‘सारी औरतें एक जैसी होती हैं’, ‘औरतों में दिमाग नहीं होता है’, ‘औरतें ड्रामा क्वीन होती हैं’, ‘वे हिंसा के झूठे आरोप लगाती हैं’, ‘आदमी हमेशा से इनके झूठ का शिकार होता आया हैं,’ ये बातें भारतीय पुरुष सोशल मीडिया पर लिखते नज़र आ रहे हैं। अमेरिका में हुए एक फै़सले के बाद अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को पार करते हुए भारतीय पुरुषों की एकता की मिसाल सोशल मीडिया की दुनिया में तैर रही है। एंबर हर्ड के ख़िलाफ़ जॉनी डेप को मिली जीत के बाद सोशल मीडिया पर मर्दाना ताकत उन्माद फैलाती दिख रही है। अपने हीरो के प्रति संवेदना और सहानुभूति ज़ाहिर करते हुए भारतीय पुरुष महिलाओं की आलोचना कर उन्हें ‘धोखेबाज’ कहते नज़र आ रहे हैं।
हॉलीवुड कलाकार जॉनी डेप और उनकी पूर्व पत्नी एंबर हर्ड के बीच मानहानि के मामले में अमेरीकी अदालत ने अभिनेता के पक्ष में फ़ैसला सुनाने के बाद दुनियाभर में महिलाओं के विरोध में प्रतिक्रिया की बाढ़ आ गई। एंबर हर्ड का नाम लेकर लोग महिला विरोधी बातें कर रहे हैं। खासतौर पर भारत में जिस तरह से पुरुषों की प्रतिक्रिया सामने आई है उससे यह साबित किया जा रहा है कि महिलाएं निजी फायदों के लिए ‘मासूम मर्दों’ के ख़िलाफ़ झूठी शिकायतें करके उन पर अत्याचार करती हैं।
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क्या था पूरा मामला
जॉनी डेप ने अपनी पूर्व पत्नी एंबर हर्ड पर मानहानि का मुक़दमा किया था। साल 2018 में एंबर ने द वाशिंगटन पोस्ट अख़बार में एक लेख लिखा था। उस लेख में हर्ड ने लिखा था कि उन्होंने घरेलू हिंसा का सामना किया है। हालांकि, उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया था। लेकिन जॉनी डेप ने कहा था कि यह लेख उनकी मानहानि करता है। लेख का उनके करियर पर असर पड़ा है। इसके बाद डेप ने अपनी पूर्व पत्नी पर 50 मिलियन डॉलर का मुक़दमा दायर कर दिया था। बाद में हर्ड ने भी 100 मिलियन डॉलर का केस किया था।
जॉनी डेप और एंबर की शादी 2015 में हुई थी। शादी के बाद दो साल के भीतर ही दोंनो का रिश्ता ख़त्म हो गया था। हर्ड ने तलाक़ की अर्जी दी थी। तलाक के बाद ही ये लेख लिखा गया था और केस दर्ज किया गया। अदालत ने डेप के पक्ष में अपना फैसला सुनाते हुए हर्ड से कहा है कि वे मानहानि के नुकसान के बदले, डेप को 15 मिलियन डॉलर का भुगतान करें। इसमें 10 मिलियन डॉलर मुआवजे और पांच मिलियन डॉलर दंड के तौर पर चुकाने होंगे।
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हॉलीवुड कलाकार जॉनी डेप और उनकी पूर्व पत्नी एंबर हर्ड के बीच मानहानि के मामले में अमेरीकी अदालत ने अभिनेता के पक्ष में फैसला सुनाने के बाद दुनियाभर में महिलाओं के विरोध में प्रतिक्रिया की बाढ़ आ गई। एंबर हर्ड का नाम लेकर लोग महिला विरोधी बातें कर रहे हैं। खासतौर पर भारत में जिस तरह से पुरुषों की प्रतिक्रिया सामने आई है उससे यह साबित किया जा रहा है कि महिलाएं निजी फायदों के लिए ‘मासूम मर्दों’ के ख़िलाफ़ झूठी शिकायतें करके उन पर अत्याचार करती हैं।
सोशल मीडिया ट्रायल
छह हफ्तों के अदालती ट्रायल के साथ-साथ एक ट्रायल सोशल मीडिया पर लगातार चल रहा है। फैसले के बाद से और तेजी से डेप के प्रशंसक एंबर हर्ड के ख़िलाफ़ प्रतिक्रियाएं देने लग गए। हर्ड का मज़ाक उड़ाने और उन्हें कमज़ोर साबित कर सोशल मीडिया पर उन्हें घेरना शुरू कर दिया। उनके रोते हुए चेहरे के स्क्रीन शॉट लेकर मीम बनाए गए। अमेरिका में तो उनके रोने की वीडियो ट्रेंड कर गई।
जॉनी डेप भारत में कितने मशहूर है यह एक अलग विषय है, लोग उनकी फिल्में पसंद करते होंगे लेकिन जैसे ही उनकी पत्नी के ख़िलाफ़ यह फैसला सुनाया गया, भारतीय पुरुष फेसबुक, ट्विटर जैसी सोशल मीडिया साइट्स पर हर्ड के विरोध में बातें लिखने लगे। वास्तव में हर्ड के बहाने भारतीय मर्दों की महिला-विरोधी मानसिकता सामने आई। सोशल मीडिया पर लोग फेक विक्टिमहुड से जुड़े स्टेट्स लगा रहे हैं। बड़ी संख्या में लोग महिलाओं को झूठी सिम्पैथी बटोरने और लोगों के करियर तबाह करने वाला कह रहे हैं।
फैसले के बाद डेप द्वारा जारी की गई पोस्ट को शेयर करते हुए लोग इसे महिलाओं को सबक सिखाने वाला महत्वपूर्ण फैसला बताने लगे। इसी तरह के तर्क दिए गए की अगर भारत में डेप का केस चलता तो दहेज का आरोप लगाकर उनके पूरे परिवार को जेल में डाल दिया जाता। अमेरिका में तो मर्दों को इंसाफ मिला है। लेजेंड जॉनी डेप की फोटो शेयर कर उन्हें इतिहास में पहला आदमी बताया जा रहा है जिसने एक महिला के ख़िलाफ़ जीत दर्ज की है। हिंसा के केस पर ये प्रतिक्रियाएं जश्न और उत्साह से भरी हुई दिखीं जिनमें महिलाओं को केंद्र में रखकर अपमानित करने से भी परहेज नहीं किया।
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इस फैसले के बाद एक तस्वीर तो साफ हो गई है कि हम एक महिला विरोधी समय में हैं। फैसले के बाद बड़ी संख्या में लोग जश्न के साथ विक्टिम ब्लेमिंग करते नज़र आए। एंबर के बहाने सारी महिलाओं को निशाना बनाया गया हैं। महिलाओं के ख़िलाफ़ अपमानित भाषा का इस्तेमाल कर उन्हें यह मेसेज देने की कोशिश की गई है कि सारी महिलाएं झूठी होती हैं।
फैसले का प्रभाव
ज्यूरी के फैसले के बाद एंबर हर्ड ने बयान जारी करते हुए कहा था, “मैं बहुत निराश हूं कि इस फ़ैसले का बाक़ी की महिलाओं पर क्या असर पड़ेगा। ये एक झटका है। ये हमें उस समय में वापस ले जाएगा, जब बोलने वाली महिलाओं को पब्लिकली शर्मिंदा और अपमानित किया जाता था। ये फैसला महिलाओं के खिलाफ हिंसा को गंभीरता से लिए जाने को भी ख़ारिज करता है।” वास्तव में उनके इस बयान को सच साबित करने के लिए हमें इंताज़ार करने की ज़रूरत नहीं है।
इस फैसले के बाद एक तस्वीर तो साफ हो गई है कि हम एक महिला विरोधी समय में हैं। फैसले के बाद बड़ी संख्या में लोग जश्न मनाने के साथ-साथ विक्टिम ब्लेमिंग करते नज़र आए। एंबर के बहाने सारी महिलाओं को निशाना बनाया गया हैं। महिलाओं के ख़िलाफ़ अपमानित भाषा का इस्तेमाल कर उन्हें यह मेसेज देने की कोशिश की गई है कि बोलने का नतीजा यह होता है। खासतौर पर जो महिलाएं यौन हिंसा और #मीटू अभियान के दौरान बोली उनको टारगेट किया जाने लगा है। मीटू के लिए महिलाओं को पहले से ही आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। इस पूरे मूवमेंट को ही नकारने की बातें की जा रही हैं।
पूरे मामले में ऐंबर को फोकस करके मीटू मूवमेंट को नकारने के साथ-साथ महिला हिंसा को बहाने तक सीमित कर दिया गया। एंबर को झूठा कहकर महिलाओं के ख़िलाफ़ माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है कि औरतें झूठ के दम पर इस तरह के केस करती हैं। सोशल मीडिया में एंबर के ख़िलाफ़ ऐसे हैशटैग बनाए जा रहे हैं जैसे उन्होंने पूरी साजिश के तहत यह सब किया था। #ऐंबरइजएलायर जैसे हैशटैग के ज़रिये उन्हें झूठा कहा जा रहा है। उनकी हार को जश्न के तौर पर देखा जा रहा है। एंबर के साथ-साथ महिलाओं के ख़िलाफ़ नफरत का माहौल बनाया जा रहा है। उनके साथ होनेवाली हिंसा को हल्का मानकर महिलाओं के विरोध को केवल मज़ाक बना दिया गया है।
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दुर्व्यवहार के आरोप लगानेवाली महिलाओं को सबक सिखाने जैसा बोलकर सार्वजनिक रूप उन्हें किस-किस तरह का व्यवहार का सामना करना पड़ सकता है। इस केस बाद आई प्रतिक्रियाएं दिखाती हैं। करियर में उन्हें अनेक परेशानियों का सामना करना होगा। हाई-प्रोफाइल केस में सोशल मीडिया पर अंतहीन मज़ाक बनाया जा सकता है। हालांकि, पुरुष वर्चस्व वाले समाज में ऐसे दृश्य बहुत आम है जब भी कोई महिला हिंसा और यौन शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाती हैं तो पुरुषों की एक बड़ी फौज उसे झूठा करार साबित करने में लग जाती है। भले ही वह पूरी घटना से वाकिफ हो या न हो। चाहे मामला अदालत के अधीन हो बावजूद इसके पुरुषों का ट्रायल पहले शुरू हो जाता है। यह मनोवैज्ञानिक दबाव महिलाओं पर ही नकारात्मक असर डालता है। इस एक मानहानि के केस बाद सरे आम महिलाओं की जो मानहानि हुई है उसके लिए सत्ता की अदालत में क्या वाकई सुनवाई होगी।
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तस्वीर साभारः sky news