समाजख़बर लैंगिक असमानता को खत्म करने में लग सकते हैं 300 साल

लैंगिक असमानता को खत्म करने में लग सकते हैं 300 साल

संयुक्त राष्ट्र महिला और संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग द्वारा प्रकाशित एक नई रिपोर्ट के अनुसार सम्पूर्ण तरीके से लैंगिक समानता प्राप्त करने के लिए तीन सदी का समय लग सकता है।

संयुक्त राष्ट्र की हाल ही में जारी हुई एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया से लैंगिक भेदभाव को मिटाने में करीब 300 साल का समय लग सकता है। मौजूदा समय में महिलाओं की राजनीतिक, आर्थिक, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक स्थिति में जो असमानता व्याप्त है उसे खत्म करने के लिए विश्व स्तर पर तीन सदी तक का इंतज़ार करना होगा। दुनियाभर में मौजूद लैंगिक असमानता की इस चुनौतीपूर्ण स्थिति को दिखाने के लिए कई अंतरराष्ट्रीय स्तर की रिपोर्ट्स इस बात पर मोहर लगा चुकी हैं।

संयुक्त राष्ट्र महिला और संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग द्वारा प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि लैंगिक असमानता को खत्म करने के लिए वर्तमान में जो प्रयास हो रहे हैं वे बहुत धीमे हैं। ऐसे में महिलाओं के अधिकार और उनकी स्थिति और चुनौतीपूर्ण होती जा रही है।

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संयुक्त राष्ट्र की हाल ही में जारी हुई एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया से लैंगिक भेदभाव को मिटाने में करीब 300 साल का समय लग सकता है। मौजूदा समय में महिलाओं की राजनीतिक, आर्थिक, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक स्थिति में जो असमानता व्याप्त है उसे खत्म करने के लिए विश्व स्तर पर तीन सदी तक का इंतज़ार करना होगा।

प्रोग्रेस ऑन द सस्टेनेबल डेवलेपमेंट गोल्सः द जेंडर स्नैपशॉट 2022 के नाम से जारी रिपोर्ट के अनुसार कई देश एसडीजी-5 के लक्ष्यों को 2030 तक पूरा नहीं कर पाएंगे। रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे लैंगिक असमानता की खाई को खत्म करने के लिए सहयोग, साझेदारी और निवेश की ज़रूरत है। बिना कार्रवाई, कानून व्यवस्था के महिलाओं के साथ होनेवाली हिंसा को खत्म नहीं किया जा सकता है। शादी और परिवार में उनके अधिकारों को सुरक्षित रखना भी बेहद ज़रूरी है।

रिपोर्ट के मुख्य बिन्दु    

रिपोर्ट के अनुसार अलग-अलग क्षेत्रों में समान भागीदारी पाने के लिए और विकास क्रम में शामिल होने के लिए महिलाओं को लंबा इंतजार करना पड़ सकता है।  

  • कार्यक्षेत्र में महिलाओं को बराबरी हासिल करने में 140 साल का समय लग सकता है। कार्यक्षेत्र में वर्तमान में शीर्ष पदों पर महिलाओं का न होना लैंगिक असमानता की मुख्य वजह है। ठीक इसी तरह संसद में पुरुषों के समान संख्या के लिए 40 साल का इंतज़ार करना होगा।
  • बाल विवाह की समस्या को 2030 तक खत्म करने के लिए, पिछले दशक से 17 गुना तेज़ काम करना होगा। सबसे अधिक गरीब, ग्रामीण क्षेत्र और संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों की लड़कियां इससे प्रभावित हैं। दुनिया के अधिकांश हिस्सों में लोगों के पास भोजन, कपड़े और घर जैसी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त आय नहीं है।
  • दुनियाभर में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में ज्यादा गरीबी देखी गई है। वैश्विक स्तर पर 380 मिलियन महिलाएं और लड़कियां गरीबी के निचले स्तर पर जीवन जीने के लिए मज़बूर हैं। रिपोर्ट के मुताबिक़ अगर यही ट्रेंड चलता रहा तो सब-सहारा अफ्रीका में 2030 तक महिलाओं में और गरीबी बढ़ जाएगी। 
  • साल 2021 में हर तीन में से एक महिला ने भोजन की असुरक्षा का सामना किया। युद्ध की वजह यह स्थिति और खराब देखने को मिली है। बढ़ती कीमतों की वजह से अधिक संख्या में महिलाओं और बच्चों के बीच भूख की समस्या अधिक बढ़ने की आशंका है। 
  • महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर रिपोर्ट में कहा गया है कि असुरक्षित अबॉर्शन, मातृत्व मुत्यु दर की अधिकता का सबसे बड़ा कारण है। वर्तमान में 1.2 बिलियन प्रजनन आयु वाली महिलाएं और लड़कियां ऐसे देशों और क्षेत्रों में रहती हैं जहां सुरक्षित अबॉर्शन पर रोक है। 102 मिलियन महिलाएं ऐसे क्षेत्र में रहती है जहां अबॉर्शन पर प्रतिबंध लगा है। ऐसी स्थिति महिलाएं के यौन प्रजनन अधिकारों की वास्तविकता को दिखाती है। 
  • रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं और लड़कियों तक बराबर कानूनी सुरक्षा और अधिकार को वर्तमान दर से पहुंचाने के लिए और 286 सालों का समय लगेगा। 

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युद्ध, पर्यावरण और कोविड-19 महिलाओं के लिए है ज्यादा बड़ी बाधा

रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के लिए लैंगिक असमानता की स्थिति को युद्ध, जलवायु संकट और महामारी और अधिक गंभीर करती है। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं पर इन सबका ज्यादा बुरा असर पड़ता है। पहले से संकट और अभाव में जीवन जीने वाली महिलाओं और लड़कियाें के लिए इस तरह की आपदाएं स्थिति को और खराब कर देती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 और महिलाओं के यौन प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों के ख़िलाफ़ प्रतिक्रियाएं लैंगिक समानता की दिशा में काम करने में बाधा बन रही है। कोविड-19 की वजह से लड़कियों के स्वास्थ्य, महामारी ने महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर पुरुषों के मुकाबले ज्यादा असर पड़ा है। साथ ही रिपोर्ट के अनुसार 2019 के मुकाबले 2021 में महिलाओं के जीवन में पुरुषों के मुकाबले 1.6 साल की कमी देखी गई है।   

कोविड-19 की वजह से लड़कियों के स्वास्थ्य, महामारी ने महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर पुरुषों के मुकाबले ज्यादा असर पड़ा है। साथ ही रिपोर्ट के अनुसार 2019 के मुकाबले 2021 में महिलाओं के जीवन में पुरुषों के मुकाबले 1.6 साल की कमी देखी गई है।   

महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा का व्यवहार अधिक बना हुआ है। वैश्विक स्वास्थ्य, जलवायु और मानवीय संकट ने पहले के मुकाबले और अधिक हिंसा को बढ़ा दिया है। विशेष रूप से और अधिक कमजोर महिलाएं और लड़कियां अब अधिक असुरक्षा का सामना करती हैं। रिपोर्ट के अनुसार शहरी क्षेत्र में रहने वाली आधी से अधिक महिलाओं नें रात में बाहर अकेले जाने पर असुरक्षित महसूस किया है। यह इस बात का प्रमाण है कि महामारी के दौरान हिंसा और उत्पीड़न बढ़ा है। इससे अलग रिपोर्ट में यह कहा गया है कि जबरन विस्थापित महिलाओं और लड़कियों की संख्या में दुनियाभर में बढ़ोत्तरी देखी गई है। साल 2021 में वैश्विक स्तर पर 12.4 मिलियन महिलाएं और लड़कियों की संख्या रिफ्यूजी के तौर पर दर्ज की गई है। 

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यूएन वीमन की कार्यकारी निदेशिका सीमा बहाउस ने कहा, “हम जैसे-जैसे 2030 के आधे रास्ते के करीब पहुंच रहे हैं, यह महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक समानता के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। यह महत्वपूर्ण है कि हम एकजुट होकर महिलाओं और लड़कियों के विकास के लिए तेजी से निवेश करें। वैश्विक संकटों जैसे आय, सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य को बदतर कर दिया है। इस प्रवृति को बदलने में हम जितना अधिक समय लेंगे उसकी उतनी ही कीमत चुकानी पड़ेगी।”

एसडीजी लक्ष्य क्या है और भारत की क्या स्थिति है

संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया के बेहतर भविष्य के लिए 17 सतत विकास लक्ष्य और 169 उद्देश्य सतत विकास के लिए 2030 तक हासिल करने का लक्ष्य बनाया था। साल 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में सदस्य देशों के राष्ट्रध्यक्षों ने विकास के 17 लक्ष्यों को आम सहमति से स्वीकार किया था। सतत विकास लक्ष्य को 2030 का एजेंडा भी कहा जाता है। लैंगिक समानता इन लक्ष्यों में से एक है।  

बात अगर सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में बतौर राष्ट्र भारत के प्रदर्शन की जाए तो देश का प्रदर्शन भी 2030 के तय सीमा से बहुत दूर है। लगातार दो साल से देश सतत विकास लक्ष्य सूचकांक में गिरावट देखी गई है। पिछले वर्ष के मुकाबले भारत की रैंक में तीन पायदान की गिरावट देखी गई है। भारत की कुल 120 में से 117वीं रैक है। भारत का ओवर ऑल एसडीजी स्कोर 100 में से 66 दर्ज किया गया। 

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तस्वीर साभारः  Forbes 

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