भारत में यौन अपराधों से जुड़े सामाजिक कलंक के कारण बलात्कार के मामलों को अभी भी बहुत कम रिपोर्ट किया जाता है। इस पितृसत्तात्मक समाज में यही माना जाता है कि बलात्कार के बाद सर्वाइवर की इज़्ज़त चली गई। महिला अधिकार कार्यकर्ता स्वर्गीय कमला भसीन कहती ने कहा था, “जब एक महिला का बलात्कार होता है तो कहा जाता है कि महिला की इज्ज़त चली गई। समाज की मर्यादा को योनि में किसने रखा है? हमने आपके समाज को वहां कभी नहीं रखा। हमने अपने सम्मान और प्रतिष्ठा को योनि में नहीं रखा है। सम्मान किसी के चरित्र, व्यक्तित्व में अंतर्निहित होता है न कि किसी के शरीर के एक हिस्से में। बलात्कार होने पर हम अपना सम्मान नहीं खोते हैं। बलात्कारी आत्मसम्मान खो देता है और उसे अपना आत्मसम्मान खोना चाहिए, सर्वाइवर को नहीं।”
हमारा पितृसत्तात्मक समाज कमला भसीन की इस बात से सहमत ही नहीं हो पता है। पुलिस के अनुमान के मुताबिक बलात्कार के 10 में से केवल चार केस ही रिपोर्ट किए जाते हैं। वहीं, जब अपराधी परिवार का सदस्य होता है, तो यह अंडर-रिपोर्टिंग बढ़ जाती है। इसके पीछे तथाकथित रूप से घर की इज़्ज़त को समाज में बचाना होता है। दिल्ली पुलिस ने एक संसदीय पैनल को सूचित किया कि राष्ट्रीय राजधानी में 98 फ़ीसद मामलों में आरोपी करीबी रिश्तेदार थे या सर्वाइवर के परिचित थे। रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में कुल बलात्कार के 44फ़ीसद मामलों में, आरोपी सर्वाइवर के परिवार या एक पारिवारिक मित्र से थे, 13फ़ीसद रिश्तेदार थे और 12फ़ीसद पड़ोसी थे।
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समय-समय पर हमारे देश के राजनेताओं द्वारा महिलाओं को घर में रहने का सुझाव दिया जाता है। कुछ राजनेता जो कि थोड़े खुले विचार वाले हैं वे दिन में महिलाओं का बाहर जाना खुले मन से स्वीकारते हैं मगर शाम के बाद महिलाओं का बाहर न जाने का प्रवचन देने से नहीं भूलते हैं। पितृसत्तात्मक विचारों के मुताबिक शाम के बाद बाहर महिलाओं के लिए ख़तरा होता है। महिलाओं के लिए उनके घरों के बाहर सभी खतरों के बारे में यह पूरा षड्यंत्र महिलाओं को घरों के अंदर रखने और उन्हें नियंत्रण में रखने का एक तरीका है। लेकिन उस भयावह स्थिति का क्या किया जाए जब महिलाओं के साथ हिंसा करनेवाले उनके घरों में ही मौजूद होते हैं?
