बेग़म अख़्तर वह शख़्सियत हैं जिन्हें मल्लिका-ए- गज़ल के नाम से जाना जाता है। वह बीसवीं सदी के भारत में गज़ल और ठुमरी-दादरा की सबसे मशहूर गायिका रह चुकी हैं। बेग़म अख़्तर के लिए संगीत वह दवा थी जो उन्हें उनके जीवन केे संघर्षों और दर्द से निजात दिलाती थी। बेग़म अख़्तर का जन्म 7 अक्टूबर 1914 को उत्तर प्रदेश के फैज़ाबाद में अख़्तरी बाई के रूप में हुआ था। उनके पिता असगर हुसैन पेशे से वकील थे और मां का नाम मुश्तरी बेगम था। बचपन में उन्हें ‘बीबी’ के नाम से बुलाया जाता था। बेग़म अख़्तर की एक जुड़वा बहन भी थी जिनका नाम ज़ोहरा था। जब बेग़म अख़्तर और उनकी बहन मात्र चार साल की थी, तब उनके पिता असगर हुसैन ने उन्हें छोड़ दिया था। एक बार बेग़म अख़्तर और उनकी बहन ने जहरीली मिठाइयां खा ली थीं जिसके बाद उन दोनों को अस्पताल ले जाया गया। इस हादसे के बाद बेग़म अख़्तर तो बच गई लेकिन उनकी जुड़वा बहन ज़ोहरा का निधन हो गया।
अपनी बहन के मौत के बाद बेग़म अख़्तर एकदम अकेली हो गई थी, तब संगीत ही उनका एकमात्र सहारा बना। संगीत के प्रति उनकी रुचि को देखते हुए उनकी मां ने उन्हें संगीत की शिक्षा देने का फै़सला किया। बेग़म अख़्तर की मां उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत में परांपरागत बनाना चाहती थी, लेकिन बेग़म अख़्तर की दिलचस्पी गज़ल और ठुमरी सीखने में थी जिनमें वह खुद को अच्छे से व्यक्त कर पाती थीं। उन्होंने कई उस्तादों से संगीत की शिक्षा ली।
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13 साल की होने से पहले ही उन्हें भी अन्य महिला गायिकाओं की तरह यौन हिंसा का सामना करना पड़ा। साल 2008 में द लाइवमिंट में छपे एक लेख के मुताबिक, बिहार के एक राज्य के राजा जो ने बेग़म अख़्तर का बलात्कार किया था जिसके बाद उन्होंने शमीमा नाम की लड़की को जन्म दिया। बेग़म अख़्तर की मां मुश्तरी बेगम ने बेग़म अख़्तर को समाज में एक अविवाहित मां के संघर्षों से बचाने के लिए उनके बच्चे को अपना बच्चा बताया। जिसके बाद शमीमा अख्तर को उनकी बहन के तौर पर जाना गया।
बेग़म अख़्तर ने आठ साल के लिए संगीत भी छोड़ा था। हालांकि, कई गर्भपात और अपनी मां की मृत्यु के बाद वह काफी बीमार पड़ गई। इसके बाद डॉक्टरों ने यह महसूस किया कि केवल संगीत के माध्यम से ही वह इस दुख से उभर सकती हैं।
यह सारी घटनाएं तब हुई जब वह मात्र 13 साल थीं। साल 1934 में पहली बार 15 साल की उम्र में उन्होंने नेपाल-बिहार भूकंप पीडि़तों के लिए रखे गए एक संगीत कार्यक्रम में प्रदर्शन किया। इस कार्यक्रम में सरोजिनी नायडू भी उपस्थित थीं। बेग़म अख़्तर की गायन प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्होंने उनकी काफी प्रशंसा की। इस कार्यक्रम के बाद उनका जीवन एकदम बदल गया। उन्होंने सिनेमा में अभिनय किया। उन्होंने अमीना (1934), मुमताज़ बेगम (1934), जवानी का नशा (1935), नसीब का चक्कर (1936), रोटी (1942) और जलसाघर (1958) जैसी फिल्मों में काम किया। बेग़म अख़्तर ने प्रसिद्ध संगीत निर्देशक मदन मोहन के साथ फिल्म में दाना पानी (1953) में “ऐ इश्क मुझे और तो कुछ याद” गाना गया था। साल 1945 में, उन्होंने बैरिस्टर इश्तियाक़ अहमद अब्बासी से शादी कर ली, जिसके बाद ही अख्तरीबाई ‘बेग़म’ अख़्तर से जानी गई।
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बेग़म अख़्तर ने आठ साल के लिए संगीत भी छोड़ा था। हालांकि, कई गर्भपात और अपनी मां की मृत्यु के बाद वह काफी बीमार पड़ गई। इसके बाद डॉक्टरों ने यह महसूस किया कि केवल संगीत के माध्यम से ही वह इस दुख से उभर सकती हैं। बेग़म अख़्तर का आठ साल बाद संगीत की दुनिया में लौटना उनके जीवन का दूसरा चरण था। जिसमें उन्होंने बड़े पैमाने पर सार्वजनिक स्थानों पर निजी महफिलों में प्रदर्शन किया और आखिरकार वह ऑल इंडिया रेडियो में गाने लगी जिससे उनकी आवाज़ देश के कई क्षेत्रों तक पहुंचने लगी।
बेग़म अख़्तर भगवान कृष्ण की भी भक्त थीं। वह पहली महिला थीं जिन्होंने खुद को उस्ताद घोषित किया और उन्होंने अपने शिष्यों के साथ “गंडा बंद” समारोह में प्रदर्शन भी किया। बेग़म अख़्तर अपनी आखिरी सांस तक गाती रहीं। उनका निधन 30 अक्टूबर 1974 को अहमदाबाद में एक कार्यक्रम के बाद केवल 60 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। उन्हें पद्मश्री और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मरणोपरांत उन्हें पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया था। बेग़म अख़्तर की गायन शैली अद्वितीय है जिसकी वजह से ही उन्हें आज भी ‘मल्लिका -ए- गज़ल’ कहा जाता है।
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तस्वीर साभार : Famous People
संदर्भ :
The Live Mint
The Famous People