इंटरसेक्शनलयौनिकता यौनिकता को समझना हम लोगों के लिए ज़रूरी क्यों है? 

यौनिकता को समझना हम लोगों के लिए ज़रूरी क्यों है? 

हम अपनी ज़िंदगी में क्या करेंगें, कैसे रहेंगें, किसके साथ रहेंगें, किसी के साथ रहेंगें या नहीं किस जगह रहेंगें जैसे सारे सवालों पर हमारी सहमति-हमारी पसंद, हमारी यौनिकता का ज़रूरी हिस्सा होती है। किसी भी चीज़ के लिए हां कहने या ना कहने या कुछ ना कहने का अधिकार यौनिकता से जुड़ा हुआ है।

‘यौनिकता’ इस शब्द को पहली बार मैंने एक ट्रेनिंग में सुना। यह शब्द सुनते ही दिमाग़ में विचार आता है कि इसका मतलब यौन-संबंध या योनि से है पर ट्रेनिंग के माध्यम से ये समझ बनी कि वास्तव में यौनिकता एक बड़ा शब्द है, जिसके कई अलग-अलग मतलब हैं। गाँव में लड़कियों और महिलाओं के साथ काम करने के दौरान मैंने उनके साथ कई अलग-अलग मुद्दों पर बैठक की, पर मुझे नहीं मालूम था कि यौनिकता इन सभी मुद्दों से जुड़ी हुई है, तो आइए आज हम लोग चर्चा करते हैं कि यौनिकता के साथ कौन-कौन से मुद्दे या पहलू मुख्य रूप से जुड़े हुए हैं।

1. यौनिकता का संबंध पहनावे, खानपान और जीवनशैली से

हमें खाने में क्या पसंद है, हमें किस तरह के और किस रंग के कपड़े पसंद है या फिर मैं अपनी ज़िंदगी कैसी जीती हूं, कैसे जीना चाहती हूं और मेरी रोज़मर्रा की ज़िंदगी कैसी है। ये सब बातें यौनिकता से जुड़ी हुई हैं। पितृसत्ता द्वारा तय किए गए जेंडर के ढांचे की वजह से कई बार समाज के बताए जेंडर आधारित नियम के चलते पहनावे, खानपान और जीवनशैली को लेकर अंतर होता है और कई बार अपनी पसंद से भी हम ये अंतर बनाते हैं, पर ये सभी सीधे तौर पर यौनिकता से जुड़े होते हैं।

2. यौनिकता का ज़रूरी अंग सहमति

हम अपनी ज़िंदगी में क्या करेंगें, कैसे रहेंगें, किसके साथ रहेंगें, किसी के साथ रहेंगें या नहीं किस जगह रहेंगें जैसे सारे सवालों पर हमारी सहमति-हमारी पसंद, हमारी यौनिकता का ज़रूरी हिस्सा होती है। किसी भी चीज़ के लिए हां कहने या ना कहने या कुछ ना कहने का अधिकार यौनिकता से जुड़ा हुआ है।

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हमें कब शादी करनी है, किससे शादी करनी, कहां शादी करनी है, कैसे शादी करनी, शादी करनी भी है या नहीं। या फिर हमारा साथी कौन होगा, उसके साथ हमारे रिश्ते कैसे होंगे, जैसे सभी ज़रूरी बातें यौनिकता से जुड़ी हुई है। अपने लिए साथी का चयन और रिश्ते चुनने का अधिकार हमारी यौनिकता होती है।

3. समय के बदलती रहती है यौनिकता

जैसा कि हम जानते है समय के साथ हम लोगों की पसंद और नापसंद में बदलाव आता रहता है। हो सकता है कुछ समय पहले हम जिन चीजों के लिए सहमत थे, कुछ समय के बाद उन चीजों के लिए असहमत हो जाए तो ये बदलाव भी यौनिकता का हिस्सा है। जिस तरह हम लोगों के स्वभाव और अनुभवों में बदलाव प्राकृतिक होता है, ठीक उसी तरह यौनिकता में भी बदलाव होता है। यौनिकता कभी भी एक रूप में नहीं होती है।  

4. साथी और रिश्ते चुनने का अधिकार होती है यौनिकता

हमें कब शादी करनी है, किससे शादी करनी, कहां शादी करनी है, कैसे शादी करनी, शादी करनी भी है या नहीं। या फिर हमारा साथी कौन होगा, उसके साथ हमारे रिश्ते कैसे होंगे, जैसे सभी ज़रूरी बातें यौनिकता से जुड़ी हुई है। अपने लिए साथी का चयन और रिश्ते चुनने का अधिकार हमारी यौनिकता होती है।

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5. हिंसा और भेदभाव की शुरुआत होती है यौनिकता पर शिकंजा कसने से

शारीरिक लिंग के आधार पर हमारे समाज में लड़का-लड़की दोनों के लिए बक़ायदा नियम बनाए गए हैं, जो किसी भी तरह की हिंसा या भेदभाव का मूलाधार होती है। समाज अपनी सत्ता को महिलाओं की यौनिकता पर अपना कंट्रोल करके क़ायम करता है, यही वजह है कि हमारे समाज में महिलाओं को अपनी मर्ज़ी से साथी चुनने, अपनी पसंद के कपड़े पहनने और ज़िंदगी जीने का अधिकार नहीं दिया जाता है। इसलिए हम लोग जब भी हिंसा या भेदभाव की बात करते हैं तो इसके लिए यौनिकता को समझना बहुत ज़रूरी होता है, क्योंकि इसे समझे बिना हम हिंसा और भेदभाव की परतों को नहीं समझ सकते हैं।

यौनिकता से जुड़े ये कुछ ऐसे ज़रूरी पहलू हैं, जिसके बारे में हम लोगों को जानकारी होनी चाहिए। बता दें कि ये लिस्ट पूरी नहीं है और इसे मैंने अपनी समझ के अनुसार तैयार किया है। ख़ासकर तब हम हिंसा, भेदभाव और अधिकार के मुद्दे पर काम करते हैं। यौनिकता उन पहलुओं को उजागर करने का काम करती है, जिससे हमारी समझ मज़बूत हो कि समाज हिंसा और भेदभाव की जड़ें किस हद तक फैलाए हुए हैं और हिंसा व भेदभाव को चुनौती देने के लिए हम लोगों को हर स्तर पर काम करने की ज़रूरत होती है, जो यौनिकता से जुड़ा होता है।

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तस्वीर: श्रेया टिंगल फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए

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