समाजकानून और नीति मैरिटल रेप पर दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी क्यों मायने रखती है

मैरिटल रेप पर दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी क्यों मायने रखती है

भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में विवाह को एक पवित्र रिश्ता माना जाता है। पति को पत्नी के स्वामी का दर्जा दिया जाता है। अगर पति पत्नी के साथ जबरन शारीरिक संबंध स्थापित करता है तो यह घटना अपराधिक होने के बावजूद इसे अपराध नहीं माना जाता है। क्योंकि घटना को अंजाम देने वाला महिला का पति है। पितृसत्तात्मक समाज में पत्नी के साथ जबरदस्ती यौन-संबंध बनाने को रेप यानि बलात्कार नहीं मानते हैं। पितृसत्ता में पति अपनी पत्नी के साथ ऐसा करने का अधिकारी होता है। लेकिन हाल ही में, दिल्ली हाईकोर्ट में इस विषय पर एक गंभीर चर्चा चल रही है। अदालत शादी के भीतर मौजूद जबरन सेक्स को अपराध करार देने की दिशा में जोर पकड़ती हुई दिख रही है। अदालत महिला द्वारा यौन संबंध में कंसेंट यानि आपसी सहमति के विषय पर विशेष ध्यान दे रही है।

आईपीसी की धारा 375 के अनुसार अगर कोई व्यक्ति किसी महिला के साथ नीचे दिए छह विवरणों में से किसी भी परिस्थिति में यौन संबंध बनाता है तो वह भारतीय कानून के तहत रेप यानी बलात्कार है।

  1. महिला की इच्छा के खिलाफ  
  2. महिला की सहमति के बिना
  3. महिला की सहमति से, लेकिन यह मर्ज़ी उसे मौत का डर, नुकसान या उसके करीबी किसी व्यक्ति के साथ ऐसा करने का डर दिखाकर यह हासिल की गई हो।
  4. महिला की सहमति से, जब पुरुष जानता है कि वह उसका पति नहीं है, और महिला ने सहमति इसलिए दी है क्योंकि वह विश्वास करती है कि वह ऐसा पुरुष है जिसे वह कानूनीपूर्वक विवाहित है या विवाहित होने का विश्वास रखती है।
  5. महिला की सहमति से, लेकिन यह सहमति देते समय महिला की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है या फिर उस पर किसी नशीले पदार्थ का असर हो और महिला सहमति देने के परिणाम न जानती हो।
  6. महिला की सहमति और असहमति से, लेकिन जब महिला 16 वर्ष की उम्र से कम की हो।

क्या है मैरिटल रेप ?

भारत में पति द्वारा महिला की मर्जी के ख़िलाफ़ सेक्स को मैरिटल रेप नहीं माना जाता है। भारत में मैरिटल रैप कानून की नज़र में अपराध नहीं है। भारतीय दंड सहिता की धारा 375 के तहत प्रावधानों में किसी व्यक्ति को उसकी पत्नी के साथ यौन संबंध को बलात्कार के अपराध से अपवाद माना गया है, बशर्ते पत्नी की आयु 15 साल से कम हो। भारत के कानून में किसी भी धारा में इसका स्पष्ट विवरण नहीं है। इसके कानून में विस्तृत व्याख्या न होने के कारण महिला के साथ सेक्स करना पुरुष के वैवाहिक अधिकार को मान्यता देता है।

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मैरिटल रेप पर दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान कही गई ज़रूरी बातें

“यह शायद वैवाहिक घर में महिलाओं के खिलाफ होने वाली यौन हिंसा का सबसे बड़ा रूप है, जो घर की चारदीवारी के भीतर रहता है, जिसका न कोई रिकॉर्ड है, न कोई रिपोर्ट की जाती है और न ही कोई एफआईआर दर्ज़ करवाई जाती है। यदि कोई विवाहित पुरुषों और विवाहित महिलाओं की कुल संख्या की गणना करें तो पता चलेगा कि कितनी बार यह बलात्कार एक संस्थागत विवाह के भीतर होता है, यह एक बहुत बड़ा आंकड़ा है जिसकी कभी कोई रिपोर्ट नहीं होती है। जिसका अध्ययन नहीं किया जाता है।” यह बात दिल्ली हाईकोर्ट में चल रही मैरिटल रेप पर हो रही सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने कही है। दिल्ली हाईकोर्ट में भारत में बलात्कार के अपराधीकरण की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान मैरिटल रेप को लेकर बहस गर्म है।

लाइव लॉ के अनुसार यह तर्क देते हुए, गोंजाल्विस ने अदालत के सामने मामले की जानकारी देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता, एक 27 साल की महिला है जिसका उसके पति ने बलात्कार किया और जिसके बाद उन्हें गंभीर चोटों का भी सामना करना पड़ा। यही नहीं वरिष्ठ वकील ने अदालत में इस बात पर भी सबका ध्यान खींचा कि कैसे वैवाहिक बलात्कार पर समाज और पुलिस महिला की कोई मदद नहीं करता है। गोंजाल्विस ने कहा, “अक्सर, देखा गया है कि मैरिटल रेप के मामलों में महिला की मदद कोई नहीं करता है। न तो उसके माता-पिता और न ही पुलिस उसकी मदद करती है। पुलिस उन पर हंसते हुए कहती है कि वे कैसे अपने पति के खिलाफ एफआईआर दर्ज़ करा सकती हो।” उक्त मामले में, हाउस ऑफ लार्ड ने उस पुराने कॉमन लॉ रूल को बदल दिया है जो यह मानता था कि शादी स्वतः ही यौन संबंधों की अनुमति देती है और पति को पत्नी के बलात्कार या उसके प्रयास का दोषी ठहराया जाता है, जहां पत्नी ने संभोग को लिए अपनी सहमति वापस ले ली हो।    