यौन हिंसा करने वाले वे लोग होते हैं जिनके पास परिवार के भीतर किसी प्रकार का वर्चस्व होता है और इसके बारे में सर्वाइवर द्वारा न बोलने से आरोपी का सर्वाइवर पर नियंत्रण बरकरार रहता है। भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में संयुक्त परिवार की धारणा सदियों से चली आ रही है, लेकिन अगर इन संयुक्त परिवारों में झांका जाए तो एक भयावह सच्चाई देखने को मिलती है।
महिलाओं, बच्चियों के साथ घरों के अंदर उनके परिचित द्वारा की जानेवाली हिंसा में चंद घटनाएं ही होती हैं जिनके खि़लाफ़ आवाज़ उठाने की हिम्मत सर्वाइवर कर पाती है। इसके विपरीत पूरे देश में रोज़ाना हज़ारों घटनाएं ऐसी होती हैं जहां पर इस प्रकार की घटनाओं को तथाकथित ‘लोक-लाज, समाज में इज़्ज़त’ के नाम पर घर में ही दबा दिया जाता है। परिचित बलात्कार एक ऐसा विषय है जिसके बारे में बात करना ‘पाप’ समझा जाता है, या फिर अक्सर इन मामलों में सर्वाइवर की बात पर विश्वास ही नहीं किया जाता। कई मामलों में, पुलिस ऐसे मामले दर्ज भी नहीं करती है। वे उलटा समझा-बुझाकर सर्वाइवर को ही घर वापस भेज देते हैं।
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परिवार के सदस्यों द्वारा की गई यौन हिंसा के सर्वाइवर्स में अधिकतर छोटे बच्चे शामिल होते हैं। लेकिन इस हिंसा को रिपोर्ट करने या चुप रहने का निर्णय उनके घर के एक वयस्क द्वारा लिया जाता है। उनके द्वारा नाबालिग सर्वाइर के लिए लिया गया फैसला कई कारकों से प्रभावित होता है। जैसे, यदि पिता आरोपी है तो उसकी गिरफ्तारी से परिवार को होने वाली आय की हानि, इस आरोप के सामने आने पर समाज में तथाकथि बदनामी आदि। असल में इस प्रकार की यौन हिंसा करने वाले वे लोग होते हैं जिनके पास परिवार के भीतर किसी प्रकार का वर्चस्व होता है और इसके बारे में सर्वाइवर द्वारा न बोलने से आरोपी का सर्वाइवर पर नियंत्रण बरकरार रहता है। भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में संयुक्त परिवार की धारणा सदियों से चली आ रही है, लेकिन अगर इन संयुक्त परिवारों में झांका जाए तो एक भयावह सच्चाई देखने को मिलती है। यह देखा जाता है कि ज्यादातर महिलाओं के साथ उनके परिचित लोग यौन हिंसा करते हैं। केवल महिलाएं और बच्चियां ही नहीं बल्कि इसका सामना लड़के भी करते हैं।
आज के समय में, परिचित द्वारा यौन हिंसा के विषय पर खुलकर बात करना आवश्यक है। एक सर्वाइवर जो पहले ही शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान है वह आवाज़ न उठा पाने के कारण आरोपी के साथ एक छत तले रहने पर मजबूर है। रोज़-रोज़ हिंसा के खौफ़ से उसे गुज़रना पड़ता है कि न जाने कब क्या हो जाए?
मानव व्यवहार और संबद्ध विज्ञान संस्थान के निदेशक निमेश देसाई कहते हैं, ‘परिवार के भीतर गैर-सहमति से यौन संबंध इस देश में सभी वर्गों में काफी आम है। ऐसे मामलों में अपराधियों का लगता है कि चाहे कुछ भी हो, सर्वाइवर इसे रिपोर्ट नहीं करेंगे और वे इससे आसानी से बच जाएंगे।’ जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने ससुर द्वारा अपनी बहू के साथ बलात्कार के एक मामले में बड़ी सटीक टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा कि बलात्कार केवल एक शारीरिक हमला नहीं है। यह अक्सर सर्वाइवर के पूरे व्यक्तित्व के लिए विनाशकारी होता है। बलात्कार के कृत्य में सर्वाइवर के मानसिक मानस को डराने की क्षमता होती है और यह आघात वर्षों तक बना रह सकता है।
आज के समय में, परिचित द्वारा यौन हिंसा के विषय पर खुलकर बात करना आवश्यक है। एक सर्वाइवर जो पहले ही शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान है वह आवाज़ न उठा पाने के कारण आरोपी के साथ एक छत तले रहने पर मजबूर है। रोज़-रोज़ हिंसा के खौफ़ से उसे गुज़रना पड़ता है कि न जाने कब क्या हो जाए? अगर सर्वाइवर पहले ही आवाज़ उठा दे या उसके व्यवहार को देखकर घर के अन्य सदस्य उसके साथ बीतने वाले भयावह लम्हों को समझ जाएं और उसका साथ दें तो सर्वाइवर के लिए न्याय पाने की राह आसान होने की संभावना बनेगी।
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तस्वीर: अर्पिता विश्वास फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए