इंटरसेक्शनलजेंडर लड़कियां घर से ‘भागती’ हैं या पितृसत्ता उन्हें घर ‘छोड़ने’ पर मजबूर करती है!

लड़कियां घर से ‘भागती’ हैं या पितृसत्ता उन्हें घर ‘छोड़ने’ पर मजबूर करती है!

भागना एक नकारात्मक शब्द है। जब भी कोई किसी को नुक़सान पहुंचाकर या बचकर निकलता है तो उसके लिए भागना शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन लड़कियों और महिलाओं के लिए अक्सर इस शब्द का इस्तेमाल तभी किया जाता है जब वे अपनी मर्ज़ी से जीना का फ़ैसला करती हैं।

यूपी के नुआंव गाँव की रहनेवाली विद्या बारहवीं कक्षा में थी जब उसकी मुलाक़ात सूरज से हुई। वे दोनों किसी शादी में मिले थे। कुछ समय के बाद उनकी दोस्ती गहरी हो गई और उन लोगों ने शादी करने का फ़ैसला लिया। घरवालों को जब इस बात का पता चला तो उन लोगों ने विद्या पर सख़्ती से पाबंदियां लगानी शुरू कर दीं। इसके बाद विद्या को घर छोड़ना पड़ा। परिवार और आसपास के गांवों में सभी ने हल्ला उड़ाया कि ‘विद्या भाग गई।’ इसके बाद परिवारवालों में उसकी शिकायत पुलिस में कर दी और कुछ समय बाद विद्या और सूरज को पुलिस ने पकड़कर परिवारवालों के हवाले कर दिया। इसके बाद, विद्या की शादी करवा दी गई और सूरज के साथ बुरी तरह मारपीट की गई। लेकिन विद्या को अपना घर क्यों छोड़ना पड़ा था इस सवाल का जवाब तलाशने की किसी ने ज़रूरत नहीं समझी।

सेवापुरी के एक गाँव में रहनेवाली पुष्पा का शराबी पति आए दिन उसके साथ बुरी तरह मारपीट करता था। पाँच बच्चों का पेट पालना पुष्पा के लिए किसी चुनौती से कम नहीं था। दस साल तक अपनी शादी में पुष्पा ने बुरी तरह हिंसा का सामना किया और जब आर्थिक तंगी बढ़ती गई तो सिलाई का काम शुरू किया। उसका घर से बाहर कदम निकालना उसके पति को नागवार गुज़रा और उसने फिर से उसके साथ बुरी तरह मारपीट की। पुष्पा उसी रात अपनी तीन साल की बेटी को लेकर घर छोड़कर चली गई। गाँववालों ने उसके लिए भी कहा, “उसका किसी के साथ चक्कर था, इसीलिए भाग गई।” लेकिन पुष्पा को अपना घर-परिवार क्यों छोड़ना पड़ा, इसकी असली वजह किसी भी ने तलाशना या जानना मुनासिब नहीं समझा।

पितृसत्तात्मक समाज महिलाओं के किसी भी तरह के चुनाव को हमेशा ख़ारिज करता है, क्योंकि यही इसकी वैचारिकी का मूल है। इसलिए जब भी कोई महिला अपने पसंद से जीवन जीने के लिए एक कदम भी बढ़ाती है तो समाज उस पर पाबंदी लगाने लग जाता है। धीरे-धीरे ये मन में विद्रोह का भाव बढ़ाने लगता है और एक समय के बाद महिलाओं को घर छोड़ने जैसा फ़ैसला लेना पड़ता है।

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विद्या और पुष्पा जैसी लड़कियां और महिलाएं अक्सर अपने घर को छोड़कर अपने लिए एक रास्ता चुनती हैं। चूंकि ये चुनाव लड़कियों का होता है इसलिए ये बात पूरे समाज को बुरी लगती है, जिसका ग़ुस्सा वे अपनी भाषा और व्यवहार से ज़ाहिर करते हैं। “लड़की भाग गई” आपने भी कभी न कभी यह लाइन ज़रूर सुनी होगी या फिर लव मैरिज करनेवाले किसी जोड़े के लिए कहा जाता है, “उन लोगों ने भागकर शादी की है।”

भागना एक नकारात्मक शब्द है। जब भी कोई किसी को नुक़सान पहुंचाकर या बचकर निकलता है तो उसके लिए भागना शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन लड़कियों और महिलाओं के लिए अक्सर इस शब्द का इस्तेमाल तभी किया जाता है जब वे अपनी मर्ज़ी से जीने का फ़ैसला करती हैं। लेकिन वे ऐसा क्यों करती हैं इसके पीछे की वजह कोई जानना नहीं चाहता। अगर हम इसे पितृसत्ता के नज़रिए से समझने की कोशिश करते हैं तो ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पितृसत्ता महिलाओं को कभी भी कोई स्पेस नहीं देता है, न अपनी बात कहने का न अपनी पसंद-नापसंद ज़ाहिर करने का। पितृसत्ता का मूल ही है पुरुषों के क़ब्ज़े में रहने। ऐसे में जब कोई महिला अपनी ज़िंदगी का फ़ैसला लेती है और ग़ुलामी की बेड़ियों को चुनौती देती है तो सीधेतौर पर पितृसत्ता की साख को नुक़सान पहुंचाती है। यही वजह है कि लड़कियों और महिलाओं के लिए इस नकारात्मक शब्द का इस्तेमाल किया जाता है।

