देश-दुनिया बाबा साहब आंबेडकर को मुख्य तौर एक संविधान निर्माता के तौर जानती-पहचानती है। थोड़ा और गहराई में जाएं तो आंबेडकर की पहचान को संविधान निर्माता से आगे एक दर्शनशास्त्री, समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री, समाज सुधारक और एक शिक्षक में रूप में ख्याति प्राप्त है। लेकिन क्या आपको यह पता है कि बाबा साहब एक पत्रकार भी रहे हैं जिन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। भारतीय साहित्य की कथाओं, कहानियों, श्लोकों, सूक्तियों, मुहावरों, गीता, महाभारत इत्यादि पौराणिक प्रसंगों के माध्यम से काल्पनिकता को यथार्थ की आंच पर तपाकर उसमें पारदर्शी सत्य को उजागर किया है। कहा जाता है कि बात को समझाकर कहने की प्राध्यापकीय प्रवृत्ति के कारण पत्रकार नई पत्रकार पीढ़ी का निर्माण भी करता है। उनकी पत्रकारिता सही मायनों में उनकी जीवनयात्रा, चिंतनयात्रा और संघर्षयात्रा का एक सजीव प्रतीक है।
आंबेडकर ने क्यों उठाई पत्रकारिता की मशाल
जीवन भर बाबा साहब ने दलित होने का दंश झेला। स्कूल से लेकर नौकरी करने तक उनके साथ भेदभाव होता रहा। कभी कक्षा के बाहर बैठाए गए तो कभी चपरासी ने भी बाबा साहब को पीने के लिए पानी नहीं दिया तो कभी विद्वान बनने के बाद भी इस जातिवादी समाज में मंदिर जाने से रोके गए। इस तरह के भेदभावों ने उनके मन को बहुत ठेस पहुंचाई। उन्होंने छूआछूत का समूल नाश करने की ठान ली। उन्होंने देशभर में घूम-घूम कर दलितों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई और लोगों को जागरूक किया। अपने इन्हीं विचारों को लोगों तर पहुंचाने के लिए बाबा साहब पत्रकार बने।
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बाबा साहब आंबेडकर ने 27 सितंबर, 1951 को केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने इस्तीफा क्यों दिया, इसके संबंध में बाबा साहब ने एक वक्तव्य 10 अक्टूबर 1951 को जारी किया था। संसद के बाहर इस वक्तव्य को जारी करने का कारण यह था कि संसद में उन्हें यह वक्तव्य देने से रोका गया था क्योंकि वे वक्तव्य की प्रति अध्यक्ष को भाषण से पहले नहीं सौंपना चाहते थे।
दलितों के अधिकार के लिए आवाज उठाने वाले बाबा साहब ने अपने पत्रकार जीवन की शुरूआत मूकनायक पत्र से की थी। इस पत्र को साल 1920 में प्रकाशित करने का सिलसिला शुरू हुआ था। इस पत्रिका को शुरू करने का मकसद ही यही था कि जो सामाजिक तौर पर पिछड़े, मूक, दलित, दबे-कुचले लोग थे, जो सदियों से सवर्णों का अन्याय और शोषण चुपचाप सहन कर रहे थे, उनके खिलाफ आवाज़ उठा सकें।
यह वक्तव्य उनके त्यागपत्र देने के कारणों के संबंध में था। इस वक्तव्य में संसद को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें तीन वजहों से त्यागपत्र के संबंध में वक्तव्य देना पड़ रहा है। इसमें से एक वजह पत्रकारिता से संबंधित था। उन्होंने कहा था, “हमारे यहां के अखबार भी हैं, जो कुछ लोगों के लिए सदियों पुराने पक्षपात और अन्य के खिलाफ पूर्वाग्रह रखते आए हैं। उनकी धारणाएं तथ्यों पर कम ही आधारित होती हैं। जब उन्हें कोई रिक्त स्थान दिखाई देता है, वे उसे भरने के लिए ऐसी बातों का सहारा लेते हैं, जिसमें उनके प्रिय लोग बेहतर नजर आएं और जिनका वे पक्ष नहीं लेते, वे गलत नजर आएं। ऐसा ही कुछ मेरे मामले में हुआ है, ऐसा मुझे लगता है।”
