मीडिया भारत में सबसे प्रभावशाली उद्योग में से एक है। एक आम इंसान की सुबह की शुरुआत अखबार से, दिन में फोन पर मिलनेवाली सूचनाओं और रात में टीवी पर प्रसारित प्राइम टाइम से जरूर जुड़ी हुई होती है। सूचना का यह तंत्र हमारी सोच और जीवनशैली को विकसित करने का काम करता है। वर्तमान में भारतीय टीवी और अखबारों का सूचना देने का तरीका बिल्कुल बदल गया है। आज टीवी के पर्दे पर ‘प्रतिशोध और ताकत’ को प्रस्तुत किया जा रहा है। अखाबारों में वीर रस और आक्रमकता दिखाने वाले वाक्यों और तस्वीरों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
सूचना तकनीक और इंटनेट के समय में सूचना के माध्यम टीवी की तस्वीर बहुत ज्यादा बदल गई है। वर्तमान के टीवी का चेहरा चीखने और आग उगलने वाला बन गया है। टीवी के प्राइम टाइम समाचार हो या टॉक शो उनमें आक्रामकता और प्रतिस्पर्धा बहुत ज्यादा भरी हुई है। मीडिया का स्वरूप एक विशिष्ट बहुसंख्यवाद की ओर हो गया है। मीडिया का व्यवहार एक मर्दानगी से भरपूर एक परियोजना के तहत असहमति का दमन और हाशिए पर रहने वाले लोगों के प्रति नफरत वाला हो गया है। देश के मेनस्ट्रीम मीडिया का एक बड़ा हिस्सा प्रोपेगैंडा से प्रभावित होकर अपना काम कर रहा है। मुख्यधारा के समाचार मीडिया के साथ देश के कमजोर होते संस्थानों का भी इस तरह का व्यवहार बन रहा है।
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पूरी दुनिया के समाजीकरण की प्रक्रिया में मर्दानगी की अवधारणा को बहुत ही मज़बूती से अपनाया गया है। टीवी मीडिया के साथ ही टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी सोशल मीडिया पर भी बढ़ती जा रही है। यह व्यवहार अन्य यूजर्स को भी इसी तरह के मर्दानी सोच वाले व्यवहार को अपनाने के लिए प्रेरित करता है। अन्य लोगों सेक्सिस्ट, जातिवादी और नस्लवादी सोच और व्यवहार के ज़रिये अपनी मर्दानगी को प्रदर्शित करते हैं जिसमें अक्सर हिंसा की धमकी और विशेषतौर पर यौन हिंसा की बातें होती हैं।
मीडिया का व्यवहार एक मर्दानगी से भरपूर एक परियोजना के तहत असहमति का दमन और हाशिए पर रहने वाले लोगों के प्रति नफरत वाला हो गया है। देश के मेनस्ट्रीम मीडिया का एक बड़ा हिस्सा प्रोपेगैंडा से प्रभावित होकर अपना काम कर रहा है।
‘नेटवर्क ऑफ वुमन इन मीडिया’ ने टीवी मीडिया में मौजूद मर्दानगी के व्यवहार का अध्ययन कर एक रिपोर्ट जारी की है। यह रिपोर्ट अंग्रेजी के तीन ‘एम’ यानी ‘मेन, मेल और मैस्क्यूलिन’ के नाम से प्रकाशित की गई है। एनडब्ल्यूएमआई ने इस अध्ययन के लिए 185 न्यूज़ और टॉक शो का अध्ययन किया। इस रिपोर्ट में विशेष रूप से न्यूज एंकर की भाषा और व्यवहार पर बात की गई है। इसमें न्यूज एंकरों के व्यवहार की आक्रामकता का अध्ययन करते हुए पाया गया है कि न्यूज एंकरों का व्यवहार समाचार बुलेटिन और टॉक शो में अलग-अलग होता है। समाचार बुलेटिन के मुकाबले टॉक शो में एंकर के व्यवहार में ज्यादा तेज आक्रामकता देखने को मिलती है। समाचार बुलेटिन को आम तौर पर थोड़ा सरल तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। दूसरी ओर पैनल चर्चा और टॉक शो में एंकर, होस्ट और मेहमानों की भूमिकाओं में एक अलग आक्रामकता देखने को मिलती है।
सैंपल में आक्रामकता का व्यवहार देखने के दौरान आधे से अधिक न्यूज शो में यह दिखाई दी। टॉक शो में यह संख्या बढ़कर 85 प्रतिशत हो गई। इन टॉक शो की चर्चा में हिस्सा लेने के लिए बहुत से मेहमान शामिल होते हैं। चर्चा का संचालन करने वाले एंकर का व्यवहार सबसे ज्यादा आक्रामक होता है। यही नहीं टीवी न्यूज और टॉक शो में साउंड, ग्राफिक और अन्य इफैक्ट्स को भी आक्रामकता बढ़ाने की दिशा में ही इस्तेमाल किया जाता है। भाषा की टोन को 76.76 फ़ीसद अधिक आक्रामकता दिखाने के लिए इस्तेमाल किया गया।