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लेकिन इन सबके बीच कभी भी हमारे परिवार या समाज में यह जानने की कोशिश नहीं की जाती है कि लड़की के सामने आख़िर अपना घर छोड़कर जाने की नौबत क्यों आती है। इस सवाल को एक दिन मैंने अपनी किशोरी बैठक में शामिल किया और लड़कियों से यह सवाल किया कि क्या उनका कभी मन हुआ कि घर छोड़कर कहीं दूर जाने का या लड़कियां क्यों अपना घर छोड़कर जाने को मजबूर हो जाती हैं? लड़कियों की बातचीत और अनुभव के आधार पर कुछ बातें सामने आई जिससे ये समझने का मौक़ा मिला कि इसके पीछे की कुछ मुख्य वजह क्या है।

किशोरी बैठक में शामिल लड़कियां और महिलाएं, तस्वीर साभार: नेहा

अपनी बातों को कहने का कोई स्पेस नहीं

दशरथपुर की रहनेवाली ख़ुशबू बताती है, “दीदी अपने घर में हम कभी भी अपने मन की बात नहीं कर पाते हैं। अगर हमें कोई दिक़्क़त होती है या हम कुछ करना चाहते हैं तो इसके लिए कोई जगह नहीं है। किसी को हम लोगों की बात सुनने या जानने में कोई रुचि नहीं होती है। इसलिए कई बार मन करता है कि कहीं दूर चले जाओ।” ख़ुशबू की बात पर कई लड़कियां और नवविवाहित महिलाएं भी सहमत हुईं। उनका कहना था कि उनकी कभी मर्ज़ी नहीं पूछी जाती। चाहे शादी, पढ़ाई या काम की बात हो। सब फ़ैसले परिवार में पुरुष लेते हैं। इन फैसलों को उन पर बस थोपा जाता है, जो लड़कियां चुपचाप इसे मान लेती हैं वे ‘अच्छी’ कहलाती हैं। लेकिन जो अपना रास्ता चुनती हैं वे समाज के लिए ‘बुरी’ हो जाती हैं। इन बातों यह बात साफ़ समझ आई कि परिवार में लड़कियों की बातें, विचार, चाहत और इच्छा को लेकर कोई बात न होना एक बड़ा कारण है जब लड़कियों को घर छोड़ने का फ़ैसला लेना पड़ता है।

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लड़कियों और महिलाओं के लिए अक्सर ‘भागना’ शब्द का इस्तेमाल तभी किया जाता है जब वे अपनी मर्ज़ी से जीना का फ़ैसला करती हैं। लेकिन वे ऐसा क्यों करती हैं इसके पीछे की वजह कोई जानना नहीं चाहता।

जेंडर आधारित भेदभाव और हिंसा

घर छोड़कर जानेवाली ज़्यादातर महिलाओं और लड़कियों के परिवार की स्थिति देखने के बाद यह सामने आता है कि जिन भी परिवारों में जेंडर आधारित भेदभाव और हिंसा का स्तर ज़्यादा होता है वहां महिलाओं को न चाहते हुए भी हिंसा को रोकने के लिए घर छोड़कर जाने का फ़ैसला करना पड़ता है। अगर हम पुष्पा को देखें तो उसके सामने शादी के दस साल बाद घर छोड़कर जाने की स्थिति इसलिए आई क्योंकि उसने हिंसा को कभी भी रुकते नहीं देखा बल्कि वह बढ़ती ही जा रही थी। यह एक बड़ी वजह है जो महिलाओं को ऐसा कदम उठाने के लिए मजबूर करती है।

महिलाओं के फ़ैसले को अस्वीकृति

पितृसत्तात्मक समाज महिलाओं के किसी भी तरह के चुनाव को हमेशा ख़ारिज करता है, क्योंकि यही इसकी वैचारिकी का मूल है। इसलिए जब भी कोई महिला अपने पसंद से जीवन जीने के लिए एक कदम भी बढ़ाती है तो समाज उस पर पाबंदी लगाने लग जाता है। धीरे-धीरे ये पाबंदी मन में विद्रोह का भाव बढ़ाने लगती है और एक समय के बाद महिलाओं को घर छोड़ने जैसा फ़ैसला लेना पड़ता है। किसी भी समाज में अगर महिलाओं को अपने सपने, चाहत और इच्छाओं को पूरा करने के लिए अपने घर-परिवार को छोड़ने का फ़ैसला लेना पड़ रहा है तो इसका मतलब है कि हमारी व्यवस्था कहीं न कहीं फेल हो रही है। इसलिए ज़रूरी है कि हम इसमें सुधार की पहल करें और एक संवेदनशील और समान समाज को बनाने की शुरुआत करें।  

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तस्वीर साभार: askwrites.com

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