प्रेम, समाज का एक ऐसा विषय है जिस पर सार्वजनिक और व्यक्तिगत दोनों ही रूप में सबसे कम बात होती है। लेकिन विडंबना यह है कि लोग रोमांटिक फिल्में या कहें जिसमें नायक-नायिका का प्रेम संबंध हो उसे देखना पसंद करते हैं। प्रेम कविताएं, प्रेम किताबें चाव से पढ़ी जाती हैं। प्रेम संबंधी सिनेमा हो, साहित्य हो, नाटक हो इन सबमें एक चीज़ समान है वह है नायक का नायिका से या नायिका का नायक से प्रेम में ‘पड़’ जाना जिसे अंग्रेजी में “फॉलिंग इन लव” कहते हैं।
हम सभी एक दूसरे के साथ, अपने आस-पास भी यही देखते हैं, मानते हैं कि हमें प्रेम बस “हो जाता” है, हम प्रेम में “पड़” जाते हैं। अंग्रेज़ी में कहें तो, वी जस्ट फॉल इन लव (we just fall in love)। यह एकदम स्पष्ट है कि हम एक पितृसत्तात्मक व्यवस्था में रहते हैं। अन्य प्रभुत्व व्यवस्थाओं जैसे नस्लभेद, जातिवाद आदि की तरह पितृसत्ता भी एक प्रभुत्व व्यवस्था है जो यह सुनिश्चित करती है कि मानव संबंधों में एक पक्ष हमेशा ‘उच्च’, दूसरा पक्ष हमेशा ‘निम्न’ रहे।
हेट्रोसेक्सुअल समाज में एक पुरुष उच्च और ताकतवर माना जाता है। वहीं, महिलाओं को निम्न और कमज़ोर। इस व्यवस्था के अनुसार ताकतवर, कमज़ोर पर यानी पुरुष, महिला पर राज करता है। राज न कर पाने की स्थिति में दंड देता है। मसलन घर में जब औरत सवाल करे तो उसे पीट दिया जाता है। अपनी पसंद से शादी करने पर परिवार से बेदखल कर दिया जाता है या मार दिया जाता है। यह व्यवस्था पुरुषों को इस तरह तैयार करती है कि वे अपनी ज़रूरतें पहचानते हैं। आर्थिक, सामाजिक से लेकर भावानात्मक, यौनिक/शारीरिक जरूरतें भी।
महिलाओं के हिस्से यह मौका कभी नहीं आता कि वे अपनी किसी भी तरह की ज़रूरत को समझ सकें, जिसमें भावानात्मक और शारीरिक/यौनिक ज़रूरत तो बहुत दूर की बात है। यह व्यवस्था महिलाओं को इस तरह तैयार करती है कि उनके हिस्से जो भी दिया जाता है उन्हें बस वह स्वीकारना होता है। जिस भी पुरुष से ब्याही जाती हैं बस ब्याह दी जाती हैं यह जाने बगैर कि वे उस व्यक्ति को अपने जीवन साथी के रूप में चाहती भी है या नहीं।
और पढ़ें : प्रेम संबंधों के प्रति भारतीय समाज में फैलती नफरत
इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था ने महिलाओं से ‘चॉइस’ का अधिकार छीना है। अगर महिलाओं को चुनाव मिला भी है तो शर्तों पर जैसे बाहर निकले तो किन कपड़ों में निकलें, दोस्त बनाए तो सिर्फ महिला ही बनाएं आदि, आदि लेकिन पुरुषों के पास ‘चॉइस’ का अधिकार है, वे किससे शादी करना चाहते हैं। हालांकि, भारतीय परिपेक्ष्य में शादी के दोनों पक्ष एक ही जाति, धर्म से हों तभी मन अनुसार शादी संभव है इससे उलट करने के परिणाम ‘ऑनर किलिंग’ जैसे अपराध हैं। कौन सी नौकरी करना चाहते हैं, कहां पढ़ना चाहते हैं आदि उनके मन मुताबिक होता है। यही बात प्रेम में लागू होती है, जब पुरुष किसी महिला से यह कहता है कि वह उसके प्रेम में है, पसंद करता है इसीलिए उसका प्रेम महिला द्वारा स्वीकार किया जाए तब पुरुष महिला से प्रेम में चुनाव का अधिकार छीन रहा होता है।
प्रेम में चुनाव का अधिकार छीनने से पुरुष महिला पर डॉमिनेशन स्थापित करता है जो कि पितृसत्तात्मक है। इसीलिए यह कहने में कोई दो राय नहीं कि फॉल इन लव की धारणा पितृसत्तात्मक है।
चयन और प्रेम पर बेल हुक्स ने क्या कहा
