इंटरसेक्शनल छोटे शहर की एक लड़की की अपनी पहचान बनाने और खुद की यौनिकता समझने की शुरुआत

छोटे शहर की एक लड़की की अपनी पहचान बनाने और खुद की यौनिकता समझने की शुरुआत

प्रोजेक्ट में कई सामाजिक मुद्दे जैसे जेंडर, लैंगिक भेदभाव, अधिकार, पसंद, कानून, स्वास्थ्य आदि पर चर्चा होती। इन प्रोजक्ट में वो काफ़ी अच्छे से सोच और रिसर्च करके अपना काम पूरा करती। धीरे-धीरे सेंटर में हो रही एक्टिविटी, चर्चा में जुड़ने लगी इससे वो थोड़ी खुलने लगी।

दबाव, डर, अकेलापन से मुझे मेरी पहचान ही समझने में कश्मकश है। अक्सर किशोरावस्था में किशोरों में खुद को लेकर बहुत से सवाल होते है। लेकिन हमारे समाज में इन पर खुलकर बातचीत करना बहुत दूर की बात होती है। क्या है मेरा आकर्षण?, कौन है मेरे दोस्त? जेंडर के बारे में जब बात करते है तो लड़का और लड़की की बाइनरी तक ही सीमित रखा जाता है।होमोसेक्सुअलिटी को तो समाज नकारता आया है। क्वीयर रिश्तों को लेकर समाज में पाबंदी और हिंसा है वहीं बड़े स्तर पर लोगों में जानकारी का अभाव है। इन विषयों पर बातचीत न होने की वजह से लोगों में अपनी पहचान को समझने में कश्मकश है क्योंकि ना इस पर कोई बात की जाती है ना ही समझा जाता है। 

राजस्थान के अजमेर में स्थित ‘महिला जन अधिकार समिति’ महिलाओं और लड़कियों को तकनीक और कंप्यूटर की शिक्षा देने का काम करती है। इसी संस्थान में कंप्यूटर सीखने परिधि (बदला हुआ नाम) भी आती है। परिधि एक शांत स्वभाव की शर्मीली सी लड़की है। वह हमेशा डरी-सहमी सी रहती है। ना किसी से कुछ ज्यादा बोलती और न ही कभी इधर-उधर की बात करती। उससे देखकर ऐसा लगता जैसे वह किसी गिरफ्त में हो। परिधि से मुलाकात तब हुई जब कंप्यूटर सीखने के लिए मेरे पास आई। वह सेंटर पर अपनी चचेरी बहन के साथ ही आती थी और जब उसकी बहन छुट्टी करती तो वो भी नहीं आती थी। इसकी वजह पूछने पर बताया कि घरवाले कहीं भी अकेले जाने नहीं देते जबकि सेंटर से परिधि के घर की दूरी 5-10 मिनट ही है।

कम्प्यूटर सीखने के साथ-साथ सेंटर में जब सेल्फ रिफ्लेक्शन प्रोजेक्ट होते हैं जैसे मैं कौन हूं, मेरी खासियत, मेरी पसंद और नापसंद, मुझे किससे खुशी मिलती है और किससे दुख मिलता है। कौन सी चीजें मुझे गुस्सा दिलाती है तो मेरा सपना आदि आदि तो वो काफ़ी सोच में डूबी होती और काफ़ी सोचकर अपनी बातें प्रोजेक्ट के ज़रिए लिखती। ऐसा करने से वो थोड़ा बहुत बात करने लगी और उसने बताया की वह टीचर बनना चाहती है।

प्रोजेक्ट में कई सामाजिक मुद्दे जैसे जेंडर, लैंगिक भेदभाव, अधिकार, पसंद, कानून, स्वास्थ्य आदि पर चर्चा होती। इन प्रोजक्ट में वो काफ़ी अच्छे से सोच और रिसर्च करके अपना काम पूरा करती। धीरे-धीरे सेंटर में हो रही एक्टिविटी, चर्चा में जुड़ने लगी इससे वो थोड़ी खुलने लगी। अब परिधि के लिए सेंटर एक सेफ स्पेस बन गया और वो सेंटर में ही अपनी बहन के साथ बैठकर पढाई भी करती। उसे टीचर बनना है तो बीएड का कोर्स के लिए वो पढाई करती। घर में उसका मन नहीं लगता और वहां उसे पढ़ना अच्छा नहीं लगता था। पहली बार जब परिधि की बहन के सेंटर नहीं तो वह अकेली आई। इस दौरान उससे बात होने पर उसने झिझकते हुए अपने बारे में कई बाते बताई। वह कहती है, “मेरे घरवाले मुझे कहीं भी अकेला नहीं भेजते है, पता नहीं क्यों वो मुझसे रूखे रहते है। घर में मेकी बहन और भाई-भाभी मुझसे ज्यादा बात नहीं करते हैं। मेरे कोई ज्यादा दोस्त नहीं है और मुझे लोगों से बात करने में डर लगता है।”

वह अपनी यौनिकता को उनके सामने इजहार कर पाई। उसकी बात सुनकर साथी ने उससे बात की कि “मैं आपकी फीलिंग्स को समझ सकती हूं। हमारी फीलिंग्स किसी के लिए भी हो सकती है जो प्राकृतिक है।

घर के माहौल के बारे में बात करते हुए वह आगे कहती है कि एक बार मेरे कोचिंग का लड़का मेरे नोट्स ले गया था तो देने के लिए घर के बाहर आया था मैंने उससे अपने नोट्स लिए और घर में आ गई। घरवालों ने मुझे बहुत डांटा ख़ासतौर पर भाई ने उन्हें लगा कि मेरी दोस्ती उस लड़के से है। मैंने उन्हें बहुत समझाया कि हमारे बीच कुछ भी ऐसा वैसा नहीं है, लेकिन वो नहीं माने और मेरी कोचिंग छुड़वा दी। मैं अभी बीए भी प्राइवेट से कर रही हूं। भाई मुझे ऐसे वीडियो भेजते है जिसमें लड़का-लड़की पसंद से शादी करके भाग गए तो लड़की का भाई उन्हें बहुत मारता है। ऐसे देखकर मुझे बहुत डर लगता है।

यौन शोषण को सबसे कर दिया अनसुना

इससे आगे एक दूसरी घटना बताते हुए वह बताती है कि एक बार जब मैं अपने मामा के यहां गई तो वहां मेरा यौन शोषण हुआ। मेरे मामा ने मुझे बहुत गलत तरीके से छुआ और असजह महसूस कराया। इस बारे में जब मैंने अपनी मम्मी को बताया तो उन्होंने मेरी बात को नहीं माना और मुझ पर बहुत गुस्सा हुई। इतना ही नहीं उन्होंने किसी से कुछ भी कहने को मना कर दिया। इस कारण मेरी मम्मी मुझसे बहुत दिन तक नाराज़ रही। उन्होंने मामा के घर न जाने की वजह से मुझको दोष दिया। वह आगे सहमते हुए बोलती है कि मेरी क्या गलती है इसमें, मेरी तो सुनी ही नहीं। मेरी बहन के लिए रिश्ते आते है पर मेरे लिए नहीं आते तो घरवाले मुझे ही कहते है कि तेरे लिए क्यों नहीं आ रहे। ये सब बातें मुझे क्या पता, मैं तो शादी नहीं करना चाहती मुझे डर लगता है।”

रितिका बैनर्जी फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए।

परिधि एक सहजकर्ता (फेसिलेटर) साथी से बात करने लगी और उसके प्रति आकर्षण महसूस करने लगी। वह मैसेज करके उनसे बात करती। सहजाकर्ता साथी को थोड़ा अलग लगा पर परिधि अपनी बात रख पा रही थी और जानकारी के लिए बात कर रही थी तो बात हुई। लेकिन जल्द ही उससे खुलकर अपनी भावनाएं सहजकर्ता के सामने रखी। वह अपनी यौनिकता को उनके सामने इजहार कर पाई। उसकी बात सुनकर साथी ने उससे बात की कि “मैं आपकी फीलिंग्स को समझ सकती हूं। हमारी फीलिंग्स किसी के लिए भी हो सकती है जो प्राकृतिक है। आप एलजीबीटीक्यू+ सत्र में मौजूद थी जब जेंडर बाइनरी, यौनिकता के बारे में आपसे बाते की गई थी।  

परिधि ने इस पर कहा, “हां, उस सत्र के बाद ही मैं खुद को समझ पाई और बोल पाई हूं।” सहजकर्ता साथी ने आगे बात की “आपकी फीलिंग्स है पर मेरी फीलिंग्स आपके लिए उस तरह की नहीं है। हमारा आकर्षण अलग-अलग हो सकता है लेकिन सहमति होनी भी आवश्यक है। मैं आपकी मदद कर सकती हूं चीजों को समझाने में और आपको कोई जज नहीं किया जाएगा। परिधि अपने एहसासों और सामाजिक बंदिशों के बीच बहुत विचलित थी। उसे यह भी डर था कि उसकी भावनाएं जानने के बाद सहजकर्ता उससे बात भी करेंगी या नहीं।

वह कहती है, “मेरे घरवाले मुझे कहीं भी अकेला नहीं भेजते है, पता नहीं क्यों वो मुझसे रूखे रहते है। घर में मेकी बहन और भाई-भाभी मुझसे ज्यादा बात नहीं करते हैं। मेरे कोई ज्यादा दोस्त नहीं है और मुझे लोगों से बात करने में डर लगता है।”

सहजकर्ता के ना करने पर परिधि का व्यवहार बहुत अलग रहा। वह बहुत बैचेन रही। खुद में ग्लानि महससू करने लगी लेकिन बाद में उसे समझाया गया कि हम दोंनो अलग हैं, आप जैसा महसूस करती है वैसा मैं नहीं करती हूं। मेरा आकर्षण अलग है। ये सब जानते हुए भी आप अपने आपको नुकसान न पहुंचाओ इसलिए मैं आपसे बात करू तो ये गलत होगा। मैं आपकी भावना को समझती हूं आपके साथ किस तरह का बर्ताव हुआ लेकिन हमें यहां मेरी पसंद और यौनिकता का भी ख्याल रखना होगा कि मैं क्या महसूस करती हूं। काफी बातें करने के बाद परिधि को चीजें समझ में आई वह उस कश्मकस से बाहर निकली और अपने अस्तित्व को पहचाने लगी।

परिधि के लिए सेंटर पर खुद के बारे में सोचने पर वह खुद को पहचान पाई। अपनी यौनिकता को स्वतंत्र हो जाहिर कर सकी। इतना ही नहीं बातचीत करने के बात वह सहमति की बारे में भी जानी कि किसी भी रिश्ते के लिए सहमति होना कितनी आवश्यक है। वह खुद के अस्तित्व को तलाशते हुए नए अनुभव को बनाना चाहती थी। अपने साथ हुए यौन शोषण के अनुभवों को धुंधला करते हुए आगे बढ़ना चाहती थी। परिधि बाद में कहती है, “मुझे अपनी पहचान के बारे में सोचना है, अपने आपको समझना है। मैं पहले जॉब करना चाहती हूं ताकि मैं अपने फैसले खुद ले पाऊं और अपनी जिंदगी अपने तरीके से जी पाऊं।”


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