अदालत में वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ याचिकाएं गैर सरकारी संगठन आरआईटी फाउंडेशन, ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमन्स एसोशियसन और दो अन्य व्यक्ति ने दायर की हैं। जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी हरि शंकर की बेंच इसकी सुनवाई कर रहे हैं जिसमें याचिकर्ताओं ने धारा 375 के अपवाद को खत्म करने के तर्क दिए है। लाइव लॉ में प्रकाशित ख़बर के अनुसार न्यायाधीध सी हरि शंकर ने कहा है, “मेरे अनुसार वैवाहिक बलात्कार को प्रथमा दृष्टि दंडित किया जाना चाहिए। इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए। महिलाओं की यौन स्वायत्तता, शारीरिक स्वतंत्रता उन्हें  कहने का अधिकार देती है और इसमें कोई समझौता नहीं हो सकता है।”

इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह भी कहा है कि विवाहित और अविवाहित महिलाओं के सम्मान में अंतर नहीं करा जा सकता है। कोई महिला विवाहित हो या न हो उसे असहमति से बनाए जाने वाले यौन संबंध को ना कहने का पूरा अधिकार है। अदालत ने कहा कि महिला, महिला होती है और उसे किसी संबंध में अलग तरीके से नहीं देखा जा सकता है। अदालत ने कहा है कि यह कहना कि यदि किसी महिला के साथ उसका पति जबरन यौन संबध बनाता है तो वह महिला आईपीसी की धारा 375 का सहारा नहीं ले सकती और उसे अन्य फौजदारी या दीवानी कानून का सहारा लेना पड़ेगा यह ठीक नहीं है।

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बार एंड बैंच के अनुसार बुधवार को भी मैरिटल रेप की याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखी। दिल्ली हाईकोर्ट ने वैवाहिक बलात्कार की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा है, “हम या तो गलत हो सकते हैं या सही हो सकते हैं लेकिन हम इसे दूर से नहीं देख सकते।” यही नहीं अदालत ने अपराधिक कानून के पहलुओं पर सहायता लेने के लिए वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन को नियुक्त किया है। बुधवार को अदालत में रेप के कानून में मौजूद इस अपवाद को रद्द करने की मांग की गई।

बृहस्पतिवार को भी इस विषय पर अदालत ने अपनी सुनवाई जारी रखी। लाइव लॉ की जानकारी अनुसार जस्टिस जे शंकर ने कहा बलात्कार और अपवाद का प्रावधान है। मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि यह एक दंडनीय अपराध होना चाहिए। हमारे लिए इस प्रावधान को रद्द करने के लिए यह काफी है क्योंकि दूसरा अन्य प्रावधान नहीं है इसलिए हमें इसे बलात्कार के रूप में मानना चाहिए।

मैरिटल रेप महिलाओं के लिए एक बहुत गंभीर समस्या है। शादी की संस्था के तहत महिलाओं के साथ होनेवाली यौन हिंसा को बचाने के लिए तर्क देते देश की सरकार के आंकड़े बताते हैं कि महिलाएं अपने पति द्वारा यौन हिंसा का सामना करती है। इंडियन एक्सप्रेस में छपी ख़बर के अनुसार विवाहित महिलाओं में से 5 प्रतिशत से अधिक ने अपने पतियों द्वारा यौन शोषण का अनुभव करने की बात स्वीकार की है। भारत में 99.1 प्रतिशत यौन हिंसा के केस दर्ज नहीं कराए जाते हैं। भारतीय महिला किसी अन्य व्यक्ति द्वारा हिंसा की जाने से 17 गुना अधिक पति द्वारा यौन हिंसा का सामना करती हैं। महिला के लिए सुरक्षित जगह बताई जाने वाली जगह घर पर वह यौन हिंसा का सामना करती हैं। भारत दुनिया के उन देशों मे से एक है जहां अभी भी वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है।

हमारे देश में पितृसत्तात्मक दृष्टकोण के साथ वैवाहिक बलात्कार को कानूनी मंजूरी मिली हुई है। यहां शादी के बाद महिला पुरुषों की संपत्ति, महिला की शारीरिक स्वायत्तता पर बात नहीं की जाती है। ऐसे में अदालत की सजगता से इस पर चर्चा करना और महिला की सहमति पर बात करना एक सकारात्मक बदलाव की दिशा में काम करना है। इससे पूर्व सरकार ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित करना वैवाहिक संस्था के लिए एक किस्म का खतरा बताया है। द हिंदू के अनुसार सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय में यह दलील दी थी कि पश्चिमी देशों में इसे अपराध माना जाता है इसका मतलब यह नहीं है कि भारत भी आंख बदकर वही करे। सरकार की ओर से दिए जाने वाले यह तर्क पितृसत्ता की जड़ को और गहरा करते है। मैरिटल रेप को घरेलू मसला नहीं है यह एक अपराध है। अपराध करने वाला पति है तो उसको नकारा नहीं जा सकता है। सरकार की ऐसी सोच और समाज से वैवाहिक बलात्कार जैसी कुरीति को हटाने के लिए अदालत ही एकमात्र उम्मीद नज़र आती है।

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(नोटः अदालत में इस केस पर अभी सुनवाई जारी है और हम अपना लेख उसके अनुसार अपडेट करते रहेंगे।)

तस्वीर साभारः ipleaders

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