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मूकनायक से शुरू की पत्रकारिता
दलितों के अधिकार के लिए आवाज उठाने वाले बाबा साहब ने अपने पत्रकार जीवन की शुरूआत मूकनायक पत्र से की थी। इस पत्र को साल 1920 में प्रकाशित करने का सिलसिला शुरू हुआ था। इस पत्रिका को शुरू करने का मकसद ही यही था कि जो सामाजिक तौर पर पिछड़े, मूक, दलित, दबे-कुचले लोग थे, जो सदियों से सवर्णों का अन्याय और शोषण चुपचाप सहन कर रहे थे, उनके खिलाफ आवाज़ उठा सकें। इसके बाद बहिष्कृत भारत (1924), समता (1928), जनता (1930), आम्ही शासनकर्ती जमात बनणार (1940), प्रबुद्ध भारत (1956) का लेखन और संपादन करने के साथ-साथ प्रकाशन भी किया। मूकनायक का पहला अंक बाबा साहब ने 31 जनवरी, 1920 को निकाला जबकि अंतिम अखबार ‘प्रबुद्ध भारत’ का पहला अंक 4 फरवरी, 1956 को प्रकाशित हुआ।
दूसरे पत्र-पत्रिकाओं ने आंबेडकर के पत्र पर दी प्रतिक्रिया
‘बहिष्कृत भारत’ को लोकर कई दूसरे गैर-दलित पत्रों ने अपनी प्रतिक्रिया प्रकाशित की थी। ऐसी ही एक प्रतिक्रिया के तौर पर तरुण भारत (4 अप्रैल, 1927 को प्रकाशित) में कहा गया, “उच्च शिक्षा संपन्न करके आए व्यक्ति आंबेडकर द्वारा संपादित ‘बहिष्कृत भारत’ पत्र विशेष भूषणीय है। पत्र की भाषा सुबोध व सुरुचिपूर्ण और विचार राष्ट्रीय स्वरूप के होने के कारण यह पत्र श्रेष्ठ दर्जे का साबित हुआ है। 24 अप्रैल 1927 को प्रकाशित प्रजापक्ष का मत था कि अस्पृश्य वर्ग की ओर से लड़ने के लिए ऐसे एक स्वतंत्र पत्र की आवश्यकता थी। वह रिक्ति बहिष्कृत भारत से भर जाएगी। पत्रकार आंबेडकर की लेखनी तड़पदार और तेजस्वी है। हम अपने इस नूतन बंधु (पत्रकार) का स्वागत करते हैं।”
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समकालीन पत्रकारों के साथ स्थापित किया संवाद
डॉ. आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर, मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस एंड एंपावरमेंट, भारत सरकार के डायरेक्टर इंचार्ज रहे और वर्तमान में दिल्ली यूनिवर्सिटी में असोसिएट प्रोफेसर डॉ. देवेंद्र बताते हैं कि बाबा साहब आंबेडकर ने देश की पत्रकारिता को एक नई दिशा दी। उन्होंने अपने लगभग तीन दशक (1920-1956) के पत्रकारिता जीवन में ओजस्विता, दायित्वपूर्ण संपादन, लेखकीय कौशल और सक्षम विवेक, सूझ-बूझ, दबावों से मुक्त पत्रकार की भूमिका निभाई। इस दौर में उन्होंने दलितोन्मुख पत्रकारिता के साथ-साथ समकालीन पत्रकारों के साथ संवाद स्थापित करने की नम्र पहल की तथा उनका मूल्यांकन भी किया। उन्होंने राजनीतिक स्वतंत्रता की अपेक्षा सामाजिक समता के विचार को प्राथमिकता दी। वह पत्रकारिता में सामाजिक न्याय, दलित प्रबोधन, दलित कल्याण समग्रतः दलित चर्चा के लिए अखबार को प्रमुख स्थान मानते रहे। बाबा साहब एक पत्रकार के रूप में भी दलितों की मुक्ति, नए राष्ट्र के निर्माण के लिए कार्य करते रहें क्योंकि उनको इस तथ्य का गहरा एहसास था कि दलित समाज की पूर्ण मुक्ति और प्रबुद्ध भारत का निर्माण एक दूसरे के पर्याय हैं।
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तस्वीर साभार : Current Affairs
स्रोत:
बाबासाहेब, डॉ. आंबेडकर, संपूर्ण वांग्मय, डॉ. आंबेडकर शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली