी मे भी दुल्हन को मेहंदी लगाने के समय सफेद रेशमी कपड़े पहनाए जाते हैं, मेहंदी समारोह में बड़ों द्वारा लड़की को आशीर्वाद स्वरूप उपहार दिए जाते हैं। संगीत की रात लड़की और लड़के के घर वाले नाचते गाते और खुशी का आलिंगन करते हैं। शादी में लड़के द्वारा लड़की को कांच के मोतियों की माला पहनाई जाती है जिसे महिलाएं अपने गले में धारण करती हैं। शादी के पश्चात गौने प्रथा का चलन है जिसमें विवाह के उपरांत लड़की को उसके घर छोड़ कर चले जाने कि प्रथा है। गौना ‘जेता’ नाम से रोमानी समाज में प्रचलित है, जो भारतीय गौना प्रथा से मिलती जुलती हैं।
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कौमार्य यानि वर्जिनिटी की महत्वत्ता जैसी रूढ़िवादी विचारों का कई रोमा महिलाओं और पुरुषों ने विरोध किया है। Refugee Women’s Resource Project, Asylum Aid March 2002 के रिपोर्ट के अनुसार, मर्सिडीज पोरस, एक 28 वर्षीय स्पेनिश छात्र और सामाजिक कार्यकर्ता बताती हैं, ‘मैं खुद को सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण इंसान के रूप में देखती हूं और दूसरा रोमनी के रूप में। मेरे अपने विचार हैं और उन्हें बदलने की कोशिश नहीं करती। रोमा के रूप में मुझसे जो अपेक्षा की जाती है, उससे मैं स्वतंत्र हूं। एक ऐसी महिला जो अपने करियर को निरंतर अपने जीवन में आगे रखना चाहती है उसे समाज में ये कहा जाता है कि आपने सभी सामाजिक मापदंडों को तोड़ दिया है।’
‘कौमार्य भंग’ के बाद महिलाओं को दंड का पात्र माना जाता है। आमतौर पर किसी भी समाज में इसे आपत्तिजनक माना जाता है क्योंकि देश, समाज, गांव अपने इन्हीं पितृसत्तात्मक विचारों पर आधारित है। सामाजिक और राजनीतिक भेदभाव के परिणामस्वरूप महिलाओं को कई बुनियादी मानवाधिकारों से वंचित रखा जाता है। जैसे शिक्षा का अधिकार, आवास का लाभ आदि। सांस्कृतिक रूढ़िवादिता, अंधविश्वास और जटिल पारंपरिक नियमों के कारण रोमानी समुदायों में महिलाओं के साथ काफी हिंसा होती है। उनके अधिकारों के संदर्भ में दूरगामी प्रभाव के कारण अधिकांश महिलाएं मानवाधिकारों से वंचित रहती हैं। मौखिक धमकियों सहित लिंग से प्रेरित घृणा अपराध, मानसिक नुकसान, शारीरिक नुकसान, और गंभीर यौन हमले का भी सामना करना पड़ता है। अन्य घरेलू हिंसाओं में बाल शोषण, अनाचार, पत्नी की पिटाई, बलात्कार आदि भी शामिल हैं।
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सांस्कृतिक रूढ़िवादिता, अंधविश्वास और जटिल पारंपरिक नियमों के कारण रोमानी समुदायों में महिलाओं के साथ काफी हिंसा होती है। उनके अधिकारों के संदर्भ में दूरगामी प्रभाव के कारण अधिकांश महिलाएं मानवाधिकारों से वंचित रहती हैं।
पीरियड्स एक प्राकृतिक प्रक्रिया है लेकिन यह हमेशा वर्जनाओं और मिथकों से घिरा हुआ है जो महिलाओं के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन के कई पहलुओं से बाहर कर देता है। भारत में इस विषय पर चर्चा आज तक वर्जित रही है। इस मामले में भारत की कई साल पुरानी परंपरा का आज भी पालन होता है। रोमानी भाषा में पीरियड्स को ‘मखड़ो’ कहते हैं। कई रोमानी समाजों में आज भी पीरियड्स के बारे में इस तरह की मान्यताएं हैं, जैसे कि रसोई घर में प्रवेश ना करना, नए कपड़े या रसोई के बर्तन को न छूना, घर के सारे पुरुष के कपड़ों की धुलाई पर पाबंदी, पीरियड्स के दौरान महिलाओ को परिवार के सदस्यों से पृथक रखा जाता है, भेड़/बकरी को छूने या चराने से रोकना जो लड़कियों और महिलाओं की भावनात्मक मानसिकता, जीवनशैली और सबसे महत्वपूर्ण स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव डालती है।
आयु और लिंग के आधार पर रोमनी समाज में पितृसत्ता का एकाधिकार है जिसमें रोमानी महिलाएं सबसे अधिक कमज़ोर हैं और शायद ही किसी को इनकी सुरक्षा और शिक्षा की परवाह है। महिलाओं कि जीवन संरचनाएं पुरुषों के अधीन हैं। परंपरा में उलझी रोमानी महिलाओं और लड़कियों के पास उनके यौन या वैवाहिक जीवन पर उनका नियंत्रण बहुत कम हैं। उनके बच्चों के जन्म के बीच का समय कम होता है, परिणामस्वरूप उनके लिए एक कमज़ोर शारीरिक और मानसिक स्थिति हमेशा ही बनी रहती है। पितृसत्तात्मक सामुदायिक संरचना, शीघ्र विवाह, रोमानी महिलाओं द्वारा बच्चों की परवरिश और प्रजनन एक पारंपरिक रोमानी संस्कृति के जीवन की केंद्रीय विशेषताएं हैं।
रोमानी में लैंगिक भूमिकाओं में पितृसत्तात्मक मानदंडों का प्रभुत्व है। समुदायों, पुरुषों और महिलाओं की भूमिकाएं स्पष्ट रूप से विभाजित हैं। महिलाएं कानूनी और आर्थिक आधिकारों से वंचित हैं। प्रथागत मानदंड के अंतर अभी भी उनसे पारंपरिक प्रथाओं का पालन करने की अपेक्षा की जाती है। घर को व्यवस्थित रखने और परिवार के सदस्यों या बच्चों की देखभाल करने जैसे काम पर बल दिया जाता है। शिक्षित महिलाओं में बेरोज़गारी दर काफी अधिक है। गरीब महिलाएं तो पढ़ने-लिखने तक में असमर्थ होती हैं। रोमानी महिलाएं अपनी आजीविका के लिए बांस की टोकरी बनाती हैं। अपनी प्रतिभा से लोगों का हाथ देखना और भविष्यवाणी करना जीविका अर्जित करने का एक और साधन है। रोमा महिलाओं के उत्थान के लिए कई गैर-सरकारी संस्थाए सुचारु रूप से काम तो कर रही हैं, लेकिन इनकी बेहतरी के लिए और भी कई लाभप्रद योजनाओं की पहल की आवश्यकता है।
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संदर्भ सूची:
- पुस्तक – Roma the Gypsy World
- Indian Express
यह लेख रिमझिम सिन्हा ने लिखा है। उनके शोध का विषय रोमा समुदाय की महिलाओं से जुड़ा है। यह उनके शोध का एक हिस्सा है। वह नैशनल लॉ यूनिवर्सिटी की पूर्व रिसर्च असोसिएट रही हैं। वह सुंदरा फाउंडेशन की फाउंडर भी हैं।
तस्वीर साभार : The Independent