NWMI की इस रिपोर्ट में भारतीय मीडिया के धार्मिक, जातिवादी, महिला-विरोधी और रूढ़िवादी चेहरे पर भी बात की गई। रिपोर्ट में भारतीय मीडिया में मौजूदा लैंगिक भेदभाव पर बात करते हुए मीडिया की भाषा को स्त्रीद्वेषी कहा गया। महिलाओं को एक ऑब्जेक्ट की तरह इस्तेमाल करना जैसी बातों को भी व्यापकता से बताया गया है।
महिला एंकर की भूमिका में भी आक्रामकता
टीवी पर आक्रामकता दिखाने के लिए केवल पुरुष एंकर ही नहीं महिला एंकरों ने भी अपनी भाषा को कठोर बनाया है। मामूली अंतर के साथ पुरुष एंकरों ने 78.13 फ़ीसद और महिला एंकरों ने 75.28 फ़ीसद आक्रामक टोन का इस्तेमाल किया गया। यही नहीं आधे पुरुष एंकर (50.33 फ़ीसद ) पैनल में मौजूद मेहमानों को कमतर समझते दिखें। जबकि एक तिहाई से भी कम महिला एंकरों (30.34 फ़ीसद) ने ऐसा किया।
इस अध्ययन में शामिल शो के विश्लेषण करने पर केवल 23.38 फ़ीसद में जेंडर पॉजिटिव व्यवहार देखा गया। पुरुष एंकर के मुकाबले महिला एंकर अधिक लैंगिक रूप से संवेदनशील भाषा का इस्तेमाल करती दिखीं। यह रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि केवल पुरुष एंकरों द्वारा ही नहीं बल्कि महिला एंकरों द्वारा भी मर्दाना आक्रामकता से भरपूर व्यवहार किया जाता है। पैनल डिस्कसन में पुरुष एंकर के द्वारा संचालन करने पर ज्यादा चिल्लाहट और गुस्सैल व्यवहार का प्रयोग किया जाता है। पुरुष एंकर के द्वारा संचालित पैनल में स्पीकर का चिल्लाना भी ज्यादा (48.75 फ़ीसद) देखा गया है। महिला के पैनल संचालन में यह (15.52 फ़ीसद) देखा गया है। वहीं पैनल में शामिल होने वाले अतिथि में महिलाएं और नॉन बाइनरी लोगों की संख्या बहुत कम देखी गई।
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इस रिपोर्ट में भारतीय मीडिया के धार्मिक, जातिवादी, महिला-विरोधी और रूढ़िवादी चेहरे पर भी बात की गई। रिपोर्ट में भारतीय मीडिया में मौजूदा लैंगिक भेदभाव पर बात करते हुए मीडिया की भाषा को स्त्रीद्वेषी कहा गया। महिलाओं को एक ऑब्जेक्ट की तरह इस्तेमाल करना जैसी बातों को भी व्यापकता से बताया गया है। दूसरी ओर टीवी चैनलों पर समलैंगिक समुदाय का स्थान न देना और नॉन हेट्रोसेक्सुअल लोगों की अनुपस्थिति जैसे तथ्य मीडिया के लैंगिक भेदभाव के पक्ष को प्रर्दशित करते हुए इस रिपोर्ट में उजागर किए गए। रिपोर्ट में टीवी के एंकरों को दूसरों पर अपनी श्रेष्ठता को अधिक अभिव्यक्त करना। इसमें उनके व्यवहार को भाषा, बॉडी लैग्वेज का भी अध्ययन किया गया।
इस रिपोर्ट में कई भाषा के मीडिया का अध्ययन करने पर यह पाया कि अंग्रेजी भाषा में सबसे ज्यादा आक्रामकता का इस्तेमाल किया जाता है। इस अध्ययन के लिए मॉनिटर किए गए टीवी चैनलों की संख्या में अंग्रेजी भाषा के मीडिया का 19 फ़ीसद सैंपल लिया गया। इस रिपोर्ट में कहा गया कि मीडिया का दक्षिणपंथी, अति-राष्ट्रवादी, बहुसंख्यवादी विचारधारा वाला व्यवहार स्पष्ट दिखता है। यह मीडिया सरकार के खिलाफ बोलने वाले को राष्ट्र विरोधी करार दे देती है। यही नहीं ऑनलाइन ट्रोल द्वारा उस पर मौखिक हमले भी किये जाते है जिससे ऑफलाइन हिंसा के वास्तविक रूप से खतरे होने की संभावना भी होती है।
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तस्वीर: फेमिनिज़म इन इंडिया
आप यह पूरी रिपोर्ट इस लिंक पर जाकर डाउनलोड कर सकते हैं।