अमेरिका से शुरू हुआ नारीवादी आंदोलन और उसके विचार पूरी दुनिया में फैल गए। अलग-अलग परिवेश, भौगोलिक स्थिति और पृष्ठभूमि वाली महिलाओं ने पितृसत्ता के नियमों की पहचान कर उनके ख़िलाफ़ बोलना शुरू किया था। आंदोलन से महिलाएं अपने अधिकारों के लिए ज़ागरूक हो रही थीं। शोषण के विरोध में एकजुट होकर महिलाओं के आंदोलन की 19वीं सदी के अमेरिका में एक लहर आई जिसे नारीवादी आंदोलन की पहली लहर कहा गया। इसका मुख्य लक्ष्य महिलाओं के लिए समान अवसर लाना, कानूनी और वोट का अधिकार था। इसके बाद से विस्तृत तौर पर महिलाओं के अधिकारों, शोषण, उनकी पहचान को लेकर आंदोलन के रूप में संघर्ष चलता आ रहा है। जो नारीवाद की दूसरी, तीसरी और चौथी लहर में विभाजित है।
1950 के दशक के मध्य में हुए अमेरिकी सिविल राइट मूवमेंट का नारीवाद की दूसरी लहर पर बड़ा असर था। दूसरी लहर में महिलाओं की स्वायत्ता पर विशेष जोर दिया गया। उनके लिए समान शिक्षा, प्रजनन अधिकार, घरेलू हिंसा, कार्यस्थल पर सुरक्षा जैसे मुद्दे मुख्य रूप से उठाए। वहीं आंदोलन में वर्ग, नस्ल और दास प्रथा के ख़िलाफ़ उपजा क्रोध भी था। रंग के आधार पर होने वाली नस्लीय भेदभाव को उजागर कर उसका विरोध किया गया। नारीवाद की दूसरी लहर में स्त्री अधिकारों और उसकी सामाजिक स्थिति के हर पहलू पर जोर दिया गया था जिस वजह से इसके परिणाम भी विस्तृत है।
और पढ़ेंः नारीवाद की दूसरी लहर : इन महिलाओं ने निभाई थी अहम भूमिका
नारीवाद आंदोलन के पहले और दूसरे चरण के बाद नारीवाद की अवधारणा के विचार-विमर्श में विस्तार हो गया था। नारीवाद आंदोलन की तीसरी लहर 1990 के दशक से मानी जाती है। उस दौरान स्त्रीत्व को पुनपरिभाषित और यौनिक पहचान को महत्व दिया गया। इसमें नस्ल, वर्ग आदि के विमर्श को स्थान देते हुए आंदोलन को अधिक विस्तृत किया गया। पहली और दूसरी लहर में नेतृत्व श्वेत नारीवादियों ने किया था जिसका लाभ भी उन्हें मिला था। तीसरी लहर में ब्लैक महिलाओं के संघर्ष और उनकी स्थिति पर विशेष रूप से बात हुई। इंटरसेक्शन नारीवाद की थ्योरी को रचा गया। इस थ्योरी में नस्ल, जाति, वर्ग, लिंग और व्यक्तिगत विशेषताओं की पहचान को केंद्र में लाया गया।
नारीवादी आंदोलन की तीसरी लहर की यात्रा 2010 तक चौथे चरण की शुरुआत तक मानी जाती है। उस दौर में नारीवादी के मूल मायनों को पहले से ज्यादा विस्तृत किया गया। इस लेख के ज़रिए हम बात करेंगे नारीवादी आंदोलन की तीसरी लहर की महत्वपूर्ण घटनाओं में भूमिका निभाने वाली कुछ नारीवादी महिलाओं के बारे में जिन्होंने तीसरी लहर को एक मुकाम बनाया।
और पढ़ेंः नारीवाद की पहली लहर के दौरान इन पांच महिलाओं ने निभाई थी एक अहम भूमिका
अनीता हिल
अनीता हिल, वह नाम हैं जिसने नारीवादी आंदोलन की तीसरी लहर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। साल 1991 में अनीता हिल ने अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के नामित जज क्लेरेंस थॉमस के ख़िलाफ़ यौन हिंसा का आरोप लगया था। थॉमस ने उन आरोपों को खारिज कर दिया था। उन्होंने उनके आरोपो को अपने ख़िलाफ़ ‘हाई टेक लिचिंग’ कहा था। हिल की गवाही टेलीविजन पर हुई उसके बावजूद अमेरीकी सीनेट में वोटिंग हुई। 52-48 के आंकड़ें से थॉमस को आरोप से बरी कर दिया गया था। यह घटना एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई जिसके बाद नारीवादी आंदोलन की तीसरी लहर को तेज़ी मिली।
अनीता हिल एक नारीवादी कार्यकर्ता, वकील, शिक्षाविद् और लेखक हैं। हिल का जन्म 30 जुलाई 1956 में ओल्काहोमा में एक किसान परिवार में हुआ था। उनकी शुरुआती शिक्षा वहीं से हुई थी। 1977 में उन्होंने ‘ओल्काहोमा स्टेट यूनिवर्सिटी’ से मनोविज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की थी। उसके बाद 1980 में ‘येल स्कूल ऑफ लॉ’ से वकालत की पढ़ाई पूरी की। उसके बाद कुछ समय के लिए उन्होंने वाशिंगटन में एक लॉ फर्म में काम किया। बाद में उन्होंने यूएस डिपार्टमेंट में लीगल एडवाइजर के तौर पर काम किया। यही पर क्लेरेंस थॉमस ने उनके साथ अनुचित व्यवहार कर उनका यौन शोषण किया था
हिल के साथ घटित घटना और उसके परिणाम ने महिलाओं के भीतर कार्यस्थल होने वाले यौन शोषण को लेकर जागरूकता ला दी थी। हिल सार्वजिक जगहों पर यौन हिंसा पर मुखर होकर बोलने लगी थी। हिल एक लेखक, वकील और शिक्षक के तौर पर विस्तृत काम किया हैं। उनकी लिखी प्रमुख किताबें स्पीकिंग ट्रूथ टू पावर, बिलिविंगः अवर थर्टी ईर जर्नी, रीइमेजैनिंग इक्वॉलिटी प्रमुख हैं।
और पढ़ेंः एंजेला डेविस : एक बागी ब्लैक नारीवादी क्रांतिकारी
रेबेका वॉकर
नारीवादी मूल्यों और लक्ष्यों को सयोजित करने में रेबेका वॉकर का योगदान महत्वपूर्ण हैं। रेबेका वॉकर नारीवादी आंदोलन की तीसरी लहर की प्रमुख आवाज़ मानी जाती हैं। उन्होंने 1992 में पत्रिका ‘मिस मैगजीन’ में ‘बीकमिंग द थर्ड वेव’ में एक लेख लिखते हुए “आई एम द थर्ड वेव” का संबोधन किया था। रेबेका ने इस लेख में अनीता हिल के मामले में प्रतिक्रिया जाहिर की थी। रेबेका ने यह स्थापित करने की कोशिश की थी कि तीसरी लहर नारीवाद की कोई प्रतिक्रिया नहीं है यह अपने आप में एक आंदोलन है, क्योंकि नारीवादी निगाह से अभी बहुत काम और बदलाव आना बाकी है।
रेबेका वॉकर का जन्म 17 नवंबर 1969 में हुआ था। रेबेका ने केवल 22 साल की उम्र में पत्रिका में लेख लिखकर नारीवाद आंदोलन की तीसरी लहर और महिलाओं के अधिकारों और उनके सम्मान की बात शुरू कर दी थी। रेबेका ने शैनेन लिस गार्डियन के साथ ‘थर्ड वेव फंड’ की स्थापना की थी। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य युवा महिलाओं के साथ हर रंग, नस्ल और ट्रांस समुदाय को आंदोलन में शामिल करना और उनके नेतृत्व को बढ़ावा देना था। रेबेका ने महिलाओं के हितों की दिशा में हमेशा अपनी आवाज़ रखी है। साल 1994 में टाइम मैगजीन ने उन्हें 50 भविष्य के अमेरीकी नेताओं की सूची में शामिल किया था।
और पढ़ेंः नारीवाद का प्रथम चरण : ‘फर्स्ट वेव ऑफ फेमिनिज़म’ का इतिहास
किम्बरले क्रेंशॉ
किम्बरले क्रेंशॉ, एक अमेरिकन मानवाधिकार कार्यकर्ता और क्रिटिकल रेस थ्योरी की एक प्रमुख विद्वान हैं। वह ‘यूसीएलए स्कूल ऑफ लॉ’ और ‘कोलंबिया लॉ स्कूल’ में प्रोफेसर हैं। उन्होंने नस्ल और लैंगिक पहचान के विषय पर विस्तृत काम कर ‘इंटरसेक्शन सिद्धांत’ को गढ़ा। उन्होंने सामाजिक पहचान, विशेष रूप से अल्पसंख्यक पहचान, व्यवस्था और उत्पीड़न के बीच के संबंध पर बात की। किम्बरले के इंटरसैक्शनलिटी का सिद्धांत ने नारीवादी आंदोलन की तीसरी लहर में विविधता का आयाम स्थापित करने का काम किया।
किम्बरले क्रेंशॉ का जन्म 5 मई 1959 में हुआ था। उन्होंने कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से स्नातक की पढ़ाई पूरी की है। उन्होंने 1984 में ज्यूरिस डॉक्टर की डिग्री ‘हार्वर्ड लॉ स्कूल’ से हासिल की थी। उसके बाद ‘यूनिवर्सिटी ऑफ विसकॉनसिन लॉ स्कूल’ से एलएलएम की पढ़ाई की थी। क्रेंशॉ का शैक्षणिक कार्य नस्लीय भेदभाव को समझने के लिए अमेरिकी समाज में एक महत्वपूर्ण कार्य माना जाता है। उनके सिद्धांत के माध्यम से नस्ल, रंग के भेदभाव के बारे में पूरी दुनिया में पढ़ाया जाता है।
क्रेंशॉ, अमेरिका के लीडिंग सोशल जस्टिस थिकटैंक ‘अफ्रीकन-अमेरिकन पॉलिसी फोरम’ की संह-स्थापक हैं। उन्होंने 2015 में #SayHerName के नाम से हैशटैग बनाकर ब्लैक महिलाओं के साथ होने वाली पुलिस की हिंसा की क्रूरता को उजागर करने लिए अभियान चलाया था। क्रेंशॉ ने नागरिक अधिकार, ब्लैक फेमिनिस्ट, लीगल थ्योरी, नस्लवाद पर अनेक लेख और किताबें लिखी हैं।
और पढ़ेंः सेकंड वेव ऑफ फेमिनिज़म : नारीवादी आंदोलन की दूसरी लहर का इतिहास
एमी रिचर्ड्स
एमी रिचर्ड्स एक अमेरिकन सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक, नारीवादी, और कला इतिहासकार के रूप में जानी जाती हैं। एमी रिचर्ड्स ने नेतृत्व और सामाजिक कार्यों के लिए हमेशा अपनी आवाज़ बुलंद रखी हैं। वह सार्वजनिक स्थानों पर भाषण देकर, किताबें लिखकर और नारीवाद पर लेख लिखकर सामाजिक रूढ़ियों पर वार करती नज़र आती हैं। वह 1995 से ‘फेमिनिस्ट डॉटकॉम’ पर ‘आस्क एमी’ कॉलम लिखती हैं। उन्होंने अपनी कला के माध्यम से हमेशा महिलाओं के पक्ष को उजागर किया है। एमी ने महिला आंदोलन पर केंद्रित कई डॉक्यूमेंट्री और फिल्मों का निर्माण किया हैं।
नारीवादी आंदोलन की तीसरी लहर के दौरान एमी रिचर्ड्स ‘थर्ड वेव फंड’ की सह-संस्थापक रही हैं। यह फंड युवा नारीवादी कार्यकर्ताओं को साहयता पहुंचाने के लिए काम करता था। एमी ने लैंगिक समानता को बढ़ावा देने, पितृसत्ता, ट्रांसफोबिया और स्त्रीद्वेष को खत्म करने के लिए हमेशा मुखर रही हैं। इनकी लिखी प्रमुख किताबों में मैनिफैस्टाः यंग वीमन, फेमिनिज़म एंड फ्यूचर है।
रिचर्ड्स ने लैंगिक समानता लागू करने में हमेशा युवाओं की भूमिका पर विशेष जोर दिया है। उनका मानना है कि लैंगिक न्याय युवाओं को ज्ञान हासिल करने में सक्षम बनाता है और समाज में स्थापित सामाजिक मानदंडों के ख़िलाफ़ कैसे लड़ा जा सकता है इसकी सीख देता है। रिचर्ड ने थर्ड वेव फंड के ज़रिये एलजीबीटीक्यू समुदाय और युवा नेतृत्व को नारीवादी आंदोलन से जोड़ने पर जोर दिया था। वह युवा नेतृत्व में विश्वास करती हैं क्योंकि वह जानती हैं कि भविष्य उन पर निर्भर है।
और पढ़ेंः थर्ड वेव ऑफ फेमिनिज़म : नारीवादी आंदोलन की तीसरी लहर का इतिहास