महिला-पुरुष का प्रेम स्वीकार न करे तो ‘मेल इगो’ हर्ट हो जाता है। चॉइस और चाह के बिना प्रेम में ‘पड़ना’, बेल हुक्स के शब्दों में ‘क्राइम्स ऑफ पैशन’ को जन्म देता है जैसे कि वह (पुरुष) उससे (महिला) से अत्यधिक प्रेम करता था, इसीलिए पुरुष ने महिला को मार दिया। इसे और रिलेट करके देखना चाहें तो ऐसे देख सकते हैं कि ऐसिड अटैक्स के मामलों में यह मुख्य रूप से सामने आता है कि पुरुष ने महिला पर इसीलिए तेज़ाब फेंक दिया क्योंकि वह उससे प्यार करता था लेकिन वह उसका प्रेम स्वीकार नहीं कर रही थी, बहुत जगह पुरुष कहता है कि वह (महिला) उसकी नहीं हो सकती तो किसी की नहीं हो सकती आदि आदि तमाम उदाहरण हमारे आस पास, हमारे निजी स्पेस में भी उपस्थित हैं।
प्रेम में चुनाव का अधिकार छीनने से पुरुष महिला पर डॉमिनेशन स्थापित करता है जो कि पितृसत्तात्मक है। इसीलिए यह कहने में कोई दो राय नहीं कि फॉल इन लव की धारणा पितृसत्तात्मक है। ब्लैक फेमिनिस्ट और लेखिका बेल हुक्स अपनी किताब ‘ऑल अबाउट लव’ में कहती हैं कि प्रेम को सिर्फ फीलिंग से जोड़ना, व्यक्ति को जवाबदेही, ज़िम्मेदारी से मुक्त कर देता है क्योंकि हम सिर्फ अपने किए गए एक्शंस के लिए ही खुद को ज़िम्मेदार/जवाबदेह स्वीकारते हैं। लेकिन प्रेम को सिर्फ एक फीलिंग कहकर, अपने हर एक्शन की कोई जवाबदेही/जिम्मेदारी नहीं स्वीकारते। मनोविश्लेषक एरिक फ्रॉम से लेकर एम स्कॉट पेक ने फॉल इन लव के विचार की आलोचना की है। पेक और फ्रॉम जिस तरह से फॉल इन लव का क्रिटिक करते हैं वह बेल हुक्स के क्रिटिक से अलग है।
और पढ़ें : धर्म से संचालित समाज में प्रेम कैसे पनपेगा?
ब्लैक फेमिनिस्ट और लेखिका बेल हुक्स अपनी किताब ‘ऑल अबाउट लव’ में कहती हैं कि प्रेम को सिर्फ फीलिंग से जोड़ना, व्यक्ति को जवाबदेही, ज़िम्मेदारी से मुक्त कर देता है क्योंकि हम सिर्फ अपने किए गए एक्शंस के लिए ही खुद को ज़िम्मेदार/जवाबदेह स्वीकारते हैं लेकिन प्रेम को सिर्फ एक फीलिंग कहकर, अपने हर एक्शन की कोई जवाबदेही/जिम्मेदारी नहीं स्वीकारते।
प्रेम पर एरिक फॉर्म का नज़रिया
एरिक फ्रॉम अपनी किताब आर्ट ऑफ लविंग में बार-बार प्रेम को एक एक्शन के रूप में परिभाषित करते हुए “अनिवार्य रूप से इच्छा का एक कार्य (essentially an act of will)” कहते हैं। आगे वह लिखते हैं, “किसी से प्यार करना सिर्फ एक मजबूत एहसास नहीं है, यह एक निर्णय है, यह एक विवेक है, यह एक वादा है। अगर प्यार सिर्फ एक एहसास होता, तो एक दूसरे को हमेशा के लिए प्यार करने के वादे का कोई आधार नहीं होता क्योंकि भावना आती है और जा भी सकती है।”
पेक के शब्दों में “फॉल इन लव धारणा में हम सहज संघ (एफर्टलेस यूनियन) की कल्पना में निवेश करना जारी रखते हैं। हम विश्वास करना जारी रखते हैं कि हम बह गए हैं, उत्साह में फंस गए हैं, कि हमारे पास विकल्प और इच्छाशक्ति की कमी है।” बेल हुक्स किताब ऑल अबाउट लव में पेक को कोट करती हैं जिसमें वह कह रहे है, “प्रेम की इच्छा स्वयं प्रेम नहीं है।”
प्यार वैसा ही होता है जैसा प्यार करता है (love is as love does)। प्रेम इच्छा का एक कार्य है यानि इरादा और कार्य दोनों। इच्छाशक्ति में चयन भी शामिल है। हमें प्यार करना ही नहीं पड़ता है, हम प्यार करना चुनते हैं (We do not have to love. We choose to love)। प्रेम को ‘चुनना’ अधिक वास्तविक, अधिक यथार्थ है। यथार्थ प्रेम खुद के और सामनेवाले व्यक्ति (जिससे प्रेम है) के स्वत्व अधिकार (ऑटोनोमी) को पहचानता है। ऐसे प्रेम की नींव प्रेम के भिन्न आयामों – देखभाल, प्रतिबद्धता, विश्वास, ज़िम्मेदारी, सम्मान और बोध पर टिकी होती है। प्रेम में भी हमें यह पहचानने की ज़रूरत है कि इसकी नींव पितृसत्तात्ममक होनी चाहिए या बराबर रूप से आत्मीय, मानवीय। प्रेम को चुनिए जैसे हम अपने लिए एक बेहतर किताब चुनते हैं, बेहतर संगीत, बेहतर संगत चुनते हैं।
और पढ़ें : पढ़ें : एरिक फ्रॉम की विश्वविख्यात पुस्तक ‘आर्ट ऑफ लविंग’ की कुछ मशहूर पंक्तियां
तस्वीर : श्रेया टिंगल फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए